नोटबंदी के व्यापक असर की तस्वीर सामने आई
RBI की तिमाही रिपोर्ट में आमलोगों पर नोटबंदी के व्यापक असर की तस्वीर सामने आई है। ‘हाउसहोल्ड फायनेंशियल एसेट्स एंड लायबलिटीज’ नाम से जारी रिपोर्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 500 और 1000 के पुराने नोटों को वापस लेने के फैसले का स्पष्ट प्रभाव दिखा है। आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, सितंबर, 2016 में ग्रॉस फायनेंशियल एसेट्स (सकल वित्तीय संपत्तियां) का कुल मूल्य 141 ट्रिलियन रुपये था। दिसंबर, 2016 तक इसमें चार ट्रिलियन रुपये की कमी आई और यह आंकड़ा 137 ट्रिलियन तक पहुंच गया था। बता दें कि पीएम मोदी ने 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी की घोषणा की थी। हाउसहोल्ड फायनेंशियल एसेट्स आउटस्टैंडिंग अमाउंट में भी छह फीसद तक की कमी दर्ज की गई। वर्ष 2017 की अंतिम तिमाही में भी यह आंकड़ा सितंबर, 2016 के मुकाबले कहीं कम है। हालांकि, नोटबंदी के बाद भारतीय लोगों में बचत के बजाय निवेश की प्रवृत्ति ज्यादा पाई गई है।
संघ की रणनीति- बीजेपी की राह 2019 में इतनी आसान नहीं दिख रही
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने सुरेश भैयाजी जोशी को एक बार फिर आरएसएस का सरकार्यवाह चुनकर राजनीतिक गलियारों में नए संदेश दे दिए हैं. संदेश इस बात के कि 2019 के आम चुनाव में एक बार फिर से आरएसएस की भूमिका बड़ी और अहम रहेगी. भैयाजी जोशी को संघ के स्वयंसेवक संत प्रचारक कहते हैं. इसकी वजह है उनकी सादगी. एक पूर्व मंत्री ने एक बार कहा था कि वे जब नागपुर मुख्यालय में भैयाजी जोशी से मिलने उनके रूम में निर्धारित समय पर पहुंचे तो वहां पूरी तरह अंधेरा छाया था. दरअसल भैयाजी रात का भोजन कर चुके थे, और फिजूल में बिजली का इस्तेमाल करना संघ की परंपरा के खिलाफ था. आज यही भैयाजी जोशी चौथी बार संघ के दूसरे सबसे ताकतवर लीडर बनाए गए हैं, इसका सीधा कारण है कि उनकी संगठन कुशलता, टीम वर्क और प्रतिबद्धता – संघ से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इस बार की नागपुर बैठक में कई अप्रत्याशित फैसले हुए हैं. भैयाजी को चौथी बार दायित्व सौंपना, चार के स्थान पर छह नए सह सरकार्यवाह बनाना और मध्यक्षेत्र के प्रचारक अरूण जैन को मध्य प्रदेश चुनाव से ठीक आठ महीने पहले हटाना. ये संघ के भीतर भी बड़े बदलाव को बता रहा है. माना जा रहा है कि त्रिपुरा, नगालैंड और मिजोरम में बीजेपी की जीत के परचम ने संघ को नई ताकत दी है. इन प्रदेशों में संघ के स्वयंसेवक जीत के असली नायक थे.
देश के 21 राज्यों और 31 प्रतिशत वोट बैंक पर अपना कब्जा कर चुकी बीजेपी की राह 2019 में इतनी आसान नहीं दिख रही है. 2014 से शुरू हुई मोदी लहर में थोड़ ठहराव आ गया है. इसे ध्यान में रखते हुए संघ अपनी रणनीति बना रहा है. ये बदलाव एक तरह से उसी रणनीति के तहत माने जा रहे हैं.
मुकुंद सीआर और मनमोहन वैद्य दो नए सह सरकार्यवाह बनाए गए हैं. इस तरह अब कुल छह सह सरकार्यवाह संघ में हो गए हैं. इस तरह संघ ने संगठन की दूसरी और तीसरी लाइन को भी विस्तार देकर मजबूत किया है. मुकुंद सीआर के बारे में कहा जाता है कि वे न सिर्फ युवा है, बल्कि टेक्नोफ्रेंडली भी हैं. संघ के प्रचारकों में अब तकनीक में पारंगत होना अहम माना जा रहा है. वक्त के साथ अपने को सक्षम बनाने में संघ पीछे नहीं है. संघ ने पिछले दिनों अपने यूनिफार्म में बदलाव कर जता दिया की उसे आधुनिकता से परहेज नहीं है. विश्वस्त सूत्रों के अनुसार संघ ने मध्य क्षेत्र के क्षेत्र प्रचारक अरुण जैन को हटाकर नेशनल टीम में जगह दी है. अब दीपक विस्पुते क्षेत्र प्रचारक होंगे. यानी एक तरह से प्रदेश में संघ की कमान उनके हाथों में होगी. ये बदलाव मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह, संगठन महामंत्री सुहास भगत, और अरुण जैन के संदर्भ में देखा जा रहा है. सुहास भगत और अरुण जैन के बीच की सहमति के कारण कई बार शिवराज सिंह और नंदकुमार सिंह असहज और अलग-थलग दिखाई दिए हैं. माना जा रहा है कि मिशन 2018 के पहले ये बदलाव संगठन में किसी भी तरह की असहमति की रेखा को मिटाने के लिए किया गया है.
आरबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारतीय लोग आमतौर पर बचत करने वाले और अर्थव्यवस्था में वित्तीय संसाधन की आपूर्तिकर्ता के तौर पर जाने जाते हैं। हालांकि, वर्ष 2016-17 की तीसरी तिमाही में नेट फायनेंशियल एसेट्स में नकारात्मक बदलाव दिखा है जो नोटबंदी के प्रभाव को दर्शाता है।’ बता दें कि फायनेंशियल एसेट्स के तहत बैंक डिपोजिट, बांड्स, इंश्योरेंस एसेट्स और स्टॉक्स आदि आते हैं। अन्य एसेट्स की तुलना में फायनेंशियल एसेट्स ज्यादा लिक्विड होते हैं। फायनेंशियल एसेट्स के स्वटरूप में भी बदलाव: नोटबंदी के बाद हाउसहोल्ड के फायनेंशियल एसेट्स के स्वरूप में भी उल्लेखनीय बदलाव देखने को मिला है। सितंबर, 2017 में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) की तुलना में करेंसी होल्डिंग्स में भी गिरावट दर्ज की गई है। नोटबंदी से पहले यह जहां 10.6 फीसद था, वहीं बड़े नोटों को वापस लेने की घोषणा के बाद यह आंकड़ा 8.7 फीसद तक पहुंच गया। इसका मतलब यह हुआ कि लोगों के पास खर्च करने के लिए पैसे पहले के मुकाबले कम हो गए। हालांकि, नोटबंदी के बाद हाउसहोल्ड में बैंक में पैसे रखने के बजाय निवेश करने की प्रवृत्ति में वृद्धि देखी गई। नोटबंदी के पहले 10.6 फीसद (जीडीपी की तुलना में) हाउसहोल्ड ने म्यूचुअल फंड में निवेश किया था। सितंबर, 2017 में यह आंकड़ा 12.5 फीसद तक पहुंच गया। करेंसी होल्डिंग में गिरावट का असर म्यूचुअल फंड में निवेश के तौर पर सामने आया। लोग करेंसी होल्डिंग का इस्तेमाल फायनेंशियल मार्केट में करने लगे। इसके अलावा लोगों के डिस्पोजेबल इन्कम (खर्च योग्य आय) में भी कमी दर्ज की गई। इसका सीधा असर बाजार पर देखने को मिला। दूसरी तरफ, केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, घरेलू बचत में तकरीबन चार फीसद की गिरावट आई है।
वही दूसरी ओर
हाल ही में आरएसएस के मुख्यालय नागपुर में संपन्न सम्मेलन में लिंगायत समुदाय की अलग धर्म की मांग का विरोध किया गया. ऐसा दावा कर्नाटक में लिंगायत आंदोलन के नेताओं ने किया. उनके अनुसार आरएसएस न सिर्फ अलग धर्म का विरोध कर रही है बल्कि उनके अल्पसंख्यक दर्जे का भी विरोध कर रही है क्योंकि इससे आगे हिंदू धर्म में बंटवारा हो सकता है. लेकिन ये कार्यकर्ताओं के साथ अच्छा नहीं हो रहा, जो सरकार पर लिंगायत के लिए अल्पसंख्यक दर्जे और अलग धर्म का दबाव डाल रहे हैं. इस बीच कर्नाटक में सिद्धारमैया सरकार लिंगायत समुदाय को अलग धर्म और अल्पसंख्यक दर्जा देने के लिए तैयार हो गई है. सरकार ने इसके लिए एक समिति का गठन किया है जिसके अध्यक्ष हाईकोर्ट के रिटायर जज जस्टिस नागामोहन दास हैं. दास लिंगायत समुदाय के लिए अल्पसंख्यक दर्जे की सिफारिश पहले ही कर चुके हैं और राज्य कैबिनेट की इस पर मंजूरी देने की संभावना है. हालांकि इस सिफारिश को केंद्र सरकार के पास भेजकर गेंद को पीएम मोदी के पाले में डाल दिया गया है. इस वजह से सिद्धारमैया सरकार जो इस आंदोलन का समर्थन कर रही है उनके लिए ये मामला और भी ज्यादा पेंचीदा हो गया है. दरअसल उनकी सरकार के लोगों का ही इस मुद्दे पर अलग-अलग विचार है. जल संसाधन मंत्री एमबी पाटिल जो इस आंदोलन की अगुवाई कर रहे हैं वो चाहते हैं कि इसे केवल लिंगायत के नाम से जाना जाए. लेकिन एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता और विधायक शामानुर शिवशंकरप्पा इसका विरोध कर रहे हैं और मांग कर रहे हैं लिंगायत के साथ वीरशैव नाम भी जुड़ा हो. वह खुद ऑल इंडिया वीरशैव लिगायत महासभा के अध्यक्ष हैं. आरएसएस के विरोध पर जामादार ने कहा कि ये नया नहीं है. आरएसएस के मुखिया मोहन भागवत 10 महीने पहले बेंगलुरु आए थे. उन्होंने हमारे आंदोलन का विरोध किया. सभी जानते हैं कि आरएसएस इसके विरोध में है. चूंकि हम हिंदू नहीं हैं तो हमें आरएसएस की मंजूरी की भी कोई जरूरत नहीं है.
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