ऐसा क्यों हो रहा है?
सड़कों पर मौत का सन्नाटा नहीं, जीवन का उजाला हो
– ललित गर्ग –
सड़क हादसों और उनमें मरने वालों की बढ़ती संख्या के आंकड़ों ने लोगों की चिंता तो बढ़ाई ही है लेकिन एक ज्वलंत प्रश्न भी खड़ा किया है कि नेशनल हाइवे से लेकर राज्यमार्ग और आम सड़कों पर सर्वाधिक खर्च होने एवं व्यापक परिवहन नीति बनने के बावजूद ऐसा क्यों हो रहा है? नई बन रही सड़कों की गुणवत्ता और इंजीनियरिंग पर भी सवालिया निशान लग रहे हैं। इस पर केन्द्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को गंभीरता से चिन्तन करना अपेक्षित है। सड़क हादसों में मरने वालों की बढ़ती संख्या ने एक महामारी एवं भयंकर बीमारी का रूप ले लिया है। आज जो संकेत हमें मिल रहे हैं, वे बेहद चिन्ताजनक है। हमें अपने आप को कहां रोकना है, कहां सुरक्षा की छतरी खोलनी है एवं कहां गलत खेल रोकना है, यह विवेक हमें अपने आप में जागृत करना ही होगा। हम परिस्थितियों और हालातों को दोषी ठहराकर बचने का बहाना कब तक ढंूढते रहेंगे? सोचनीय प्रश्न यह भी है कि आखिर हमने प्रतिकूलताओं से लड़ने के ईमानदार प्रयत्न कितने किए? इन प्रश्नों एवं खौफनाक दुर्घटनाओं के आंकडों में जिन्दगी सहम-सी गयी है। सड़कों पर मौत का सन्नाटा नहीं, जीवन का उजाला हो।
सड़क दुर्घटनाओं पर नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़े दिल दहलाने वाले हैं। पिछले साल सड़क हादसों में हर घंटे 16 लोग मारे गए। दिल्ली तो रोड पर होने वाली मौतों के मामले में सबसे आगे रही जबकि उत्तर प्रदेश सबसे घातक प्रांत रहा। पिछले दस साल की अवधि में सड़क हादसों में होने वाली मौतों में साढ़े 42 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि इसी अवधि में आबादी में सिर्फ साढ़े 14 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। कहीं विकास की गति हिंसक तो नहीं बनती जा रही है? ज्यादातर मौतें टू-व्हीलर की दुर्घटना में हुई हैं और तेज और लापरवाह ड्राइविंग उनका कारण रही है। ब्यूरो के अनुसार साढ़े चार लाख सड़क दुर्घटनाओं में 1 लाख 41 हजार से ज्यादा लोग मारे गए। इनमें से एक तिहाई की मौत उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में हुई।
तमिलनाडु में सड़क दुर्घटना के सबसे अधिक मामले हुए और सबसे अधिक लोग घायल भी हुए। सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों में सबसे बड़ा हिस्सा उत्तर प्रदेश का रहा। जबकि शहरों के मामले में 2,199 मौतों के साथ सबसे ज्यादा मौतें राजधानी दिल्ली में दर्ज हुई। चेन्नई 1,046 मौतों के साथ दूसरे नंबर पर रहा और 844 मौतों के साथ जयपुर तीसरे नंबर पर रहा। सड़क दुर्घटनाओं की संख्या और उनमें मरने वालों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो संदेश ‘मन की बात’ में भी उसका जिक्र किया। उन्होंने दुर्घटनाओं की बढ़ती संख्या पर चिंता जताई और लोगों की जान बचाने के लिए कदम उठाने की घोषणा की। प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार सड़क परिवहन और सुरक्षा कानून बनाएगी तथा दुर्घटना के शिकारों को बिना पैसा चुकाए तुरंत चिकित्सा की सुविधा उपलब्ध कराएगी।
सड़क दुर्घटनाओं की त्रासदी एवं महामारी का प्रकोप कितना तेजी से फैल रहा है और यह वर्तमान की सबसे घातक बीमारी बनती जा रही है। इस बात की पुष्टि गतदिनों एक प्रख्यात विशेषज्ञ-चिकित्सक से बातचीत में सामने आयी। डाॅक्टर से बात निश्चिय ही कोई राजनीति या समाजनीति पर नहीं होकर बीमारियांे व चिकित्सा पर ही होती है। चर्चा के दौरान प्रश्न हुआ कि अभी कौन-सी बीमारियां ज्यादा फैली हुई हैं जो मनुष्य जीवन के लिए खतरा बनी हुई हैं।
हमने सोचा वे कैंसर व एड्स का ही नाम लेंगे। पर उन्हांेने जो कारण बताए वे वास्तविकता के ज्यादा नजदीक थे। उन्होंने बताया कि मौत के जो सबसे बड़े कारण बने हुए हैं, वे हैं सड़कों पर दुर्घटनाएं। दूसरे नम्बर पर है 30-35 वर्ष की उम्र के युवकों को हृदय रोग होना, जो कभी सोचा ही नहीं जाता था। तीसरा है ब्रेन ट्यूमर, जिसकी संख्या भी बढ़ रही है। चैथा कारण है लाइलाज ‘कैंसर’।
उसकी इस टिप्पणी ने कुछ झकझोरा व नया सोचने को बाध्य किया। कुछ दिनों तक यह बात दिमाग से निकली नहीं। सड़कों पर दुर्घटनाएं सचमुच में बहुत बढ़ गई हैं। कारण अधिक यातायात। लाखों नए वाहनों का प्रतिवर्ष सड़कों पर आना। सड़क मार्गों की खस्ता हालत। नौसिखिए चालक। शराब पीकर वाहन चलाना। आगे निकलने की होड़। ट्रक ड्राइवरों की अनियमित एवं लम्बी ड्राइविंग, भारतीय ट्रकों की जर्जर दशा-ये सब कारण हैं। सवारी वाहनों में मान्य लोगांे से ज्यादा सवारियों को बैठा कर चलाना (ओवर क्राउडिंग) और मालवाही वाहनों में ओवर लोडिंग और जगह से ज्यादा रखी लोहे की सरियाँ इत्यादि भी सड़क दुर्घटनाओं के कारण बनते हैं। कुछ मार्गों पर विशेष जगहें हैं जहां अक्सर दुर्घटनाएं होती हैं। उनके साथ अन्धविश्वास व अन्य कारण जुड़े हुए हैं। क्यों नहीं इन कारणों को मिटाने का प्रयास किया जाता है? राष्ट्रीय उच्चमार्गों पर विशेष रूप से नियुक्त यातायात पुलिस को सतर्कता व प्रामाणिकता से निरीक्षण करना चाहिए। जिन मोड़ांे पर या विशेष स्थानों पर ज्यादा दुर्घटनाएं होती हैं उतनी दूरी तक चार लाइनों का मार्ग बना देना चाहिए। निश्चित रूप से दुर्घटनाओं की संख्या में आशातीत कमी आएगी। कई जानें बचेंगी।
तेज रफ्तार और वाहन चलाने में लापरवाही दिल्ली में आए दिन लोगों की जान ले रही हैं। ऐसी ही एक घटना इसी बृहस्पतिवार सुबह भी सामने आई, जब कश्मीरी गेट इलाके में फुटपाथ पर सो रहे चार लोगों पर बारहवीं कक्षा के छात्र ने तेज रफ्तार कार चढ़ा दी। हादसे में एक व्यक्ति की जान चली गई और तीन लोग गंभीर रूप से घायल हुए। यह गंभीर चिंता का विषय है कि इस हादसे का आरोपी हाल ही में बालिग हुआ था और उसके पास ड्राइविंग लाइसेंस भी नहीं था। यानी वह सभी नियम-कानूनों को धता बताते हुए कार चला रहा था। ऐसे में यह घटना जहां यातायात नियमों के पालन के लिए जिम्मेदार यातायात पुलिस को कठघरे में खड़ा करती है, वहीं अभिभावकों की लापरवाही को भी रेखांकित करती है। आखिरकार हाल ही में बालिग हुए बेटे को, जिसके पास ड्राइविंग लाइसेंस भी नहीं है, कार चलाने की अनुमति क्यों दी गई? अभिनेता सलमान जैसे व्यक्ति भी नशें में तेज गति से गाड़ी चलाते हुआ सड़क की पटरी पर सोये लोगों की मौत का कारण बने हैं। इन घटनाओं ने निरंतर बढ़ती सड़क पर होने वाली दुर्घटनाओं की तरफ ध्यान खींचा है लेकिन प्रत्येक 5 में से 2 सड़क दुर्घटनायें अत्यन्त तेज गति से वाहनों को चलाने के कारण होती है। लापरवाही एवं यातायात नियमों की अवहेलना से अनेक लोग अकाल मृत्यु के ग्रास बन जाते हैं। इन सब अकाल मौतों का कारण मानवीय गलतियाँ हैं अगर सुरक्षा के नियमों की अवहेलना न की जावे तो बहुत कीमती मानव जीवन को बचाया जा सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि हर साल सड़क दुर्घटनाओं में लगभग 12.5 लाख लोगों की मौत होती है। डब्ल्यूएचओ की सड़क सुरक्षा 2015 पर जारी वैश्विक रिपोर्ट में कहा गया है कि सड़क दुर्घटना विश्वभर में मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है और मरने वालों में विशेष रूप से गरीब देशों के गरीब लोगों की संख्या में अविश्वसनीय रूप से वृद्धि हुई है। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि एक विशाल अंतर उच्च आय वाले देशों को कम और मध्य आय वाले देशों से अलग करता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले तीन सालों में 79 देशों में दुर्घटनाओं में हुई मौतों की संख्या में कमी आई है, जबकि 68 देशों में इस संख्या में इजाफा हुआ है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दुनियाभर के 80 प्रतिशत देशों में बेचे गए कुछ वाहन बुनियादी सुरक्षा मानकों पर खरे नहीं उतरते हैं, विशेष रूप से कम और मध्य आय वाले देशों में।
सड़कों पर पैदल चलने वाले लोगों की दुर्घटनाओं में अकाल मौत की संख्या भी काफी बढ़ी है। विशेषकर जैन साधु-साध्वियों की सड़क दुर्घटनाओं में मौत की घटनाओं ने चिन्तित किया है। तीन दिन पहले 22 अप्रैल 2017 को ठाणे (महाराष्ट्र) में एक ट्रक ने दो जैन साध्वियों एवं उनके साथ की एक महिला को कुचल दिया। एक की घटनास्थल पर ही मौत हो गयी। पैदल चलने वालों की 12,536 मौतें हुईं इसमंे कारण बेतरतीब ढंग से सड़क पर वाहनों का चलना और दोनों तरफ से यातायात नियमों का न पालन करना होता है इसके अलावा पैदल चलने वालो के लिए सड़क के दोनों किनारों पर चैड़ी पटरी, गलियों और पैदल मार्गियों के लिए क्रॉसिंग का सब जगह होना जरूरी है। गुजरात सरकार राष्ट्रीय मार्गों के समानान्तर पैदल पथ निर्मित कर रही है। ऐसा सम्पूर्ण देश में लागू होना चाहिए।
कुछ खतरे मनुष्य स्वयं बनाता है, कुछ प्रकृति के द्वारा, पर दोनों का स्त्रोत एक जगह जाकर मानव मस्तिष्क ही होता है। गफलत और प्रकृति से खिलवाड़…., खतरों का जन्म यहीं से होता है। कारण, जितने सुख-सुविधा के आविष्कार उतना विनाश, जितना अनियमित जीवन, उतनी बर्बादी, जितना प्रकृति से हटना उतनी बीमारियां, जितनी तेज जीवन की अंधी दौड़ उतनी ही गिर पड़ने की सम्भावना।
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