अदालत इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करे; केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से क्यों कहा ?
केंद्र ने कोर्ट में यह भी कहा कि अदालत इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करे क्योंकि यह एक नीतिगत मुद्दा है और इस मामले को केंद्र सरकार पर छोड़ दे- www.himalayauk.org (Bureau Report)
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने कहा कि कुछ रोहिंग्या हुंडी और हवाला के जरिए पैसों की हेरफेर सहित विभिन्न अवैध और भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल पाए गए. केंद्र ने कोर्ट में यह भी कहा कि अदालत इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करे क्योंकि यह एक नीतिगत मुद्दा है और इस मामले को केंद्र सरकार पर छोड़ दे. रोहिंग्या मुस्लिमों को वापस म्यांमार भेजने की योजना पर केंद्र सरकार ने 16 पन्नों का हलफनामा दायर किया है. इस हलफनामे में केंद्र ने कहा कि कुछ रोहिंग्या शरणार्थियों के पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों से संपर्क का पता चला है. ऐसे में ये राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से खतरा साबित हो सकते हैं. केंद्र ने आशंका जताई कि म्यांमार से अवैध रोहिंग्या शरणार्थियों के भारत में आने से क्षेत्र की स्थिरता को नुकसान पहुंच सकता है. कुछ रोहिंग्या दूसरे लोगों को भारत में प्रवेश दिलाने के लिए जाली पैन कार्ड और वोटर आईडी जैसे भारतीय पहचान पत्र बनाने व हासिल करने और मानव तस्करी में भी शामिल पाए गए. सुप्रीम कोर्ट ने भारत में अवैध रूप से रह रहे म्यामांर के रोहिंग्या समुदाय के लोगों के भविष्य को लेकर सरकार से अपनी रणनीति बताने को कहा था.
सरकार द्वारा रोहिंग्या समुदाय के लोगों को वापस म्यांमार भेजने के फैसले के खिलाफ याचिका को सुनने के लिए स्वीकार करते हुए कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा था.
दो रोहिंग्या शरणार्थियों मोहम्मद सलीमुल्लाह और मोहम्मद शाकिर द्वारा पेश याचिका में रोहिंग्या मुस्लिमों को वापस म्यांमार भेजने की सरकार की योजना को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार नियमों का उल्लंघन बताया गया है.
दोनों याचिकाकर्ता भारत में संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग में रजिस्टर्ड हैं. इन शरणार्थियों की दलील है कि म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ व्यापक हिंसा के कारण उन्हें भारत में शरण लेनी पड़ी है.
इस मामले की अगली सुनवाई 3 अक्टूबर को दोपहर 2 बजे होगी.
कश्मीर में हिज्बुल मुजाहिद्दीन म्यांमार के मुसलमानों को जुल्म का सताया हुआ बताकर कट्टरपंथी भावनाओं को भड़काने में लगा है. इस अतिवादी संगठन से सहानुभूति रखने वाले लोगों ने ईद-उल-अदहा के मौके पर सोशल मीडिया ग्रुप्स में उर्दू का एक पोस्टर बड़े पैमाने पर शेयर किया.
पोस्टर में घाटी के मुसलमानों से गुजारिश की गई थी कि हलाल किए गए जानवर की खाल हिज्बुल मुजाहिद्दीन को दान कीजिए, क्योंकि वह रोहिंग्या मुसलमानों का मददगार है. पोस्टर में कहा गया था, ‘कश्मीर, फिलीस्तीन, अफगानिस्तान, इराक और अब बर्मा. पूरी दुनिया में मुसलमानों का बेरहमी से कत्ल-ए-आम हो रहा है. लेकिन हिज्बुल मुजाहिद्दीन के नौजवान हर जगह मुसलमानों पर हो रहे हमले से निपटने के लिए अच्छी तरह तैयार हैं.
अब आपका जिम्मा बनता है कि आप इस नेक काम के लिए दान दें. सो आपको इस्लामी दान और चंदा (सदाकत और खैरियत) जरूर देना चाहिए, खासकर हलाल जानवर की खाल हिज्बुल मुजाहिद्दीन को बतौर चंदा जरूर दीजिए क्योंकि हिज्बुल मुजाहिद्दीन ने संकट में पड़े मुसलमानों को फंदे से छुड़ाने का बीड़ा उठाया है.’
भारत के इस्लामी नेताओं के मन में रोहिंग्या मुसलमानों के लिए हमदर्दी है और वे उन्हें नैतिक समर्थन दे रहे हैं. यह बात अपनी जगह ठीक है. लेकिन उन्हें ध्यान रखना होगा कि मुस्लिम समुदाय कट्टरता की भावनाओं के चंगुल में ना फंस जाए. रोहिंग्या-संकट के बारे में विचारधारा के कोण से जांच-परख करने पर पता चलता है कि भारत में रहने वाले रोहिंग्या लोगों का एक हिस्सा इस्लामी चरमपंथी जमातों के असर में आ चुका है. ये चरमपंथी जमातें रोहिंग्या मुसलमानों को अहसास दिलाती रहती हैं कि वे लोग मजलूम हैं, उन पर जुल्म ढाए जा रहे हैं. भारत के अधिकारियों को भी इस बात के सबूत मिले हैं कि चरमपंथी जमातों ने कुछ रोहिंग्या लोगों को आकर्षित करने मे कामयाबी हासिल की है और उनसे वादा किया है कि म्यांमार, बांग्लादेश तथा भारत में बदले की कार्रवाई करने के लिए उन्हें मदद दी जाएगी.
माना जा रहा है कि रोहिंग्या शरणार्थी असम, पश्चिम बंगाल, केरल, आंध्रप्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली तथा जम्मू-कश्मीर सहित भारत के कई हिस्सों में रह रहे हैं. सिर्फ दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में लगभग 5000 रोहिंग्या शरणार्थी मौजूद हैं. हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक गुड़गांव के नजदीक सोहना रोड से लगती झुग्गी-झोपड़ियों में रोहिंग्या शरणार्थियों की तादाद ज्यादा है.
जैश-ए-मोहम्मद-अल-कलाम नाम के आतंकी संगठन की घरेलू पत्रिका में एक लेख प्रकाशित हुआ है. इस लेख में दक्षिण एशिया के मुसलमानों से कहा गया है कि म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के दमन-उत्पीड़न का बदला लेने के लिए हिंसक जेहाद छेड़ने की जरूरत है.
चरमपंथी इस्लामी पत्रिका अल-कलाम उर्दू में प्रिंट और ऑनलाइन दोनों ही रूप में प्रकाशित होती है और भारतीय उपमहाद्वीप के नाजुक-खयाल और जुझारू तेवर के नौजवानों को आसानी के साथ हासिल है. इस किस्म के जेहादी साहित्य का पाकिस्तान, कश्मीर और भारत के अन्य उर्दूभाषी इलाके के भोले-भाले नौजवानों को बहकाने में बड़ा हाथ है.
यह साप्ताहिक पत्रिका अपने को इस्लामी सहाफत (पत्रकारिता) का झंडाबरदार कहती है और इस पत्रिका के ताजे संस्करण में मौलाना मसूद अजहर का लिखा एक लेख छपा है. मसूद अजहर आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का सरगना है. अजहर म्यांमार की सरकार को जुल्मी करार देते हुए धमकी दे चुका है कि वह (म्यांमार) जैश-ए-मोहम्मद के ‘विजेता लड़ाकों के पैरों की गूंज सुनने के लिए तैयार’ रहे. मसूद अजहर का दावा है, ‘म्यांमार जल्दी ही अमन-चैन के लिए तरस जाएगा’.
इस भड़काऊ लेख की बातों पर सरसरी नजर डालने भर से पता चल जाता है कि उसमें पाठक का माइंडवॉश करने की तासीर है. लेख में एक जगह आता है: ‘दुनिया का मुस्लिम समुदाय (उम्मा) मुस्लिम मुल्क के दर्द को महसूस कर रहा है. म्यांमार के मुसलमानों के त्याग के कारण उम्मा को होश आया है और हम देख रहे हैं कि दुनिया के मुसलमानों में एक जागरुकता आई है. म्यांमार के मुसलमानों के लिए हम जो भी कर सकते हैं हमें वह सब कुछ जरूर करना चाहिए. उनके लिए दुआ मांगिए और उनकी मदद के लिए उठ खड़े होइए. आपको अपना किया दिखाने की जरूरत नहीं, सिर्फ करते जाइए और इस राह में रुकिए मत.’ उर्दू में लिखा यह पूरा लेख इस लिंक से डाउनलोड किया जा सकता है.
ऐसा पहली बार हुआ है जब दक्षिण एशिया के किसी चरमपंथी विचारक ने म्यांमार में जेहाद करने का आह्वान किया है. यहां अहम बात यह है कि जेहाद का यह युद्ध-नाद अल-कलाम के साप्ताहिक स्तंभ में आया है जिसे मौलाना मसूद अजहर, सा’दी के छद्मनाम से लिखता है. जैश-ए-मोहम्मद की घरेलू पत्रिका के इस ‘बेताब बर्मा’ शीर्षक लेख में, भारतीय उप-महाद्वीप के आम मुसलमानों से अपील की गई है कि वे ‘कुछ करें’.
यह देख पाना मुश्किल नहीं कि दक्षिण एशिया के सबसे कुख्यात चरमपंथी जमात ने जेहाद का आह्वान एक ऐसे वक्त में क्यों किया है जब भारत में मुसलमानों की एक बड़ी तादाद ‘रोहिंग्या के लिए उठ खड़े होने के नारे लगा रही है.’
देश के मुस्लिम नागरिकों को इस बात का दुख है कि म्यांमार के उनके रोहिंग्या धर्म-बंधुओं पर वहां की सरकार जुल्म ढा रही है. उनके मन में अभी रोहिंग्या मुसलमानों के लिए गहरी धार्मिक संवेदना उमड़ रही हैं. जैश-ए-मोहम्मद और उस जैसी जमातों का जेहाद का आह्वान भारत में इस्लामी भावनाओं को उबाल पर लाने का काम करेगा.
म्यांमार में जेहाद का पहला आह्वान करके जैश-ए-मोहम्मद ने मजहबी फसाद के बीज बो दिए हैं. मौलाना मसूद अजहर के फतवे पर अमल करने की उन्मादी दावेदारी में अतिवादी मुस्लिम जमातें रोहिंग्या जेहाद के लिए उतावली हो रही हैं. बांग्लादेश को भी अब लगने लगा है कि रोहिंग्या का मुद्दा वहां की आतंकी जमातों के लिए जेहादियों को भर्ती करने का कहीं मौका ना साबित हो.
बांग्लादेश के अधिकारियों को आशंका है कि वहां की सरजमीं पर पनपे जेहादी समूह देश में फैले मदरसों से छात्रों को रोहिंग्या के अधिकारों की खातिर लड़ने के लिए बतौर जेहादी भर्ती करेंगे.