सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीशो की टिप्पणी;कोर्ट को बंद कर दो
14 Feb, 2020 High Light# सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशो की टिप्पणी- # बेंच में जस्टिस अरुण मिश्रा, एस. अब्दुल नज़ीर और जस्टिस शाह # देश में रहने लायक स्थिति नहीं है और बेहतर होगा कि देश छोड़ दें # बेंच ने टिप्पणी की, ‘मैं ग़ुस्से में हूँ। मुझे लगता है कि मुझे इस अदालत में काम नहीं करना चाहिए।’ # बेंच ने कहा, देश में जिस तरह से चीजें हो रही हैं, इससे हमारी अंतरआत्मा हिल गई है। # बेंच ने कहा, ‘इस देश की इस व्यवस्था में कैसे काम करना है मुझे बिल्कुल पता नहीं चल रहा है… एक डेस्क अधिकारी अपने आप को जज समझ बैठता है और हमारे आदेश को रोक लेता है। यह डेस्क ऑफ़िसर कौन है? कहाँ है डेस्क ऑफ़िसर?’ # कोर्ट ने कहा, ‘अधिकारी और कंपनियों के ख़िलाफ़ अवमानना की कार्यवाही शुरू करेंगे…। क्या यह पैसे की ताक़त का नतीजा नहीं है? # कोर्ट को बंद कर दीजिए। #
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सुनवाई के दौरान कंपनियों की दलीलों से ग़ुस्साए बेंच ने कहा, ‘हमें नहीं मालूम कि कौन ये बेतुकी हरकतें कर रहा है, क्या देश में कोई क़ानून नहीं बचा है? बेहतर है कि इस देश में न रहा जाए और देश छोड़ दिया जाए।’
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी हज़ारों करोड़ रुपये के बकाए को लेकर टेलीकॉम कंपनियों और सरकार पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है। इसने कहा है कि क्या इस देश में कोई क़ानून नहीं बचा है? कोर्ट ने तो यहाँ तक कह दिया कि देश में रहने लायक स्थिति नहीं है और बेहतर होगा कि देश छोड़ दें।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी उसके पहले के उस आदेश पर आया है जिसमें इसने टेलीकॉम कंपनियों से 92 हज़ार करोड़ रुपए सरकार को भुगतान करने को कहा था लेकिन इन कंपनियों ने अभी तक भुगतान नहीं किया है। इन कंपनियों के भुगतान की समयसीमा 23 जनवरी थी और ये कंपनियाँ इसको बढ़वाना चाहती थीं। इसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था और सरकार को कहा था कि उन कंपनियों से बकाए के 92000 करोड़ रुपये वसूले जाएँ।
अब इस मामले में कोर्ट ने 17 मार्च को भारती एयरटेल, वोडाफ़ोन, एमटीएनएल, बीएसएनएल, रिलायंस कम्युनिकेशन, टाटा टेलीकॉम्युनिकेशन और दूसरी कंपनियों के मैनेजिंग डायरेक्टर्स को कोर्ट में तलब किया है।
लेकिन इससे पहले सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इस मामले में टेलीकॉम कंपनियों और सरकार के रवैये पर सख्त नाराज़गी जताई। इस मामले की सुनवाई करने वाली बेंच में जस्टिस अरुण मिश्रा, एस. अब्दुल नज़ीर और जस्टिस शाह शामिल थे। वे वोडाफ़ोन आइडिया, भारती एयरटेल और टाटा टेलीसर्विसेज़ की ओर से दायर की गई याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। इस बेंच ने टिप्पणी की, ‘मैं ग़ुस्से में हूँ। मुझे लगता है कि मुझे इस अदालत में काम नहीं करना चाहिए।’
बेंच ने कहा, ‘हमने एजीआर मामले में समीक्षा याचिका खारिज कर दी, लेकिन इसके बाद भी एक भी पैसा जमा नहीं किया गया। कुछ तो पैसा जमा किया जाना चाहिए था। देश में जिस तरह से चीजें हो रही हैं, इससे हमारी अंतरआत्मा हिल गई है।’ बता दें कि यहाँ एजीआर का मतबल है एडजस्टेड ग्रोस रेवेन्यू। यही एजीआर के 92000 करोड़ रुपये इन कंपनियों को सरकार को भुगतान करने हैं। टेलीकॉम कंपनियाँ स्पेक्ट्रम इस्तेमाल करने के लिए एजीआर का 3-5 फ़ीसदी और लाइसेंस फ़ीस का 8 फ़ीसदी डिपार्टमेंट ऑफ़ टेलीकॉम को देती हैं। बता दें कि कंपनियाँ यह भी चाहती हैं कि एजीआर में सिर्फ़ कोर सेवाओं से आए रेवेन्यू को शामिल किया जाए, जबकि सरकार कहती रही है कि इसमें सभी रेवेन्यू शामिल होंगे।
बेंच ने डेस्क अधिकारी पर भी सख्त नाराज़गी जताई। बेंच ने कहा, ‘इस देश की इस व्यवस्था में कैसे काम करना है मुझे बिल्कुल पता नहीं चल रहा है… एक डेस्क अधिकारी अपने आप को जज समझ बैठता है और हमारे आदेश को रोक लेता है। यह डेस्क ऑफ़िसर कौन है? कहाँ है डेस्क ऑफ़िसर?’
कोर्ट ने कहा, ‘अधिकारी और कंपनियों के ख़िलाफ़ अवमानना की कार्यवाही शुरू करेंगे…। क्या यह पैसे की ताक़त का नतीजा नहीं है?
कोर्ट ने यह भी कहा कि एक डेस्क अधिकारी अटॉर्नी जनरल और अन्य संवैधानिक प्राधिकरणों को पत्र लिखकर बता रहा है कि उन्हें दूरसंचार कंपनियों द्वारा बकाये के भुगतान पर जोर नहीं देना चाहिए। कोर्ट ने यहाँ तक कह दिया कि यदि एक डेस्क अधिकारी कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने का दुस्साहस करता है तो फिर कोर्ट को बंद कर दीजिए।