राजस्थान, मध्य प्रदेश बीजेपी के लिए खतरे की घंटी बजी
वसुंधराराजे सिंधिया सरकार तथा मध्य प्रदेश में भी बीजेपी के लिए खतरे की घंटी बजी ; राजस्थान में हुए 3 उपचुनावों के रुझान
राजस्थान की दो लोकसभा और एक विधानसभा सीट पर उपचुनाव के नतीजों में बीजेपी का गढ़ दरकता हुआ नजर आ रहा है. कांग्रेस की चुनावों में शानदार वापसी में न केवल वसुंधराराजे सिंधिया सरकार के लिए संदेश छिपा है, बल्कि मध्य प्रदेश में भी बीजेपी के लिए खतरे की घंटी बजा दी है. उपचुनावो में मिली जीत कांग्रेस को राजस्थान में आने वाले चुनावी समर में कमर कसने का टॉनिक दे गई है. वैसे भी राजस्थान में हर पांच साल में सरकार बदलने का वोटर का रिवाज है. ऐसे में कांग्रेस के पास वापसी का मौका है. गुजरात प्रभारी के तौर पर राज्य के पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने अच्छा प्रदर्शन किया था. जिसके बाद उनका पार्टी के भीतर सियासी कद बढ़ा है.
दरअसल, राजस्थान के बाद अब मध्य प्रदेश में इसी महीने अशोक नगर जिले की मुंगावली और शिवपुरी जिले की कोलारस विधानसभा सीट पर उपचुनाव के लिए मतदान होना है. दोनों जगहों पर कांग्रेस विधायक के निधन से खाली हुई सीट पर बीजेपी के लिए मौजूदा समीकरण अच्छा संकेत नहीं है. राजस्थान में ‘कांग्रेस’ लहर इन दोनों जगहों पर बीजेपी को और कमजोर कर देगी. बीजेपी के लिए दोनों सीटों पर जीतना आसान नहीं होगा. 2013 में मोदी लहर के बावजूद दोनों जगहों पर कांग्रेस के उम्मीदवारों ने चुनाव में जीत हासिल की थी. 2018 चुनाव में कांग्रेस के चेहरे के रूप में उभर रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया का इन दोनों जगहों पर काफी मजबूत आधार है. ऐसे में राजस्थान के नतीजे कांग्रेस को उत्साहित कर रहे है.
राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा- “चार साल गुजर गए; किसानों को उचित दाम दिए जाने का वादे अभी भी किए जा रहे हैं। चार साल गुजर गए; फैंसी स्कीम्स हैं, लेकिन बजट के साथ कोई मैच नहीं है। चार साल गुजर गए; हमारे यूथ के लिए कोई जॉब्स नहीं हैंं। शुक्र है, जाने के लिए एक साल बचा है।”
मध्य प्रदेश की राजनीति को बेहद करीब से देखने वाले विशेषज्ञ मानते हैं कि राजस्थान उपचुनाव के नतीजे राज्य की दो सीटों पर होने वाले उपचुनाव में मतदाताओं पर व्यापक असर डालेंगे. राज्य में पिछले दिनों नगरीय निकाय चुनाव में भी भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा संघर्ष हुआ था और मुकाबला अंत में 9-9 की बराबरी पर छूटा था.
जिस वक्त वित्त मंत्री संसद में देश का बजट पेश कर रहे थे उस समय राजस्थान में हुए 3 उपचुनावों के रुझान भी आ रहे थे. देश की नजर बजट पर थी तो राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस की नजर नतीजों पर. इसकी बड़ी वजह सिर्फ सियासी है क्योंकि इन उपचुनावों को विधानसभा चुनाव से पहले सेमीफाइनल की तरह देखा जा रहा था. बजट के बाद नतीजे भी आ गए लेकिन रूझानों ने पहले ही कांग्रेस का ‘हाथ’ थाम लिया था. तीनों सीटों पर कांग्रेस को यादगार जीत नसीब हुई. वो जीत जो उसके लिए संजीवनी से कम नहीं. राज्य दर राज्य सिमटती कांग्रेस के लिए राजस्थान की 3 सीटों की जीत कांग्रेस के नए अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए तोहफा है तो प्रदेश कांग्रेस सचिन पायलट के पास अपनी पीठ थपथपाने का मौका भी.
बड़ा सवाल ये है कि क्या राजस्थान की सियासत में उपचुनाव के नतीजों से ये समझा जाए कि राज्य में जनता का ‘महारानी’ पर से विश्वास उठ रहा है?
क्या गैंगस्टर आनंदपाल एनकाउंटर विवाद, फिल्म पद्मावत विवाद और पार्टी के भीतर की कलह की वजह से वसुंधरा सरकार को नुकसान हुआ? वजह जो भी हो लेकिन नतीजा तो पार्टी के लिए निराशाजनक है.
सचिन पायलट तीनों सीटें जीतने के बाद मुख्यमंत्री से इस्तीफा भी मांगने लगे हैं. दरअसल इस युवा नेता के जोश के पीछे कई वजहें हैं. अरसे बाद कांग्रेस को बीजेपी से सीटें छीनने का मौका मिला है. गुजरात में इसकी शुरुआत हुई तो अब राजस्थान के रण में ये दिन देखने को मिला. भले ही ये उपचुनावों में मिली जीत है लेकिन उपचुनाव के नतीजों की अहमियत को दरकिनार नहीं किया जा सकता है. इनकी अहमियत तब और बढ़ जाती है जब कोई सत्ताधारी पार्टी अपनी जीती हुई सीटें गंवा दे. भले ही बीजेपी इसे कांग्रेस की तात्कालिक उपलब्धि माने लेकिन कांग्रेस इस जीत की सीढ़ी पर पांव रखकर विधानसभा चुनाव को अगले चुनाव में भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी. इसी साल के आखिर में विधानसभा चुनाव हैं तो अगले साल लोकसभा चुनाव भी होने हैं. कांग्रेस को ऐसी ही संजीवनी की तलाश थी जो अजमेर-अलवर और मंडलगढ़ के मैदान में मिल गई. साल 2014 में मोदी-लहर में बीजेपी ने लोकसभा की सारी सीटें जीत कर इतिहास रचा था. लेकिन कब्जे वाली इन दो सीटों पर मिली हार के बाद बीजेपी को फिक्रमंद होने की जरूत है क्योंकि विधानसभा की सीट भी वो हारी है. जाहिर तौर पर नतीजों से सबक लेते हुए बीजेपी अपनी रणनीति में बदलाव करेगी क्योंकि ऐसा भी नहीं कि उसने इन चुनावों को हल्के में लिया हो. भले ही अलवर की सीट पर बीजेपी के चुनाव प्रचार में ज्यादा जोर नहीं दिखा लेकिन अजमेर की सीट को लेकर बीजपी ने पूरा जोर लगाया था.
पिछले साल अजमेर के बीजेपी सांसद सांवर लाल जाट और अलवर से बीजेपी सांसद चांदनाथ योगी के निधन के बाद ये सीटें खाली हुई थीं. वहीं मंडलगढ़ विधानसभा सीट बीजेपी विधायक कीर्ति कुमारी के निधन की वजह से खाली हुई थी. बीजेपी ने अजमेर में बिना कोई सियासी रिस्क उठाए सीधे ही सांवर लाल जाट के बेटे रामस्वरूप लांबा को ही अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया था. बीजेपी को उम्मीद थी कि पारंपरिक सीट पर सहानुभूति वोट भी साथ देंगे. बीजेपी के सामने कांग्रेस ने रघु शर्मा को उतारा. रघु शर्मा इससे पहले जयपुर से भी लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं. रघु शर्मा राजनीतिक रूप से कद्दावर नेता माने जाते हैं और अजमेर जिले के सावर गांव के निवासी होने की वजह से अजमेर की जनता से उनका भी सीधा कनेक्शन है. इसे देखते हुए मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अजमेर में रोड शो के जरिए वोटरों को लुभाने की भरपूर कोशिश की. लेकिन अजमेर की राजनीति ने ऐसी करवट बदली कि बीजेपी के हाथ से उसकी जीती हुई सीट ही निकल गई. उपचुनावों को तभी जनता के मूड के इंडिकेटर के रूप में देखा जाता है.
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