भगवान राम जहां साक्षात् उपस्थित हैं

अदभूत, चमत्कार #इंदिरा गॉधी  को भगवान के प्रसाद पर शक करना भारी पड गया #“राजा राम मंदिर” ; “सर्व व्यापक हैं राम के दो निवास खास, दिवस ओरछा रहत, शयन अयोध्या वास।” # बड़ी प्रबल मान्यता है कि श्रीराम दिन में यहां और रात में अयोध्या में विश्राम करते हैं। शाम की आरती होने के बाद बजरंगबली को जलती हुई ज्योति सौंप दी जाती है। उसके बाद हनुमानजी रात्रि विश्राम के लिए भगवान राम को अयोध्या ले जाते हैं। जो मूर्ति ओरछा में विद्यमान है उसके बारे में बताया जाता है कि जब राम वनवास जा रहे थे तो उन्होंने अपनी एक बाल मूर्ति मां कौशल्या को दी थी। जब राम अयोध्या लौटे तो कौशल्या ने यह मूर्ति सरयू नदी में विसर्जित कर दी। यही मूर्ति गणेशकुंवरि को सरयू की मझधार में मिली थी। रामराजा मंदिर विश्व का अकेला मंदिर है, जहां राम की पूजा राजा के रूप में होती है। यहां भगवान राम का दरबार सजता है। इस मंदिर के चारों ओर कई मंदिर हैं। इसलिए यहां भगवान राम को ओरछाधीश भी कहा जाता है। रामराजा मंदिर के चारों तरफ हनुमान जी के मंदिर हैं। छड़दारी हनुमान, बजरिया के हनुमान, लंका हनुमान के मंदिर एक सुरक्षा चक्र के रूप में चारों तरफ हैं। ओरछा की अन्य बहुमूल्य धरोहरों में लक्ष्मी मंदिर, पंचमुखी महादेव, राधिका बिहारी मंदिर, राजामहल, रायप्रवीण महल, हरदौल की बैठक और हरदौल की समाधि है।
प्रस्तुत फोटो  विग्रह है, इनकी फोटो खींचना वर्जित है, परन्तु लेखक ने श्रद्वालुओं को पुण्य लाभ मिले, इस कारणवश दुस्साहस करते हुए फोटो खींच डालीः दर्शन लाभ लेः समस्त जनों को भेजेः

हिमालयायूके न्यूज पोर्टल तथा दैनिक समाचार पत्र- सम्पादक चन्द्र्शेखर जोशी –

म0प्र0 ओरछा के राजा राम है, बाकी सब यहां प्रजा है, यहां राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्री, मंत्री, उच्‍च अधिकारी किसी को भी सैल्‍यूट नही पडता, 1984 में तत्‍कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गॉधी यहां आई थी, उन्‍होंने चरणामृत की जांच करवाई थी, लोगों का कहना है कि भगवान के प्रसाद पर शक करना भारी पड गया, इस कहानी का संबंध उसी साल हुई उनकी हत्‍या से हुई, इसी तरह म0प्र0 के एक मंत्री के बारे में भी कहानी प्रचलित है, लोग मानते हैं कि जो भी राम राजा के दरबार में उनका असम्‍मान करेगा, उसे जान माल का नुकसान उठाना पडता है-

भगवान राम को यहां भगवान मानने के साथ यहां का राजा भी माना जाता है, क्योंकि उस मूर्ति का चेहरा मंदिर की ओर न होकर महल की ओर है। भगवान राम के बारे में सभी लोग जानते ही हैं, विश्व में उनके अनेक मंदिर हैं, पर क्या आप उनके किसी ऐसे मंदिर के बारे में जानते हैं जहां वे साक्षात् उपस्थित रहते हैं, इस मंदिर में जहां उनके होते हैं साक्षात् दर्शन। भगवान राम के साक्षात् दर्शन कराने वाले इस मंदिर का नाम “राजा राम मंदिर” है, यह मंदिर मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ नामक स्थान के ओरछा नाम की जगह पर स्थित है, जानकरी के लिए बता दें कि ओरछा नामक यह स्थान एक धर्मनगरी के रूप में भी प्रसिद्ध है।

यह मंदिर एक प्राचीन मंदिर है और यह उस महाकवि और संत तुलसीदास के समकालीन ही बना हुआ है, इस मंदिर निर्माण से जुड़ी एक अत्यंत प्राचीन घटना है, यह घटना उस समय के स्थान के राजा मधुरक शाह और उनकी रानी गणेश कुंवर से जुड़ी हुई है। महारानी गणेश कुंवर एक रामभक्त महिला थी और उन्होंने अयोध्या की सरयू नदी के किनारे एक कुटिया बना कर कुछ समय तपस्या की थी।
उस समय संत तुलसीदास भी जीवित थे और उन्होंने रानी को आशिर्वाद भी दिया था। रानी को काफी समय तप करने के बाद भी भगवान राम के दर्शन नहीं हुए तो उन्होंने सरयू नदी में जल समाधि लेने का निश्चय किया और जल समाधी के लिए सरयू में कूद गई, पर उस समय सरयू की ही अटल गहराइयों में रानी गणेश कुंवर को भगवान राम ने दर्शन दिए, उस समय रानी ने भगवान को अपने साथ मध्य प्रदेश में ही रहने के लिए प्रार्थना की और उनकी प्रार्थना स्वीकार कर भगवान राम ने उनको ओरछा में साक्षात् सैदव रहने का वचन दिया था।
इसके बाद में ही रानी ने ओरछा में “राजा राम मंदिर” का निर्माण करा, वहां श्रीराम की प्रतिष्ठा कराई और उस समय से ही इस मंदिर में भगवान राम सैदव प्रतिष्ठित हैं। यहां बहुत से भक्त लोग आज भी भगवान राम के दर्शन कर अपने जीवन को कृतार्थ करते हैं।

ओरछा के नरेश मधुकरशाह की पत्नी गणेशकुंवरि थीं। प्रायः नरेश भगवान् श्रीकृष्ण की उपासना के लिए गणेशकुंवरि को वृंदावन चलने को कहते थे। लेकिन रानी राम भक्त थीं इसलिए उसने वृंदावन जाने से मना कर दिया। इससे नाराज़ राजा ने गुस्से में कहा कि- अगर तुम इतनी ही रामभक्त हो तो अपने राम को ओरछा ले आओ”। तदुपरांत रानी ने अयोध्या में सरयू नदी के तट पर लक्ष्मण किले के पास अपनी कुटीया बनाकर साधना आरंभ की। उन दिनों तुलसीदास भी अयोध्या में साधना कर रहे थे जहां उनका आशीर्वाद भी रानी को मिला। मगर दुर्भाग्यवश रानी को कई महीनों तक भगवान राम के दर्शन नहीं हुए। अंतत: वह निराश होकर अपने प्राण त्यागने सरयू में कूद गयी। वहां जल की गहराइयों में उन्हें रामराजा के दर्शन हुए।
अंततः भगवान राम ने ओरछा चलना स्वीकार किया। लेकिन उनकी तीन शर्तें थीं- पहली, यह यात्रा पैदल होगी, दूसरी, यात्रा केवल पुष्प नक्षत्र में होगी, तीसरी, उनकी मूर्ति जिस जगह रखी जाएगी। वहां से पुन: नहीं उठेगी। राजा मधुकरशाह ने रामराजा के विग्रह को स्थापित करने के लिए चतुर्भुज मंदिर का निर्माण कराया। जब रानी ओरछा पहुंची तो उन्होंने श्रीराम की मूर्ति अपने महल में रख दी। यह निश्चित हुआ कि शुभ मुर्हूत में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कर चतुर्भुज मंदिर में स्थापित कर दिया जाएगा। किन्तु श्रीराम के विग्रह ने चतुर्भुज मंदिर जाने से मना कर दिया। कहते हैं कि राम यहां बाल रूप में आए और अपनी मां का महल छोड़कर वो मंदिर में कैसे जा सकते थे। प्रभु राम आज भी इसी महल में विराजमान हैं। जबकि चतुर्भुज मंदिर आज भी वीरान है। संवत 1631 को रामराजा जब ओरछा पहुंचे, उसी दिन रामचरित मानस का लेखन भी पूर्ण हुआ। जो मूर्ति ओरछा में विद्यमान है उसके बारे में बताया जाता है कि जब राम वनवास जा रहे थे तो उन्होंने अपनी एक बाल मूर्ति मां कौशल्या को दी थी। जब राम अयोध्या लौटे तो कौशल्या ने यह मूर्ति सरयू नदी में विसर्जित कर दी। यही मूर्ति गणेशकुंवरि को सरयू की मझधार में मिली थी।

यह मंदिर ओरछा का सबसे लोकप्रिय और महत्वपूर्ण मंदिर है। यह भारत का एकमात्र मंदिर है जहां भगवान राम को राजा के रूप में पूजा जाता है। माना जाता है कि राजा मधुकर को भगवान राम ने स्वप्न में दर्शन दिए और अपना एक मंदिर बनवाने को कहा।

भारत के इतिहास में झांसी के पास स्थित ओरछा का एक अपना महत्व है। इससे जुड़ी तमाम कहानियां और किस्से पिछली कई दशकों से लोगों की जुबान पर हैं कुछ लोग कहते हैं कि सबसे पहले लोगों ने बुंदेलखंड में रहना शुरू किया था। यही वजह है कि इस इलाके के हर गांव और शहर के पास सुनाने को कई कहानियां हैं। बुंदेलखंड की दो खूबसूरत और दिलचस्प जगहें हैं ओरछा और कुंढार। भले ही दोनों जगहों में कुछ किलोमीटर का फासला हो, लेकिन इतिहास के धागों से ये दोनों जगहें बेहद मजबूती से जुड़ी हुई हैं। ओरछा झांसी से लगभग आधे घंटे की दूरी पर स्थित है।
इसका इतिहास 8वीं शताब्दी से शुरू होता है, जब गुर्जर प्रतिहार सम्राट मिहिर भोज ने इसकी स्थापना की थी। इस जगह की पहली और सबसे रोचक कहानी एक मंदिर की है। दरअसल, यह मंदिर भगवान राम की मूर्ति के लिए बनवाया गया था, लेकिन मूर्ति स्थापना के वक्त यह अपने स्थान से हिली नहीं। इस मूर्ति को मधुकर शाह के राज्यकाल (1554-92) के दौरान उनकी रानी गनेश कुवर अयोध्या से लाई थीं। चतुर्भुज मंदिर बनने से पहले इसे कुछ समय के लिए महल में स्थापित किया गया। लेकिन मंदिर बनने के बाद कोई भी मूर्ति को उसके स्थान से हिला नहीं पाया। इसे ईश्वर का चमत्कार मानते हुए महल को ही मंदिर का रूप दे दिया गया और इसका नाम रखा गया राम राजा मंदिर। आज इस महल के चारों ओर शहर बसा है और राम नवमी पर यहां हजारों श्रद्धालु इकट्ठा होते हैं। वैसे, भगवान राम को यहां भगवान मानने के साथ यहां का राजा भी माना जाता है, क्योंकि उस मूर्ति का चेहरा मंदिर की ओर न होकर महल की ओर है।
मंदिर के पास एक बगान है जिसमें स्थित काफी ऊंचे दो मीनार (वायू यंत्र) लोगों के आकर्षण का केन्द्र हैं। जि्न्हें सावन भादों कहा जाता है कि इनके नीचे बनी सुरंगों को शाही परिवार अपने आने-जाने के रास्ते के तौर पर इस्तेमाल करता था। इन स्तंभों के बारे में एक किंवदंती प्रचलित है कि वर्षा ऋतु में हिंदु कलेंडर के अनुसार सावन के महीने के खत्म होने और भादों मास के शुभारंभ के समय ये दोनों स्तंभ आपस में जुड़ जाते थे। हालांकि इसके बारे में पुख्ता सबूत नहीं हैं। इन मीनारों के नीचे जाने के रास्ते बंद कर दिये गये हैं एवं अनुसंधान का कोई रास्ता नहीं है।
इन मंदिरों को दशकों पुराने पुल से पार कर शहर के बाहरी इलाके में ‘रॉयल एंक्लेव’ (राजनिवास्) है। यहां चार महल, जहांगीर महल, राज महल, शीश महल और इनसे कुछ दूरी पर बना राय परवीन महल हैं। इनमें से जहांगीर महल के किस्से सबसे ज्यादा मशहूर हैं, जो मुगल बुंदेला दोस्ती का प्रतीक है। कहा जाता है कि बादशाह अकबर ने अबुल फज़ल को शहजादे सलीम (जहांगीर) को काबू करने के लिए भेजा था, लेकिन सलीम ने बीर सिंह की मदद से उसका कत्ल करवा दिया। इससे खुश होकर सलीम ने ओरछा की कमान बीर सिंह को सौंप दी थी। वैसे, ये महल बुंदेलाओं की वास्तुशिल्प के प्रमाण हैं। खुले गलियारे, पत्थरों वाली जाली का काम, जानवरों की मूर्तियां, बेलबूटे जैसी तमाम बुंदेला वास्तुशिल्प की विशेषताएं यहां साफ देखी जा सकती हैं।
अब बेहद शांत दिखने वाले ये महल अपने जमाने में ऐसे नहीं थे। यहां रोजाना होने वाली नई हलचल से उपजी कहानियां आज भी लोगों की जुबान पर हैं। इन्हीं में से एक है हरदौल की कहानी, जो जुझार सिंह (1627-34) के राज्य काल की है। दरअसल, मुगल जासूसों की साजिशभरी कथाओं के कारण् इस राजा का शक हो गया था कि उसकी रानी से उसके भाई हरदौल के साथ संबंध हैं। लिहाजा उसने रानी से हरदौल को ज़हर देने को कहा। रानी के ऐसा न कर पाने पर खुद को निर्दोष साबित करने के लिए हरदौल ने खुद ही जहर पी लिया और त्याग की नई मिसाल कायम की।
बुंदेलाओं का राजकाल 1783 में खत्म होने के साथ ही ओरछा भी गुमनामी के घने जंगलों में खो गया और फिर यह स्वतंत्रता संग्राम के समय सुर्खियों में आया। दरअसल, स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद यहां के एक गांव में आकर छिपे थे। आज उनके ठहरने की जगह पर एक स्मृति चिन्ह भी बना है।

 हिमालय गौरव उत्‍तराखण्‍ड- www.himalayauk.org (HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND) Leading Digital Newsportal & Daily Newspaper; publish at Dehradun & Haridwar; Mail; himalayauk@gmail.com & csjoshi_editor@yahoo.in Mob. 9412932030

ध्‍यान दे- उत्‍तराखण्‍ड के 4 धामों में वीवीआईपी बनकर आने का रिवाज बढता जा रहा है- हिमालय के संत इसे सही नही मान रहे हैं-

 

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