लोकायुक्त कुर्सी राज्य में सालों से खाली -सुप्रीम कोर्ट ने किया जवाब तलब
23 March 2018 सुप्रीम कोर्ट ने लोकायुक्तों की नियुक्ति पर 12 राज्यों से जवाब तलब किया है. शीर्ष न्यायालय ने शुक्रवार (23 मार्च) को 12 राज्यों के मुख्य सचिवों से कहा कि दो सप्ताह के भीतर लोकायुक्तों की नियुक्त नहीं होने के कारणों से उसे अवगत कराएं. पीठ एनजीओ कॉमन कॉज द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इस याचिका में शीर्ष अदालत के 27 अप्रैल, 2017 के फैसले के बावजूद अभी तक लोकपाल की नियुक्ति की दिशा में कोई कदम नहीं उठाए जाने का मुद्दा उठाया गया था. वेणुगोपाल ने पीठ को सूचित किया कि वरिष्ठ अधिवक्ता पीपी राव, जो इस समिति के सदस्य थे, का पिछले साल निधन हो जाने के कारण इस प्रक्रिया में विलंब हुआ.
सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे एक बार फिर शुक्रवार (23 मार्च) से राज्यों में लोकायुक्तों की नियुक्ति की मांग को लेकर दवाब बना रहे हैं। अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठने वाले हैं. अनशन पर बैठने से पहले अन्ना राजघाट पहुंचे- उत्तराखंड में 2011 में लोकायुक्त बिल पास किया गया था और सितंबर 2013 में राज्यपाल और राष्ट्रपति ने इस पर मुहर लगा दी थी, लेकिन इसके बाद राज्य में लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हुई है. जबकि राज्य में भ्रष्टाचार से जुड़ी करीब 700 शिकायतें लंबित पड़ी हैं.
उत्तराखंड राज्य बने 17 साल हो चुके हैं। अब तक जिस सरकार ने भी प्रदेश में सत्ता संभाली करप्शन को खत्म करने का दावा किया लेकिन अब तक भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं कसी जा सकी। दिलचस्प बात ये कि जिस लोकायुक्त से भ्रष्टाचार पर लगाम लग सकती है उसकी कुर्सी राज्य में सालों से खाली पड़ी है। 23 अक्टूबर 2013 को लोकायुक्त के पद से जस्टिस एमएम घिल्डियाल का समय समाप्त हो गया था। जिसके बाद से अब तक ये पद खाली है। भाजपा ने सत्ता में आने से पहले 100 दिन के भीतर लोकायुक्त गठन की बात कही थी लेकिन अब भाजपा का वो वादा धरातल पर नज़र नहीं आ रहा। भाजपा सरकार ने अक्टूबर 2011 में विधानसभा में लोकायुक्त पास किया इस एक्ट को 3 सितम्बर 2013 को राष्टपति ने मंजूरी दी। 9 सितम्बर 2013 को केन्द्रीय गृह मंत्रायल ने राज्य को सूचना दी। विधायी ने 24 सितम्बर 2013 को इसे प्रकाशन के लिए भेजा, सरकार ने रोक लगाई। तब से अब तक लोकायुक्त का पद खाली है । वर्तमान सरकार ने लोकायुक्त के अध्ययन को लेकर प्रवर समिति बनाई । लोकायुक्त का सचिव जिला एवं सत्र न्यायाधीश का स्तर होगा। सचिव की नियुक्ति मुख्य न्यायधीश के परामर्श से होगी। लोकायुक्त किसी भी मामले की जांच के लिए टीम गठित कर सकेगा। लोकायुक्त का वेतन और भत्ते उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर होंगें। पद त्याग करने के पांच साल तक लोकायुक्त या कोई सदस्य न तो चुनाव लड़ सकेगा और न ही सरकार से लाभ का पद लेगा।
शीर्ष अदालत ने पिछले साल अपने फैसले में कहा था कि लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता के मुद्दे सहित प्रस्तावित संशोधनों को संसद से पारित होने तक लोकपाल कानून पर अमल निलंबित रखना न्यायोचित नहीं है. पीठ ने कहा था कि यह एक व्यावहारिक कानून है और इसके प्रावधानों को लागू करने में किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं लगाता है. न्यायालय ने कहा था कि लोकपाल और लोकायुक्त कानून, 2013 में प्रस्तावित संशोधनों और संसद की स्थाई समिति की राय इस कानून को कार्यशील बनाने का प्रयास है और यह इसके अमल में किसी प्रकार से बाधक नहीं है.
वहीं दूसरी ओर लोकपाल और किसानों से जुड़े मुद्दों को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे शुक्रवार (23 मार्च) से केंद्र के खिलाफ अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठने वाले हैं. अनशन पर बैठने से पहले अन्ना राजघाट पहुंचे और महात्मा गांधी को नमन किया. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि के दौरान अन्ना के साथ उनके कई समर्थन मौजूद थे.
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