ग्रहों की बदलती चाल कब क्‍या करा दे- विधाता भी नही जानता

त्रिवेन्द्र पूर्व में अर्जित पुण्‍य कर्मो के द्वारा सफल राजनीतिक पारी खेल रहे हैं#  ग्रहों की बदलती चाल कब क्‍या करा दे- विधाता भी नही जानता-#शनि का मार्ग बदलते ही लोकप्रियता में कमी और नुकसान के योग बनाने लगता है, शनि न्याय के देवता हैं, वे कर्म और सेवा के कारक हैं। इसलिए शनिदेव का यह मार्ग परिवर्तन सत्ता पक्ष के लिए ठीक नहीं माना जाएगा। इस अवधि में सत्ता में बैठे लोगों की लोकप्रियता में कमी आएगी और नुकसान संभव है- एेेेेसे भी योग संभावित है# ग्रहों की चाल प्रभावित करती है मानव जीवन को # एक्‍सक्‍लूसिव आलेख- चन्‍द्रशेखर जोशी की रिपोर्ट-

इन्वेस्टरर्स समिट में  देवभूमि उत्तराखंड के आध्यात्म की महिमा का वर्णन प्रधानमंत्री, मुख्यहमंत्री, मुख्य सचिव ने किया- परन्तु उसके बाद भी मीडिया ने प्रायोजित खबर लिखी- मंच से मुख्यममंत्री की पीठ थपथपा कर संदेश दे गये मोदी- तो एक ओर समाचार पत्र ने लिखा- प्रधानमंत्री से तारीफ मिलने के बाद प्रचण्ड बहुमत सरकार के मुखिया त्रिवेन्द्र् रावत की सियासी ताकत में और ज्यादा इजाफा हो गया – यह प्रायोजित लाइने मीडिया में प्रकाशित करवा कर मुगालते में नही रहना चाहिए- क्योंकि उत्तराखण्ड देवभूमि माना गया है- यही गुमान तत्कालीन मुख्य्मंत्री विजय बहुगुणा को हो गया था- परन्‍तु सितारे प्रतिकूल चलते ही उनकी दशा और दिशा दोनो बिगड गयी- हिमालयायूके ने आलेख प्रकाशित कर उनको भी सीधे सीधे चेताया था- वही इस समय त्रिवेन्द्र सिह रावत अपने भूतकाल के पुण्य कर्मो के आधार पर सफल राजनीतिक पारी खेल रहे हैं, यह उनके जीवन का बेहतरीन समय है, परन्तु यह बेहतरीन समय लगातार बना रहेगा, इसकी कोई गारंटी नही है, चाहे कोई भी इंसान पीठ थपथपा जाये- राजनीतिक सत्ता ऐब, दोष पैदा करती है, जिसको राजा के विद्वान सलाहकार, विद्वान ब्राहमण दूर करते हैं, जिनकी नितांत कमी है त्रिवेन्द्रा रावत जी के पास- पूर्व अर्जित पुण्य के आधार पर वर्तमान कुर्सी पर विराजमान है, परन्तु यह कुर्सी लम्बे समय तक बरकरार रहेगी, इसके लिए वर्तमान में उनके द्वारा किये गये पुण्य शून्य है, जबकि इस समय सबसे ज्‍यादा होने चाहिए थे, देवभूमि में साधक भी है, जिनको राजसत्‍ता से कोई लेना देना नही है, परन्‍तु जब उनके पास गुहार पहुंचती है वही सितारे भी अपनी चाल चलते हैं, इन सितारो की गणना को माहिर ज्योतिषविद समय समय पर हिमालयायूके को अवगत करा रहे हैं-
वही इन्वेस्टरर्स समिट में मुख्यमंत्री ने देवभूमि उत्तराखंड के बारे में कहा कि उत्तराखंड, योग आध्यात्म और वेलनेस का सेंटर है। यहाँ हिमालय की कंदराओं में दुर्लभ जड़ी बूटियाँ और औषधीय गुणों के आयुर्वेदिक पौधे मौजूद हैं।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि उत्तराखण्ड के स्पिरीचुअल इको जोन से दुनिया को मिलती है ताकत
मुख्य सचिव ने हिमालय और प्रकृति की गोद मे स्थित गंगा, यमुना, संतों, सूफियों और गुरुओं की धरती को तप भूमि बताते हुए कहा कि आदि गुरु शंकराचार्य,गुरु गोविंद सिंह जी,सूफी संत हजरत साबिर कलियारी, स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी की तपोभूमि है।

मनुष्य के जीवन में गृहों की चाल का बड़ा महत्व होता है। इनकी हर चाल का असर हमारी जिंदगी पर होता है। गृह की दशा बदलने से राशियों की भी दशा बदलती रहती है। कभी कोई गृह किसी राशि के लिए खुशियां लाता है तो कोई गम।  इंसान के जीवन में खुशी और गम कुंडली के माध्यम से भी बदलता है।

पौराणिक कथा के अनुसार एक समय शनि देव भगवान शंकर के धाम हिमालय पहुंचे। उन्होंने अपने गुरुदेव भगवान शंकर को प्रणाम कर उनसे आग्रह किया,” हे प्रभु! मैं कल आपकी राशि में आने वाला हूं अर्थात मेरी वक्र दृष्टि आप पर पड़ने वाली है। शनिदेव की बात सुनकर भगवान शंकर हतप्रभ रह गए और बोले, “हे शनिदेव! आप कितने समय तक अपनी वक्र दृष्टि मुझ पर रखेंगे।” शनिदेव बोले, “हे नाथ! कल सवा प्रहर के लिए आप पर मेरी वक्र दृष्टि रहेगी। शनिदेव की बात सुनकर भगवन शंकर चिंतित हो गए और शनि की वक्र दृष्टि से बचने के लिए उपाय सोचने लगे।”  शनि की दृष्टि से बचने हेतु अगले दिन भगवन शंकर मृत्युलोक आए। भगवान शंकर ने शनिदेव और उनकी वक्र दृष्टि से बचने के लिए एक हाथी का रूप धारण कर लिया। भगवान शंकर को हाथी के रूप में सवा प्रहर तक का समय व्यतीत करना पड़ा तथा शाम होने पर भगवान शंकर ने सोचा, अब दिन बीत चुका है और शनिदेव की दृष्टि का भी उन पर कोई असर नहीं होगा। इसके उपरांत भगवान शंकर पुनः कैलाश पर्वत लौट आए। भगवान शंकर प्रसन्न मुद्रा में जैसे ही कैलाश पर्वत पर पहुंचे उन्होंने शनिदेव को उनका इंतजार करते पाया। भगवान शंकर को देख कर शनिदेव ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया। भगवान शंकर मुस्कराकर शनिदेव से बोले,”आपकी दृष्टि का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ।”  यह सुनकर शनि देव मुस्कराए और बोले,” मेरी दृष्टि से न तो देव बच सकते हैं और न ही दानव यहां तक कि आप भी मेरी दृष्टि से बच नहीं पाए।” यह सुनकर भगवान शंकर आश्चर्यचकित रह गए। शनिदेव ने कहा, मेरी ही दृष्टि के कारण आपको सवा प्रहर के लिए देव योनी को छोड़कर पशु योनी में जाना पड़ा इस प्रकार मेरी वक्र दृष्टि आप पर पड़ गई और आप इसके पात्र बन गए। शनि देव की न्यायप्रियता देखकर भगवान शंकर प्रसन्न हो गए और शनिदेव को हृदय से लगा लिया।

ज्योतिषीय दृष्टि से ग्रहों की गतिशीलता का जीवन में घटित होने वाली अच्छी या बुरी घटनाओं में बड़ा महत्व है। इन घटनाओं के आकलन के लिए 27 नक्षत्रों, 9 ग्रहों व 12 राशियों को आधार बनाया गया है। राशियों व ग्रहों के अपने-अपने गुण व धर्म हैं जिसके आधार पर ज्योतिषीय कथन तय होते हैं। संपूर्ण ब्रह्माण्ड 360 अंशों में विभाजित है। इसमें 12 राशियों मे से प्रत्येक राशि के 30 अंश हैं। इस प्रकार ये राशियां पूरे ब्रह्माण्ड का प्रतिनिधित्व करती हैं। सभी 9 ग्रह प्रत्येक राशि में अपनी-अपनी गति से प्रवेश कर 30 डिग्री पार कर दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। प्रत्येक ग्रह की गति व राशि की 30 डिग्री को पार करने की समय सीमा अलग-अलग होती है। ग्रहों की इस गतिशीलता को गोचर कहा गया है जिसका सामान्य अर्थ है मौजूदा समय में ग्रहों की राशिगत स्थिति क्या है।
सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु व केतु इन नौ ग्रहों में सबसे तेज गति चंद्र की है। चंद्रमा एक राशि में कोई 54 घंटे (सवा दो दिन) रह कर दूसरी राशि में प्रवेश कर जाता है। जबकि शनि को एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने के लिए 30 माह यानी ढाई वर्ष का समय लगता है।
इसी प्रकार सूर्य को सामान्यतः 30 दिन, मंगल डेढ़ से तीन माह, बुध 27 दिन, गुरु 12 माह, शुक्र डेढ़ से दो माह तथा राहु व केतु 18 माह में एक राशि से दूसरी राशि में गतिमान होते हैं।
नौ ग्रहों में सूर्य व चंद्र ही ऐसे दो ग्रह हैं जो कभी वक्री (विपरीत गति) नहीं होते, जबकि राहु व केतु सदैव वक्री गति से ही चलते हैं। मंगल, बुध, गुरु, शुक्र व शनि ग्रह कई बार सीधी गति से चलते हुए वक्री होकर पुनः सीधी गति पर लौटते हैं।
ज्योतिष विज्ञान में सूर्य को आत्मा का तो चंद्र को मन का कारक माना गया है। मंगल युद्ध, शौर्य व नेतृत्व का कारक है तो गुरु शिक्षा, अध्यात्म व धर्म का प्रतिनिधि है। शुक्र सुंदरता, शारीरिक गठन व भोग-विलास का कारक है तो शनि न्याय व दंड के साथ प्रतिशोध मनोवृत्ति व विलंबता का प्रतिनिधित्व करता है। राहु आलस्य, अस्थिरता, उदर रोग व कूटनीति तथा केतु मानसिक अस्थिरता, लेखन, हतोत्साहितता व शोध कार्यों का कारक है।

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