उत्तराखण्ड में कुमाऊंनी त्यौहारो का महत्व कम नजर आ रहा है- हरीश रावत ने कुमायूंनी रायता भेजा
19 जुलाई 20: उत्तराखण्ड में कुमाऊंनी त्यौहार का महत्व कम नजर आ रहा है- और संदेश के रूप में हरीश रावत ने मुख्यमंत्री को कुमायूंनी रायता भेजा- दरअसल कुमायूंनी रायता अपने स्वाद के लिए विशेष स्थान रखता है, हरीश रावत राजनीति में विनम्र राजनीति के प्रतीक है जो कभी भी अपना गुस्सा नाराजगी प्रकट नही करते है, बल्कि शांत और विनम्र होकर राजनीति का संदेश देते हैं, आज भी उन्होने एक नही अनेक संदेश दे दिये- जिससे खबर बीजेपी आलाकमान तक है
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस महासचिव हरीश रावत ने हरेला पर्व को लेकर सरकार को निशाने पर लिया। उन्होंने राज्य के इस पारंपरिक व सांस्कृतिक पर्व का महत्व इस बार कम नजर आ रहा है। इस पर्व की याद दिलाने को उन्होंने गणमान्य व्यक्तियों को रायता भेजा। वही चंद्रशेखर जोशी, केंद्रीय महासचिव कुर्मांचल परिषद देहरादून ने भी कहा कि कुमायूँ के इस महान लोक पर्व को वन महोत्सव के रूप में परिवर्तित कर इसके स्वरूप को बदला जा रहा है, उत्तराखंड के लोकप्रिय नेताओ श्री हरीश रावत, श्री भगत सिंह कोश्यारी जी, श्री अजय भट्ट जी से इस मामले में संज्ञान लेने का निवेदन किया था
फोकस ; उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस महासचिव हरीश रावत की विशेष रायता पार्टी को लेकर बीजेपी आलाकमान भी सतर्क हुआ है, हरीश रावत की यह रायता पार्टी दरअसल समाज के विभिन्न संगठनों को अपने साथ सक्रिय कर लुभाने और विरोधियों में हलचल पैदा करने का एक जरिया है, जिससे वो अपनी लगातार सक्रियता बनाये रख आवाम से जुड़े रहते है, वही रायता पार्टी के तुरंत बाद उत्तराखंड में सरकार लाकर करुगा प्रायश्चित का ऐलान कर खलबली मचा दी है, हमारे सूत्रों का कहना है कि बीजेपी आलाकमान भी कोई बड़ा निर्णय ले सकता है,
उन्होंने हरेला पर्व के उपलक्ष्य में पहाड़ में उत्पादित ककड़ी से तैयार रायते की पार्टी दी। इस सिलसिले में अपने राजपुर स्थित आवास पर उन्होंने चुनिंदा लोग ही बुलाए। उन्होंने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, राज्यपाल बेबी रानी मौर्य, स्पीकर प्रेमचंद अग्रवाल, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह, मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह, पुलिस महानिदेशक अनिल रतूड़ी को भी श्रावण संक्रांति व हरेला पर्व की शुभकामनाएं देते हुए रायता भिजवाया।
वही चंद्रशेखर जोशी, केंद्रीय महासचिव कुर्मांचल परिषद देहरादून ने भी कहा कि कुमायूँ के इस महान लोक पर्व को वन महोत्सव के रूप में परिवर्तित कर इसके स्वरूप को बदला जा रहा है, राज्य के इस पारंपरिक व सांस्कृतिक पर्व के बारे में उन्होने विस्तार से बताया
हरेला पर्व पर राज्य के इस पारंपरिक व सांस्कृतिक पर्व का महत्व इस बार कम नजर आने की चर्चा हो रही है। ज्ञात हो कि कुमाऊं अंचल में कुमाऊंनी पारम्परिक लोक कला का अपना एक इतिहास रहा है। लोक शिल्प डिकारे खेतों की सौंधी मिट्टी को लेकर बनी लक्ष्मी, गणेश, कौटिल्य व भगवान शिव की प्रतिमाओं को ही डिकारे कहा जाता है। डिकारे बनाने के लिए महिलाएं कई सप्ताह पूर्व खेतों की मिट्टी को कूटकर भिगोने के उपरांत उसमें रूई मिलाकर डिकरे तैयार करती है। उसके बाद शुरू होता है प्रतिमाओं का श्रृंगार। गिली मूर्तियों के सूख जाने के बाद चावल के घोल से तैयार बिस्वार से डिकारे की रूप सज्जा की जाती है। डिकारे निर्माण के समय महिलाएं मांगलिक गीत भी गाती है। डिकारे निर्माण के उपरांत कर्क संक्रांति से एक दिन पूर्व हरकाली पूजा की जाती है। दूसरे दिन श्रावण संक्रांति को देवी-देवताओं को हरेला अर्पित करने के बाद घर के सदस्यों के सिरों पर घर के बुजुर्ग महिलाएं शुभ आशीष वचनों के साथ धारण कराती है तथा सायंकाल के वक्त इन डिकारों को जल स्रोत के समक्ष विसर्जित किया जाता है। कुमाऊंनी अंचल में लोग जहां बेहद आस्था व श्रद्धा के साथ हरेला पर्व मनाते तो है परंतु आधुनिकता की दौड़ में अपनी परम्परा को पूरी तरह नहीं निभाते। विगत कई वर्षो से परम्पराओं को जीवित रखने की कोशिश करते पारम्परिक लोक कलाकार बबिता शाह लोहनी तयौहारों पर आधुनिकता के बढ़ते हस्तक्षेप से व्यथित है। कुर्मांचल परिषद की गढ़ी शाखा द्वारा हनुमान मंदिर में आयोजित कार्यक्रम में वो कहती है कि घर की बुजुर्ग महिलाएं इन परम्पराओं की असली गुरू की भूमिका निभा सकती है और आने वाली पीढ़ी तथा घर की बहू-बेटियों को इन त्यौहारों की जानकारी दें तो हमारी परम्पराएं शायद बच सकें।
CHANDRA SHEKHAR JOSHI- General Secretary (Central) Kurmanchal Parishad Dehradun Mob. 9412932030