दुनिया के 21 ताकतवर देशों की हुकूमतें इस गुरू के नाम से कांप रही थीं ;जन्म दिवस पर विशेष
HIGH LIGHT # Himalayauk Bureau# सेक्स गुरु के नाम से प्रसिद्ध भारत के धर्म गुरु ओशो रजनीश का जन्मदिन 11 दिसंबर को मनाया जाता है# ओशो के अनुयायी उनका जन्मदिन मोक्ष दिवस के रूप में भी सेलिब्रेट करते हैं. अपने विचारों को खुलकर दुनिया के सामने रखने वाले ओशो का जीवन विवादों से भरा रहा है# कौन है ओशो? यह सवाल आज भी लाखों लोगों के मन में उठता है कोई ओशो को संत-सतगुरू के नाम से जानता है तो कोई भगवान के नाम से. किसी के लिए ओशो महज एक दार्शनिक हैं तो किसी के लिए विचारक. # ओशो की समाधि पर लिखा गया — वो ना कभी पैदा हुआ, ना वो कभी मरा. वो तो बस इस धरती पर 11 दिसंबर 1931 से लेकर 19 जनवरी 1990 तक रहने के लिए आया था#ओशो ने कहा — भारत के युवक के चारों तरफ सेक्स घूमता रहता है # ओशो कहते हैं- आज जितना कामुक आदमी भारत में है. उतना कामुक आदमी पृथ्वी के किसी कोने में नहीं है. # ओशो भारतीयों को दुनिया का सबसे कामुक व्यक्ति मानते थे# उनका ‘संभोग से समाधि की ओर’ विचार काफी प्रसिद्ध हुआ. ओशो भारतीयों को दुनिया का सबसे कामुक व्यक्ति मानते थे. #
उनकी मृत्यु के बाद, उनके आश्रम, ओशो इंटरनॅशनल मेडिटेशन रेसॉर्ट को जूरिक आधारित ओशो इंटरनॅशनल फाउंडेशन चलाती है, जिसकी लोकप्रियता उनके निधन के बाद से अधिक बढ़ गयी है।
कौन है ओशो? यह सवाल आज भी लाखों लोगों के मन में उठता है कोई ओशो को संत-सतगुरू के नाम से जानता है तो कोई भगवान के नाम से. किसी के लिए ओशो महज एक दार्शनिक हैं तो किसी के लिए विचारक. किसी के लिए ओशो शक्ति हैं तो किसी के लिए व्यक्ति. कोई इन्हें संबुद्ध रहस्यदर्शी के नाम से संबोधित करता है तो किसी की नजर में ओशो एक ‘सेक्स गुरु’ का नाम है. स्वीकार और इंकार के बीच प्रेम और घृणा के बीच ओशो खूब उभरे हैं. सन 1970 में ओशो मुंबई में रहने के लिए आ गए. अब पश्चिम से सत्य के खोजी भी, जो भौतिकता के अतिवाद से ऊब चुके थे, उन तक पहुंचने लगे. इसी वर्ष सितंबर में मनाली में आयोजित अपने एक शिविर में ओशो ने नव-संन्यास में दीक्षा देना प्रारंभ किया. सन 1974 में वे अपने बहुत से संन्यासियों के साथ पूना आ गए जहां श्री रजनीश आश्रम की स्थापना हुई. पूना आने के बाद उनकी प्रसिद्धि विश्व भर में फैलने लगी. पूना में उन्होंने असंख्य प्रवचन दिए.
उसकी एक एक बात से मचता था तूफान और एक दिन 21 देशों की हूकुमत बन गई उसकी दुश्मन. वो पैदा हुआ तो चंद्रमोहन था. बड़ा हुआ तो रजनीश. भक्तों ने उसे कहा भगवान, लेकिन उसने नाम चुना ओशो. वो एक गांव की झोपड़ी में पैदा हुआ लेकिन उसकी हुंकार से हिल गया व्हाइट हाउस. दुनिया के सबसे ताकतवर देश ने रची उसकी मौत की साज़िश. उसे दी गई जेल की सलाखें. 21 देशों ने उसे अपने यहां कदम रखने मना कर दिया. लेकिन फिर भी वो देता रहा दुनिया को शांति, सुख और प्रेम का संदेश. वो जब तक जिया उसका हर पल एक संदेश था और जब वो इस दुनिया से गया तो भी संदेश देकर. उसकी मौत पर उसके भक्तों ने दुख नहीं उत्सव मनाया.
जेल में अमेरिकी सरकार ने ओशो को थिलियम नाम का धीमा ज़हर दिया था, जिसके नतीजे में वो बुरी तरह बीमार पड़ गए.
ओशो ने कहा — भारत के युवक के चारों तरफ सेक्स घूमता रहता है पूरे वक्त. और इस घूमने के कारण उसकी सारी शक्ति इसी में लीन और नष्ट हो जाती है. जब तक भारत के युवक की इस रोग से मुक्ति नहीं होती, तब तक भारत के युवक की प्रतिभा का जन्म नहीं हो सकता. प्रतिभा का जन्म तो उसी दिन होगा, जिस दिन इस देश में सेक्स की सहज स्वीकृति हो जायेगी. हम उसे जीवन के एक तथ्य की तरह अंगीकार कर लेंगे—प्रेम से, आनंद से—निंदा से नहीं. और निंदा और घृणा का कोई कारण भी नहीं है
ओशो ने कहा—सवाल यह नहीं है कि गंदी फिल्म क्यों है, सवाल ये है कि लोगों में जरूरत क्यों है? यह तस्वीर जो पोस्टर लगती है, कोई ऐसे ही मुफ्त पैसा खराब करके नहीं लगाता, इसका कोई उपयोग है. इसे कहीं कोई देखने को तैयार है, मांग है इसकी. वह मांग कैसे पैदा हुई है? वह मांग हमने पैदा की है. स्त्री-पुरुष को दूर कर वह मांग पैदा हुई. अब वह मांग को पूरा करने जब कोई जाता है तो हमें गड़बड़ लगती है. तो उसके लिए और बाधाएं डालते हैं. उसको जितनी वे बाधाएं डालेंगे, वह नए रास्ते खोजता है मांग के. क्योंकि मांग तो अपनी पूर्ति मांगती है.
ओशो ने आगे कहा, ‘पोस्टर को देखने वही जा रहा है, जो स्त्री-पुरुष के शरीर को देख ही नहीं सका. जो शरीर के सौंदर्य को नहीं देख सका, जो शरीर की सहजता को अनुभव नहीं कर सका, वह पोस्टर देख रहा है. पोस्टर इन्हीं गुरुओं की कृपा से लग रहे हैं, क्योंकि ये इधर स्त्री-पुरुष को मिलने-जुलने नहीं देते, पास नहीं आने देते. इसी का परिणाम है कि कोई गंदी किताब पढ़ रहा है, कोई गंदी तस्वीर देख रहा है, कोई फिल्म बना रहा है. क्योंकि आखिर यह फिल्म कोई आसमान से नहीं टपकती, लोगों की जरूरत है.’
ओशो ने कहा, ‘अभी मैं एक गांव में था और कुछ बड़े विचारक और संत-साधु मिलकर अश्लील पोस्टर विरोधी एक सम्मेलन कर रहे थे. तो उनका ख्याल है कि अश्लील पोस्टर दीवार पर लगता है. इसलिए लोग कामवासना से परेशान रहते हैं. जब कि हालत दूसरी है. लोग कामवासना से परेशान हैं, इसलिए पोस्टर में मजा है. यह पोस्टर कौन देखेगा? पोस्टर को देखने कौन जा रहा है?’
ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ – १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे , और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलोचक रहे। उन्होंने मानव कामुकता के प्रति एक ज्यादा खुले रवैया समाजवाद, महात्मा गाँधी की वकालत की, जिसके कारण वे भारत तथा पश्चिमी देशों में भी आलोचना के पात्र रहे, हालाँकि बाद में उनका यह दृष्टिकोण अधिक स्वीकार्य हो गया।
वर्ष 1957 में संस्कृत के लेक्चरर के तौर पर रजनीश ने रायपुर विश्वविद्यालय जॉइन किया। लेकिन उनके गैर परंपरागत धारणाओं और जीवनयापन करने के तरीके को छात्रों के नैतिक आचरण के लिए घातक समझते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति ने उनका ट्रांसफर कर दिया। अगले ही वर्ष वे दर्शनशास्त्र के लेक्चरर के रूप में जबलपुर यूनिवर्सिटी में शामिल हुए। इस दौरान भारत के कोने-कोने में जाकर उन्होंने गांधीवाद और समाजवाद पर भाषण दिया, अब तक वह आचार्य रजनीश के नाम से अपनी पहचान स्थापित कर चुके थे।
वे दर्शनशास्त्र के अध्यापक थे। उनके द्वारा समाजवाद, महात्मा गाँधी की विचारधारा तथा संस्थागत धर्म पर की गई अलोचनाओं ने उन्हें विवादास्पद बना दिया। वे मानव कामुकता के प्रति स्वतंत्र दृष्टिकोण के भी हिमायती थे जिसकी वजह से उन्हें कई भारतीय और फिर विदेशी पत्रिकाओ में “सेक्स गुरु” के नाम से भी संबोधित किया गया।
१९७० में ओशो कुछ समय के लिए मुंबई में रुके और उन्होने अपने शिष्यों को “नव संन्यास” में दीक्षित किया और अध्यात्मिक मार्गदर्शक की तरह कार्य प्रारंभ किया। उनके विचारों के अनुसार, अपनी देशनाओं में वे सम्पूूूर्ण विश्व के रहस्यवादियों, दार्शनिकों और धार्मिक विचारधारों को नवीन अर्थ दिया करते थे। १९७४ में पुणे आने के बाद उन्होनें अपने “आश्रम” की स्थापना की जिसके बाद विदेशियों की संख्या बढ़ने लगी, जिसे आज ओशो इंटरनॅशनल मेडिटेशन रेसॉर्ट के नाम से जाना जाता है. तत्कालीन जनता पार्टी सरकार के साथ मतभेद के बाद १९८० में ओशो “अमेरिका” चले गए और वहां ओरेगॉन, संयुक्त राज्य की वास्को काउंटी में रजनीशपुरम की स्थापना की। १९८५ में इस आश्रम में मास फ़ूड पॉइज़निंग की घटना के बाद उन्हें संयुक्त राज्य से निर्वासित कर दिया गया. २१ अन्य देशों से ठुकराया जाने के बाद वे वापस भारत लौटे और पुणे के अपने आश्रम में अपने जीवन के अंतिम दिन बिताये।
चन्द्र मोहन जैन का जन्म भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन शहर के कुच्वाडा गांव में हुआ था। ओशो शब्द की मूल उत्पत्ति के सम्बन्ध में कई धारणायें हैं। एक मान्यता के अनुसार, खुद ओशो कहते है कि ओशो शब्द कवि विलयम जेम्स की एक कविता ‘ओशनिक एक्सपीरियंस’ के शब्द ‘ओशनिक’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘सागर में विलीन हो जाना। शब्द ‘ओशनिक’ अनुभव का वर्णन करता है, वे कहते हैं, लेकिन अनुभवकर्ता के बारे में क्या? इसके लिए हम ‘ओशो’ शब्द का प्रयोग करते हैं। अर्थात, ओशो मतलब- ‘सागर से एक हो जाने का अनुभव करने वाला’। १९६० के दशक में वे ‘आचार्य रजनीश’ के नाम से एवं १९७० -८० के दशक में भगवान श्री रजनीश नाम से और १९८९ के समय से ओशो के नाम से जाने गये। वे एक आध्यात्मिक गुरु थे, तथा भारत व विदेशों में जाकर उन्होने प्रवचन दिये।
रजनीश ने अपने विचारों का प्रचार करना मुम्बई में शुरू किया, जिसके बाद, उन्होंने पुणे में अपना एक आश्रम स्थापित किया, जिसमें वे विभिन्न प्रकार के उपचारविधान पेश किये जाते थे. तत्कालीन भारत सरकार से कुछ मतभेद के बाद उन्होंने अपने आश्रम को ऑरगन, अमरीका में स्थानांतरण कर लिया। १९८५ में एक खाद्य सम्बंधित दुर्घटना के बाद उन्हें संयुक्त राज्य से निर्वासित कर दिया गया और २१ अन्य देशों से ठुकराया जाने के बाद वे वापस भारत लौटे और पुणे के अपने आश्रम में अपने जीवन के अंतिम दिन बिताये।
एक तारीख थी 11 दिसंबर 1931. जगह थी मध्य प्रदेश के रायसेन ज़िले का गांव कुचवाड़ा और एक कच्चे मकान में हुआ था चंद्र मोहन जैन यानि ओशो का जन्म. ओशो के माता-पिता रहने वाले तो जबलपुर के थे लेकिन उनका बचपन अपने नाना नानी के पास गुज़रा. ओशो में कुछ खास था तभी तो उन्होने 19 साल की उम्र में अपनी बीए की पढ़ाई के लिए विषय चुना दर्शन शास्त्र. पहले वो जबलपुर के एक कॉलेज में पढ़े और फिर मास्टर डिग्री करने सागर यूनिवर्सिटी पहुंच गए. पढ़ाई पूरी की तो फैसला किया कि अब दूसरे को शिक्षा देंगे. और पेशा चुना प्रोफेसरी का. रायुपर के संस्कृत कॉलेज में प्रोफेसर बन गए, लेकिन ओशो के तेवर के कॉलेज का मैनेजमेंट घबरा गया. उनके सुलगते विचार छात्रों को भटका रहे ये आरोप लगा कर ओशो को कॉलेज से निकाल दिया गया. अगला पड़ाव बनी जबलपुर यूनिवर्सिटी. बेबाक प्रोफेसर चंद्र मोहन जैन, अध्यात्म की ओर कदम बढा चुके थे. वो पूरे देश में घूम कर प्रवचन देने लगे. 1960 से लेकर 1966 तक उन्होने पूरा भारत घूमा. उनके लाखो प्रशंसक बने लेकिन कई दुश्मन भी तैयार हो गए. वजह थी कि वो कभी कम्युनिस्टों को भला बुरा कहते तो कभी गांधी की विचारधारा पर सवाल उठाते. कुछ लोगों को उनके विवाद उनकी काबिलियत ज्यादा चुभने लगे. नतीजा 1966 तक आते आते जबलपुर यूनिवर्सिटी ने उनसे नाता तोड़ने का फैसला ले लिया. लेकिन उससे बड़ा फैसला तो खुद प्रोफेसर चंद्र मोहन जैन ले चुके थे. वो फैसला था प्रोफेसर चंद्र मोहन जैन से आचार्य रजनीश बनने का. एक ऐसा फैसला जो अब आने वाले समय में अध्यात्म का एक नया रास्ता खोलने वाला था. लेकिन इसके साथ ही शुरु होने वाला था वो सब जो पूरे देश पूरी दुनिया में तहलका मचाने वाला था.
दुनिया के 21 ताकतवर देशों की हुकूमतें ओशो के नाम से कांप रही थीं. दुनिया की सबसे बड़ी ताकत अमेरिका की सरकार भी ओशो से खौफ खा रही थी. लेकिन ओशो के भक्तों की संख्या कम होने की बजाय बढ़ती जा रही थी. रही बात ओशो के नए ठिकाने की तो उनका अपना मुल्क हिंदुस्तान बाहें पसार कर उनका इंतज़ार कर रहा था. जब पश्चिम कांप गया तो पूरब में अपने ही देश अपने ही लोगों के बीच ओशो को एक बार फिर आना पड़ा. जनवरी 1987 को ओशो वापस अपने वतन हिंदुस्तान लौट आए. एक बार फिर पूना के ओशो कम्यून ओशो और उनके भक्तों से गुलज़ार हो गया. ओशो एक बार फिर अपने भक्तों के लिए ज्ञान की गंगा बहा रहे थे. ओशो उस दौर में मेडिटेशन में नए-नए प्रयोग कर दुनिया को एक नई राह दिखा रहे थे. ऐसा लगा जैसे सब कुछ ठीक चल रहा है. लेकिन अमेरिका में ओशो के साथ जो षड़यंत्र हुआ था उसके निशान पूना में सामने आने लगे. नवंबर 1987 में ओशो की तबियत नासाज़ रहने लगी. तब ओशो ने खुलासा किया कि अमेरिका में जेल में रहने के दौरान उनके शरीर में धीमा ज़हर पहुंचा दिया गया है. ओशो के भक्तों का आज तक मानना है कि जेल में अमेरिकी सरकार ने ओशो को थिलियम नाम का धीमा ज़हर दिया था, जिसके नतीजे में वो बुरी तरह बीमार पड़ गए. बीमार हो चुके शरीर के साथ शुरूआत में तो ओशो दिन में एक बार प्रवचन देने के लिए भक्तों के सामने आते थे. लेकिन इसके बाद ओशो की सेहत लगातार बिगड़ती गई और अब वो सिर्फ शाम के वक़्त अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए अपने कमरे से बाहर निकलते थे.
ओशो के आश्रम में विनोद खन्ना
इस धरती पर ओशो का वक्त पूरा हो गया था. 19 जनवरी शाम 5 बजे ओशो ने इस धरती को आहिस्ता आहिस्ता अलविदा कह दिया. शरीर को त्यागने से पहले ओशो ने अपने भक्तों से, एक गुज़ारिश की. मेरे जाने का गम न मनाना. बल्कि मेरे शरीर के साथ उत्सव मनाना. हुआ भी यही. पुणे के बुद्धा हॉल में ओशो के शरीर को रखा गया, जमकर मृत्यु का उत्सव मना और दिल खोलकर मना. नाचते गाते सन्यासी अपने भगवान के को बर्निंग घाट तक ले गए. जहां सारी रात ये उत्सव जारी रहा. ओशो की समाधि पर लिखा गया. वो ना कभी पैदा हुआ, ना वो कभी मरा. वो तो बस इस धरती पर 11 दिसंबर 1931 से लेकर 19 जनवरी 1990 तक रहने के लिए आया था.
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