आध्यात्मिक शक्ति अच्छी तकदीर बनाये रखती है
सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोस्तु ते।।
आध्यात्मिक शक्ति जरूर है, जो अच्छी तकदीर बनाये रखती है । मानव सृष्टि में आध्यात्मिक शक्ति अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इस शक्ति का मनुष्य के जीवन में भोजन, आराम, लौकिक व्यवहार, कमाई आदि की तरह ही विशेष महत्व है। जिन-जिन भी जातियों में इस शक्ति का विकास हुआ, वे उन्नति की ओर बढ़ीं। भारत के प्राचीन गौरव का एक कारण इसके आध्यात्म शक्ति से सम्पन्न होना भी था। आध्यात्म शक्ति को किन्हीं शब्दों में चरित्र, बल मानसिक बल अथवा आत्म बल भी कहते हैं।
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भारत की प्राचीन 14 विद्याओं में से एक विद्या, मंत्र विज्ञान भी रही है। मंत्र का सीधा संबंध शरीर विज्ञान से है। अर्थात मुख से बोले जाने वाले शब्दों में प्रयोग स्वर व व्यंजन का हमारे शरीर के मर्म स्थानों से सीधा संबंध होता है, यानि कि जब हम कोई शब्द उच्चारित करते हैं, तो शरीर के उन मर्म स्थान पर स्पंदन होता है, जहां का शब्दों में प्रयुक्त स्वर व व्यंजन कारक हैं। उस स्पंदन से उस स्थान पर ऊर्जा पैदा होती है और उस स्थान से जुड़े अंग स्वस्थ रहते हैं।
साधना करने से आध्यात्मिक शक्ति मिलती है । यदि हम इस शक्ति का उपयोग, उदाहरण के लिए सांसारिक लाभ हेतु प्रार्थना के रूप में करते हैं, तब यह आध्यात्मिक शक्ति व्यर्थ हो जाती है । इसका कारण यह है कि हम अपनी आध्यात्मिक शक्ति को अपने सांसारिक कामनाओं की पूर्ति हेतु व्यय (खर्च) कर देते हैं । जिससे हमारी आध्यात्मिक शक्ति का उपयोग आध्यात्मिक प्रगति हेतु न होकर इसके विपरीत साधना में हमारी हानि हो सकती है । सांसारिक अडचनों का कोई अंत नहीं है और उनमें से अधिकांश अडचनों का कारण हमारा प्रारब्ध है । आध्यात्मिक प्रगति होने से व्यक्ति की प्रारब्ध सहने की क्षमता बढती है तथा अंतिमतः वह उस पर विजय प्राप्त कर सकता है ।
काल के अनुसार उचित साधना करने से ही आध्यात्मिक उन्नति शीघ्र हो सकती है । वर्तमान युग अर्थात कलियुग में मानवजाति का औसत स्तर घट कर मात्र २० प्रतिशत रह गया है इसलिए अब पहले के युगों के अनुरूप साधना कर पाने की क्षमता नहीं रही ।
इस आध्यात्मिक शक्ति के विकास के लिए ठीक उसी तरह मानसिक साधना करनी होगी, जीवन को उसी तरह संयत एवं नियमित करना होगा जिस तरह पहलवान अपने शरीर बल की वृद्धि के लिए करता है। जबकि स्वास्थ्य जैसी भौतिक एवं तुच्छ शक्ति के लिये इस प्रकार के अनेक अभ्यास, साधन, आदि की आवश्यकता होती है तो उस महान् एवं सूक्ष्म आध्यात्मिक शक्ति से सम्पन्न होने के लिए प्रचुर मात्रा में अभ्यास एवं साधना आदि करनी ही होगी। साधना पथ पर अग्रसर होने के लिए सर्वप्रथम ब्राह्ममुहूर्त के महत्व को समझना आवश्यक है। उस समय का शाँत एवं प्राकृतिक वातावरण आध्यात्मिक चिंतन के लिए बहुत ही अनुकूल है। प्रत्येक आध्यात्मिक जिज्ञासु को सूर्योदय से दो घंटे पूर्व उठना आवश्यक है। महान पुरुषों के जीवन चरित्रों को देखा जाय तो ज्ञात होगा कि उनकी दिनचर्या सूर्योदय के दो तीन घंटे पूर्व से आरम्भ होती है।
अधिकतर पशुओं में आध्यात्मिक आयाम को समझने की क्षमता होती है । इस तथ्य का उदाहरण है वह घटना जिसमें वर्ष २००४ में सुनामी के पूर्व, श्रीलंका के याला राष्ट्रीय उद्यान में पतनंगला समुद्र तट के सभी पशु, ऊंचे स्थानों पर प्रस्थान कर गए । इस सुनामी में ५०० वर्ग मील फैले वन्यजीव संरक्षण केन्द्र में आए लगभग ६० पर्यटक पानी की ऊंची लहरों में बह गए; किंतु दो भैसों के अतिरिक्त, सभी वन्य जीव अपनी अतींद्रिय क्षमता के बल पर सुरक्षित स्थान पर पहुंच गए ।