पासवान ने नोटबंदी के फायदे को लेकर जानकारी मांगी; बडी खबर
बहरहाल, हाल के तीन राज्यों में चुनावी हार ने स्वभाविक रूप से बीजेपी को बैकफुट पर ला दिया है. पासवान को लग रहा है कि एनडीए के भीतर जो भाव और तवज्जो नीतीश कुमार को दी जा रही है, वह उनके साथ नहीं हैं. वो चाहते हैं कि सीट बंटवारे के मामले में फैसला जल्द हो जाए. लेकिन आज जो पत्र चिराग पासवान ने पीएम को लिखा है उससे स्पष्ट है कि मामला सीट से आगे निकलता जा रहा है.
आगामी लोकसभा चुनाव के लिए सीट शेयरिंग को लेकर लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) की नाराजगी की खबरों के बीच पार्टी के नेता चिराग पासवान ने पत्र लिखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली से नोटबंदी के फायदे को लेकर जानकारी मांगी है. चूंकि चिराग पासवान LJP संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं, इसलिए केंद्र सरकार के अहम सहयोगी होने के नाते उनकी चिट्ठी के राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं.
नोटबंदी के लागू होने के दो साल बाद राज्यसभा में सरकार ने भी माना कि इस दौरान लाइन में लगे लोगों की मौत हुई थी. केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने नोटबंदी के दौरान लोगों की मौत के सवाल के जवाब में बताया कि इस संबंध में सिर्फ एसबीआई ने जानकारी मुहैया कराई है कि लाइन में लगने के कारण 4 लोगों की मौत हुई है. हाल में संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी नोटबंदी का मामला जोरशोर से उठा था. देश के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने भी अपनी किताब में नोटबंदी को अर्थव्यवस्था पर चोट बताया था. अब ऐसे में एनडीए के सहयोगी दल LJP की चिट्ठी ने एक बार फिर नोटबंदी को लेकर केंद्र सरकार पर सवाल खड़े किए हैं.
चिराग पासवान ने यह जानकारी यह कर मांगी है कि उन्हें अपने क्षेत्र की जनता को बताना है कि नोटबंदी से क्या नफा-नुकसान हुआ. पार्टी सूत्रों के मुताबिक चिराग पासवान ने किसानों के मुद्दे पर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कृषि मंत्री राधामोहन सिंह को पत्र लिखा है कि कृषि संकट के समाधान के लिए किसान आयोग के गठन और किसानों के ऋण को लेकर क्या कदम उठाए गए हैं.
गौरतलब है कि 18 नवंबर को चिराग पासवान ने बीजेपी के चेतावनी देते हुए ट्वीट किया था कि, टीडीपी और आरएलएसपी के एनडीए गठबंधन से जाने के बाद एनडीए गठबंधन नाज़ुक मोड़ से गुज़र रहा है. ऐसे समय में भारतीय जनता पार्टी गठबंधन में फिलहाल बचे हुए साथियों की चिंताओं को समय रहते सम्मान पूर्वक तरीके से दूर करें. चिराग ने अपने ट्वीट में आगे लिखा कि गठबंधन की सीटों को लेकर कई बार भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से मुलाकात हुई परंतु अभी तक कुछ ठोस बात आगे नहीं बढ़ पाई है. इस विषय पर समय रहते बात नहीं बनी तो इससे नुकसान भी हो सकता है.
एनडीए में सीट बंटवारे होने और रामविलास पासवान के अगले कदम का इंतजार किया जा रहा है. गौरतलब है कि बिहार में बीजेपी औऱ जेडीयू ने बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान पहले ही कर दिया है, लेकिन, गठबंधन के दूसरे दल एलजेपी के साथ अभी सीटों के बंटवारे को लेकर बातचीत ही चल रही है. एलजेपी सांसद चिराग पासवान की तरफ से जल्द से जल्द सीट बंटवारे की मांग करने और देरी को लेकर अपनी चिंता जताने के बाद बीजेपी भी हरकत में आ गई है. उधर बीजेपी के लिए चिंता चिराग पासवान की तरफ से वित्त मंत्री अरुण जेटली को लिखी गई चिट्टी के बाद और बढ़ गई है. चिराग पासवान ने नोटबंदी के दो साल पूरा होने के बाद इससे हुए फायदे की जानकारी मांगी थी.
पार्टी के बिहार प्रभारी और महासचिव भूपेंद्र यादव ने एलजेपी अध्यक्ष रामविलास पासवान और चिराग पासवान से मुलाकात की, जिसके तुरंत बाद इन सभी नेताओं की मुलाकात बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से उनके आवास पर हुई. इस बैठक में वित्त मंत्री अरुण जेटली भी पहुंचे. सूत्रों के मुताबिक इस बैठक में चिराग पासवान की तरफ से उठाए गए सवालों पर चर्चा हुई.
बीजेपी आलाकमान को यह पूरा मामला नागवार गुजरा है. पार्टी को लगता है कि एलजेपी नेता की तरफ से उठाया गया यह कदम और ट्वीट के जरिए अपनी बात रखने से गठबंधन को लेकर बेहतर संदेश नहीं जा रहा. इसके अलावा नोटबंदी पर सरकार पहले से ही विपक्ष के निशाने पर रही है, लेकिन,जब सरकार के सहयोगी ही इस तरह सवाल खड़ा करेंगे तो फिर विपक्ष को भी बड़ा मौका मिल जाएगा.
हमेशा सत्ता का सुख भोगने वाले राम विलास पासवान को लग रहा होगा कि एनडीए की नाव डूबने वाली है इसलिए 72 वर्षीय दलित नेता बेटे के कंधे पर बंदूक रखकर अपनी ही सरकार पर फायरिंग कर रहे हैं. आने वाले दिनों में एनडीए की राजनीति किस करवट बैठेगी, इसका आकलन करना कठिन है. लेकिन अभी की राजनीति मौसम वैज्ञानिक राम विलास पासवान के इर्द-गिर्द परिक्रमा कर रही है.
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार से संचार मंत्री के पद से हटाए जाने के बाद राम विलास पासवान काफी परेशान रहते थे. बड़ा विभाग छिन जाने से उन्हें बेइज्जती महसूस होती थी. कहा जाता है कि पासवान ने तत्काल इस्तीफा देने का मन बना लिया था. इस्तीफा देने की अपनी इस इच्छा को उन्होंने दिल्ली में रहने वाले अपने एक पत्रकार मित्र से शेयर किया था. मित्र ने सलाह दी, ‘जल्दबाजी का काम शैतान का होता है. लोहा गरम होने दीजिए. तब हथौड़ा मारना ठीक होगा.’
2002 में गोधरा कांड के बाद पूरे गुजरात में दंगा हो गया. राम विलास पासवान ने मंत्री पद के साथ साथ एनडीए से भी ये कहते हुए रिश्ता तोड़ लिया कि ‘हम दंगा कराने वालों के पक्ष में रहने वाली सरकार के घर का सदस्य बनकर नहीं रह सकते हैं.’
फिर थोड़े ही दिनों के बाद पासवान ने कांग्रेस की नेतृत्व वाली यूपीए जॉइन कर ली और जब 2004 में सरकार बनी तो मंत्री बन गए. रेलवे विभाग को लालू प्रसाद ने हथिया लिया तो पासवान रूठ कर कोप भवन में चले गए. विश्वनाथ प्रताप सिंह के हप्तों मान मनौवल के बाद केमिकल तथा फर्टिलाइजर विभाग का पद ग्रहण किया. हालिया समय में बिहार एनडीए में चल रही राजनीतिक उठापटक को किसी भी पावर के चश्मे से देखने से ऐसा नहीं लगता है कि वह इस मुकाम पर पहुंच गई है जो राम विलास पासवान को संकेत दे या सावधान करे कि आप बाय-बाय करें और यूपीए के साथ चले जाएं क्योंकि वह गठबंधन 2019 के महाभारत में विजयश्री हासिल करेगा.
यह बात सही है कि पासवान एक परिपक्व चुनावी ‘मौसम वैज्ञानिक’ हैं. लेकिन कई मौकों पर उन्होंने यह भी कहा है, ‘मैं मौसम वैज्ञानिक के अलावा राजनीति का चिकित्सक भी हूं. शरीर में सिर के घाव को पहले ठीक करता हूं, उसके बाद पांव के घाव को कैसे ठीक किया जाए, इस विषय पर बात करता हूं.’ मैने पासवान के अति निकटतम दोस्त से बात की.
उन्होंने बताया, ‘बतौर चिकित्सक राम विलास पासवान समझ रहे हैं कि जिस गठबंधन में लालू यादव, मायावती वैगरह सदस्य हैं वह सिर का घाव है. जिसका इलाज पहले करना है.’
यह बात सही है कि राजनीति में कोई स्थाई दोस्त या फिर दुश्मन नहीं होता है. पर कुछ ऐसी कड़वी यादें होती हैं जिसे इग्नोर करना बहुत ही मुश्किल होता है. 2004 में लालू यादव ने पासवान से वादा किया था कि चुनाव जीतने के बाद रेलवे मंत्री पर वो दावा नहीं ठोकेंगे. लेकिन लालू यादव ने बेरहमी के के साथ वादा तोड़ा. जवाब में पासवान ने 2005 फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव अकेले लड़कर 29 विधायक बनाए.
लालू यादव की लाख कोशिश के बाद सरकार बनाने में मदद नहीं की. लालू यादव के दबाव में केन्द्र सरकार ने बिहार में रास्ट्रपति शासन लगा दिया. सरकार गठन में मदद नहीं करने की भड़ास निकालते हुए राजद चीफ ने टीवी कैमरे के सामने पासवान के खिलाफ अपशब्दों की झड़ी लगा दी.
लालू यादव और राम विलास पासवान 2009 लोकसभा तथा 2010 विधानसभा चुनाव एक साथ लड़े पर एनडीए के हाथो बुरी तरह पराजित होकर जल्द ही अलग हो गए. अलगाव पर प्रतिक्रिया देते हुऐ लालू यादव ने पहली बार पासवान का नामकरण मौसम वैज्ञानिक के रूप में करते हुए बयान दिया, ‘राम विलास पासवान इसरो के मौसम वैज्ञानिक हैं. उनको पता चल गया है कि 2014 की अगली सरकार एनडीए की बनने वाली है.’