फोकस: गर्भ मे बच्चा 9 महीने और 9 दिन ही क्यो रहता है & रामचरितमानस के अनुसार कितने लोग भगवान राम की कहानी बता रहे हैं, कितने लोग भगवान राम की कहानी सुन रहे हैं
# गर्भ मे बच्चा 9 महीने और 9 दिन ही क्यो रहता है। #भगवान राम की कुल देवी कौन थी? & रामचरितमानस के अनुसार कितने लोग भगवान राम की कहानी बता रहे हैं, कितने लोग भगवान राम की कहानी सुन रहे हैं # जब कई धर्मो का अस्तित्व भी नही था, तब भारत के तमिलनाडु में बना यह रामनाथ स्वामी मंदिर #भगवान शिव – उनके गण – सभी गण धरती और ब्रह्मांड में विचरण करते रहते हैं। और प्रत्येक मनुष्य, आत्मा आदि की खैर-खबर रखते हैं। #क्या सुजान सिंह के शरीर में सिर तो है ही नहीं…इष्टदेव युद्ध कर रहे हैं
# By Chandra Shekhar Joshi Chief Editor www.himalayauk.org (Leading Newsportal & Daily Newspaper) Publish at Dehradun & Haridwar. Mail; himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030 — कलयुग तारक मन्त्र- राधे राधे
गर्भ मे बच्चा 9 महीने और 9 दिन ही क्यो रहता है
गर्भ मे बच्चा 9 महीने और 9 दिन ही क्यो रहता है। इसका एक वैज्ञानिक आधार है हमारे ब्रह्मांड के 9 ग्रह अपनी अपनी किरणों से गर्भ मे पल रहे बच्चे को विकसित करते हैं। हर ग्रह अपने स्वभाव के अनुरूप बच्चे के शरीर के भागों को विकसित करता है।अगर कोई ग्रह गर्भ मे पल रहे बच्चे के समय कमजोर है तो उपाय से उसको ठीक किया जा सकता है।
1. गर्भ से पहले महीने तक शुक्र का प्रभाव रहता है अगर गर्भावस्था के समय शुक्र कमजोर है तो शुक्र को मजबूत करना चाहिए। अगर शुक्र मजबूत होगा तो बच्चा बहुत सुंदर होगा । और उस समय स्त्री को चटपटी चीजे खानी चाहिए शुक्र का दान न करे अगर दान किया तो शुक्र कमजोर हो जाएगा।कुछ ज्योतिषी अधूरे ज्ञान के कारण शुक्र का दान करा देते है। दान सिर्फ उसी ग्रह का करे जो पा पी और क्रू र हो और उसके कारण गर्भपात का खतरा हो।
2. दूसरे महीने मंगल का प्रभाव रहता है। मीठा खा कर मंगल को मजबूत करे तथा लाल वस्त्र ज्यादा धारण करें।
3. तीसरे महीने गुरु का प्रभाव रहता है। दूध और मीठे से बनी मिठाई या पकवान का सेवन करे तथा पीले वस्त्र ज्यादा धारण करें।
4. चौथे महीने सूर्य का प्रभाव रहता है। रसों का सेवन करे तथा महरून वस्त्र ज्यादा धारण करें।
5. पांचवे महीने चंद्र का प्रभाव रहता है। दूध और दही तथा चावल तथा सफ़ेद चीजों का सेवन करे तथा सफ़ेद ज्यादा वस्त्र धारण करें।
6. छटे महीने शनि का प्रभाव रहता है। कसैली चीजों केल्शियम और रसों के सेवन करे तथा आसमानी वस्त्र ज्यादा धारण करें।
7. सातवे महीने बुध का प्रभाव रहता है जूस और फलों का खूब सेवन करे तथा हरे रंग के वस्त्र ज्यादा धारण करें।
8. आठवे महीने फिर चंद्र का तथा नौवे महीने सूर्य का प्रभाव रहता है। इस दौरान अगर कोई ग्रह नीच राशि गत भ्रमण कर रहा है तो उसका पूरे महीने यज्ञ करन चाहिए। जितना गर्भ ग्रहों की किरणों से तपेगा उतना ही बच्चा महान और मेधावी होगा जैसी एक मुर्गी अपने अंडे को ज्यादा हीट देती है तो उसका बच्चा मजबूत पैदा होता है। अगर हीट कम देगी तो उसका चूजा बहुत कमजोर होगा। उसी प्रकार माँ का गर्भ ग्रहों की किरणों से जितना तपेगा बच्चा उतना ही मजबूत होगा। जैसे गांधारी की आँ खों की किरणों के तेज़ से दुर्योधन का शरीर वज्र का हो गया था।
भगवान श्री राम की कुलदेवी कौन थी?
भगवान राम की कुल देवी के रूप में पूजी जाती हैं बड़ी देवकाली- देवी भागवत में बड़ी देवकाली का वर्णन किया गया है जिसमें बड़ी देवकाली को प्रभु श्रीराम की कुल देवी कहा गया है. पौराणिक मान्यता के मुताबिक इस बड़ी देवकाली मंदिर का निर्माण प्रभु श्रीराम के पूर्वज महाराज रघु ने कराया था
भगवान राम की कुल देवी के रूप में पूजी जाती हैं बड़ी देवकाली- देवी भागवत में बड़ी देवकाली का वर्णन किया गया है जिसमें बड़ी देवकाली को प्रभु श्रीराम की कुल देवी कहा गया है. पौराणिक मान्यता के मुताबिक इस बड़ी देवकाली मंदिर का निर्माण प्रभु श्रीराम के पूर्वज महाराज रघु ने कराया था. ऐसी मान्यता है कि भगवान राम के जन्म के पश्चात् माता कौशल्या उन्हें सबसे पहले रघुवंशियों की कुलदेवी बड़ी देवकाली माता के दर्शन कराने के लिए पूरे परिवार के साथ आयी थीं. यहीं पर इसलिए प्रभु श्रीराम पालने में विराजमान हैं.
यहां पर एक साथ तीन महाशक्तियों का है संगम- बड़ी देवकाली मंदिर के गर्भगृह में माता की मूर्ति स्थापित की गई है. इस मूर्ति में तीन महाशक्तियों- महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती का संगम है. मंदिर का गर्भगृह गोलाकार में बना हुआ है और इसकी छत पर गुंबद बना हुआ है.
यहां पूरी होती हैं सभी की मुरादें- ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति अपनी मुरादें लेकर यहां आता है उसकी सभी मुरादें माता पूरी करती हैं. ऐसी मान्यता है कि प्रभु श्रीराम की कुल देवी बड़ी देवकाली जी के दरबार से कोई भी खाली हाथ नहीं जाता है.
रामचरितमानस के अनुसार कितने लोग भगवान राम की कहानी बता रहे हैं, कितने लोग भगवान राम की कहानी सुन रहे हैं
राम चरित मानस में भगवान् राम की कहानी तो मुख्य चार लोग सुना रहे हैं और चार लोग सुन रहे हैं 1 . शिव जी सुना रहे हैं माता पार्वती सुन रही हैं। 2. याग्यवल्क ji सुना रहे हैं भरद्वाज जी सुन रहे हैं 3. काकभुसुंडि जी सुना रहें हैं और गरुड़ जी सुन रहे हैं। लेकिन ऐसे और भी प्रसँग आते हैं जहाँ कई बार श्री राम जी की महिमा का गुणगान हुआ है
जब कई धर्मो का अस्तित्व भी नही था, तब भारत के तमिलनाडु में बना यह रामनाथ स्वामी मंदिर
1212 पिलर एक सीधी लकीर में, एक डॉट पे जाकर समाप्त होती आर्किटेक्ट डिज़ाइन, प्रत्येक पिलर पे सिमेट्रिक कार्विंग, हजार से ज्यादा पिलर पर एक समान एक आकार की नकाशी और ये झंडू कहते है मुगलों ने सब बनाया और अंग्रेज आये तब भारत को पढ़ना लिखना आया, नही तो सिर्फ साँप पकड़ते थे!
महादेवी नामक एक रहस्यवादी महिला -शिव को अपना प्रिय, अपना पति माना – राजा उसे अपनी पत्नी के रूप में चाहता
लगभग नौ सौ साल पहले दक्षिण भारत में, अक्का महादेवी नामक एक रहस्यवादी महिला रहती थी।
अक्का शिव भक्त थे। उन्होंने बचपन से ही शिव को अपना प्रिय, अपना पति माना है। यह केवल एक विश्वास नहीं था, उनके लिए यह एक जीवित वास्तविकता थी।
एक दिन एक राजा ने इस खूबसूरत युवती को देखा और फैसला किया कि वह उसे अपनी पत्नी के रूप में चाहता है। उसने मना किया । लेकिन राजा अडिग था और उसने उसके माता-पिता को धमकाया, इसलिए वह झुक गई।
उसने उस आदमी से शादी की, लेकिन उसने उसे शारीरिक दूरी पर रखा। वह उसे लुभाने की कोशिश करता है, लेकिन उसका लगातार कहना था, “शिव मेरे पति हैं”। समय बीतता गया और राजा का धैर्य पतला होता गया।
गुस्से में उसने उस पर हाथ उठाने की कोशिश की। उसने माना किया। “मेरा एक और पति है। उसका नाम शिव है। वह मुझसे मिलने आता है, और मैं उसके साथ हूँ। मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकता।”
क्योंकि उसने एक और पति होने का दावा किया था, उसे मुकदमा चलाने के लिए अदालत में लाया गया था। कहा जाता है कि अक्का ने सभी उपस्थित लोगों के सामने घोषणा की, “रानी होना मेरे लिए मायने नहीं रखता। मैं छोड़ दूंगा।”
उस समय भारत की सड़कों पर एक महिला का नग्न होकर घूमना अविश्वसनीय था –
और यह एक खूबसूरत युवती थी। उन्होंने अपना जीवन एक घुमंतू भिक्षुक के रूप में व्यतीत किया और कुछ उत्कृष्ट काव्यों की रचना की जो आज भी जीवित हैं…
भगवान शिव – उनके गण – सभी गण धरती और ब्रह्मांड में विचरण करते रहते हैं। और प्रत्येक मनुष्य, आत्मा आदि की खैर-खबर रखते हैं।
भगवान शिव – उनके गण – सभी गण धरती और ब्रह्मांड में विचरण करते रहते हैं। और प्रत्येक मनुष्य, आत्मा आदि की खैर-खबर रखते हैं।
भगवान शिव की सुरक्षा और उनके आदेश को मानने के लिए उनके गण सदैव तत्पर रहते हैं। उनके गणों में भैरव को सबसे प्रमुख माना जाता है। उसके बाद नंदी का नंबर आता और फिर वीरभ्रद्र। जहां भी शिव मंदिर स्थापित होता है। वहां रक्षक (कोतवाल) के रूप में भैरवजी की प्रतिमा भी स्थापित की जाती है।
शिव के प्रमुख गण थे- भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है। ये सभी गण धरती और ब्रह्मांड में विचरण करते रहते हैं। और प्रत्येक मनुष्य, आत्मा आदि की खैर-खबर रखते हैं।
वीरभद्र, भगवान शिव के परम आज्ञाकारी हैं। उनका रूप भयंकर है। देखने में वे प्रलयाग्नि के समान, हजार भुजाओं से युक्त और मेघ के समान श्यामवर्ण हैं। सूर्य के तीन जलते हुए बड़े-बड़े नेत्र एवं विकराल दाढ़ें हैं। शिव ने उन्हें अपनी जटा से प्रकट किया था । इसलिए उनकी जटाएं साक्षात ज्वालामुखी के लावा के समान हैं। गले में नरमुंड माला वाले वीरभद्र सभी अस्त्र-शस्त्र धारण करते हैं। उनका रूप भले ही भयंकर है। पर शिवस्वरूप होने के कारण वे परम कल्याणकारी हैं। शिवजी की तरह शीघ्र प्रसन्न होने वाले है।
वीरभद्र उपासना तंत्र में वीरभद्र सर्वेश्वरी साधना मंत्र आता है। यह एक स्वयं सिद्ध चमत्कारिक तथा तत्काल फल देने वाला मंत्र है। स्वयंसिद्ध मंत्र होने के कारण इसे सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती. अचानक कोई बाधा आ जाए, दुर्घटना का भय हो, कोई समस्या बार-बार प्रकट होकर कष्ट देती हो, कार्यों में बाधाएं आती हों, हिंसक पशुओं का भय हो या कोई अज्ञात भय परेशान करता है।तो वीरभद्र सर्वेश्वरी साधना से उससे तत्काल राहत मिलती है।
यह तत्काल फल देने वाला मंत्र कहा गया है।
(१). इस मंत्र के स्मरण मात्र से डर भाग जाता है, और अकस्मात् आयी बाधाओ का निवारण होता है. जब भी किसी प्रकार के कोई पशुजन्य या दूसरे तरह से प्राणहानि आशंका हो तब इस मंत्र का ७ बार जाप करना चाहिए. इस प्रयोग के लिए मात्र मंत्र याद होना ज़रुरी है. मंत्र कंठस्थ करने के बाद केवल ७ बार शुद्ध जाप करें व चमत्कार देंखे!
(२). अगर इस मंत्र का एक हज़ार बार बिना रुके लगातार जाप कर लिया जाए तो व्यक्ति की स्मरण शक्ति विश्व के उच्चतम स्तर तक हो जाती है तथा वह व्यक्ति परम मेधावी बन जाता है!
(३). अगर इस मंत्र का बिना रुके लगातार १०,००० बार जप कर लिया जाए तो उसे त्रिकाल दृष्टि (भूत, वर्त्तमान, भविष्य का ज्ञान) की प्राप्ति हो जाती है!
(४). अगर इस मंत्र का बिना रुके लगातार एक लाख बार, रुद्राक्ष की माला के साथ, लाल वस्त्र धारण करके तथा लाल आसान पर बैठकर, उत्तर दिशा की और मुख करके शुद्ध जाप कर लिया जाये, तो उस व्यक्ति को “खेचरत्व” एवं “भूचरत्व” की प्राप्ति हो जायेगी!
मंत्र इस प्रकार है – ॐ हं ठ ठ ठ सैं चां ठं ठ ठ ठ ह्र: ह्रौं ह्रौं ह्रैं क्षैं क्षों क्षैं क्षं ह्रौं ह्रौं क्षैं ह्रीं स्मां ध्मां स्त्रीं सर्वेश्वरी हुं फट् स्वाहा
।महादेव के कई शक्तिशाली अंश हैं
ईश्वर के कई रूप है, देवी- देवता भी बहुत सारे हैं। देवो के भी जो देव हैं वही महादेव हैं.. वे स्वयं भगवान शिव हैं। वैसे तो निराकार हैं पर अपने भक्तों को दर्शन देने हेतु साकार रूप धारण कर कैलाश में रहते हैं। सब में वास करते हैं। इन्हें शंकर, महा रुद्र, महेश्वर, महा काल, महादेव, आदि देव, त्रिलोचन, नीलकंठ, सोमनाथ, विश्वनाथ, पशुपतिनाथ, उमापति, भोलेनाथ, पार्वती पति जैसे नामों से भुलाया जाता हैं। महादेव जी का तृतीय नेत्र किसी भी चीज़ को राख में बदल सकता है। इनके पास कई त्रिशूल हैं, पर इनका महा त्रिशूल सबसे शक्तिशाली अस्त्रों में से एक है। इनके सिर पे चंद्रमा, गले में नाग वासुकी, जटा में देव नदी गंगा रहती हैं।महादेव के कई शक्तिशाली अंश हैं जैसे वीरभद्र, काल भैरव आदि। वैसे तो महादेव स्वयं परमेश्वर हैं, लेकिन सृष्टि की रचना ब्रह्मा जी करते हैं, पालनकर्ता नारायण (विष्णु) हैं और विलीनकर्ता ये स्वयं हैं.. जी हाँ विलीनकर्ता महादेव ही हैं। हम सबको एक ना एक दिन जाना है, हम भगवान शिव में ही विलीन हो जायेंगे। मृत्यु के देवता यमराज हैं परंतु वे शिव जी की आज्ञा के बिना कभी किसी को नहीं लेजा सकते। महादेव को सबसे बड़े भगवान के रूप में पूजा जाता हैं। इनका ना कोई जन्म है न कोई मृत्यु। ये काल से परे हैं इसलिए इन्हें महाकाल भी कहा जाता है। इनकी पत्नी भगवती माता पार्वती हैं जो स्वयं आदि शक्ति हैं। इनके कई नाम और रूप हैं जैसे दुर्गा, काली, गौरी, अन्नपूर्णा, महादेवी इत्यादि। महादेव के पुत्र तो हम सब हैं, पर इनके दो पुत्र ऐसे है जो इनकी तरह दिव्य और शक्तिशाली हैं। उनके नाम हैं कर्तिके और गणेश। कर्तिके इनके बड़े बेटे हैं (कुछ पुराणो में गणेश जी बड़े हैं)। कर्तिके जी युद्ध के देवता हैं, गणेश जी को विघ्न हर्ता कहा जाता हैं। वे बहुत महान और बुद्धिमान हैं। पद्म पुराण के अनुसार, महादेव की एक पुत्री भी हैं जिनका नाम अशोक सुंदरी हैं। महादेव के वाहन नंदी महाराज हैं जो वैसे तो एक बैल हैं परंतु इतने दिव्य हैं की कभी भी मनुष्य का रूप धारण कर सकते हैं। नंदी महादेव के एक महान भक्त हैं, महादेव नंदी को अपने पुत्र की तरह रखते हैं। महादेव के कुछ ऐसे भक्त हैं जिन्हें लोग उतना सम्मान नहीं देते, लेकिन भगवान के लिए सब बराबर हैं। इसी लिए ये भक्त उनके साथ उनके गण बनकर रहते हैं, इनमें से अधिकतर गण भूत हैं।
साधना में समाधि के लिए एकत्व भाव अपने इष्ट से होना ज़रूरी है। साधना होश में करने वालो साधना सफल नही होती है। साधना का अंतिम चरण लय है विलिनता है। समाधि में जाने से पूर्व होश खो दोगे तन्द्रा आएगी ही आएगी क्योंकि तुर्या में साधना के वो कोष खुलते है। जहाँ ब्रह्म कण कण में आनंद कर रहा होता है। ये होश में नही हो पायेगा होश में तुम इष्ट का परीक्षण कर रहे हो और बेहोशी तुम पूर्ण समर्पण के साथ एकत्व भाव से जुड़ते हो मार्ग दक्षिण हो या वाम साधक को अपनी छट्टी इन्द्रिय जागृत करने के लिए 5 इंद्रियों को सुलाना पड़ेगा
उस पार का जगत तो यही से महसूस होगा जब केवल अपने ज्ञान में इष्ट के अलावा कुछ न बचे तब समज लेना भक्ति के चरमसीमा पर तुम खड़े हो और मन तुम्हे ये होश मे करने न देगा मन को सुलाना और आत्मा से देखना आत्मा में डूबना बहुत कठिन है 5 इन्द्रिय पूरा जोर लगा देगी पाँच तत्व प्रकृति पूरा शक्ति से तुम्हे साधना में रोकेगा
बहुत से प्रश्न नकारात्मकता सामने आने लगे तो समज लेना सही रास्ते पर हो ये दरिया अब पार कर लेना होगा मन की बात तुम मानते थे तो मन तुम्हे सहयोग देता था साधना से मन की खुराक बंद हो जाएगी ये मन ही चोर है। पापी है। यही सही गलत करता रहेगा साधना में जब मंथन शुरू होगा मन पहले ही विष प्रकट करेगा
शिवतत्त्व यानी ज्ञान के बिना ये विष पान करना असंभव है। गुरु की ज़रूरत यही होगी कि वो तुम्हे शिव बनाये क्योंकि मंथन से आगे तो सिद्धियां प्रकट होगी और मन नही चाहेगा तुम उसकी गुलामी छोड़ो वो तुम्हे परेशान करता जाएगा ये दुष्ट है। इसके ऊपर ही प्रहार कर इसको बंध कर देना है।
सत्य भी इसका और असत्य भी इसका है। मन दोनों रूपो से आएगा कभी मित्र बन कर कभी शत्रु बन कर ये मन को छोड़ना ही मायां को छोड़ना है मन को एक बार काटोगे एक हज़ार बार प्रगट होगा इस लिए मन को मारने हेतु सूक्ष्म तक जाके सारे प्रोग्राम को नष्ट करना होता है।
मन की सुनोगे तो मार ही खाओगे साधना में इष्ट मिलन के अलावा कोई भी विचार शेष नही रहना चाहिए तभी कुछ बात बन पाएगी तभी समाधि का स्वाद चख पाओगे
सोमनाथ -चंद्रमा ने भगवान शिव से उनके बनाए शिवलिंग में रहने की प्रार्थना की
इस मंदिर के दक्षिण दिशा में समुद्र के किनारे बेहद आकर्षक खंभे बने हुए हैं. जिन्हें बाण स्तंभ कहा जाता है, जिसके ऊपर एक तीर रखकर यह प्रदर्शित किया गया है कि, सोमनाथ मंदिरऔर दक्षिण ध्रुव के बीच में भूमि का कोई भी हिस्सा मौजूद नहीं है. प्राचीन भारतीय ज्ञान का यह अद्भुत साक्ष्य है. माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने अपना शरीर इसी स्थान पर छोड़ा था.
सोमनाथ मंदिर की पौराणिक कथा
स्कन्द पुराण के अनुसार चंद्रमा ने दक्ष की 27 पुत्रियों से विवाह किया था लेकिन एकमात्र रोहिणी के प्रति उनका प्रेम बहुत ज्यादा था. इसकी वजह से बाकी की छब्बीस रानियां अपने आप को को उपेक्षित और अपमानित अनुभव करने लगीं. उन्होंने इसकी शिकायत अपने पिता से की. पुत्रियों की वेदना को देखकर राजा दक्ष ने चंद्र देव को समझाने का प्रयास किया, लेकिन वह नहीं माने. इस पर राजा दक्ष ने चंद्रमा को धीरे-धीरे खत्म हो जाने का श्राप दिया.
इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए चंद्रमा ने ब्रह्मदेव के कहने पर प्रभास क्षेत्र भगवान शिव की घोर तपस्या की. चंद्र देव ने शिवलिंग की स्थापना कर उनकी पूजा की. चंद्रमा की कठोर तपस्या से खुश होकर भगवान शिव से उन्हें श्राप मुक्त करते हुए अमरता का वरदान दिया. इस श्राप और वरदान की वजह से ही चंद्रमा 15 दिन बढ़ता और 15 दिन घटता रहता है.
कहा जाता है कि श्राप में मुक्ति के बाद चंद्रमा ने भगवान शिव से उनके बनाए शिवलिंग में रहने की प्रार्थना की और तभी से इस शिवलिंग को सोमनाथ ज्योतिर्लिंग में पूजा जाने लगा. माना जाता है कि सोमेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन और पूजा से सब पापों से मुक्ति की प्राप्ति हो जाती है. इस स्थान को ‘प्रभास पट्टन’ के नाम से भी जाना जाता है.
पार्वती जी ने शिवजी से पूछा
पार्वती जी ने शिवजी से पूछा, तो शिवजी ने पार्वती जी से कहा कि मैं तुम्हें इस प्रश्न का उत्तर जल्द ही दूंगा और उस घटना के यानी उस प्रश्न के कुछ समय बाद ही बुध कौशिक नाम के एक ऋषि को महादेव जी ने स्वप्न दिया और स्वप्न में उन्हें एक निर्देश दिया निर्देश में श्री राम रक्षा स्त्रोत लिखने की आज्ञा दे दी कौशिक जी ने उनसे विनम्र प्रार्थना स्वप्न में ही की कहा मैं इसको लिखने में सक्षम नहीं हूं तब शिव जी ने श्री रामरक्षा स्त्रोत पूरा का पूरा सपने में ही कौशिक ऋषि को सुनाया। तब कौशिक ऋषि ने उसको लिख दिया भगवान शिव अपनी पत्नी माता गौरी से कहते हैं कि हे गौरी राम नाम श्री विष्णु सहस्त्रनाम के समान है इसीलिए मैं हमेशा राम राम राम नाम में ही रमण करता हूं,
महादेव हमेशा भगवान श्रीराम का ध्यान करते रहते हैंl उनके अनुसार रामनाम विष्णु सहस्त्र के बराबर है इसीलिए वह हमेशा राम नाम का रमण करते रहते हैंl
क्या सुजान सिंह के शरीर में सिर तो है ही नहीं…इष्टदेव युद्ध कर रहे हैं
7 मार्च 1679 ई0 की बात है, ठाकुर सुजान सिंह अपनी शादी की बारात लेकर जा रहे थे, 22 वर्ष के सुजान सिंह किसी देवता की तरह लग रहे थे, ऐसा लग रहा था मानो देवता अपनी बारात लेकर जा रहे हों।
उन्होंने अपनी दुल्हन का मुख भी नहीं देखा था, शाम हो चुकी थी इसलिए रात्रि विश्राम के लिए “छापोली” में पड़ाव डाल दिये। कुछ ही क्षणों में उन्हें गायों में लगे घुंघरुओं की आवाजें सुनाई देने लगी, आवाजें स्पष्ट नहीं थीं, फिर भी वे सुनने का प्रयास कर रहे थे, मानो वो आवाजें उनसे कुछ कह रही थी।
सुजान सिंह ने अपने लोगों से कहा, शायद ये चरवाहों की आवाज है जरा सुनो वे क्या कहना चाहते हैं। गुप्तचरों ने सूचना दी कि युवराज ये लोग कह रहे है कि कोई फौज “देवड़े” पर आई है। वे चौंक पड़े। कैसी फौज, किसकी फौज, किस मंदिर पे आयी है?
जवाब आया “युवराज ये औरंगजेब की बहुत ही विशाल सेना है, जिसका सेनापति दराबखान है, जो खंडेला के बाहर पड़ाव डाल रखी है। कल खंडेला स्थित श्रीकृष्ण मंदिर को तोड़ दिया जाएगा। निर्णय हो चुका था।
एक ही पल में सब कुछ बदल गया। शादी के खुशनुमा चहरे अचानक सख्त हो चुके थे, कोमल शरीर वज्र के समान कठोर हो चुका था। जो बाराती थे, वे सेना में तब्दील हो चुके थे, वे अपनी सेना के लोगों से विचार विमर्श करने लगे। तब उनको पता चला कि उनके साथ सिर्फ 70 लोगो की सेना थी।
तब रात्रि के समय में बिना एक पल गंवाए उन्होंने पास के गांव से कुछ आदमी इकठ्ठे कर लिए। करीब 500 घुड़सवार अब उनके पास हो चुके थे।
अचानक उन्हें अपनी पत्नी की याद आयी, जिसका मुख भी वे नहीं देख पाए थे, जो डोली में बैठी हुई थी। क्या बीतेगी उसपे, जिसने अपनी लाल जोड़े भी ठीक से नहीं देखी हो।
वे तरह तरह के विचारों में खोए हुए थे, तभी उनके कानों में अपनी माँ को दिए वचन याद आये, जिसमें उन्होंने राजपूती धर्म को ना छोड़ने का वचन दिया था, उनकी पत्नी भी सारी बातों को समझ चुकी थी, डोली की तरफ उनकी नजर गयी, उनकी पत्नी महँदी वाली हाथों को निकालकर इशारा कर रही थी। मुख पे प्रसन्नता के भाव थे, वो एक सच्ची क्षत्राणी का कर्तव्य निभा रही थी, मानो वो खुद तलवार लेकर दुश्मन पे टूट पड़ना चाहती थी, परंतु ऐसा नहीं हो सकता था।
सुजान सिंह ने डोली के पास जाकर डोली को और अपनी पत्नी को प्रणाम किये और कहारों और नाई को डोली सुरक्षित अपने राज्य भेज देने का आदेश दे दिया और खुद खंडेला को घेरकर उसकी चौकसी करने लगे।
लोग कहते हैं कि मानो खुद कृष्ण उस मंदिर की चौकसी कर रहे थे, उनका मुखड़ा भी श्रीकृष्ण की ही तरह चमक रहा था।
8 मार्च 1679 को दराबखान की सेना आमने सामने आ चुकी थी, महाकाल भक्त सुजान सिंह ने अपने इष्टदेव को याद किया और हर हर महादेव के जयघोष के साथ 10 हजार की मुगल सेना के साथ सुजान सिंह के 500 लोगो के बीच घनघोर युद्ध आरम्भ हो गया।
सुजान सिंह दराबखान को मारने के लिए उसकी ओर लपके और मुगल सेना के 40 लोगो को मौत के घाट उतार दिया। ऐसे पराक्रम को देखकर दराबखान ने पीछे हटने में ही भलाई समझी, लेकिन ठाकुर सुजान सिंह रुकनेवाले नहीं थे। जो भी उनके सामने आ रहा था वो मारा जा रहा था। सुजान सिंह साक्षात मृत्यु का रूप धारण करके युद्ध कर रहे थे। ऐसा लग रहा था मानो खुद महाकाल ही युद्ध कर रहे हों।
क्या सुजान सिंह के शरीर में सिर तो है ही नहीं…इष्टदेव युद्ध कर रहे हैं
लोगों को घोर आश्चर्य हुआ, लेकिन उनके अपने लोगों को ये समझते देर नहीं लगी कि सुजान सिंह तो कब के मोक्ष को प्राप्त कर चुके हैं। ये जो युद्ध कर रहे हैं, वे सुजान सिंह के इष्टदेव हैं। सबों ने मन ही मन अपना शीश झुकाकर इष्टदेव को प्रणाम किये।
अब दराबखान मारा जा चुका था, मुगल सेना भाग रही थी, लेकिन ये क्या, सुजान सिंह घोड़े पे सवार बिना सिर के ही मुगलों का संहार कर रहे थे। उस युद्धभूमि में मृत्यु का ऐसा तांडव हुआ, जिसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुगलों की 7 हजार सेना अकेले सुजान सिंह के हाथों मारी जा चुकी थी। जब मुगल की बची खुची सेना पूर्ण रूप से भाग गई, तब सुजान सिंह जो सिर्फ शरीर मात्र थे, मंदिर का रुख किये।
इतिहासकार कहते हैं कि देखनेवालों को सुजान के शरीर से दिव्य प्रकाश का तेज निकल रहा दिख था, एक अजीब विश्मित करने वाला प्रकाश निकल रहा था, जिसमें सूर्य की रोशनी भी मन्द पड़ रही थी।
ये देखकर उनके अपने लोग भी घबरा गए थे और सब ने एक साथ श्रीकृष्ण की स्तुति करने लगे, घोड़े से नीचे उतरने के बाद सुजान सिंह का शरीर मंदिर की प्रतिमा के सामने जाकर लुढ़क गया और एक शूरवीर योद्धा का अंत हो गया।