शनि 17 जून से कुंभ राशि में गोचर & ग्रहों के सेनापति मंगल 01 जुलाई 2023 को रात 01 बजकर 52 मिनट पर सिंह राशि में गोचर-
सावन के महीना करीब आ रहा है और इस दौरान भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व है। भोलेनाथ को देवों के देव महादेव कहा जाता है। इनकी कृपा से व्यक्ति को जीवन में कोई कष्ट नहीं होता है। पूजा के वक्त भगवान शिव के रूप के वर्णन में चंद्रमा का जिक्र जरूर आता है। महादेव के शीश पर गंगा और मस्तक पर अर्ध चंद्र हमेशा विराजमान रहते हैं। पंडित चंद्रशेखर के मुताबिक भगवान शिव के मस्तक पर चंद्रमा क्यों विराजमान है,
शिवपुराण के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान भगवान शिव ने हलाहल विष का पान किया था। इस विष को अपने कंठ में धारण करने के कारण भगवान शिव नीलकंठ कहलाए थे। पुराण में लिखित कथा के मुताबिक, विष पान के बाद महादेव का शरीर तपने लगा था और उनका मस्तिष्क जरूरत से ज्यादा गर्म हो गया था। महादेव का ये दृश्य देख सभी देवी देवता घोर चिंतित होने लगे। तब सभी देवताओं ने उनसे प्रार्थना की कि वह अपने शीश पर चंद्र को धारण करें, ताकि उनके शरीर में शीतलता बनी रहे। श्वेत चंद्रमा को बहुत शीतल माना जाता है जो पूरी सृष्टि को शीतलता प्रदान करते हैं. देवताओं के आग्रह पर शिवजी ने चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण कर लिया।
चंद्रमा की पत्नी 27 नक्षत्र कन्याएं हैं। इनमें रोहिणी उनके सबसे समीप थीं। इससे दुखी चंद्रमा की बाकी पत्नियों ने अपने पिता प्रजापति दक्ष से इसकी शिकायत कर दी। तब दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग से ग्रस्त होने का श्राप दिया। इसकी वजह से चंद्रमा की कलाएं क्षीण होती गईं। चंद्रमा की परेशानी देखकर नारदजी ने उन्हें भगवान शिव की आराधना करने को कहा। चंद्रमा ने अपनी भक्ति और घोर तपस्या से शिवजी को जल्द प्रसन्न कर लिया. शिव की कृपा से चंद्रमा पूर्णमासी पर अपने पूर्ण रूप में प्रकट हुए और उन्हें अपने सभी कष्टों से मुक्ति मिली। तब चंद्रमा के अनुरोध करने पर शिवजी ने उन्हें अपने शीश पर धारण किया।
By Chandra Shekhar Joshi Chief Editor www.himalayauk.org (Leading Web & Print Media) Publish at Dehradun & Haridwar. Mail; himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, शनि 17 जून से कुंभ राशि में गोचर कर चुके है। अगले छह महीने तक वक्री अवस्था में रहेंगे। राहु और केतु सदैव वक्री दिशा में चलते हैं। इस तरह तीनों ग्रह अगले 6 माह तक कक्षा बने रहेंगे। आइए जानते हैं अगले 6 महीने किन राशियों को कष्ट झेलने पड़ेंगे। जब शनि वक्री होता है, तो हम विद्रोह करना चाहते हैं और सत्ता से सवाल करना चाहते हैं। हम स्थापना को देख सकते हैं क्योंकि यह खड़ा है और पूछता है, “चीजों को इस तरह क्यों होना चाहिए?” यदि हम निडर हो रहे हैं, तो शायद हम स्वयं को यह पूछते हुए पाएंगे, “मैं उन्हें कैसे बदलूँ?” 7 मार्च 2023 को शनि ने मीन राशि में प्रवेश किया। ज्योतिष में सबसे शक्तिशाली ग्रहों में से एक, शनि कर्म का शासक है और एक कार्यपालक ग्रह है। इसका अर्थ है कि आपके पिछले कार्यों का निर्णय ग्रह स्वामी द्वारा किया जाता है। अपनी सामान्य गति की तरह, वक्री शनि भी कर्म के बारे में है और इसके प्रभाव आपके अतीत में किए गए कार्यों के अनुसार होते हैं।
ग्रहों के सेनापति मंगल 01 जुलाई 2023 को रात 01 बजकर 52 मिनट पर सिंह राशि में गोचर करेंगे। जुलाई में मंगल का राशि परिवर्तन कई राशियों के लिए परेशानी भरा हो सकता है। दरअसल मंगल को अग्नि का कारक कहा जाता है। इसके अलावा वह सिंह राशि में जा रहे हैं, जो अग्नि तत्व राशि है। सिंह राशि मंगल के लिए अनुकूल मानी जाती है और यहां मंगल शुभ प्रभाव देते हैं। लेकिन इस राशि में मंगल देव, शनि के साथ समसप्तक योग बना रहे हैं। पंडित चंद्रशेखर मलतारे के मुताबिक ये कई राशियों के लिए मुसीबतें लेकर आ सकता है।
जब भी कोई दो ग्रह एक दूसरे से सातवें स्थान पर होते हैं, तब उन ग्रहों के बीच समसप्तक योग बन जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो जब ग्रह आपस में अपनी सातवीं पूर्ण दृष्टि से एक-दूसरे को देखते हैं तब समसप्तक योग बनता है। जब मंगल सिंह राशि में गोचर करेंगे, तो उस समय शनि कुंभ राशि में होंगे। ये दोनों राशियां एक दूसरे सातवें स्थान में हैं। समसप्तक वैसे तो एक शुभ योग होता है, लेकिन शुभ-अशुभ ग्रहों की युति के कारण इसके फल में भी बदलाव आता है। यहां शनि और मंगल, दोनों को पापी ग्रह माना जाता है। इसके अलावा दोनों की एक-दूसरे पर पूर्ण दृष्टि होगी। मंगल अग्नि तत्व राशि में होने के कारण और ज्यादा उग्र होंगे, वहीं शनि वक्री अवस्था में अपनी स्वराशि में बली अवस्था में हैं। ऐसे में कई राशियों को इसके अशुभ परिणाम देखने को मिल सकते हैं।