श्रावण मास की पूर्णिमा; रक्षाबंधन
भाई-बहन का स्नेह बसा है राखी में
-फ़िरदौस ख़ान
रक्षाबंधन भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक है। यह त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षाबंधन बांधकर उनकी लंबी उम्र और कामयाबी की कामना करती हैं। भाई भी अपनी बहन की रक्षा करने का वचन देते हैं। www.himalayauk.org (HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND) Leading Digital Newsportal & Daily Newspaper, Publish at Dehradun & Haridwar;
रक्षाबंधन के बारे में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। भविष्य पुराण में कहा गया है कि एक बार जब देवताओं और दानवों के बीच युद्ध हो रहा था तो दानवों ने देवताओं को पछाड़ना शुरू कर दिया। देवताओं को कमज़ोर पड़ता देख स्वर्ग के राजा इंद्र देवताओं के गुरु बृहस्पति के पास गए और उनसे मदद मांगी। तभी वहां बैठी इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने मंत्रों का जाप कर एक धागा अपने पति के हाथ पर बांध दिया। इस युद्ध में देवताओं को जीत हासिल हुई। उस दिन श्रावण पूर्णिमा थी। तभी से श्रावण पूर्णिमा के दिन रक्षा सूत्र बांधने की प्रथा शुरू हो गई। अनेक धार्मिक ग्रंथों में रक्षा बंधन का ज़िक्र मिलता है। जब सुदर्शन चक्र से श्रीकृष्ण की अंगुली ज़ख़्मी हो गई थी, तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दी थी। बाद में श्रीकृष्ण ने कौरवों की सभा में चीरहरण के वक़्त द्रौपदी की रक्षा कर उस आंचल के टुकड़े का मान रखा था। मेवाड़ की महारानी कर्मावती ने मुग़ल बादशाह हुमायूं को राखी भेजकर रक्षा की याचना थी । राखी का मान रखते हुए हुमायूं ने मेवाड़ पहुंचकर बहादुरशाह से युद्ध कर कर्मावती और उसके राज्य की रक्षा की थी।
विभिन्न संस्कृतियों के देश भारत के सभी राज्यों में पारंपरिक रूप से यह त्यौहार मनाया जाता है। उत्तरांचल में रक्षा बंधन को श्रावणी के नाम से जाना जाता है। महाराष्ट्र में इसे नारियल पूर्णिमा और श्रावणी कहते हैं, बाकि दक्षिण भारतीय राज्यों में इसे अवनि अवित्तम कहते हैं। रक्षाबंधन का धार्मिक ही नहीं, सामाजिक महत्व भी है। भारत में दूसरे धर्मों के लोग भी इस पावन पर्व में शामिल होते हैं।
रक्षाबंधन ने भारतीय सिनेमा जगत को भी ख़ूब लुभाया है। कई फ़िल्मों में रक्षाबंधन के त्यौहार और इसके महत्व को दर्शाया गया है। रक्षाबंधन को लेकर अनेक कर्णप्रिय गीत प्रसिद्ध हुए हैं। भारत सरकार के डाक-तार विभाग ने भी रक्षाबंधन पर विशेष सुविधाएं शुरू कर रखी हैं। अब तो वाटरप्रूफ़ लिफ़ाफ़े भी उपलब्ध हैं। कुछ बड़े शहरों के बड़े डाकघरों में राखी के लिए अलग से बॉक्स भी लगाए जाते हैं। राज्य सरकारें भी रक्षाबंधन के दिन अपनी रोडवेज़ बसों में महिलाओं के लिए मुफ़्त यातायात सुविधा मुहैया कराती है।
आधुनिकता की बयार में सबकुछ बदल गया है। रीति-रिवाजों और गौरवशाली प्राचीन संस्कृति के प्रतीक पारंपरिक त्योहारों का स्वरूप भी अब पहले जैसा नहीं रहा है। आज के ग्लोबल माहौल में रक्षाबंधन भी हाईटेक हो गया है। वक़्त के साथ-साथ भाई-बहन के पवित्र बंधन के इस पावन पर्व को मनाने के तौर-तरीकों में विविधता आई है। दरअसल व्यस्तता के इस दौर में त्योहार महज़ रस्म अदायगी तक ही सीमित होकर रह गए हैं।
यह विडंबना ही है कि एक ओर जहां त्योहार व्यवसायीकरण के शिकार हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इससे संबंधित जनमानस की भावनाएं विलुप्त होती जा रही हैं। अब महिलाओं को राखी बांधने के लिए बाबुल या प्यारे भईया के घर जाने की ज़रूरत भी नहीं रही। रक्षाबंधन से पहले की तैयारियां और मायके जाकर अपने अज़ीज़ों से मिलने के इंतज़ार में बीते लम्हों का मीठा अहसास अब भला कितनी महिलाओं को होगा। देश-विदेश में भाई-बहन को राखी भेजना अब बेहद आसान हो गया है। इंटरनेट के ज़रिये कुछ ही पलों में वर्चुअल राखी दुनिया के किसी भी कोने में बैठे भाई तक पहुंचाई जा सकती है। डाक और कोरियर की सेवा तो देहात तक में उपलब्ध है। शुभकामनाओं के लिए शब्द तलाशने की भी ज़रूरत नहीं। गैलरियों में एक्सप्रेशंस, पेपर रोज़, आर्चीज, हॉल मार्क सहित कई देसी कंपनियों केग्रीटिंग कार्ड की श्रृंख्लाएं मौजूद हैं। इतना ही नहीं फ़ैशन के इस दौर में राखी भी कई बदलावों से गुज़र कर नई साज-सज्जा के साथ हाज़िर हैं। देश की राजधानी दिल्ली और कला की सरज़मीं कलकत्ता में ख़ास तौर पर तैयार होने वाली राखियां बेहिसाब वैरायटी और इंद्रधनुषी दिलकश रंगों में उपलब्ध हैं। हर साल की तरह इस साल भी सबसे ज़्यादा मांग है रेशम और ज़री की मीडियम साइज़ राखियों की। रेशम या ज़री की डोर के साथ कलाबत्तू को सजाया जाता है, चाहे वह जरी की बेल-बूटी हो, मोती हो या देवी-देवताओं की प्रतिमा। इसी अंदाज़ में वैरायटी के लिए जूट से बनी राखियां भी उपलब्ध हैं, जो बेहद आकर्षक लगती हैं। कुछ कंपनियों ने ज्वैलरी राखी की श्रृंख्ला भी पेश की हैं। सोने और चांदी की ज़ंजीरों में कलात्मक आकृतियों केरूप में सजी ये क़ीमती राखियां धनाढय वर्ग को अपनी ओर खींच रही हैं। यहीं नहीं मुंह मीठा कराने के लिए पारंपरिक दूध से बनी मिठाइयों की जगह अब चॉकलेट के इस्तेमाल का चलन शुरू हो गया है। बाजार में रंग-बिरंगे कागज़ों से सजे चॉकलेटों के आकर्षक डिब्बों को ख़ासा पसंद किया जा रहा है।
कवयित्री इंदुप्रभा कहती हैं कि आज पहले जैसा माहौल नहीं रहा। पहले संयुक्त परिवार होते थे। सभी भाई मिलजुल कर रहते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। नौकरी या अन्य कारोबार के सिलसिले में लोगों को दूर-दराज के इलाकों में बसना पड़ता है। इसके कारण संयुक्त परिवार बिखरकर एकल हो गए हैं। ऐसी स्थिति में बहनें रक्षाबंधन के दिन अलग-अलग शहरों में रह रहे भाइयों को राखी नहीं बांध सकतीं। महंगाई के इस दौर में जब यातायात के सभी साधनों का किराया काफ़ी ज़्यादा हो गया है, तो सीमित आय अर्जित करने वाले लोगों के लिए परिवार सहित दूसरे शहर जाना और भी मुश्किल काम है। ऐसे में भाई-बहन को किसी न किसी साधन के जरिये भाई को राखी भेजनी पड़ेगी। बाज़ार से जुड़े लोग मानते हैं कि भौतिकतावादी इस युग में जब आपसी रिश्तों को बांधे रखने वाली भावना की डोर बाज़ार होती जा रही है तो ऐसे में दूरसंचार के आधुनिक साधन ही एक-दूसरे के बीच फ़ासलों को कम किए हुए हैं। आज के समय में जब कि सारे रिश्ते-नाते टूट रहे हैं, सांसारिक दबाव को झेल पाने में असमर्थ सिद्ध हो रहे हैं। ऐसे में रक्षाबंधन का त्यौहार हमें भाई- बहन के प्यारे बंधन को हरा- भरा करने का मौक़ा देता है। साथ ही दुनिया के सबसे प्यारे बंधन को भूलने से भी रोकता है।
(लेखिका स्टार न्यूज़ एजेंसी में संपादक हैं)
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