कृषि कानूनों के अमल पर रोक- तो क्या अब किसान घर लौटेंगे- बडा सवाल?
12 JAN. 2021: Himalayauk Bureau # High Light # मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने तीनों नए कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगा दिया है. इसके साथ ही कोर्ट ने एक कमेटी का गठन किया है. इस कमेटी में चार सदस्य हैं. इसमें भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान, शेतकारी संगठन के अनिल घनवट और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी और डा प्रमोद जोशी को शामिल किया गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने किसान आन्दोलन को देखते हुए कृषि क़ानून 2020 पर एक कमेटी बनाई, कहा कि उसे ऐसा करने का पूरा अधिकार है और किसान संगठनों से कहा है कि यदि वे समस्या का समाधान चाहते हैं तो उन्हें इसके सामने पेश होना ही होगा।
कृषि क़ानूनों पर तात्कालिक रोक और कमेटी गठन के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद भी किसानों ने साफ़ तौर पर कहा है कि वे क़ानून वापस लिए जाने तक दिल्ली से अपने-अपने घरों को नहीं लौटेंगे। फ़ैसले के तुरंत बाद अपनी प्रतिक्रिया में बीकेयू के किसान नेता राकेश सिंह टिकैत ने कहा कि कमेटी गठन को लेकर किसान नेता विचार-विमर्श के बाद फ़ैसला लेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक आदेश जारी करते हुए कहा, ‘अगर किसान सरकार के पास जा सकते हैं तो कमेटी के सामने क्यों नहीं आ सकते? अगर वे समस्या का समाधान चाहते हैं तो हम यह नहीं सुनना चाहते कि किसान कमेटी के समक्ष पेश नहीं होंगे।’ कमेटी के इसी सवाल पर पत्रकारों के साथ बातचीत में राकेश टिकैत ने कहा, ‘न तो हम सुप्रीम कोर्ट में गए और न ही हमने कमेटी की माँग कभी की। हम अपनी कोर कमेटी की बैठक में आगे इस पर विचार करेंगे।’
किसान नेताओं ने तीनों कृषि कानूनों पर रोक लगाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मंगलवार को स्वागत किया, लेकिन कहा कि जब तक कानून वापस नहीं लिए जाते तब तक वे अपना आंदोलन खत्म नहीं करेंगे. किसान नेताओं ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त किसी भी कमेटी के समक्ष वे किसी भी कार्यवाही में हिस्सा नहीं लेना चाहते हैं लेकिन इस बारे में औपचारिक निर्णय मोर्चा लेगा.
जब टिकैत से पूछा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने तो फ़िलहाल रोक लगा दी है तो क्या अब वे घर लौटेंगे तो उन्होंने कहा कि यदि हम वापस चले गए और फिर सरकार इन क़ानूनों को वापस नहीं ली तब क्या होगा।
इस मामले में याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरीष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट यह स्पष्ट कर सकता है कि यह किसी पक्ष की जीत नहीं होगी, बल्कि क़ानून की प्रक्रिया के जरिए जाँच की कोशिश होगी।
किसानों के 400 निकायों का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे, एचएस फूलका, कॉलिन गोंसाल्वेस आज सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही में शामिल नहीं हुए हैं।
नये कृषि क़ानून विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के कमेटी बनाने के सुझाव के बीच किसान ऐसी किसी कमेटी का हिस्सा बनने के पक्ष में नहीं हैं। संयुक्त किसान मोर्चा ने इस मामले में बयान जारी किया है। इसने अपने बयान में कहा है कि कृषि क़ानूनों को लागू किए जाने से रोकने के सुप्रीम कोर्ट के सुझाव का सभी संगठन स्वागत करते हैं लेकिन वे सामूहिक और व्यक्तिगत रूप से सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित किसी कमेटी की कार्यवाही में शामिल होने के प्रति अनिच्छुक हैं। उन्होंने कहा है कि वे सर्वसम्मति से कृषि कृानूनों को रद्द करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की मुख्य 10 बातें :
सुप्रीम कोर्ट ने तीनों कृषि क़ानूनों पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है।
सर्वोच्च न्यायालय कृषि क़ानूनों पर एक चार-सदस्यीय कमेटी का गठन करेगी।
अदालत ने इस कमेटी के लिए हरसिमरत मान, प्रमोद जोशी, अशोक गुलाटी और अनिल घनावत के नाम सुझाए हैं।
मुख्य न्यायाधीश एस. ए. बोबडे ने कहा कि यदि किसान समस्या का समधान चाहते हैं तो उन्हें इस कमेटी के सामने पेश होना होगा।
अटॉर्नी जनरल हरीश साल्वे ने कमेटी बनाने के फ़ैसले का स्वागत किया है।
भारतीय किसान यूनियन के राकैश टिकैत ने कहा, “जब तक क़ानून की वापसी नहीं, किसानों की घर वापसी नहीं।”
टिकैत ने यह भी कहा, “जो दिक्क़तें है, सब बताएंगे।”
गणतंत्र दिवस के मौके पर प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने किसान संगठनों को नोटिस जारी किया।
अटॉर्नी जनरल ने ‘सिख फॉर जस्टिस’ के प्रदर्शन में शामिल होने पर आपत्ति जताई और कहा कि यह संगठन खालिस्तान की माँग करता आया है।अदालत ने सरकार से कहा कि वह इस पर हलफ़नामा पेश करे।
किसानों ने पहले ही कमेटी में शामिल होने के प्रति अनिच्छा जाहिर की थी। एक दिन पहले यानी सोमवार को जब सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी बनाने का सुझाव दिया था तब संयुक्त किसान मोर्चा ने इस मामले में बयान जारी किया है। इसने अपने बयान में कहा है कि कृषि क़ानूनों को लागू किए जाने से रोकने के सुप्रीम कोर्ट के सुझाव का सभी संगठन स्वागत करते हैं लेकिन वे सामूहिक और व्यक्तिगत रूप से सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित किसी कमेटी की कार्यवाही में शामिल होने के प्रति अनिच्छुक हैं। उन्होंने कहा था कि वे सर्वसम्मति से कृषि कृानूनों को रद्द करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। संयुक्त किसान मोर्चा का यह बयान सोमवार को तब आया जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी।
कमेटी गठन के सुप्रीम कोर्ट के सुझाव से असहमति जताते हुए संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है, ‘सरकार के उस रवैये और दृष्टिकोण को देख रहे हैं जिसमें इसने आज अदालत के सामने बार-बार यह साफ़ किया है कि वह (सरकार) समिति के समक्ष क़ानून को निरस्त करने की चर्चा के लिए सहमत नहीं होगी।’
संयुक्त किसान मोर्चा ने बयान में यह भी कहा है कि उन्होंने इस बयान को जारी करने से पहले उन्होंने वकीलों से परामर्श किया है।
बयान में कहा गया है कि हमारे वकीलों के साथ-साथ हरीश साल्वे सहित दूसरे वकीलों द्वारा सुप्रीम कोर्ट से प्रार्थना की गई थी कि अगले दिन यानी मंगलवार को फिर से सुनवाई की जाए ताकि उन संगठनों से सुप्रीम कोर्ट के सुझाव पर सहमति के लिए संपर्क किया जा सके।
किसानों की ओर से जारी बयान में कहा गया है, ‘किसान और हम उनके प्रतिनिधि के रूप में एक बार फिर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के प्रति आभार व्यक्त करते हैं लेकिन उनके सुझावों को स्वीकार करने में असमर्थता पर खेद व्यक्त करते हैं। चूँकि हमारा संघर्ष देश भर के करोड़ों किसानों के कल्याण के लिए है और यह बड़े जनहित में है, जबकि सरकार ने यह ग़लत प्रचार किया है कि आंदोलन केवल पंजाब के किसानों और हरियाणा, यूपी, उतराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के हज़ारों किसानों तक ही सीमित है और कुछ अन्य राज्यों के किसान दिल्ली की सीमाओं पर इकट्ठा हैं। जबकि हज़ारों लोग भी इस समय विभिन्न राज्यों के विभिन्न स्थानों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।’
कोर्ट ने एक कमेटी का गठन किया है. इस कमेटी में चार सदस्य हैं.
भूपिंदर सिंह मान – भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. ऑल इंडिया किसान को-आर्डिनेशन कमेटी के चेयरमैन हैं. 1990 में राज्यसभा सांसद बने, नॉमिनेटेड थे. किसानों के लिए लगातार संघर्ष करते रहे हैं.
प्रमोद कुमार जोशी– कृषि अर्थशास्त्री और खाद्य नीति विशेषज्ञ हैं. साउथ एशिया इंटरनेशल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक हैं. भारत सरकार में राइट टू फूड कमेटी के सदस्य रह चुके हैं. कृषि क्षेत्र के प्रशासन में काम करने का लंबा अनुभव है.
अशोक गुलाटी– अशोक गुलाटी कृषि अर्थशास्त्री हैं. न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर सुझाव देने वाली कमेटी CACP के चेयरमैन रह चुके हैं. 2015 में पद्मश्री से सम्मानित किए जा चुके हैं. फिलहाल आईसीआरआईईआर संस्था में इंफोसिस चेयर प्रोफेसर ऑफ एग्रीकल्चर हैं.
अनिल घनवट– किसानों के संगठन शेतकारी संगठन के अध्यक्ष हैं. शेतकारी संगठन किसानों के बीच काम करती है. ये महाराष्ट्र के रहने वाले हैं. किसानों के बीच काम करने का इनका लंबा अनुभव है.