5 अक्टूबर 17 ;शरद पूर्णिमा ;चन्द्रमा अमृत वर्षा करता है

श्रीकृष्ण ने शरद पूर्णिमा के दिन ही रासलीला रचाई –  #आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। इस बार यह पर्व 5 अक्टूबर, गुरुवार को है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों में अमृत होता है। शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं। मान्यता है कि इस रात माता लक्ष्मी पृथ्वी पर घूमने आती हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं। इस दिन राशि अनुसार उपाय करने से किस्मत चमकते देर नहीं लगती। आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। यूं तो हर माह में पूर्णिमा आती है, लेकिन शरद पूर्णिमा का महत्व उन सभी से कहीं अधिक है। हिंदू धर्म ग्रंथों में भी इस पूर्णिमा को विशेष बताया गया है। इस बार शरद पूर्णिमा 5 अक्टूबर, गुरुवार को है। शरद पूर्णिमा से जुड़ी कई मान्यताएं हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणें विशेष अमृतमयी गुणों से युक्त रहती हैं, जो कई बीमारियों का नाश कर देती हैं। यही कारण है कि शरद पूर्णिमा की रात को लोग अपने घरों की छतों पर खीर रखते हैं, जिससे चंद्रमा की किरणें उस खीर के संपर्क में आती है, इसके बाद उसे खाया जाता है। कुछ स्थानों पर सार्वजनिक रूप से खीर का प्रसाद भी वितरण किया जाता है। www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal & Daily Newspaper) publish at Dehradun & Haridwar; Mail; himalayauk@gmail.com , Mob. 9412932030

स्कंदपुराण के अनुसार सत्युग के समान कोई युग नहीं वेदों के समान कोई शास्त्र ज्ञान नहीं, गंगा जी के समान कोई नदी नहीं और कलयुग में कार्तिक के समान कोई मास नहीं है। भगवान विष्णु को जैसे तिथियों में एकादशी प्रिय है वैसे ही मासों में कार्तिक मास अति प्रिय है, 

शरद पूर्णिमा से जुड़ी एक मान्यता यह भी है कि इस दिन माता लक्ष्मी रात्रि में यह देखने के लिए घूमती हैं कि कौन जाग रहा है और जो जाग रहा है महालक्ष्मी उसका कल्याण करती हैं तथा जो सो रहा होता है वहां महालक्ष्मी नहीं ठहरतीं। शरद पूर्णिमा को रासलीला की रात भी कहते हैं। धर्म शास्त्रों के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात को ही भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रास रचाया था। शरद पूर्णिमा की रात का अगर मनोवैज्ञानिक पक्ष देखा जाए तो यही वह समय होता है जब मौसम में परिवर्तन की शुरूआत होती है और शीत ऋतु का आगमन होता है। शरद पूर्णिमा की रात में खीर का सेवन करना इस बात का प्रतीक है कि शीत ऋतु में हमें गर्म पदार्थों का सेवन करना चाहिए क्योंकि इसी से हमें जीवनदायिनी ऊर्जा प्राप्त होगी।

शरद पूर्णिमा की रात स्वास्थ्य व सकारात्मकता देने वाली मानी जाती है क्योंकि चंद्रमा धरती के बहुत समीप होता है। आज की रात चन्द्रमा की किरणों में खास तरह के लवण व विटामिन आ जाते हैं। पृथ्वी के पास होने पर इसकी किरणें सीधे जब खाद्य पदार्थों पर पड़ती हैं तो उनकी क्वालिटी में बढ़ौतरी हो जाती है।

मान्यता है क‌ि शरद पूर्ण‌िमा की रात चन्द्रमा सोलह कलाओं से संपन्न होकर अमृत वर्षा करता है इसल‌िए इस रात में खीर को खुले आसमान में रखा जाता है और सुबह उसे प्रसाद मानकर खाया जाता है। माना जाता है की इससे रोग मुक्त‌ि होती है और उम्र लंबी होती है। निरोग तन के रूप में स्वास्थ्य का कभी न खत्म होने वाला धन दौलत से भरा भंडार मिलता है। 

 

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं,’पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः।।’ 

श्रीकृष्ण ने शरद पूर्णिमा के दिन ही रासलीला रचाई – रासलीला वास्तव में लीला पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण का दुनिया को दिया गया प्रेम का संदेश है।  जब श्रीकृष्ण ने व्रज की गोपियों के साथ रासलीला की तो जितनी भी गोपियां थीं उन्हें यही प्रतीत हो रहा था कि श्रीकृष्ण उसी के साथ रास रचा रहे हैं। ऐसी अनुभूति होने पर उन सभी को परमानंद की प्राप्ति हुई। जीवन में नृत्य के द्वारा मिलने वाला आध्यात्मिक सुख उस महारास का ही एक रूप है। भगवान कृष्ण ने यही संदेश बचपन में ही गोपियों और गोपियों के माध्यम से जगत को दिया। 
रासलीला में हर गोपी को कृष्ण के उनके साथ ही नृत्य करने का एहसास ईश्वर के सर्वव्यापक होने का भी प्रमाण है। व्रज में शरद पूर्णिमा के अवसर पर आज भी रासलीला का मंचन कर श्रीकृष्ण की लीलाओं का आनन्द लिया जाता है। इसे रातोत्सव या कौमुदी महोत्सव भी कहते हैं। 

 

कार्तिक मास में नियम से स्नान, जप, तप, व्रत, ध्यान और तर्पण करने से मनुष्य को अक्षय फलों की प्राप्ति होती है। यह अक्षय पुण्य लाभ प्राप्त करने का महीना है। कार्तिक पुण्यमय वस्तुओं में श्रेष्ठ पुण्यतम, पावन पदार्थों में अधिक पावन है। स्कंदपुराण के अनुसार सत्युग के समान कोई युग नहीं वेदों के समान कोई शास्त्र ज्ञान नहीं, गंगा जी के समान कोई नदी नहीं और कलयुग में कार्तिक के समान कोई मास नहीं है। भगवान विष्णु को जैसे तिथियों में एकादशी प्रिय है वैसे ही मासों में कार्तिक मास अति प्रिय है, इसी कारण इस माह में किए गए धर्म-कर्म से भगवान प्रसन्न होकर कृपा करते हुए मनुष्य के सभी प्रकार के दैहिक, दैविक एवं भौतिक तापों का हरण कर लेते हैं व उसकी सभी कामनाओं की पूर्ति कर देते हैं।

इस मास में क्या करें- कार्तिक मास में जो लोग संकल्प करके प्रतिदिन प्रात: सूर्य निकलने से पूर्व उठकर किसी तीर्थ स्थान, किसी नदी अथवा पोखरे पर जाकर स्नान करते हैं यां घर में ही गंगाजल युक्त जल से स्नान करते हुए भगवान का ध्यान करते हैं, उन पर प्रभु प्रसन्न होते हैं। स्नान के पश्चात पहले भगवान विष्णु और बाद में सूर्य भगवान को अर्घ्य प्रदान करते हुए विधिपूर्वक अन्य देवी-देवताओं, ऋषियों दिव्य मनुष्यों को अर्घ्य देते हुए पितरों का तर्पण करना चाहिए। पितृ तर्पण के समय हाथ में तिल अवश्य लेने चाहिए क्योंकि मान्यता है कि जितने तिलों को हाथ में लेकर कोई अपने पितरों का स्मरण करते हुए तर्पण करता है, उतने ही वर्षों तक उनके पितर स्वर्गलोक में वास करते हैं। इस मास में अधिक से अधिक प्रभु नाम का चिंतन करना चाहिए।

स्नान के पश्चात नए एवं सफेद या पीले रंग के पवित्र वस्त्र धारण करें। भगवान विष्णु जी का धूप, दीप, नेवैद्य, पुष्प एवं मौसम के फलों के साथ विधिवत सच्चे मन से पूजन करें। भगवान को मस्तक झुकाकर बारम्बार प्रणाम करते हुए किसी भी गलती के लिए क्षमा याचना करें। कार्तिक मास की कथा स्वयं सुने तथा दूसरों को भी सुनाएं। कुछ लोग कार्तिक मास में व्रत करने का भी संकल्प करते हैं। जिसमें वह केवल फलाहार करते हैं जबकि कुछ लोग पूरा मास एक समय भोजन करके कार्तिक मास के नियम का पालन करते हैं। इस मास में श्रीमद्भागवत कथा, श्री रामायण पाठ, श्री श्रीमद्भागवत पाठ, श्री विष्णुसहस्त्रनाम आदि स्त्रोतों का पाठ करना उत्तम कर्म है। जो व्यक्ति एक महीने तक कार्तिक माह के नियमों का पालन करता है वह मनचाहा धन, मान-सम्मान और तरक्की हासिल करता है।

 पौराणिक कथा अनुसार एक साहूकार को दो पुत्रियां थी। दोनों पुत्री पूर्णिमा का व्रत रखती थी। बड़ी पुत्री श्रद्धा-भाव से पूर्णिमा व्रत को करती थी। किन्तु छोटी पुत्री श्रद्धा-भाव से पूर्णिमा व्रत को नहीं कर पाती थी। फलस्वरूप छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी।   साहूकार की पुत्री ने पंडितों से इसका कारण पूछा तो पंडित ने बताया की तुम पूर्णिमा व्रत को श्रद्धा-पूर्वक नहीं करती हो। जिस कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा व्रत को श्रद्धा व् विधि पूर्वक करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है। 

साहूकार की पुत्री ने पंडितों की वचनों का पालन करते हुए विधि पूर्वक पूर्णिमा व्रत को करती है। व्रत प्रभाव से साहूकार की पुत्री को शीघ्र ही पुत्र की प्राप्ति होती है। उसके बाद नगर में पूर्णिमा व्रत की महिमा समस्त नगर में फ़ैल जाता है। 

इस दिन प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठें, दैनिक कार्य से निवृत होकर सर्वप्रथम सूर्यदेव को अर्घ्य दें। तत्पश्चात कलश स्थापित करें। इस कलश के ऊपर माँ लक्ष्मी की प्रतिमूर्ति को स्थापित करें। मूर्ति स्थापित करने के पश्चात माँ लक्ष्मी की पूजा विधि-पूर्वक करें। संध्याकाल में चंद्रोदय होने पर संध्या आरती घी के दीप जलाकर करें। दीप प्रज्वलित करने के पश्चात भोजन में खीर बनाएं। खीर बनने के बाद एक पात्र में खीर डालकर उसे चन्द्रमा की चांदनी में रखें। जब एक प्रहर बीत जाएँ, तब खीर को लक्ष्मी जी को अर्पित करें। devotional sharad purnima history

तत्पश्चात भक्तिपूर्वक इस खीर को प्रसाद स्वरूप परिवार में बाँटें। शरद पूर्णिमा की रात्रि में जागरण करें। प्रातःकाल स्नान करके पूजा-अर्चना पश्चात लक्ष्मी जी की प्रतिमा को आचार्य को सौप दें। शरद पूर्णिमा की रात्रि में माँ लक्ष्मी जी भूतल पर विचरण करती है। जो मनुष्य इस दिन रात्रि जागरण करता है। माँ लक्ष्मी जी उसे धन प्रदान करती है। इस प्रकार शरद पूर्णिमा की कथा सम्पन्न हुई। प्रेम से बोलिए माँ लक्ष्मी जी की जय।

 

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