26 जनवरी; शनि का राशि परिवर्तन- प्रभाव
कर्क के लिए विशेष -राजा दशरथ कृत शनिदेव स्रोत पाठ श्री शनि वैदिक मंत्र मकर राशि केे लिए विशेष कर – हमारी विशेष प्रस्तुति – हिमालयायूके न्यूज पोर्टल- शनि गुरु का ये योग प्रभावित करेगा अपना प्रभाव सभी 12 राशियों पर बनाए रखेगे
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सभी ग्रहों का अलग-अलग असर हमारे जीवन पर पड़ता है। मान्यता है शनिदेव ही मनुष्य के अच्छे-बुरे कर्मों का फल उसे प्रदान करते हैं। इस समय शनि वृश्चिक राशि में हैं जो 26 जनवरी को राशि परिवर्तन कर धनु में प्रवेश करेंगे। शनि के इस राशि परिवर्तन का प्रभाव सभी राशियों पर अलग-अलग दिखाई देगा। राशि अनुसार उपाय करने से शनि के अशुभ प्रभाव को कुछ कम किया जा सकता है। शनि गुरु का ये योग प्रभावित करेगा
इस माह 27 जनवरी 2017 की शाम 3.45 बजे शनि राशि बदलकर धनु में प्रवेश करेगे। धनु राशि का स्वामी गुरु है, जो कि शनि से समभाव रखता है। अगले 27 महीनों तक शनि धनु राशि में रहेगे एवं अपना प्रभाव सभी 12 राशियों पर बनाए रखेगे। इस दौरान 21 जून से 26 अक्टूबर 2017 शनि वक्री होने के कारण वृश्चिक में रहेगे। शनि और गुरु दोनों ही ग्रह सबसे ज्यादा समय तक एक राशि में रुकते हैं। शनि करीब ढाई साल और गुरु करीब 12 माह एक राशि मे रुकता है। शनि अब गुरु की राशि धनु में रहेगा, शनि गुरु का ये योग प्रभावित करेगा।
हिन्दू धर्म शास्त्रों के मुताबिक सूर्य पुत्र शनि का स्वभाव क्रूर व स्वरूप भयानक है। वहीं दूसरी ओर शनि के घोर तपस्वी रूप का भी शास्त्रों में वर्णन मिलता है। जिसके कारण शनिदेव को भगवान शिव से नवग्रहों में श्रेष्ठ स्थान और जगत के जीवों को दण्डित करने का अधिकार प्राप्त हुआ।
ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक कुण्डली में शनिदोष और दशा इंसान के जीवन में भारी उथल-पुथल मचा सकती है। जिसके चलते उसे शारीरिक, मानसिक व आर्थिक पीड़ा का सामना करना पड़ता है। किंतु शनि से जुड़ा सकारात्मक पक्ष यही है कि शनि के कुण्डली में अच्छे योग इंसान को भरपूर खुशियां भी देते हैं।
शनि जब मेहरबान होते हैं तो यश, सम्मान, पद, धन लाभ से व्यक्ति अपार सुख पाता है। अगर आप भी ऐसे ही खुशहाल जीवन की कामना रखते हैं तो शनि दशा या दोष के कारण पैदा अनिष्ट से रक्षा के लिये यहां बताए जा रहे शनि के वैदिक मंत्र का जप शनिवार को नीचे बताई शनि पूजा की सरल विधि के साथ जरूर करें –
– शनिवार के दिन सुबह स्नान कर शनि मंदिर में जाकर भगवान शनि देव की पारंपरिक पूजा सामग्रियों से पूजा करें।
– यह पूजा सामग्रियां है – गंध, अक्षत, फूल, काले तिल, तेल, काले वस्त्र, काली उड़द की दाल, तेल से बनी मिठाईयों का नैवेद्य
– पूजा सामग्रियों को चढ़ाने के बाद इस नीचे लिखे वैदिक मंत्र का यथाशक्ति मंगल कामना के साथ स्मरण करें –
ॐशन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शंयोरभिस्त्रवन्तुन:।ॐशनैश्चराय नम:।
– यथासंभव इस मंत्र को रुद्राक्ष के दानों की माला से 108 बार यानी 1 माला या कम से कम 11 बार जप करना अपार शनि कृपा देने वाला माना गया है।
– मंत्र जप व पूजा के बाद शनि की आरती कर तेल के बने पकवानों का प्रसाद जरूर ग्रहण करें।
मेष राशि- सुन्दर काण्ड करें, वष राशि- शनि अष्ठोत्तर का पाठ करें, मिथुन-* शनिदेव को काली उडद चढाये, कर्क- राजा दशरथ क़़त शनि स्रोत पाठ करें, सिंह- मंगलवार को हनुमान जी का चोला चढाये- कन्या- शनिदेव के बीज मंत्रो का जाप करें तुला- शनिदेव का अभिषेक- सरसो के तेल से, व़श्चिक – चीटियों को आटा डाले- धनु- पीपल के पेड के नीचे 11 दीपक जलाये- मकर- शनिदेव के वैदिक मंत्रों का जाप करें- कुम्भ- ज्योतिष की सलाह लेकर नीलम रत्न पहने- मीन- कुष्ठ रोगियों की यथा संभव मदद करें-
अगर साढ़ेसाती के दौरान शनि का वैदिक मंत्र नियमित जपा जाए तो भी मनचाहा लाभ प्राप्त होगा।
श्री शनि वैदिक मंत्र ;ॐ शन्नो देवी रभिष्टय आपो भवन्तु पीपतये शनयो रविस्र वन्तुनः।
राजा दशरथ कृत शनिदेव स्रोत पाठ
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।१।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।२।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।३।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम: ।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।४।।
नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च ।।५।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते ।
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिाणाय नमोऽस्तुते ।।६।।
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च ।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ।।७।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे ।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ।।८।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा: ।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।९।।
प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत ।
एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल: ।।१०।।
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