सावन शिवरात्रि बेहद शुभ
श्रावण मास के शिव रात्रि पर्व की हार्दिक बधाई (www.himalayauk.org) HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND;
शिव चालीसा से शिव की अपार कृपा # शिवरात्रि में शिव चालीसा पढ़ने का अलग ही महत्व #एक वर्ष में आमतौर पर बारह शिवरात्रि # देवों के देव महादेव भगवान शिव-शंभू, भोलेनाथ शंकर की आराधना, उपासना का त्यौहार है महाशिवरात्रि। वैसे तो पूरे साल शिवरात्रि का त्यौहार दो बार आता है लेकिन फाल्गुन महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी अर्थात अमावस्या से एक दिन पहले वाली रात को महाशिवरात्रि का त्यौहार मनाया जाता है।
माना जाता है कि जब कुछ नहीं था अर्थात सृष्टि के आरंभ में इसी दिन मध्यरात्रि को भगवान ब्रह्मा के शरीर भगवान शंकर रुद्र रुप में प्रकट हुए थे। कई स्थानों पर यह भी माना जाता है कि भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह भी इसी दिन हुआ था। इसलिये महाशिवरात्रि हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों एवं भगवान शिव के उपासकों का एक मुख्य त्यौहार है। ऐसा भी माना जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा करने, व्रत रखने और रात्रि जागरण करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं एवं उपासक के हृद्य को पवित्र करते हैं। मान्यता यह भी है कि इस दिन भगवान शिव की सेवा में दान-पुण्य करने व शिव उपासना से उपासक को मोक्ष मिलता है।
पौराणिक कथा
महाशिवरात्रि से जुड़ी हुई कई पौराणिक कथाएं भी काफी प्रचलित हैं। एक ऐसी ही प्रेरणादायक कथा है चित्रभानु की। चित्रभानु नाम का एक शिकारी था। वह जंगल के जानवरों का शिकार कर अपना भरण-पोषण करता था। उसने एक सेठ से कर्ज ले रखा था लेकिन चुका नहीं पा रहा था एक दिन सेठ ने उसे शिव मठ में बंदी बना लिया संयोगवश उस दिन महाशिवरात्रि थी लेकिन इसका चित्रभानु को जरा भी भान न था। वह तल्लीनता से शिवकथा, भजन सुनता रहा। उसके बाद सेठ ने मोहलत देकर उसे छोड़ दिया। उसके बाद वह शिकार की खोज में जंगल में निकल पड़ा। उसने एक तालाब के किनारे बिल्व वृक्ष पर अपना पड़ाव डाल दिया। उसी वृक्ष के नीचे बिल्व पत्रों से ढका हुआ एक शिवलिंग भी था। शिकार के इंतजार में वह बिल्व पत्रों को तोड़कर नीचे फेंकता रहा जो शिवलिंग पर गिरते। कुछ शिवकथा का असर कुछ अंजाने में महाशिवरात्रि के दिन वह भूखा प्यासा रहा तो उसका उपवास भी हो गया, बिल्व पत्रों के अर्पण से अंजानें में ही उससे भगवान शिव की पूजा भी हो गई इस सबसे उसका हृद्य परिवर्तन हो गया व एक के बाद एक अलग-अलग कारणों से मृगों पर उसने दया दिखलाई। इसके बाद वह शिकारी जीवन भी छोड़ देता है और अंत समय उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कहानी का निष्कर्ष है कि भगवान शिव शंकर इतने दयालु हैं कि उनकी दया से एक हिंसक शिकारी भी हिंसा का त्याग कर करुणा की साक्षात मूर्ति हो जाता है। कहानी का एक अन्य सार यह भी है कि नीति-नियम से चाहे न हो लेकिन सच्चे मन से साधारण तरीके से भी यदि भगावन शिव का स्मरण किया जाये, शिवकथा सुनी जाये तो भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और उपासक के सभी सांसारिक मनोरथ पूर्ण करते हुए उसे मोक्ष प्रदान करते हैं।
श्रावण या सावन संस्कृत से प्राप्त हुआ शब्द है। भारत के पूरे उप महाद्वीप के लिए श्रावण या सावन का महीना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दक्षिण-पश्चिमी मानसून के आगमन से जुड़ा हुआ है। हिंदू धर्म के कई अनुयायियों के लिए श्रावण का महीना उपवास का महीना है पौराणिक हिन्दू मान्यता के अनुसार सावन का महीना बहुत पवित्र माना जाता है और ये भगवान शिव को समर्पित होता है। सावन का महीना पूरी तरह से भगवान शिव को समर्पित रहता है। इस माह में विधि पूर्वक शिवजी की आराधना करने से मनुष्य को शुभ फल भी प्राप्त होते हैं। शिव पुराण के अनुसार, शिव-शक्ति का संयोग ही परमात्मा है। शिव चालीसा के माध्यम से अपने सारे दुखों को भूला कर शिव की अपार कृपा प्राप्त कर सकते हैं। आनंद की अनुभूति दिलाने वाले भगवान भोलेनाथ का शिवरात्रि में शिव चालीसा पढ़ने का अलग ही महत्व है। कृष्ण पक्ष के दौरान चतुर्दशी तिथि मासिक शिवरात्रि के रूप में मनाई जाती है और भगवान शिव के भक्त उपवास रखने के साथ-साथ वर्ष में अने वाली सभी शिवरात्रि पर शिव की पूजा करते हैं। एक वर्ष में आमतौर पर बारह शिवरात्रि आती हैं। श्रावण महीने के दौरान आने वाली शिवरात्रि को सावन शिवरात्रि कहा जाता है। सावन महीने के दौरान आने वाली मासिक शिवरात्रि बेहद शुभ माना जाती है।
सावन शिवरात्रि के दिन सुबह स्नान आदि करके तन -मन से पवित्र होकर मंदिर जाए या घर के मंदिर में ही शिव की पूजा करे। मंदिर पहुंचकर भगवान शिव के साथ माता पार्वती और नंदी को पंचामृत जल अर्पित करें। पंचामृत जल अर्पित करने के बाद शिवलिंग पर एक-एक करके उपरोक्त बताई गई सभी सामग्री चढ़ाएं और शिव मंत्र :ॐ नमः शिवाय ” का जाप करते रहें. सामग्री का क्रमानुसार होना आवश्यक नहीं है, क्योंकि बोलेनाथ केवाल भक्त की भक्ति पर ध्यान देते हैं। यदि दिल से प्रत्येक बताई गई वस्तु को अर्पित करेंगे तो आपकी पूजा सफल होगी.
शिवामुट्ठी के लिए कच्चे चावल, सफ़ेद तिल , खड़ा मूंग,जौ, सतुआ 2. पंचामृत : दूध, दही, चीनी , चावल, गंगाजल ( इन सबका मिश्रण करके पंचामृत बनता है ) 3. तीन दलों (पत्तियों) से युक्त एक बिल्वपत्र 4. फल 5. फूल 6. धुप बत्ती या अगरबत्ती 7. चन्दन 8. शहद 9. घी 10. इत्र 11. केसर 12. धतूरा 13. कलावे की माला 14. रुद्राक्ष 15. भस्म 16. त्रिपुण्ड्र 17. मंत्र :- ॐ या ॐ नमः शिवाय
अमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार माघ माह की मासिक शिवरात्रि को महा शिवरात्रि कहते हैं। परन्तु पुर्णिमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार फाल्गुन माह की मासिक शिवरात्रि को महा शिवरात्रि कहते हैं। दोनों पञ्चाङ्गों में यह चन्द्र मास की नामाकरण प्रथा है जो इसे अलग-अलग करती है। हालाँकि दोनों, पूर्णिमांत और अमांत पञ्चाङ्ग एक ही दिन महा शिवरात्रि के साथ सभी शिवरात्रियों को मानते हैं।
भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार महा शिवरात्रि के दिन मध्य रात्रि में भगवान शिव लिङ्ग के रूप में प्रकट हुए थे। पहली बार शिव लिङ्ग की पूजा भगवान विष्णु और ब्रह्माजी द्वारा की गयी थी। इसीलिए महा शिवरात्रि को भगवान शिव के जन्मदिन के रूप में जाना जाता है और श्रद्धालु लोग शिवरात्रि के दिन शिव लिङ्ग की पूजा करते हैं। शिवरात्रि व्रत प्राचीन काल से प्रचलित है। हिन्दु पुराणों में हमें शिवरात्रि व्रत का उल्लेख मिलता हैं। शास्त्रों के अनुसार देवी लक्ष्मी, इन्द्राणी, सरस्वती, गायत्री, सावित्री, सीता, पार्वती और रति ने भी शिवरात्रि का व्रत किया था
यह माना जाता है कि मासिक शिवरात्रि के व्रत को करने से भगवान शिव की कृपा द्वारा कोई भी मुश्किल और असम्भव कार्य पूरे किये जा सकते हैं। श्रद्धालुओं को शिवरात्रि के दौरान जागी रहना चाहिए और रात्रि के दौरान भगवान शिव की पूजा करना चाहिए। अविवाहित महिलाएँ इस व्रत को विवाहित होने हेतु एवं विवाहित महिलाएँ अपने विवाहित जीवन में सुख और शान्ति बनाये रखने के लिए इस व्रत को करती है।
महाशिवरात्रि को रात्री जागरण भी किया जाता है। कई जगहों पर भगवान शिव का विवाह किया जाता है, उनकी बारात भी निकाली जाती है। माना जाता है कि इस दिन जरुरत मंद लोगों की मदद करनी चाहिये। गाय की सेवा करने से भी इस दिन पुण्य की प्राप्ति होती है।
कहां करें शिव का पूजन
वैसे तो किसी भी शिव मंदिर में भगवान शिव की आराधना की जा सकती है। लेकिन किसी निर्जन स्थान पर बने शिव मंदिर की साफ-सफाई कर भगवान शिव की पूजा की जाये तो भगवान शिव शीघ्र मनोकामना पूरी करते हैं।
प्रमुख शिव मंदिर
नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर पर महाशिवरात्रि के दिन भक्तों का भारी जमावड़ा होता है।
इसके अलावा भारत भर में बारह स्थानों पर 12 ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं
सोमनाथ– यह शिवलिंग गुजरात के कठियावाड़ में स्थापित है।
श्री शैल मल्लिकार्जुन- यह मद्रास में कृष्णा नदी के किनारे पर्वत पर स्थापित है।
महाकाल- उज्जैन के अवंति नगर में स्थापित महाकालेश्वर शिवलिंग हैं माना जाता है कि यहां भगवान शिव ने दैत्यों का नाश किया था।
ओंकारेश्वर ममलेश्वर- यह मध्यप्रदेश के ओंकारेश्वर में नर्मदा नदी के तट पर स्थित है माना जाता है कि पर्वतराज विंध्य कठोर की तपस्या से खुश होकर वरदान देने के लिये स्वयं भगवान शिव यहां प्रकट हुये थे जिससे यहां ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापित हुआ।
नागेश्वर– गुजरात के द्वारकाधाम के समीप ही नागेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित है।
बैजनाथ- यह शिवलिंग बिहार के बैद्यनाथ धाम में स्थापित है इसे भी 12 ज्योतिर्लिंगों में एक माना जाता है।
भीमशंकर- यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र की भीमा नदी के तट पर स्थापित है।
त्र्यंम्बकेश्वर– महाराष्ट्र के नासिक से 25 किलोमीटर दूरी पर स्थित है यह ज्योतिर्लिंग।
घुमेश्वर- यह ज्योतिर्लिंग भी महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एलोरा गुफा के समीप वेसल गांव में स्थापित है।
केदारनाथ- हरिद्वार से करीब 150 मील की दूरी पर हिमालय का दुर्गम केदारनाथ ज्योतिर्लिंग स्थापित है।
विश्वनाथ- यह बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित है इसलिये इसे विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग कहते हैं।
रामेश्वरम्- मद्रास के त्रिचनापल्ली में समुद्र तट पर यह ज्योतिर्लिंग है। माना जाता है इसे स्वयं भगवान श्री राम ने स्थापित किया था जिस कारण इसका नाम रामेश्वरम् पड़ा।
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