17 अक्टूबर -नवरात्रि का पहला दिन -मां दुर्गा घोड़े की सवारी करते हुए पृथ्वी पर पधार रही है

17 अक्टूबर 20 शनिवार के दिन नवरात्रि का पहला दिन होने के कारण इस दिन मां दुर्गा घोड़े की सवारी करते हुए पृथ्वी पर आएंगी। नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना के साथ ही नवरात्रि शुरू हो जाती है। 17 अक्टूबर को शनिवार के दिन से नवरात्रि की शुरुआत हो रही है. इन नौ दिनों में पूरी भक्ति से मां दुर्गा की उपासना की जाएगी. 17 अक्टूबर से घटस्थापना के साथ देवी के 9 दिनों की नवरात्रि यानी दुर्गा पूजा का शुभारंभ हो जाएगा।  नवरात्रि का त्योहार देवी मां की साधना का पर्व होता है। नवरात्रि के पूरे नौ दिनों तक व्रत रखना चाहिए। अगर नौ दिन का व्रत किसी कारण से न कर पाएं तो पहले और आठवें दिन का व्रत जरूर रखना चाहिए।

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नवरात्रि पर मां दुर्गा के धरती पर आगमन का विशेष महत्व होता है। देवीभागवत पुराण के अनुसार, नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा का आगमन भविष्य में होने वाली घटनाओं के संकेत के रूप में भी देखा जाता है। हर वर्ष नवरात्रि में देवी दुर्गा का आगमन अलग-अलग वाहनों में सवार होकर आती हैं और उसका अलग-अलग महत्व होता है। शारदीय नवरात्रि अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनायी जाती है। शरद ऋतु में आगमन के कारण ही इसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। नवरात्रि का पर्व आरंभ होते ही शुभ कार्यों की भी शुरूआत हो जाएगी। मलमास में शुभ कार्यों को वर्जित माना गया है। मलमास में शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं, लेकिन नवरात्रि आरंभ होते ही नई वस्तुओं की खरीद, मुंडन कार्य, ग्रह प्रवेश जैसे शुभ कार्य आरंभ हो जाएंगे। शादी-विवाह देवउठनी एकादशी तिथि के बाद ही आरंभ होंगे। नवरात्रि में देरी के कारण इस बार दीपावली 14 नवंबर को मनाई जाएगी।  नवरात्रि का पर्व आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से है। नवरात्रि के प्रथम दिन घटस्थापना का शुभ मुहूर्त प्रात: 6 बजकर 23 मिनट से प्रात: 10 बजकर 12 मिनट तक है।   सुबह जल्दी उठें और स्नान करने के बाद स्वच्छ कपड़े पहनें

नवरात्र के समय दुर्गा सप्तशती का पाठ करना भी बेहद लाभकारी होता है। : नवरात्र में सप्तशती का पाठ सुनना या श्रवण करना सभी गृहस्थों के लिए वरदान की तरह है  माता महाकाली के दुर्गासप्तशती के प्रथम चरित्र का पाठ करना या सुनना चाहिए।  बेरोजगारी की मार से परेशान, कर्ज में आकंठ डूबे हुए जिनके चारों ओर अन्धकार ही दिखाई दे रहा हो, जो श्री हीन हो चुके हों, जिनका कार्य व्यापार बंद हो चुका हो, जिनके जीवन में स्थिरता नहीं हो, जिनका स्वास्थ्य साथ न दे रहा हो, घर की अशांति से परिवार बिखर रहा हो अथवा पूर्णतः भौतिक सुखों से वंचित हो ऐसे प्राणी को माता महालक्ष्मी की आराधना और मध्यम चरित्र का पाठ करना या सुनना चाहिए।  जिनकी बुद्धि मंद पड़ गयी हो, पढाई में मन न लग रहा हो, स्मरणशक्ति कमजोर हो रही हो, सन्निपात की बीमारी से ग्रसित हों, जो शिक्षा-प्रतियोगिता में असफल रहते हों, ज्यादा पढ़ाई करते हो और नंबर कम आते हों अथवा जिनको ब्रह्मज्ञान और तत्व की प्राप्ति करनी हो उन्हें माता सरस्वती की आराधना और उतम चरित्र का पाठ करना चाहिए  सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती का दशांग या षडांग पाठ संसार के चारों पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाला है। सप्तशती पाठ-श्रवण से प्राणी सभी कष्टों से मुक्ति पा जाता है। घर में वास्तु दोष हो तो यह पाठ अथवा श्रवण इन दोषों के कुप्रभाव से छुटकारा दिला देता है क्योंकि, वास्तु पुरुष भीमाता का परम भक्त है माता के भक्तों पर ये अपनी कृपा बरसाते हैं।

दुर्गा सहस्त्रनाम का पाठ अश्वमेघ यज्ञके समान माना गया है। दुर्गा सहस्त्रनाम में मां दुर्गा के 1000 नामों का जाप किया जाता है। इसका पाठन और श्रवण करने वाले को समस्त दुखों और नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव से मुक्ति मिलती है। कष्टों से मुक्ति पाने का यह बहुत ही आसान उपाय है। इसका पाठ करनेे से जीवन में आने वाली समस्त बाधाएं दूर होती हैं। जीवन में आनंद और शांति आती है।  विंध्याचल 51 शक्तिपीठों में से एक है। इसकी खासियत है कि यहां पर तीन किलोमीटर के दायरे में तीनों देवियां विराजति हैं। यहां पर केंद्र में कालीखोह पहाड़ी है, जहां मां विंध्यवासिनी विराजमान हैं। तो वहीं मां अष्टभुजा और मां महाकाली दूसरी पहाड़ी पर विराजमान हैं। अन्य शक्तिपीठों पर मां के अलग-अलग अंगो की प्रतीक के रूप में पूजा होती है लेकिन विंध्याचल एकमात्र ऐसा स्थान है जहां मां के संपूर्ण विग्रह के दर्शन होते हैं। यह पूर्ण पीठ कहलाता है। चैत्र और आश्विन मास के नवरात्र में यहां लाखों श्रद्धालु इकट्ठे होते हैं। मां अपने भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं।

नवरात्रि का पहला दिन माँ शैलपुत्री को होता है समर्पित

नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। माँ पार्वती माता शैलपुत्री का ही रूप हैं और हिमालय राज की पुत्री हैं। माता नंदी की सवारी करती हैं। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल का फूल है। नवरात्रि के पहले दिन लाल रंग का महत्व होता है। यह रंग साहस, शक्ति और कर्म का प्रतीक है। नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना पूजा का भी विधान है।

नवरात्रि का दूसरा दिन माँ ब्रह्मचारिणी के लिए है

नवरात्रि का दूसरा दिन माता ब्रह्मचारिणी को समर्पित होता है। माता ब्रह्मचारिणी माँ दुर्गा का दूसरा रूप हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब माता पार्वती अविवाहित थीं तब उनको ब्रह्मचारिणी के रूप में जाना जाता था। यदि माँ के इस रूप का वर्णन करें तो वे श्वेत वस्त्र धारण किए हुए हैं और उनके एक हाथ में कमण्डल और दूसरे हाथ में जपमाला है। देवी का स्वरूप अत्यंत तेज़ और ज्योतिर्मय है। जो भक्त माता के इस रूप की आराधना करते हैं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन का विशेष रंग नीला है जो शांति और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है।

कलश स्थापना के समय भी स्वास्तिक का चिह्न बनाया जाता है।

शारदीय नवरात्रि पावन उत्सव 17 अक्तूबर से प्रारंभ हो रहा है जो 25 अक्तूबर तक चलेगा। नवरात्रि में मां के 9 रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता के अनुसार, नवरात्रि पर मां दुर्गा के नौ रूपों की उपासना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। नवरात्रि मां शक्ति की उपासना का पर्व होता है। इस दौरान सात्विक चीजों को महत्व दिया जाता है। ऐसे में अगर आपने फ्रिज में कुछ नॉनवेज रखा है तो नवरात्रि शुरू होने से पहले उसे घर से हटा दें। नवरात्रि में लहसुन का भी सेवन न करें। व्रत के लिए कुट्टू का आटा, समारी के चावल, सिंघाड़े का आटा, साबूदाना, सेंधा नमक, फल, आलू, मेवे, मूंगफली आदि सामग्री भी ले आएं।  हिन्दू धर्म में स्वास्तिक का चिह्न बेहद पवित्र माना जाता है। घर पर माता के स्वागत के लिए अपने मुख्य द्वार पर माता के स्वागत के लिए स्वास्तिक का निशान बना लें। कलश स्थापना के समय भी स्वास्तिक का चिह्न बनाया जाता है।

नवरात्रि के तीसरे दिन माँ चंद्रघण्टा की होती है पूजा

नवरात्र के तीसरे दिन माता चंद्रघण्टा की पूजा की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि माँ पार्वती और भगवान शिव के विवाह के दौरान उनका यह नाम पड़ा था। शिव के माथे पर आधा चंद्रमा इस बात का साक्षी है। नवरात्र के तीसरे दिन पीले रंग का महत्व होता है। यह रंग साहस का प्रतीक माना जाता है।

नवरात्रि के चौथे दिन माँ कुष्माण्डा की होती है आराधना

नवरात्रि के चौथे दिन माता कुष्माडा की आराधना होती है। शास्त्रों में माँ के रूप का वर्णन करते हुए यह बताया गया है कि माता कुष्माण्डा शेर की सवारी करती हैं और उनकी आठ भुजाएं हैं। पृथ्वी पर होने वाली हरियाली माँ के इसी रूप के कारण हैं। इसलिए इस दिन हरे रंग का महत्व होता है।

नवरात्रि का पाँचवां दिन माँ स्कंदमाता को है समर्पित

नवरात्र के पाँचवें दिन माँ स्कंदमाता का पूजा होता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार भगवान कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है। स्कंद की माता होने के कारण माँ का यह नाम पड़ा है। उनकी चार भुजाएँ हैं। माता अपने पुत्र को लेकर शेर की सवारी करती है। इस दिन धूसर (ग्रे) रंग का महत्व होता है।

नवरात्रि के छठवें दिन माँ कात्यायिनी की होती है पूजा

माँ कात्यायिनी दुर्गा जी का उग्र रूप है और नवरात्रि के छठे दिन माँ के इस रूप को पूजा जाता है। माँ कात्यायिनी

नवरात्र के सातवें दिसाहस का प्रतीक हैं। वे शेर पर सवार होती हैं और उनकी चार भुजाएं हैं। इस दिन केसरिया रंग का महत्व होता है।

नवरात्रि के सातवें दिन करते हैं माँ कालरात्रि की पूजा

माँ के उग्र रूप माँ कालरात्रि की आराधना होती है। पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि जब माँ पार्वती ने शुंभ-निशुंभ नामक दो राक्षसों का वध किया था तब उनका रंग काला हो गया था। हालाँकि इस दिन सफेद रंग का महत्व होता है।

नवरात्रि के आठवें दिन माँ महागौरी की होती है आराधना

महागौरी की पूजा नवरात्रि के आठवें दिन होती है। माता का यह रूप शांति और ज्ञान की देवी का प्रतीक है। इस दिन गुलाबी रंग का महत्व होता है जो जीवन में सकारात्मकता का प्रतीक होता है।

नवरात्रि का अंतिम दिन माँ सिद्धिदात्री के लिए है समर्पित

नवरात्रि के आखिरी दिन माँ सिद्धिदात्री की आराधना होती है। ऐसा कहा जाता है कि जो कोई माँ के इस रूप की आराधना सच्चे मन से करता है उसे हर प्रकार की सिद्धि प्राप्त होती है। माँ सिद्धिदात्री कमल के फूल पर विराजमान हैं और उनकी चार भुजाएँ हैं।

माता के नौ रूप

दिन                                         तिथि                     माता का स्वरूप
नवरात्रि दिन 1– प्रतिपदा     17 अक्टूबर (शनिवार)     माँ शैलपुत्री (घट-स्थापना)
नवरात्रि दिन 2– द्वितीय      18 अक्टूबर (रविवार)       माँ ब्रह्मचारिणी
नवरात्रि दिन 3– तृतीया      19 अक्टूबर (सोमवार)      माँ चंद्रघंटा
नवरात्रि दिन 4– चतुर्थी       20 अक्टूबर (मंगलवार)    माँ कुष्मांडा
नवरात्रि दिन 5– पंचमी       21 अक्टूबर (बुधवार)      माँ स्कंदमाता
नवरात्रि दिन 6– षष्ठी          22 अक्टूबर (गुरुवार)      माँ कात्यायनी
नवरात्रि दिन 7– सप्तमी      23 अक्टूबर (शुक्रवार)    माँ कालरात्रि
नवरात्रि दिन 8– अष्टमी       24 अक्टूबर (शनिवार)     माँ महागौरी (महा अष्टमी, महा नवमी पूजा)
नवरात्रि दिन 9– नवमी       25 अक्टूबर (रविवार)      माँ सिद्धिदात्री
नवरात्रि दिन 10– दशमी     26 अक्टूबर (सोमवार)     दुर्गा विसर्जन (दशहरा)

नवरात्रि में बाल, दाढ़ी मूंछ कटवाना अच्छा नहीं माना जाता है। इसलिए अगर आपके बाल बड़े हैं तो आज ही आप अपने बाल और दाढ़ी-मूंछे कटवा लें। इसके साथ ही नाखून भी आज ही काट लें। क्योंकि नवरात्रि में नाखून काटना शुभ नहीं होता है।

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