4 OCT ;पर्वतीय रामलीला धर्मपुर में बालकाण्‍ड पूर्ण होगा

ram-janki-vivahबालकाण्ड में प्रभु राम के जन्म से लेकर राम-विवाह तक के घटनाक्रम आते हैं। नीचे बालकाण्ड से जुड़े घटनाक्रमों की विषय सूची दी गई है। पर्वतीय रामलीला कमेटी द्वारा धर्मपुर में आयोजित श्रीराम लीला मंचन के तीसरे दिन- राम विवाह के साथ ही बालकाण्‍ड पूर्ण हो्गा-
रामकथा के भगीरथ बाल्‍मीकि जी- पर आलेख- हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल की विशेष प्रस्‍तुति- चन्‍द्रशेखर जोशी सम्‍पादक द्वारा-
• मंगलाचरण
• गुरु वंदना
• ब्राह्मण-संत वंदना
• खल वंदना
• संत-असंत वंदना
• रामरूप से जीवमात्र की वंदना
• तुलसीदासजी की दीनता और राम भक्तिमयी कविता की महिमा
• कवि वंदना
• वाल्मीकि, वेद, ब्रह्मा, देवता, शिव, पार्वती आदि की वंदना
• श्री सीताराम-धाम-परिकर वंदना
• श्री नाम वंदना और नाम महिमा
• श्री रामगुण और श्री रामचरित्‌ की महिमा
• मानस निर्माण की तिथि
• मानस का रूपक और माहात्म्य
• याज्ञवल्क्य-भरद्वाज संवाद तथा प्रयाग माहात्म्य
• सती का भ्रम, श्री रामजी का ऐश्वर्य और सती का खेद
• शिवजी द्वारा सती का त्याग, शिवजी की समाधि
• सती का दक्ष यज्ञ में जाना
• पति के अपमान से दुःखी होकर सती का योगाग्नि से जल जाना, दक्ष यज्ञ विध्वंस
• पार्वती का जन्म और तपस्या
• श्री रामजी का शिवजी से विवाह के लिए अनुरोध
• सप्तर्षियों की परीक्षा में पार्वतीजी का महत्व
• कामदेव का देवकार्य के लिए जाना और भस्म होना
• रति को वरदान
• देवताओं का शिवजी से ब्याह के लिए प्रार्थना करना, सप्तर्षियों का पार्वती के पास जाना
• शिवजी की विचित्र बारात और विवाह की तैयारी
• शिवजी का विवाह
• शिव-पार्वती संवाद
• अवतार के हेतु
• नारद का अभिमान और माया का प्रभाव
• विश्वमोहिनी का स्वयंवर, शिवगणों को तथा भगवान्‌ को शाप और नारद का मोहभंग
• मनु-शतरूपा तप एवं वरदान
• प्रतापभानु की कथा
• रावणादिका जन्म, तपस्या और उनका ऐश्वर्य तथा अत्याचार
• पृथ्वी और देवतादि की करुण पुकार
• भगवान्‌ का वरदान
• राजा दशरथ का पुत्रेष्टि यज्ञ, रानियों का गर्भवती होना
• श्री भगवान्‌ का प्राकट्य और बाललीला का आनंद
• विश्वामित्र का राजा दशरथ से राम-लक्ष्मण को माँगना, ताड़का वध
• विश्वामित्र-यज्ञ की रक्षा
• अहल्या उद्धार
• श्री राम-लक्ष्मण सहित विश्वामित्र का जनकपुर में प्रवेश
• श्री राम-लक्ष्मण को देखकर जनकजी की प्रेम मुग्धता
• श्री राम-लक्ष्मण का जनकपुर निरीक्षण
• पुष्पवाटिका-निरीक्षण, सीताजी का प्रथम दर्शन, श्री सीता-रामजी का परस्पर दर्शन
• श्री सीताजी का पार्वती पूजन एवं वरदान प्राप्ति तथा राम-लक्ष्मण संवाद
• श्री राम-लक्ष्मण सहित विश्वामित्र का यज्ञशाला में प्रवेश
• श्री सीताजी का यज्ञशाला में प्रवेश
• बंदीजनों द्वारा जनकप्रतिज्ञा की घोषणा, राजाओं से धनुष न उठना, जनक की निराशाजनक वाणी
• श्री लक्ष्मणजी का क्रोध
• धनुषभंग
• जयमाला पहनाना, परशुराम का आगमन व क्रोध
• श्री राम-लक्ष्मण और परशुराम-संवाद
• दशरथजी के पास जनकजी का दूत भेजना, अयोध्या से बारात का प्रस्थान
• बारात का जनकपुर में आना और स्वागतादि
• श्री सीता-राम विवाह, विदाई
• बारात का अयोध्या लौटना और अयोध्या में आनंद
• श्री रामचरित्‌ सुनने-गाने की महिमा

शिवपुराण में कहा गया है कि दयालु मनुष्य, अभिमानशून्य व्यक्ति, परोपकारी और जितेंद्रीय ये चार पवित्र स्तंभ हैं, जो इस पृथ्वी को धारण किए हुए हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि ये चारों गुण एक साथ मर्यादा पुरुषोत्तम राम के चरित्र में समाहित होकर पृथ्वी की धारण शक्ति बन गए हैं। राम के इन्हीं वैयक्तिक सद्गुणों का उच्चतम आदर्श समाज के सम्मुख प्रस्तुत करना वाल्मीकि रामायण का प्रमुख उद्देश्य है। एक आदर्श पुत्र, आदर्श पति, भ्राता एवं आदर्श राजा- एक वचन, एक पत्नी, एक बाण जैसे व्रतों का निष्ठापूर्वक पालन करने वाले राम का चरित्र उकेरकर अहिंसा, दया, अध्ययन, सुस्वभाव, इंद्रिय दमन, मनोनिग्रह जैसे षट्‍गुणों से युक्त आदर्श चरित्र की स्थापना रामकथा का मुख्य प्रयोजन है। रामायण में वर्णित राम-लक्ष्मण-सीता ईश्वर स्वरूप हो सारे भरतखंड में पूजा-आराधना के केंद्र हो गए हैं। राम परिवार के वैचारिक, भाषिक एवं क्रियात्मक पराक्रम का वर्णन करना ही वाल्मीकि रामायण का प्रधान हेतु रहा है।

ब्रह्माजी के मानस पुत्र नारदजी से एक बार वाल्मीकि ने प्रश्न पूछा था- ‘संसार में गुणवान, वीर्यवान, धर्मज्ञ, उपकार मानने वाला दृढ़प्रतिज्ञ कौन है? ऐसा कौन सा महापुरुष है जो आचार-विचार एवं पराक्रम में आदर्श माना जा सकता है।’ इस पर नारद का उत्तर था- ‘राम नाम से विख्यात, वे ही मन को वश में रखने वाले महा बलवान, कांतिमान, धैर्यवान और जितेंद्रीय हैं।’ उसी समय नारद ने अत्यंत भाव-विह्वल होकर संपूर्ण रामचरित्र वाल्मीकि के समक्ष प्रस्तुत किया।

रामचरित्र के महासागर में डूबे, राम जल से आकंठ भीगे, करुणा-प्रेम, भक्ति जैसे सकारात्मक रसों से आप्लावित वाल्मीकि तमसा नदी के तट पर स्नान की इच्छा से आए। उनके हृदय में रामभक्ति का समुद्र लहरा रहा था। सारी सृष्टि ही मानो राममय हो गई थी। राम के दैविक गुण, मानवीय वृत्तियाँ, दया, उदारता, अहिंसा, अक्रोध, परदुःख, कातरता अभी भी उनके मन-मस्तिष्क पर छाई हुई थी कि शांत रस का सामना वीभत्स एवं हिंसा वृत्ति से हुआ। शीतल भूमि पर एकाएक दग्धता का अनुभव हुआ, जब सामने ही एक बहेलिए ने हिंसक भावों को प्रकट करते हुए निरपराध, मूक, मैथुनरत क्रौंच पक्षी को स्वार्थवश बाण से आहत कर दिया। अभी-अभी तो नारद से राम बाण, राम के शर संधान की कथा सुनी थी कि राम ने शौर्य, पराक्रम, दयालुता, उदारता आदि भावों का संरक्षण करते हुए दुष्टों के नाश एवं सज्जनों के परित्राण हेतु शस्त्र उठाए थे। …और कहाँ यह चरित्र कि अपने स्वार्थ हेतु मूक पक्षी को उस समय मार डाला जब कि वह सृष्टि की सृजन प्रक्रिया में मग्न था। दो धनुषधारी परंतु दोनों ही विपरीत दिशा में! राम के लोकहित में उठाए गए शस्त्रों के विपरीत यह शर संधान वीभत्स एवं शोक पैदा करने वाला था, जिसने वाल्मीकि को अंदर तक द्रवित कर दिया। क्रौंच पक्षी की पीड़ा से एकाकार हुए वाल्मीकि के मुँह से ‘मा निषाद…’ वाला श्लोक बह गया। सारी घनीभूत पीड़ा श्लोक में उतर आई।

क्रौंच वध से आहत वाल्मीकि निषाद को शाप देने के बाद विरोधी भावनाओं के समुद्र में डूबते-उतराते रहे। वे कर्तव्याकर्तव्य-करणीयाकरणीय के बीच द्वंद्वात्मक स्थिति में थे कि स्वर्ग से ब्रह्मा का आरोहण हुआ। वाल्मीकि सृष्टि के निर्माता एवं जगत के पितामह को स्वयं के द्वारा निषाद को शाप देने की कथा सुनाकर पश्चाताप करने लगे। इसी बीच अपने मुँह से निकले आदि श्लोक का भी वर्णन उन्होंने ब्रह्मा के समक्ष किया। वाल्मीकि के पश्चातापयुक्त वचन एवं आदि श्लोक की चर्चा सुनकर ब्रह्मा ने उन्हें धीरज बँधाकर दुःखी न होने को कहा। साथ ही आदेश दिया कि वे रामचरित्र का वैसा ही वर्णन करें जैसा उन्होंने ब्रह्मापुत्र नारद के मुँह से सुना था। ब्रह्मा ने इस कार्य की सफलता एवं सुसंचालन के लिए वाल्मीकि को वर दिया कि रामकथा का वर्णन करते हुए तुम्हें गुप्त एवं अज्ञात चरित्र भी ज्ञात और उजागर हो जाएँगे तथा तुम अपने योग धर्म से चरित्रों का अनुसंधान भी कर पाओगे। साथ ही जब तक सृष्टि में पर्वत-नदियाँ रहेंगे, तब तक लोग रामकथा का गान करते रहेंगे।

अपने शोक को श्लोक में प्रकट करने वाले वाल्मीकि आदि कवि कहलाए। वे कवियों के प्रथम सृष्टि पुरुष हुए, तभी तो ‘विश्व’ जैसे संस्कृत भाषा के शब्दकोश में कवि का अर्थ ही ‘वाल्मीकि’ दिया गया है। आदि कवि वाल्मीकि की रचना ‘रामायण’ संस्कृत भाषा का पहला ‘आर्ष महाकाव्य’ माना जाता है।

इतिहास पर आधारित एवं सदाचारसंपन्न आदर्शों का प्रतिपादन करने वाले काव्य को ‘आर्ष महाकाव्य’ कहा जाता है। वह सद्गुणों एवं सदाचारों का पोषक, धीरोदात्त, गहन आशय से परिपूर्ण, श्रवणीय छंदों से युक्त होता है। यह सर्वविदित है कि संस्कृत तमाम भारतीय भाषाओं की जननी है। अतः यह महाकाव्य तमाम भारतीय भाषाओं का पहला महाकाव्य है।

वाल्मीकि के पूर्व रामकथा मौखिक रूप से विद्यमान थी। वाल्मीकि रामायण भी दीर्घकाल तक मौखिक रूप में रही। इस मौखिक काव्य रचना को रामपुत्र लव-कुश ने कंठस्थ किया एवं वर्षों तक उसे सुनाते रहे। राम की सभा में लव-कुश द्वारा कथा सुनाने के प्रसंग पर राम अपने भाइयों से कहते हैं- ‘ये जिस चरित्र का, काव्य का गान कर रहे हैं वह शब्दालंकार, उत्तम गुण एवं सुंदर रीति आदि से युक्त होने के कारण अत्यंत प्रभावशाली एवं अभ्युदयकारी है, ऐसा वृद्ध पुरुषों का कथन है। अतः तुम सब लोग इसे ध्यान देकर सुनो।’

अंत में इस मौखिक काव्य को लिपिबद्ध करने का काम भी वाल्मीकि द्वारा ही किया गया। राम के वन से अयोध्या लौटने के बाद रामायण की रचना हुई, जिसमें 24,000 श्लोक, 500 सर्ग एवं 7 काण्ड हैं। इन 7 काण्डों पर विद्वान एकमत नहीं हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि 2 से 6 तक के काण्ड अयोध्या, अरण्य, किष्किंधा, सुन्दर एवं युद्ध काण्ड वाल्मीकि रचित हैं। प्रथम एवं सातवां (बाल एवं उत्तर काण्ड) वाल्मीकि रचित नहीं हैं। इस रामकथा को ‘पौलत्स्य वध’ तथा दशानन वध भी कहा गया है। सारतः कहा जा सकता है कि रामायण रूपी भगीरथी को पृथ्वी पर उतारने का काम वाल्मीकि ने किया। (www.himalayauk.org) UK Leading Digital Newsportal 

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