शरद ऋतु प्रारंभ-सुनामी के खतरे – & रक्षाबंधन पर राजयोग+महालक्ष्मी योग
रक्षा बंधन का विधान है। यह रक्षाबंधन राजा को पुरोहित द्वारा यजमान के ब्राह्मण द्वारा, भाई के बहन द्वारा और पति के पत्नी द्वारा दाहिनी कलाई पर किया जा सकता है। संस्कृत भाषा में इसका वर्णन मिलता है। “जनेन विधिना यस्तु रक्षाबंधनमाचरेत। स सर्वदोष रहित, सुखी संवतसरे भवेत्।।” अर्थात् इस प्रकार विधिपूर्वक जिसके रक्षाबंधन किया जाता है वह संपूर्ण दोषों से दूर रहकर संपूर्ण वर्ष सुखी रहता है।
“येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।” अर्थात जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ।
हिमालयायूके- हिमालय गौरव उत्तराखण्ड
शरद ऋतु प्रारंभ- सुनामी के खतरे काफी बढ़ गए – ‘साइंस एडवासेस’ जर्नल
जलवायु परिवर्तन की वजह से समुद्र के जलस्तर में थोड़ी सी वृद्धि दुनिया पर सुनामी से होने वाली तबाही का खतरा बढ़ा सकती है. एक अध्ययन में यह चेतावनी दी गई है. तटीय शहरों में समुद्र का जल स्तर बढ़ने के खतरे के बारे में सभी को जानकारी है, लेकिन इस नए अध्ययन से पता चला है कि भूंकप के बाद आई सुनामी से तटीय शहरों के अलावा दूर-दूर बसे शहरों और बसावटों को भी खतरा पैदा हो सकता है. अमेरिका के वर्जिनिया टेक के एक सहायक प्रोफेसर रॉबर्ट वेस ने कहा, ‘हमारा अध्ययन बताता है कि समुद्र का जलस्तर बढ़ने से सुनामी के खतरे काफी बढ़ गए हैं, जिसका मतलब है कि भविष्य में
समुद्र का जल स्तर एक से दो फुट भी बढ़ जाने पर मामूली सुनामी भी समुद्रतटीय इलाकों में प्रलय के नजारे दिखा सकती है। इस जलस्तर के बढ़ने की मुख्य वजह जलवायु परिवर्तन होगा। शोधकर्ताओं के मुताबिक, तटीय शहरों में समुद्र का जलस्तर बढ़ने के खतरे से हर कोई वाकिफ है, लेकिन एक नये अध्ययन से पता चला है कि भूकम्प के बाद आई सुनामी से तटीय शहरों के अलावा दूर-दूर बसे शहरों और बस्तियों को भी खतरा पैदा हो सकता है।
अमेरिका के वर्जिनिया टेक के प्रोफेसर राॅबर्ट वेस का कहना है कि हमारा अध्ययन बताता है कि समुद्र का जलस्तर बढ़ने से सुनामी के खतरे काफी बढ़ गए हैं। इसका मतलब है कि भविष्य में छोटी सुनामी का भी बड़ा भयानक प्रभाव हो सकता है। यह अध्ययन ‘साइंस एडवासेस’ जर्नल में प्रकाशित हुआ है। हाल के वर्षो में दुनिया के कुछ देशों ने सुनामी की त्रासदी झेली है। जलवायु परिवर्तन से भारत के समुद्रतटीय शहरों के अस्तित्व पर खतरा बढ़ गया है।
धरती का मौसमी चक्र जिस तरह से बदल रहा है उससे कई देशों के सामने संकट पैदा हो गया है। यूरोप के कई देश भीषण गर्मी से परेशान हैं तो भारत चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश भारी बारिश की चपेट में हैं। फ्रांस, स्पेन, पुर्तगाल, जर्मनी, ब्रिटेन भीषण गर्मी से जूझ रहे हैं। मौसम विज्ञानियों का अनुमान है कि तापमान में अभी और बढ़ोत्तरी मुमकिन है और जुलाई 1977 का रिकार्ड भी टूट सकता है, जब एथेंस का तापमान 48 डिग्री पहुंच गया था।
अफ्रीका से आ रही गर्म और सूखी हवाओं को इसके लिए जवाबदेह माना जा रहा है, हालांकि भीषण गर्मी की खबरें जापान और कोरिया से भी आ रही हैं। गर्मी से उत्तर में साइबेरिया से लेकर दक्षिण में ग्रीस तक के जंगलों में भीषण आग लगी है। जिसमें 85 लोगों के मारे जाने की सूचना है।
राजयोग और महालक्ष्मी योग- आपके भाई का तो नही बन रहा- बहनों के लिए यह पर्व बहुत सौभाग्यशाली – 26 अगस्त को शाम 4:30 से 6 बजे तक राहुकाल – राहु काल तब राखी ना बांधे।
हिमालयायूके- हिमालय गौरव उत्तराखण्ड
रक्षाबंधन का पर्व इस बार 26 अगस्त को मनाया जाएगा। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार रक्षाबंधन पर महालक्ष्मी योग बन रहा है। दरअसल सावन पूर्णिमा (रक्षा बंधन) पर इस बार बेहद खास योग बन रहा है। आप अपने भाई के राशि चिन्ह के आधार पर राखी खरीद सकती हैं। राशि चिन्ह एक व्यक्ति के स्वभाव को दर्शाता है। इस बार रक्षाबंधन पर भ्रदा का साया न होने के कारण पूरे दिन रक्षाबंधन का पर्व मनाया जा सकेगा। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार 4 साल के बाद ऐसा संयोग बन रहा है, जब रक्षाबंधन के दिन भद्रा का साया नहीं रहेगा।
भद्रा का साया रक्षाबंधन के दिन पहले ही समाप्त हो जाएगा। इसके अलावा रक्षाबंधन के दिन राजयोग भी बन रहा है। इसके अलावा धनिष्ठा नक्षत्र भी इसी दिन लग रहा है। पूर्णिमा में रक्षाबंधन ग्रहण से मुक्त रहेगा। इसके कारण बहनों के लिए यह पर्व बहुत सौभाग्यशाली रहेगा। राजयोग में राखी बांधने पर बहनों का सौभाग्य और सुख समृद्धि में वृद्धि होती है और भाइयों का भाग्य चमकता है। राखी बांधने के लिए सुबह से शाम तक काफी समय मिलेगा। लेकिन इस बात का खास ख्याल रखना होगा जब राहु काल हो तब राखी ना बांधे। 26 अगस्त को शाम 4:30 से 6 बजे तक राहुकाल रहेगा। इस बार रक्षा बंधन का मुहुर्त 26 अगस्त की सुबह 5 बजकर 59 मिनट से शाम 5 बजकर 12 मिनट तक रहेगा। इस हिसाब से बहनों को करीब साढ़े ग्यारह घंटे का समय राखी बांधने के लिए मिलेगा। इस दौरान कभी भी रक्षाबंधन का पर्व मनाया जा सकता है। भाई को पूर्वाभिमुख, पूर्व दिशा की ओर बिठाएं। बहन का मुंह पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए। भाई के माथे पर टीका लगाकर दाहिने हाथ पर रक्षा सूत्र बांधे। रिवाजों के अनुसार बहनें भाई दूज की तरह इस दिन भी भाई की गोद में नारियल देती हैं. बहन भाई की आरती करती हैं और बुरी नजर उतारती हैं. आरती के समय बहन भाई की लबी उम्र की कामना करती है. साथ ही भाई भी बहन को उपहार देता है और एक दूसरे का मुंह मीठा करते हैं. यह त्योहार स्नेह के साथ मनाया जाता है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि रक्षासूत्र का अर्थ होता है कि वह भाई को अला बला व बुरी नजर से बचाता है व सुरक्षा करता है.रक्षाबंधन का मुहूर्त 26 अगस्त को प्रातः 7.43 से दोपहर 12.28 बजे तक रहेगा। इसके बाद दोपहर 2.03 से 3.38 बजे तक रहेगा। सायं 5.25 पर पूर्णिमा तिथि समाप्त हो जाएगी। हालांकि, सूर्योदय व्यापिनी तिथि मानने के कारण रात्रि में भी राखी बांधी जा सकेगी।
रक्षा बंधन पर पुराणों में देवताओं या ऋषियों द्वारा जिस रक्षासूत्र को बांधने की बात की गई हैं वह धागे की बजाय कोई मंत्र या गुप्त सूत्र भी हो सकता है। धागा केवल उसका प्रतीक है। इसका सबसे पहला उदाहरण राक्षसों से इन्द्रलोक को बचाने के लिए देव गुरू बृहस्पति ने इन्द्र देव की पत्नि को एक उपाय बताया था। इन्द्र देव की पत्नि ने देवासुर संग्राम में असुरों पर विजय पाने के लिए मंत्र सिद्ध करके श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को रक्षा सूत्र बांधा था, इसी सूत्र की शक्ति से देवराज युद्ध में विजयी हुए।
रक्षाबंधन पर इस मंत्र का उच्चारण करें
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वां अभिबन्धामि रक्षे मा चल मा चल।
राइन और एल्ब जैसी नदियों में पानी गर्म होने से मछलियां मरती जा रही हैं। जर्मनी के किसानों ने फसलों के नुकसान की आशंका भांपकर सरकार से सहायता मांगी है। पूरे यूरोप में कृषि उपज इस बार पिछले छह वर्षो से सबसे कम होने का अनुमान है।
‘द हृयूमन डाइमेशन आफ क्लाइमेट चेंज रिपोर्ट’ में जलवायु परिवर्तन से एशिया-प्रशांत क्षेत्र पर आने वाले संकट के बारे में कहा गया है कि इससे कुछ शहरों के डूबने का खतरा पैदा हो गया है। भारी वर्षा इस क्षेत्र को तबाही की ओर ले जा रही है। इन शहरों में भारत के मुंबई, चेन्नई, सूरत और कोलकाता भी शामिल है।
एशियन डेवलेपमेंट बैंक और जर्मनी के पाट्सडैम इंस्टीट्यूट फार क्लाइमेट रिसर्च’ क्लाइमेट की ताजा रिपोर्ट के अनुसार भी जलवायु परिवर्तन में एशियाई देशों में होने वाली बारिश में 50 फीसदी तक बढ़ोत्तरी होगी। इस सदी के अन्त तक एशिया-प्रशांत क्षेत्र के तापमान में छह डिग्री तक इजाफा दर्ज किया जाएगा। वहीं चीन, तजाकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और चीन का तापमान आठ डिग्री तक बढ़ जाएगा।
बारिश के कारण एशिया प्रशांत के 19 शहरों के आसपास समुद्र के स्तर में एक मीटर तक वृद्धि होगी। इनमें से सात शहर तो केवल फिलीपींस में मौजूद हैं। भारी बाढ़ के कारण सबसे ज्यादा आर्थिक क्षति झेलने वाले 20 बड़े शहरों में से 13 एशिया में हैं। इन इन शहरों में बाढ़ से होने वाली क्षति साल दर साल बढ़ रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण क्षेत्र में कम दिनों में अधिक बारिश होगी।
केरल में भारी वर्षा और बाढ़ से जो तबाही हुई है उससे यह साबित हो गया है कि जलवायु का पैटर्न बदल रहा है। खनन और वृक्षों को काटकर पर्यावरण को जो क्षति पहुॅचायी गयी है उसका केरल को खामियाजा भोगना पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश अपना रास्ता बदल रही है। अब राजस्थान और गुजरात के रेगिस्तानी इलाकों में जहां सूखा रहता था वहां भारी बारिश और बाढ़ आ रही है।
महाराष्ट्र और कर्नाटक के सूखे इलाके भी भारी बारिश और बाढ़ का कहर झेल रहे हैं। आईआईटी बाम्बे ने बारिश के 112 साल के आंकड़ों का हिसाब लगाकर लगाकर बताया है कि देश के कुल 632 में से 238 जिलों में बरसात का पैटर्न बदल चुका है। सन 1901 से 2013 के बीच राजस्थान में 9 तो गुजरात में 26.2 प्रतिशत ज्यादा बारिश दर्ज की गई है।
बंगलादेश में हर साल भयंकर बाढ़ें आ रही हैं। विचित्र प्रकार से नदियां उलटी दिशा में बहती हैं क्योंकि सागर उतना पानी नहीं ले सकता। बंगलादेश गरीब है, और ये बाढ़ हजारों लोगों को, हजारों पशुओं की जान लेती है। नेपाल से यह कहना कि ये पेड़ मत काटो, उसकी शक्ति से बाहर है।
पहली बात, नेपाल इन वृक्षों को काटना रोक भी दे तो भी नुकसान तो हो ही चुका है। इसी तरह की परिस्थिति दुनिया के अनेक इलाकों में है। पूरी दुनिया में उष्णकटिबंधीय जंगल दो करोड़ हेक्टर प्रतिवर्ष की रफ्तार से नदारद हो रहे है, कैलीफोर्निया का आधा क्षेत्र। अगले बीस या तीस सालों में सभी उष्ण कटिबन्धीय जंगल विनष्ट हो जाएंगे।
ये जंगल जिस रफ्तार से नदारद हो रहे है उसी रफ्तार से नदारद होते रहे तो मनुष्य जाति की समझ में नहीं जाएगा कि आक्सीजन कहां से मिलेेगी? और दूसरी तरफ आप जो कार्बन डायआक्साइड छोड़ते हो उसे ये जंगल पी जाते हैं। यदि ये जंगल नहीं रहंेगे तो आकाश में कार्बन डाइ आक्साइड की सघन पर्त सतत जमती जाएगी। इससे तापमान बढ़ रहा है।
अगर तापमान बढ़ता चला गया तो इस धरती पर से जीवन का अंत निश्चित है। बिना सोचे-समझे वृक्षों की कटाई हो रही है घटिया दर्जे के कागजों के लिए। आप जीवन को नष्ट कर रहे हैं। इसकी भी संभावना है कि हिमालय की बर्फ पिघलने लगे। ऐसा समूचे अतीत में कभी नही हुआ है। यदि ऐसा हुआ तो सागर कई फीट ऊपर उठ जाएगा और सभी तटवर्ती शहरों को डुबो देगा-जैसे न्यूयार्क, लंदन, सानफ्रान्सिको, एमस्टरडम, मुम्बई और कोलकाता।
आने वाले तेरह वर्षो में विश्व की जनसंख्या में तीस से चालीस प्रतिशत तक वृद्धि होने की संभावना है। सात अरब से बढ़कर नौ अरब लोग हो जाएंगे। यह जनसंख्या की वृद्धि संसार के लगभग आधे हिस्से में पानी की जरूरत दोगुनी कर देगी। अन्न का भी संकट होगा।
संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट कहती है कि प्रतिवर्ष साठ लाख हेक्टेयर कृषि योग्य और चराऊ जमीन बंजर हो रही है। प्रतिवर्ष सैकड़ों पौधे और जानवरों की जातियां नामशेष हो रही है। यह संख्या आसानी से हजारों में बदल सकती है, चूंकि जंगल और चारागाह जमीन से गायब हो रहे हैं।
बहरहाल यदि हमंे सचमुच इन समस्याओं के लिए कुछ समाधान खोजना है तो अभी, इसी समय करना चाहिए अन्यथा भविष्य होगा ही नहीं। जीवन अलग-अलग द्वीपों की भांति नहीं होता है। सारी दुनिया का जीवन धरती के पर्यावरण पर निर्भर है।
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