बीजेपी को अकेले बहुमत नहीं -सर्वे& देशभर की खास खबरे- 9 जुलाई 18
जेल में माफिया डॉन मुन्ना बजरंगी की हत्या के मामले में प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने न्यायिक जांच के आदेश दे दिए हैं और तत्काल प्रभाव से बागपत जेल के जेलर को निलंबित कर दिया गया है. उन्होंने कहा,” जेल परिसर के अंदर ऐसे प्रकरण का होना अत्यंत गंभीर मामला है. इस मामले में जांच कराई जाएगी और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी.”
सुनील राठी ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि सुबह दोनों चाय पीने के लिए सेल से निकले थे.दोनों के हाथ में चाय का कप था.दोनों के बीच बातचीत हुई, दोनों पहले से एक दूसरे को अच्छे से जानते थे. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत की जिला जेल में माफिया डॉन मुन्ना बजरंगी हत्याकांड में कुछ नई बातें सामने आई हैं.जिस पिस्टल से मुन्ना बजरंगी की हत्या हुई वो जेल के सेप्टिक टैंक से बरामद कर ली गई है. बता दें कि गैंगस्टर सुनील राठी ने मुन्ना को 10 गोलियां मारीं थीं जिनमें से अधिकतर सिर में लगी थी. मुन्ना बजरंगी की मौके पर ही मौत हो गई थी. बातचीत के दौरान मुन्ना बजरंगी ने सुनील राठी को कहा कि तुम धनंजय सिंह के साथ मिलकर मेरे ही खिलाफ काम करने लगे और धनंजय सिंह को गालियां देने लगा.
सुनील राठी ने कहा कि धनंजय सिंह से उसका पुराना पारिवारिक संबंध है और घर आना जाना है. उसे गाली मत दो. मुन्ना बजरंगी ने कहा कि मैं गाली दूंगा. इस पर दोनों के बीच हाथापाई हो गई. धनंजय सिंह पूर्वांचल के पूर्व बाहुबली सांसद रह चुके हैं. सुनील राठी के मुताबिक पिस्टल मुन्ना बजरंगी के पास थी जो उसने सुनील पर तानी तो छीनकर सुनील राठी ने मुन्ना बजरंगी को गोली मार दी.
जिस बागपत जिले में कुख्यात अपराधी मुन्ना बजरंगी की हत्या हुई है शायद वहां के लोग उसके नाम से उतने परिचित न हों जितने पूर्वांचल और अवध इलाके के लोग होंगे. सात लाख रुपए का ईनामी मुन्ना बजरंगी करीब तीस-पैंतीस सालों से पूर्वांचल, अवध और यूपी से लगे बिहार के इलाकों में अपराध की दुनिया में सक्रिय था. मुन्ना-बजरंगी की छवि लोगों के बीच एक डॉन से ज्यादा एक शार्प शूटर की थी. साल 2005 में गाजीपुर से बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या में मुख्तार अंसारी के अलावा मुन्ना बजरंगी का नाम भी सामने आया था. 1967 में उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के पूरेदयाल गांव में जन्मे मुन्ना बजरंगी को उसके पिता पारसनाथ सिंह एक पढ़ा-लिखा आदमी बनाना चाहते थे. पिता के अरमान अलग थे और मुन्ना बजरंगी के अलग. पिता चाहते थे वो अच्छा इंसान बने लेकिन मुन्ना बजरंगी के अरमान जरायम की दुनिया में नाम कमाने के थे. मुन्ना ने सिर्फ पांच तक पढ़ाई की और उसके बाद 20 साल तक की उम्र आते-आते उसके भीतर अपराधी मानसिकता पनप चुकी थी. 1984. मुन्ना के खिलाफ लूट के एक मामले में एक व्यापारी को मौत के घाट उतार दिया था. 1996 में मुन्ना पर ही बीजेपी नेता रामचंद्र सिंह की हत्या के आरोप लगे. बीजेपी के विधायक कृष्णानंद राय की हत्या में भी मुन्ना बजरंगी पर आरोप लगे थे. कृष्णानंद राय की उनके गांव से नजदीक ही सैंकड़ों गोलियां चलाकर हत्या कर दी थी. आरोप लगे कि इस घटन को मुन्ना बजरंगी ने मुख्तार अंसारी के इशारे पर अंजाम दिया था. कृष्णानंद राय के सिर पर माफिया डॉन बृजेश सिंह का हाथ था. पूर्वांचल में मुख्तार और बृजेश सिंह गैंग में अदावत की कहानी पुरानी है. कई लोगों की हत्या इन दोनों की दुश्मनी में हो चुकी है. बताया जाता है कि कृष्णानंद राय की हत्या के बाद मुख्तार अंसारी और मुन्ना बजरंगी के बीच अनबन हो गई थी जो आज तक ठीक नहीं हो पाई. कहा जाता है कि कृष्णानंद राय की हत्या के पीछे मुन्ना बजरंगी के पास व्यक्तिगत कारण भी थे. साल 2005 में वाराणसी जेल में बंद अपराधी अन्नू त्रिपाठी की हत्या कर दी गई थी और इसी का बदला लेने के लिए मुन्ना बजरंगी ने कृष्णानंद राय की हत्या की थी. कृष्णानंद राय की हत्या के बाद भाग-भाग कर थक चुके मुन्ना बजरंगी को मुंबई के मलाड इलाके से 2009 गिरफ्तार किया गया था. ऐसा भी माना जाता है कि अपनी गिरफ्तारी खुद ही मुन्ना बजरंगी ने करवाई थी. मुन्ना बजरंगी की बागपत में हुई हत्या के बाद इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि आने वाले समय में बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी के बीच पुराना गैंगवार फिर दिखाई दे.
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बीजेपी को अकेले बहुमत नहीं ला पाएगी —
साल 2019 के लिए बीजेपी की रणनीति को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है. आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए देश का मूड जानने के लिए इसी साल मई में सर्वे हुआ था. सर्वे के मुताबिक अगर लोकसभा चुनाव के लिए वोट पड़े तों नरेंद्र मोदी एक बार फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठ तो सकते हैं, लेकिन बीजेपी की सीटें कम हो जाएंगी. बीजेपी को अकेले बहुमत नहीं ला पाएगी. पिछले चुनाव में बीजेपी ने अकेले ही 282 सीटों पर कब्जा किया था, लेकिन इस बार सीटों का आंकड़ा घट सकता है. सर्वे के मुताबिक देश की 543 में से एनडीए के हिस्से एनडीए को 274, यूपीए को 164 और अन्य को 105 सीटें मिलने का अनुमान है. यूपीए को 104 सीट का फायदा होने का अनुमान है.
आनंद बाजार पत्रिका में खबर छपी है कि साल 2019 को लेकर बीजेपी बहुत आशंकित है. इतनी कि पार्टी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, उमा भारती, राधा मोहन सिंह सहित अपने 150 मौजूदा सांसदों के टिकट काट सकती है. इनमें कई मंत्री भी शामिल हैं. हालांकि टिकट कटने के अलग-अलग कारण बताए जा रहे हैं. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का टिकट बीमारी के नाम पर कट सकता है. केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती, कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने खुद पार्टी से कहा है कि वो अगला चुनाव लड़ना नहीं चाहते. पार्टी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी, झारखण्ड की खूंटी सीट से करिया मुंडा, वरिष्ठ नेता शांता कुमार और बीसी खंडूरी के टिकट उम्र के आधार पर कट जाएंगे. खास बात ये है कि बीजेपी के जिन बड़े नेताओं के टिकट काटने की बात सामने आई है उनमें यूपी, बिहार और मध्यप्रदेश के कई बड़े चेहरे शामिल हैं. यूपी से उमा भारती और मुरली मनोहर जोशी जैसे कद्दावर नेता हैं तो बिहार से कृषि मंत्री राधा मोहन का नाम है. स्पीकर सुमित्रा महाजन का संबंध मध्य प्रदेश से हैं जहां इस साल के अंत में विधानसभा के चुनाव हैं.
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज मध्य प्रदेश के विदिशा से, केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती उत्तर प्रदेश के झांसी से, कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह बिहार के पूर्वी चंपारण से, सुमित्रा महाजन मध्य प्रदेश के इंदौर से, मुरली मनोहर जोशी यूपी के कानपुर से, करिया मुंडा झारखण्ड की खूंटी सीट से, शांता कुमार हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा से और बीसी खंडूरी उत्तराखंड के गढ़वाल से सांसद हैं. साल 2014 चुनाव के बाद से बीजेपी की लोकसभा में सीटें कम हुई हैं. इसी साल मार्च में यूपी की गोरखपुर और फूलपुर सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था. वहीं इसी साल मई में यूपी की कैराना, महाराष्ट्र के गोंदिया-भंडारा लोकसभा सीट पर भी बीजेपी को हार मिली थी. हालांकि बीजेपी ने पालघर सीट पर जीत हासिल की थी. मध्यप्रदेश और राजस्थान में भी बीजेपी को हार मिली. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी 282 सीटें मिली थीं जो अब 272 रह गईं हैं. यानि बीते 4 साल में हुए उपचुनावों में बीजेपी की नुकसान हुआ है.
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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी बुधवार को मुस्लिम बुद्धिजीवियों से मुलाकात करेंगे. सूत्रों के मुताबिक बुधवार को दोपहर बाद होने वाली इस मुलाकात में करीब दर्जन भर मुस्लिम बुद्धिजीवी शामिल होंगे. सूत्रों के मुताबिक इनमें प्रमुख रूप से प्रोफेसर जोया हसन, योजना आयोग की पूर्व सदस्य सईदा हमीद, सच्चर कमिटी के पूर्व सदस्य महमूद जफर जैसे नाम शामिल हैं. सूत्रों ने बताया कि इस दौरान मौजूदा राजनीतिक हालात खास तौर पर ‘मॉब लिंचिंग’ यानी भीड़ द्वारा की जाने वाली हिंसा, अल्पसंख्यकों से जुड़े मामले, धर्मनिरपेक्षता आदि विषयों पर चर्चा हो सकती है.
इस मुलाकात को 2019 के आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों से जोड़ कर देखा जा रहा है. अहम बात ये है कि इसमें धर्मगुरुओं, मौलानाओं को आमंत्रित नहीं किया गया है. सूत्रों ने बताया कि आने वाले दिनों में मुस्लिम समाज के कुछ और प्रगतिशील बुद्धिजीवियों जैसे जावेद अख्तर, सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों से राहुल गांधी मिल सकते हैं. यानी मुस्लिम समाज के उदारवादी, विद्वान तबके के जरिए राहुल मुस्लिम समाज में पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
2014 में हुई कांग्रेस की हार को मुस्लिम तुष्टिकरण से जोड़ कर देखा गया था. ऐसे में ये साफ नजर आ रहा है कि कांग्रेस अपनी इस छवि से छुटकारा चाहती है. पिछले कुछ विधानसभा चुनावों में राहुल ने जमकर मंदिरों का दर्शन किया. इसे सॉफ्ट हिंदुत्व की रणनीति के तौर पर देखा गया. लेकिन कांग्रेस को लगता है कि देश में मुस्लिम समाज को सन्देश देने की भी जरूरत है क्योंकि पिछले कुछ सालों में मुस्लिमों ने बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस की बजाय दूसरे विकल्पों के रुख किया है. ऐसे में राहुल मुस्लिम बुद्धिजीवियों से संवाद कर जहां एक तरफ मुस्लिम समाज को संदेश देना चाहते हैं वहीं इस मुलाकात से मौलानाओं को दूर रख कर राहुल कोशिश कर रहे हैं कि विरोधी यानी बीजेपी को ध्रुवीकरण का मौका ना मिले.
इस मुलाकात के बारे में पूछे जाने पर कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग के चेयरमैन नदीम जावेद ने कहा कि “अगर राहुल गांधी मुस्लिम समाज के बुद्धिजीवियों से मिल रहे हैं तो ये लगातार चलने वाली प्रक्रिया का हिस्सा है.” इसमें धर्मगुरुओं को ना बुलाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि इसकी उन्हें जानकारी नहीं है लेकिन ये कहना गलत होगा कि धर्मगुरु कट्टरपंथी होते हैं. उन्होंने कहा कि “आजादी की लड़ाई में गांधी, नेहरू के साथ मौलाना आजाद खड़े थे. धर्म का जानकार भी प्रगतिशील हो सकता है. पार्टी अलग अलग समुदाय से संवाद करती रहती है. सिविल सोसाइटी के सदस्यों से मुलाकात इसी प्रक्रिया का हिस्सा है. आज के माहौल में मुख्य मुद्दा संविधान बचाने का है.”
हाल में ही राहुल ने दलित समाज के नुमाइंदों से भी मुलाकात की थी. सूत्रों की माने तो राहुल गांधी की ऐसी मुलाकातों के दौरान आने वाली राय को कांग्रेस अपने घोषणापत्र में भी शामिल कर सकती है. बहरहाल ये देखने वाली बात होगी कि अलग अलग वर्गों के बीच अपनी पैठ बनाने में राहुल कितने कामयाब हो पाते हैं?
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सोमवार को एक रिपोर्ट का हवाला देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर किसानों की आय दोगुनी करने के उनके वादे को लेकर निशाना साधा. इस रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ के एक सरपंच ने दावा किया है कि दिल्ली के अधिकारियों ने एक महिला किसान को मोदी से यह कहने के लिए कहा कि वह अब दोगुना कमाती है.
राहुल ने मोदी के ‘मन की बात’ और वीडियो संवाद के जरिए किसानों से बातचीत की ओर इशारा करते हुए कहा, “सभी जानते हैं कि प्रधानमंत्री अपने ‘मन की बात’ करते हैं. आज यह पता चला कि वह अपने ‘मन की बात’ दूसरों से भी सुनना चाहते हैं.”
एक समाचार रिपोर्ट के वीडियो को संलग्न करते हुए राहुल ने यह भी कहा कि मोदी के वीडियो संवाद में चंद्रमणी (महिला किसान) का ‘कृषि से ज्यादा आमदनी’ कमाने का दावा भी सही नहीं लगता है.
रिपोर्ट में बताया गया है कि राज्य के कन्हारपुरी के एक सरपंच ने बताया कि महिला किसान चंद्रमणी को नई दिल्ली के कृषि विभाग के एक टीम द्वारा ऐसा बोलने के लिए सिखाया गया था. मोदी ने देश के विभिन्न भागों के किसानों से 20 जून को संवाद किया था. समाचार रिपोर्ट के वीडियो में महिला से यह पूछते हुए दिखाया जा रहा है कि क्या वह प्रधानमंत्री से संवाद करने में सक्षम है.
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने औद्योगिक इकाइयों में पेट कोक के इस्तेमाल से संबंधित मामले में सोमवार को नाराजगी के साथ टिप्पणी की कि क्या पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय खुद को ‘ भगवान ’ या सुपर सरकार मानता है और सोचता है कि ‘‘ बेरोजगार ’’ न्यायाधीश उसकी दया पर हैं.
न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने यह तीखी टिप्पणियां उस वक्त कीं जब सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया गया कि इस मंत्रालय ने कल ही पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को पेट कोक के आयात पर प्रतिबंध लगाने के मुद्दे से अवगत कराया है. यह कोक औद्योगिक ईंधन के रूप में इस्तेमाल होता है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस रवैये पर कड़ा रूख अपनाते हुये पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय पर इस ‘लापरवाही’ के लिए 25 हजार रूपए का जुर्माना भी लगाया. न्यायलय दिल्ली – राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण की समस्या को लेकर पर्यावरणविद् अधिवक्ता महेश चन्द्र मेहता द्वारा 1985 में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था.
दिल्ली सरकार पर लगाया एक लाख का जुर्माना
शीर्ष अदालत ने दिल्ली सरकार पर भी एक लाख रूपए का जुर्माना किया क्योंकि उसने राजधानी में अनेक मार्गो पर यातायात अवरूद्ध होने की समस्या को दूर करने के लिये कोई समयबद्ध स्थिति रिपोर्ट पेश नहीं की.
पीठ ने कहा कि दस मई के न्यायालय के आदेश के अनुसार दिल्ली सरकार को छह सप्ताह के भीतर इस बारे में हलफनामा दाखिल करना था लेकिन उसने न तो ऐसा किया और न ही उसकी ओर से कोई वकील उपस्थित हुआ. पीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार इन आदेशों के प्रति गंभीर नहीं है.
क्या हुआ कोर्ट में?
पीठ ने पेट्रोलियम एंव प्राकृतिक गैस मंत्रालय के खिलाफ ये तल्ख टिप्पणियां उस वक्त कीं जब अतिरिक्त सालिसीटर जनरल एएनएस नाडकर्णी ने उसे सूचित किया कि इस मंत्रालय से उसे कल ही जवाब मिला है.
इस पर नाराजगी व्यक्त करते हुए पीठ ने कहा , ‘‘क्या पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय भगवान है ? क्या वे भगवान हैं ? उनसे कह दीजिये कि वे पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय की बजाए अपना नाम बदल कर भगवान कर लें.’
पीठ ने कहा , ‘क्या पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय सुपर सरकार है ? क्या वह भारत सरकार से ऊपर है ? हमें बतायें कि पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय की क्या हैसियत है ? वे किसी भी आदेश का पालन क्यों नहीं कर रहे हैं ?
नाडकर्णी ने जब यह कहा कि उनका हलफनामा तैयार है और इसे आज ही दाखिल कर दिया जायेगा तो न्यायमूर्ति लोकुर ने पलट कर कहा , ‘यदि वे (पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय) आदेशों पर अमल नहीं करना चाहते हैं तो वे पालन नहीं करें. और क्या वे सोचते हैं कि उच्चतम न्यायालय के ‘बेरोजगार’ न्यायाधीश उन्हें समय देंगे. क्यों हमें उनकी दया पर रहना होगा. ’’
पीठ ने अतिरिक्त् सालिसीटर जनरल को सोमवार को दिन में हलफनामा दाखिल करने की अनुमति देते हुए कहा , ‘हम पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को जवाब भेजने के लिये अपने हिसाब से वक्त लगाने के पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के रवैये से आश्चर्यचकित हैं. यह विलंब सिर्फ पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय की ‘सुस्ती’ के कारण हुआ है.’
पीठ ने इस मंत्रालय पर 25 हजार रूपए लगाते हुए कहा कि यदि जुर्माने की राशि उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा प्राधिकरण में 13 जुलाई तक जमा नहीं कराई गयी तो वह जुर्माने की राशि बढ़ा देगी. न्यायालय इस मामले में अब 16 जुलाई को आगे सुनवाई करेगा.
इससे पहले , संक्षिप्त सुनवाई के दौरान न्याय मित्र की भूमिका निभा रही वकील अपराजिता सिंह ने कहा कि पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय को पेट कोक के आयात पर प्रतिबंध लगाने तथा प्राकृतिक गैस की आपूर्ति के बारे में जवाब देना था.
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