ब्रह्मांड में पृथ्वी लोक से नजदीक शक्तियों को प्रसन्न करना आसान- इन तक हमारी मानसिक तरंगें जल्दी पहुंचती हैं Top Religious Story

मंदिर में आरती के अलावा अन्य समय ताली नहीं बजानी चाहिए। #विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के सम्बन्ध में भगवान शिव के वचन # त्रयम्बकेश्वर मंदिर का रहस्य # मन्त्र-जप के समय आवश्यक नियम #इंसान गुफा के ज्यादा अन्दर नहीं जा सकता # भोपाल मे हज़ारों साल पुरानी एक ॐ वैली #भोपाल मे हज़ारों साल पुरानी एक ॐ वैली  #ब्रह्मांड में पृथ्वी लोक से नजदीक यक्ष, किन्नर, गंधर्व, पिशाच, प्रेत , अप्सरा इत्यादि शक्तियों को प्रसन्न करना आसान- इन तक हमारी मानसिक तरंगें जल्दी पहुंचती हैं # # Yr Contribution: Himalaya Gaurav Uttrakhand Bank: State Bank of India (Saharanpur Road Dehradun) IFS Code SBIN0003137 Mob 9412932030

# By Chandra Shekhar Joshi Chief Editor www.himalayauk.org (Leading Newsportal & Daily Newspaper) Publish at Dehradun & Haridwar. Mail; himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030 — कलयुग तारक मन्त्र- राधे राधे

विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के सम्बन्ध में भगवान शिव के वचन । सन्दर्भ :- स्कन्द पुराण, काशी खण्ड- उत्तरार्ध )

दुनिया में जितने भी स्वयंभू अमृतेश्वर शिवलिंग हैं। वे सब महर्षि मार्केंडेय द्वारा ही खोजे गए और उनका जीर्णोद्वार भी कराया था। कर्नाटक का अमृतेश्वर मंदिर अदभुत है यह शिमोगा से 50 km दूर है। चिकमंगलूर से 70 km अमृतपुरा गाँव में स्थित है।

शिव वचन :- मैं कभी किसी को प्रत्यक्ष दर्शन देता हूँ और कभी अदृश्य होता हूँ । देवताओं! सर्वदा सब भक्तों पर अनुग्रह करने के लिए मैं इस आनन्दवन में सदा स्वेच्छा से निवास करता हूँ और भक्तों को मनोवांछित फल देने वाला मैं यहाँ लिंगरूप से सदैव निवास करता रहूँगा ।

इस तीर्थ में जितने स्वयम्भू एवं स्थापित जितने भी लिंग हैं, वे सब सदा इस लिंग का दर्शन करने के लिए आते हैं, इसमें सन्देह नहीं कि मैं सम्पूर्ण लिंगों में समान रूप से स्थित हूँ तथापि यह तो लिंगस्वरूपा मेरी परा मूर्ति है । जिसने श्रद्धा और शुद्ध दृष्टि से मेरे इस लिंग का दर्शन किया है उसने मानो मेरा प्रत्यक्ष दर्शन कर लिया ।

मंदिर में आरती के अलावा अन्य समय ताली नहीं बजानी चाहिए

हिंदू धर्म में आरती के समय ही ताली बजाना (करतल ध्वनि) एक स्वाभाविक क्रिया मानी जाती है। सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार आरती के बीच में ही करतल ध्वनि उत्पन्न करने की उपयुक्त विधि है। मंदिर में आरती के अलावा अन्य समय ताली नहीं बजाने की मान्यता है।

कहा जाता है कि भगवान शिव के मंदिर में निश्चित समय पर ताली बजाना खतरनाक हो सकता है। मान्यता के अनुसार भगवान शिव साधना में लीन रहते हैं। ऐसे में कुछ लोग मंदिर जाकर अपने शिवलिंग के पास तीन बार ताली बजाते हैं, जो अनुचित है।

माना जाता है कि इस तरह से शिवलिंग के पास ताली बजाना अपमान और ध्यान भटकाने वाला माना जाता है और इससे गण क्रोधित हो जाते हैं।

संकीर्तन (कीर्तन के समय हाथ उठाकर ताली बजाना) में बहुत शक्ति होती है। जप से हमारे हाथों की रेखाएं भी बदल जाती हैं।

एक्यूप्रेशर के सिद्धांत के अनुसार मनुष्य के हाथ में पूरे शरीर के अंगों और अंगों के दबाव बिंदु होते हैं, जिन्हें दबाने पर संबंधित हिस्से में रक्त और ऑक्सीजन का प्रवाह होने लगता है और धीरे-धीरे वह रोग ठीक होने लगता है। ताली बजाने से सभी बिन्दुओं पर दबाव पड़ता है।

सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार आरती के मध्य करतल ध्वनि उत्पन्न करने की उपयुक्त विधि है। मंदिर में आरती के अलावा अन्य समय ताली नहीं बजानी चाहिए।

त्रयम्बकेश्वर मंदिर का रहस्य

एक प्राचीन हिंदू मंदिर है जो भारत में नासिक शहर से 28 किलोमीटर और नासिक रोड से तकरीबन 40 किलोमीटर दूर त्रयम्बकेश्वर तहसील के त्रंबक शहर में बना हुआ है। यह मंदिर भगवान शिव के उन 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है जिन्हें भारत में सबसे पवित्र और वास्तविक माना जाता है। त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग की सबसे अद्भुत और असाधारण बात तो यह है कि इसके तीन मुख(सर) हैं। एक भगवान ब्रहमा, एक भगवान विष्णु, और एक भगवान रुद्र।

इस लिंग के चारों ओर एक रत्नजडित मुकुट रखा गया है जिसे त्रिदेव के मुखोटे के रुप में रखा गया है। कहा जाता है कि यह मुकुट पांडवों के समय से यहीं पर है। इस मुकुट में हीरा, पन्ना और कई बेशकीमती रत्न जुड़े हुए हैं।

त्रयम्बकेश्वर मंदिर में इसको सिर्फ सोमवार के दिन 4 से 5 बजे तक दिखाया जाता है। यह मंदिर ब्रह्मगिरी पर्वत के तलहटी में स्थित है। गोदावरी नदी के किनारे बने त्र्यंबकेश्वर मंदिर का निर्माण काले पत्थरों से किया गया है। इस मंदिर की वास्तुकला बहुत ही अद्भुत और अनोखी है। इस मंदिर के पंचकोशी में कालसर्प शांती त्रिपिंडी विधि और नारायण नागबली आदि पूजा कराई जाती है। जिन का आयोजन भक्तगण अलग-अलग मनोकामना को पूर्ण करने के लिए करवाते हैं।

मंत्रजप करने के कुछ सामान्य नियम

१. मन्त्र जप के समय निषिद्ध कार्य – आलस्य, जंभाई, निद्रा, छींक, थूकना, डरना, अपवित्र अङ्ग का स्पर्श,क्रोध, मध्य में बातें करना, जप में जल्दीबाजी करना, विलम्बपूर्वक जप, गाकर जप, सिर हिलाना, लिखित मन्त्र पढ़ना, मन्त्र का अर्थ न जानना, बीच-बीच में मन्त्र भूल जाना, इष्ट-देवता-मन्त्र एवं गुरु को पृथक्-पृथक् मानना निषिद्ध कार्य है ।

२. मन्त्र-जप के समय आवश्यक नियम- भूमिशयन, ब्रह्मचर्य, मौन, गुरुसेवन, त्रिकालस्नान, पापकर्म परित्याग, नित्य पूजा, नित्यदान, देवता की स्तुति एवं कीर्तन, नैमित्तिक पूजा, इष्टदेव एवं गुरु में विश्वास, जपनिष्ठा।

३. मन्त्र-जप के समय त्याज्य – कर्मव्रात्य, नास्तिक, पतित आदि से संभाषण, उच्छिष्ट मुख से वार्तालाप,असत्यभाषण, कुटिलभाषण, अनुष्ठान के समय-शपथ लेना, पहनने का वस्त्र ओढ़कर जप करना, बिना आसन के जप करना, बिना माला ढके या सिर ढककर जप करना, चलते या खाते समय जप करना, जूता पहनकर, पैर फैलाकर जप करना आदि निषिद्ध कार्य हैं । शास्त्रकारों ने अन्त में यह निर्णय किया कि-

अशुचिर्वा शुचिर्वा गच्छंस्तिष्ठन स्वपन्नपि। मन्त्रैकशरणो विद्वान् मनसैव सदाभ्यसेत् ।

न दोषो मानसे जाप्ये सर्वदेशेऽपि सर्वदा ।।

इंसान गुफा के ज्यादा अन्दर नहीं जा सकता

कैलाश पर्वत के निचले हिस्से में एक गुफा है जो सैकड़ों मील लंबी है। कहा जाता है कि प्राचीन समय में योगियों ने वहां समाधि ली थी और ध्यान का अभ्यास किया था। गुफा की सौ मीटर की गहराई के भीतर कई मानव हड्डियां मिली हैं। गुफा के प्रवेश द्वार पर आप कुछ मदहोश करने वाला संगीत सुन सकते हैं, जिसकी तीव्रता बढ़ जाती है, जब आप और अंदर जाते हैं। यह तबले, डमरू, युद्ध के सींग से युक्त किसी प्रकार की आवाज है। ध्वनि के स्रोत अभी तक नहीं मिले हैं।

आश्चर्यजनक रूप से गुफा के अंदर ऑक्सीजन का स्तर बाहर की तुलना में बेहतर है और इसमें एक विदेशी गंध है। गुफा के अंदर का तापमान किसी भी अन्य गुफा की तरह बढ़ जाता है, इस तरह से तापमान असहनीय हो जाता है जिससे इंसान गुफा के ज्यादा अन्दर नहीं जा सकता। अंदर जाते ही आपके शरीर में एक अजीब सा कंपन महसूस होता है। आपकी सभी इंद्रियां असामान्य रूप से काम करना शुरू कर देती हैं। यदि आपकी आंखें बंद हैं तो आपको अजीब चीजें दिखती हैं। भारहीनता जैसी अनुभूति होती है मानो गुरुत्वाकर्षण कम हो रहा हो।

गुफा की विचित्रता के लिए स्पष्टीकरण प्राप्त करने के लिए बहुत सारे शोध किए गए हैं लेकिन फिर भी कोई नतीजा नहीं निकला है। गुफा के अंदर गर्मी और गुरुत्वाकर्षण के कारण अंदर भेजे गए सभी प्रोब, रोबोट, ड्रोन कुछ दूर से आगे नहीं जा सकते हैं। गुफा में जाने वाले इंसान का जीवन अजीब तरह से प्रभावित होता है, इसलिए प्रवेश द्वार को छलावरण रॉक दरवाजे के साथ सील कर दिया गया है। लेकिन शुरुआती तस्वीरें उपलब्ध हैं। कैलाश भारत में नहीं है लेकिन फिर भी यहां के लोग इससे जुड़े रहते हैं। यह सबसे बड़े अनसुलझे रहस्यों में से एक है और अच्छी तरह से गुप्त रखा गया है।

भोपाल मे हज़ारों साल पुरानी एक ॐ वैली 

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल ओम वैली का रहस्य अब सामने आ रहा है, वैज्ञानिकों की मानें तो भोपाल मे हज़ारों साल पुरानी एक ॐ वैली है, जिसका आकार मानसून के आने पर उभर कर सामने आ जाता है..! गूगल के द्वारा छोड़े गये उपग्रह की तस्वीरों से ये रहस्य का पता चला, अब इसपर वैज्ञानिक शोध हो रहा है..!

ये ॐ आकर साल के बाकी समय नही दिखाई देता है लेकिन जैसे ही मानसून आता है, जलाशय और हरियाली के बढ़ने से ओम का आकर उभर आता है। इस आकर के मध्य मे भोपाल का भोजपुर मंदिर है, इस मंदिर का वैज्ञानिक महत्व भी है..!भोजपुर मंदिर मे भारत का सबसे बड़ा शिवलिंग मौजूद है..!!

हनुमान बोले-एक चुटकी सिंदूर लगा लो तो प्रभु राम के निकट रहने का अधिकार मिल जाता है तो मैंने सारी अयोध्या का सिंदूर लगा लिया। क्यों प्रभु, अब तो कोई मुझे आपसे दूर नहीं कर पाएगा न?”  

धर्म युद्ध महायुद्ध समाप्त हो चुका था। जगत को त्रास देने वाला रावण अपने कुटुंब सहित नष्ट हो चुका था। कौशलाधीश राम के नेतृत्व में चहुँओर शांति थी।

श्री राम का राज्याभिषेक हुआ। राजा राम ने सभी वानर और राक्षस मित्रों को ससम्मान विदा किया। अंगद को विदा करते समय राम रो पड़े थे। हनुमान को विदा करने की शक्ति तो श्रीराम में भी नहीं थी। माता सीता भी उन्हें पुत्रवत मानती थी। हनुमान अयोध्या में ही रह गए।

राम दिन भर दरबार में, शासन व्यवस्था में व्यस्त रहे। सन्धा जब शासकीय कार्यों से छूट मिली तो गुरु और माताओं का कुशलक्षेम पूछ अपने कक्ष में आए। हनुमान उनके पीछे-पीछे ही थे। राम के निजी कक्ष में उनके सारे अनुज अपनी-अपनी पत्नियों के साथ उपस्थित थे। वनवास, युद्ध, और फिर अंनत औपचारिकताओं के पश्चात यह प्रथम अवसर था जब पूरा परिवार एक साथ उपस्थित था। राम, सीता और लक्ष्मण को तो नहीं, कदाचित अन्य वधुओं को एक बाहरी, अर्थात हनुमान का वहाँ होना अनुचित प्रतीत हो रहा था। चूंकि शत्रुघ्न सबसे छोटे थे, अतः वे ही अपनी भाभियों और अपनी पत्नी की इच्छापूर्ति हेतु संकेतों में ही हनुमान को कक्ष से जाने के लिए कह रहे थे। पर आश्चर्य की बात कि हनुमान जैसा ज्ञाता भी यह मामूली संकेत समझने में असमर्थ हो रहा था।

अस्तु, उनकी उपस्थिति में ही बहुत देर तक सारे परिवार ने जी भर कर बातें की। फिर भरत को ध्यान आया कि भैया-भाभी को भी एकांत मिलना चाहिए। उर्मिला को देख उनके मन में हूक उठती थी। इस पतिव्रता को भी अपने पति का सानिध्य चाहिए। अतः उन्होंने राम से आज्ञा ली, और सबको जाकर विश्राम करने की सलाह दी। सब उठे और राम-जानकी का चरणस्पर्श कर जाने को हुए। परन्तु हनुमान वहीं बैठे रहे। उन्हें देख अन्य सभी उनके उठने की प्रतीक्षा करने लगे कि सब साथ ही निकले बाहर।

राम ने मुस्कुराते हुए हनुमान से कहा, “क्यों वीर, तुम भी जाओ। तनिक विश्राम कर लो।”

हनुमान बोले, “प्रभु, आप सम्मुख हैं, इससे अधिक विश्रामदायक भला कुछ हो सकता है? मैं तो आपको छोड़कर नहीं जाने वाला।”

शत्रुघ्न तनिक क्रोध से बोले, “परन्तु भैया को विश्राम की आवश्यकता है कपीश्वर! उन्हें एकांत चाहिए।”

“हाँ तो मैं कौन सा प्रभु के विश्राम में बाधा डालता हूँ। मैं तो यहाँ पैताने बैठा हूँ।”

“आपने कदाचित सुना नहीं। भैया को एकांत की आवश्यकता है।”

“पर माता सीता तो यहीं हैं। वे भी तो नहीं जा रही। फिर मुझे ही क्यों निकालना चाहते हैं आप?”

“भाभी को भैया के एकांत में भी साथ रहने का अधिकार प्राप्त है। क्या उनके माथे पर आपको सिंदूर नहीं दिखता?

हनुमान आश्चर्यचकित रह गए। प्रभु श्रीराम से बोले, “प्रभु, क्या यह सिंदूर लगाने से किसी को आपके निकट रहने का अधिकार प्राप्त हो जाता है?”

राम मुस्कुराते हुए बोले, “अवश्य। यह तो सनातन प्रथा है हनुमान।”

यह सुन हनुमान तनिक मायूस होते हुए उठे और राम-जानकी को प्रणाम कर बाहर चले गए।

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प्रातः राजा राम का दरबार लगा था। साधारण औपचारिक कार्य हो रहे थे कि नगर के प्रतिष्ठित व्यापारी न्याय मांगते दरबार में उपस्थित हुए। ज्ञात हुआ कि पूरी अयोध्या में रात भर व्यापारियों के भंडारों को तोड़-तोड़ कर हनुमान उत्पात मचाते रहे थे। राम ने यह सब सुना और सैनिकों को आदेश दिया कि हुनमान को राजसभा में उपस्थित किया जाए। रामाज्ञा का पालन करने सैनिक अभी निकले भी नहीं थे कि केसरिया रंग में रंगे-पुते हनुमान अपनी चौड़ी मुस्कान और हाथी जैसी मस्त चाल से चलते हुए सभा में उपस्थित हुए। उनका पूरा शरीर सिंदूर से पटा हुआ था। एक-एक पग धरने पर उनके शरीर से एक-एक सेर सिंदूर भूमि पर गिर जाता। उनकी चाल के साथ पीछे की ओर वायु के साथ सिंदूर उड़ता रहता।

राम के निकट आकर उन्होंने प्रणाम किया। अभी तक सन्न होकर देखती सभा, एकाएक जोर से हँसने लगी। अंततः बंदर ने बंदरों वाला ही काम किया। अपनी हँसी रोकते हुए सौमित्र लक्ष्मण बोले, “यह क्या किया कपिश्रेष्ठ? यह सिंदूर से स्नान क्यों? क्या यह आप वानरों की कोई प्रथा है?”

हनुमान प्रफुल्लित स्वर में बोले, “अरे नहीं भैया। यह तो आर्यों की प्रथा है। मुझे कल ही पता चला कि अगर एक चुटकी सिंदूर लगा लो तो प्रभु राम के निकट रहने का अधिकार मिल जाता है। तो मैंने सारी अयोध्या का सिंदूर लगा लिया। क्यों प्रभु, अब तो कोई मुझे आपसे दूर नहीं कर पाएगा न?”

सारी सभा हँस रही थी। और भरत हाथ जोड़े अश्रु बहा रहे थे। यह देख शत्रुघ्न बोले, “भैया, सब हँस रहे हैं और आप रो रहे हैं? क्या हुआ?”

भरत स्वयं को सम्भालते हुए बोले, “अनुज, तुम देख नहीं रहे! वानरों का एक श्रेष्ठ नेता, वानरराज का सबसे विद्वान मंत्री, कदाचित सम्पूर्ण मानवजाति का सर्वश्रेष्ठ वीर, सभी सिद्धियों, सभी निधियों का स्वामी, वेद पारंगत, शास्त्र मर्मज्ञ यह कपिश्रेष्ठ अपना सारा गर्व, सारा ज्ञान भूल कैसे रामभक्ति में लीन है। राम की निकटता प्राप्त करने की कैसी उत्कंठ इच्छा, जो यह स्वयं को भूल चुका है। ऐसी भक्ति का वरदान कदाचित ब्रह्मा भी किसी को न दे पाएं। मुझ भरत को राम का अनुज मान भले कोई याद कर ले, पर इस भक्त शिरोमणि हनुमान को संसार कभी भूल नहीं पाएगा। हनुमान को बारम्बार प्रणाम।”

ब्रह्मांड में पृथ्वी लोक से नजदीक यक्ष, किन्नर, गंधर्व, पिशाच, प्रेत , अप्सरा इत्यादि शक्तियों को प्रसन्न करना आसान- इन तक हमारी मानसिक तरंगें जल्दी पहुंचती हैं

इस ब्रह्मांड में कई तरह के लोक हैं, इन लोकों में अलग अलग तरह की प्रजातियों का निवास है। कुछ लोक पृथ्वी से नजदीक हैं कुछ दूर। यक्ष, किन्नर, गंधर्व, पिशाच, प्रेत , अप्सरा इत्यादि शक्तियां देवताओं से निम्न शक्ति वाली हैं। ये पृथ्वी लोक से नजदीक रहती हैं। मान्यता है नजदीकी लोक में स्थित शक्तियों को प्रसन्न करना आसान है क्योंकि इनतक हमारी मानसिक तरंगें जल्दी पहुंचती हैं। यक्ष और यक्षिणी की साधना- यक्ष एक ऐसी प्रजाति है जो कि रहस्यमयी और मायवी है। 64 प्रकार के यक्षों की प्रजाति पाई जाती है। इनमें से एक कुबेर नाम के यक्ष सुप्रसिद्ध हैं जो कि देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं और अकूत धन संपदाओं के स्वामी भी हैं।

भारत में, यक्ष और यक्षिणी को प्रकृति के शक्तिशाली रक्षक के रूप में देखा जाता है जो जरूरत पड़ने पर मानवता की ओर से हस्तक्षेप करते हैं। माना जाता है कि वे करुणा के अवतार हैं और ठीक से आह्वान करने पर इच्छाओं को पूरा करते हैं। इसके अलावा, वे सौभाग्य और भाग्य से भी जुड़े हुए हैं; ऐसा माना जाता है कि उनकी उपस्थिति किसी व्यक्ति या परिवार के लिए धन और समृद्धि ला सकती है। इसके अलावा, इन संस्थाओं को शक्तिशाली आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में भी देखा जाता है जो साधकों को आत्म-साक्षात्कार की उनकी यात्रा पर बोध और समझ प्रदान करके ज्ञान प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं।

इस तरह यक्षणियां भगवान शिव और माता पार्वती की सेवा में लगी रहती हैं। ये चुड़ैल और पिशाचों से अलग हैं और साधक द्वारा सिद्ध की जाती हैं। इन्हें सिद्ध करने वालों को मद्य, मांस, मत्स्य को नैवेद्य और प्रसाद के रूप में लेना पड़ सकता है। ऐसी ही आठ यक्षणियों को सिद्ध करने का विधान है ।

सुर सुन्दरी यक्षिणी मनोहारिणी यक्षिणी कनकावती यक्षिणी कामेश्वरी यक्षिणी

रतिप्रिया यक्षिणी पद्मिनी यक्षिणी नटी यक्षिणी अनुरागिणी यक्षिणी

उपरोक्त यक्षणियों को माह भर के भीतर प्रसन्न करके काम निकाला जा सकता है। इनको सिद्ध करने की विधि यहां नहीं बताएंगे।

देवी-देवताओं को प्रसन्न करना मुश्किल क्यों है-

देवी देवता उच्च कोटि की ताकतवर शक्तियां हैं। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से संसार को चलाने की जिम्मेदारी इन्ही पर है। ये मनुष्य की पूजा पाठ पर जल्दी ध्यान नहीं देतीं। क्योंकि इनतक हमारी प्रार्थना या तरंगें पहुंच ही नहीं पातीं। इनसे निम्न लोक में रहने वाली शक्तियां हमारे निवेदन को रोक लेती हैं।

उदाहरण- अगर आप मुख्यमंत्री के पास कोई शिकायत या निवेदन लेकर जाना चाहें तो उनके नीचे काम करने वाले तुरंत अड़ंगा लगा देंगे। ठीक उसी तरह वहां भी चलता है। इसी तरह अगर आप नारायण को प्रसन्न करने हेतु भक्ति करना शुरू करेंगे तो ये शक्तियां आपको तमाम तरह के प्रलोभन देकर आपको मायाजाल में उलझा देंगे ।

 ये साधनाएं श्रापित हो चुकी हैं । यह समय कर्म पर आधारित है । इसलिए इन सब चक्कर में पड़ कर अमूल्य जीवन ना बर्बाद करें। वैसे भी जो जिसकी पूजा करता है वह मरने के बाद उन्हीं के पास जाता है।

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