दम्पत्ति ने की थी भगवान विट्ठल के विश्व विख्यात मंदिर में उद्धव ठाकरे को सीएम बनाने की उपासना- शपथ ग्रहण में मुंबई बुलाया
नपे सांगली के विटा इलाके में तब किसान और विठ्ठल भक्तों ने शिवसेना का मुख्यमंत्री बनाने की मांग की थी. भगवान विठ्ठल की नगरी पंढरपुर से चंद्रभागा नदी से लाया तीर्थ और तुलसी की माला उद्धव ठाकरे को भेंट की गई थी. साथ ही शिवसेना का मुख्यमंत्री बने, इसके लिए उन्होंने 5 दिन का उपवास रखा था. दंपति 90 किलोमीटर बिना चप्पल पहने भगवान विठ्ठल का दर्शन करने पंढरपुर गए थे. अब उद्धव ठाकरे ने इस दंपति को नई सरकार के शपथ ग्रहण के लिए मुंबई बुलाया है. शिवसेना सांसद विनायक राऊत ने उन्हें फोन किया और उद्धव ठाकरे का निमंत्रण विठ्ठल भक्त किसान दंपति को दिया. यह दंपति गुरुवार को होने वाले मुख्यमंत्री के शपथग्रहण के लिए मुंबई पहुंच रहे हैं. CHANDRA SHEKHLR JOSHI- EDITOR For Himalayauk Leading Newsportal ;
भगवान विठ्ठल के भक्त किसान संजय सावंत बताते हैं कि उद्धव ठाकरे ही किसानों को न्याय दे सकते हैं. यह विश्वास हमें है कि किसानों के हित उद्धव जानते हैं, इसलिए उद्धव ठाकरे ही मुख्यमंत्री बनें, यह किसानों की और विठ्ठल भक्तों की इच्छा है. जब वह सांगली दौरे पर आए थे तब हमने उनसे कहा था कि शिवसेना का ही मुख्यमंत्री बने और हम यह शपथ ग्रहण समारोह देखना चाहते हैं. हमने कहा कि उस शपथ ग्रहण में हमें स्टेज के नीचे जगह मिले तो उन्होंने मुझसे कहा कि आपको शपथ ग्रहण समारोह में स्टेज पर जगह मिलेगी. आज उनकी तरफ से निमंत्रण आया है. मैं मुंबई पहुंचा हूं.
शिवसेना (Shiv Sena) प्रमुख उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) गुरुवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. इस शपथ ग्रहण समारोह के लिए उद्धव ठाकरे ने सांगली (Sangli) के विटा इलाके में रहने वाले विठ्ठल भक्त किसान दंपति को निमंत्रण दिया है. इस शपथ ग्रहण में आम लोगों को भी साधने कि कोशिश शिवसेना ने की है. दरअसल, बीते 15 नवंबर को उद्धव ठाकरे नपे सांगली के विटा इलाके का दौरा किया था. इस दौरान उन्होंने संजय सावंत और उनकी पत्नी रुपाली सांवत से मुलाकात की थी. तब किसान और विठ्ठल भक्तों ने शिवसेना का मुख्यमंत्री बनाने की मांग की थी. भगवान विठ्ठल की नगरी पंढरपुर से चंद्रभागा नदी से लाया तीर्थ और तुलसी की माला उद्धव ठाकरे को भेंट की गई थी. साथ ही शिवसेना का मुख्यमंत्री बने, इसके लिए उन्होंने 5 दिन का उपवास रखा था.
विट्ठल मन्दिर के प्रमुम देवता विट्ठल हैं जो सामान्यत: महाराष्ट्र में पूजे जाने वाले विष्णु के एक रूप हैं। इस देवता की पूजा कर्नाटक में शुरू करना उन माध्यमों का प्रतीक है जिनसे एक सामाजिक संस्कृति के निर्माण के लिए विजयनगर के शासकों ने अलग-अलग परम्पराओं को आत्मसात किया पंढरपुर महाराष्ट्र का एक सुविख्यात तीर्थस्थान है. भीमा नदी के तट पर बसा यह तीर्थस्थल शोलापुर जिले में अवस्थित है. आसाढ़ के महीने में यहां करीब 5 लाख से ज्यादा हिंदू श्रद्धालु प्रसिद्ध पंढरपुर यात्रा में भाग लेने पहुंचते हैं. भगवान विट्ठल के दर्शन के लिए देश के कोने-कोने से पताका-डिंडी लेकर इस तीर्थस्थल पर पैदल चलकर लोग यहां इकट्ठा होते हैं. इस यात्रा क्रम में कुछ लोग अलंडि में जमा होते हैं और पुणे तथा जजूरी होते हुए पंढरपुर पहुंचते हैं. इनको ज्ञानदेव माउली की डिंडी के नाम से दिंडी जाना जाता है. भीमा नदी को यहां चंद्रभागा के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यहां इसका आकार अर्ध चंद्र जैसा है. इस शहर का नाम एक व्यापारी पंडारिका के नाम पर पड़ा है. पंढरपुर को पंढारी के नाम से भी जाना जाता है. यहां भगवान विट्ठल का विश्व विख्यात मंदिर है. भगवान विट्ठल को हिंदू श्री कृष्ण का एक रूप मानते हैं. भगवान विट्ठल विष्णु अवतार कहे जाते हैं. इस मंदिर में देवी रुक्मिणी को भगवान विट्ठल के साथ स्थापित किया गया है. भगवान विट्ठल को विट्ठोबा, पांडुरंग, पंढरिनाथ के नाम से भी जाना जाता है.
प्रत्येक वर्ष देवशयनी एकादशी के मौके पर पंढरपुर में लाखों लोग भगवान विट्ठल और रुक्मिणी की महापूजा देखने के लिए एकत्रित होते हैं. इस अवसर पर राज्यभर से लोग पैदल ही चलकर मंदिर नगरी पहुंचते हैं. हिंदूओं के इस विशेष स्थल पर प्रत्येक साल चार त्यौहार धूमधाम से मनाए जाते हैं. ये सभी त्यौहार यात्राओं के रूप में मनाए जाते हैं. इनमें सबसे ज्यादा श्रद्धालु आसाढ़ के महीने में एकत्रित होते हैं जबकि इसके बाद क्रमशः कार्तिक, माघ और श्रावण महीने की यात्राओं में सबसे ज्यादा तीर्थयात्री एकत्रित होते हैं. ऐसी मान्यता है कि ये यात्राएं पिछले 800 सालों से लगातार आयोजित की जाती रही हैं. लगभग 1000 साल पुरानी पालखी परंपरा की शुरुआत महाराष्ट्र के कुछ प्रसिद्ध संतों ने की थी. उनके अनुयायियों को वारकारी कहा जाता है जिन्होंने इस प्रथा को जीवित रखा. पालखी के बाद डिंडी होता है. वारकारियों का एक सुसंगठित दल इस दौरान नृत्य, कीर्तन के माध्यम से महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत तुकाराम की कीर्ति का बखान करता है. यह कीर्तिन अलंडि से देहु होते हुए तीर्थनगरी पंढरपुर तक चलता रहता है. यह यात्रा जून के महीने में शुरू होकर 22 दिनों तक चलता है. अक्टूबर से फरवरी का मौसम यहां आने का सबसे बेहतरीन समय माना जाता है जब आप यहां के आसपास के दर्शनीय स्थलों का ही नहीं बल्कि मंदिर के उत्सवों का भी आनंद ले सकते हैं. पंढरपुर में कुर्दुवादि रेलवे जंक्शन (KURDUVADI) से जुड़ा हुआ है. कुर्दुवादि जंक्शन से होकर लातुर एक्सप्रेस (22108), मुंबई एक्सप्रेस (17032), हुसैनसागर एक्सप्रेस (12702), सिद्धेश्वर एक्सप्रेस (12116) समेत कई ट्रेने रोजाना मुंबई जाती हैं. पंढरपुर से भी पुणे के रास्ते मुंबई के लिए चलती है ट्रेन.
सड़क मार्ग महाराष्ट्र के कई शहरों से सड़क परिवहन के जरिए जुड़ा है पंढरपुर. इसके अलावा उत्तरी कर्नाटक और उत्तर-पश्चिम आंध्र प्रदेश से भी प्रतिदिन यहां के लिए बसें चलती हैं. वायु मार्ग;निकटतम घरेलू एयरपोर्ट पुणे है जो लगभग 245 किलोमीटर की दूरी पर है. जबकि निकटतम अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट मुंबई में स्थित है. प्रमुख शहरों से दूरी संगोला से पंढरपुर की दूरी 32 किलोमीटर है. कुर्दुवादि जंक्शन की दूरी 52 किलोमीटर स्थित है. इसके अलावा सोलापुर 72 किलोमीटर, मिराज 128 किलोमीटर और अहमदनगर 196 किलोमीटर दूर स्थित है.
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