आहत दलित परिवार गांधीनगर में धरना पर बैठे हैं
दलितों में गुस्सा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अब दलितों पर बयान दे रहे हैं लेकिन साथ में आरोप है कि उनके मुख्यमंत्री रहते भी इन्हें इन्साफ दिलाने के लिए कभी गंभीरता नहीं दिखाई गई।
अहमदाबाद: उना कांड के एक महीना होने पर काला दिन मनाया गया. साथ ही उतने ही गंभीर थानगढ़ कांड में न्याय के लिए 11 दिन से एक परिवार धरने पर बैठा है. थानगढ़ में 4 साल पहले 16 और 17 साल के बच्चे पुलिस फायरिंग में मारे गए थे. उना कांड में गुरुवार को भी सीआईडी ने 2 लोगों की गिरफ्तारी की और अब इस मामले में कुल गिरफ्तार लोगों की संख्या 36 हो गई है। इस मामले में तो लोगों का आक्रोश उठा तो कार्रवाई हुई। लेकिन इतना आक्रोश उठने के पीछे जो वजहें हैं वो जिस घटना ने उजागर की हैं, वो है थानगढ़ की घटना।
सुरेन्द्रनगर के थानगढ़ में 23 सितम्बर 2012 को दलितों और गोपालक समुदाय के बीच में थोड़ा झगड़ा हुआ, घटनास्थल पर पुलिस पहुंची तो स्थिति को नियंत्रण में लेने के बहाने गोलीबारी की। 16-17 साल के तीन लड़कों की छाती में गोली लगने से मौत हो गई। दलितों का आक्रोश उमड़ा तो एक पुलिसकर्मी को सस्पेन्ड कर दिया गया, जिसे मामला ठंडा होने पर फिर बहाली दे दी गई और अब तक किसी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
आहत दलित परिवार अपने शुभचिन्तकों के साथ न्याय की मांग को लेकर 11 दिन से गांधीनगर में धरना पर बैठे हैं। मारे गए एक 16 साल के लड़के मेहुल के पिता वालजी राठौड़ का कहना है कि उन्होंने शुरुआत में ही सीबीआई जांच की मांग की थी क्योंकि जो पुलिस खुद कठघरे में है वो कैसे सही जांच कर पाएगी। लेकिन हमारी बात अनसुनी कर दी गई। इस मामले में जांच करने के लिए उस वक्त के सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग के सेक्रेटरी संजय प्रसाद को जिम्मेदारी दी गई थी। उन्होंने जांच रिपोर्ट राज्य के गृह विभाग को सौंप दी, लेकिन वह भी पीड़ितों को नहीं दी जा रही है। दलितों में गुस्सा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अब दलितों पर बयान दे रहे हैं लेकिन साथ में आरोप है कि उनके मुख्यमंत्री रहते भी इन्हें इन्साफ दिलाने के लिए कभी गंभीरता नहीं दिखाई गई। यहां तक कि इस मामले में आई जांच रिपोर्ट तक इन्हें नहीं दी जा रही है। यहां तक कि तीन मौतों में से दो में तो सी समरी – यानि कोई दोषी नहीं की रिपोर्ट भी की जा चुकी है।
दलित न्याय के लिए काम करने वाली कार्यकर्ता मंजुला प्रदीप का कहना है कि जो पुलिस आरोपी है उनको सस्पेन्ड किया थोड़े समय के लिए, उसके बाद क्या, वो जेल में नहीं हैं, अभी भी। अब राज्य सरकार राज्य में कैसे उदाहरण पेश कर पाएगी कि जब पुलिसवाले कानून को अपने हाथ में लेते हैं तो हम उनके खिलाफ कार्रवाई करते हैं।
उनका कहना है कि अगर सरकार सही में दलितों को न्याय दिलाने के लिए संजीदा है तो हाईकोर्ट के दो जजों की कमेटी बनाकर इसमें गंभीरता से जांच करनी चाहिए। देश में पहली बार दलित चेतना के लिए इतने लोग खड़े होते दिख रहे हैं। इस बीच उना कांड को एक महीना होने पर इन्होंने 11 अगस्त को काला दिवस के तौर पर मनाया।