संयुक्त राष्ट्र की भ्रामक, पक्षपातपूर्ण और पूर्वाग्रह से प्रेरित’ रिपोर्ट
संयुक्त राष्ट्र ने कश्मीर और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में कथित मानवाधिकार उल्लंघन पर अपनी तरह की पहली रिपोर्ट गुरुवार को जारी की और इन उल्लंघनों की अंतरराष्ट्रीय जांच कराने की मांग की. रिपोर्ट पर तीखी प्रतिक्रिया जताते हुए भारत ने इसे ‘भ्रामक, पक्षपातपूर्ण और पूर्वाग्रह से प्रेरित’ बताकर खारिज कर दिया और संयुक्त राष्ट्र में अपना कड़ा विरोध दर्ज कराया. विदेश मंत्रालय ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि रिपोर्ट पूरी तरह से पूर्वाग्रह से प्रेरित है और गलत तस्वीर पेश करने का प्रयास कर रही है.
मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि यह देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन है. मंत्रालय ने कहा कि यह रिपोर्ट भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करती है. सम्पूर्ण जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है.
भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि मैं इस रिपोर्ट को कचरे में फेंक दूंगा। वे (UNOHCR) अति पूर्वाग्रहित वामपंथ (Left) वर्चस्व वाला संगठन है। हमें उन्हें कहना चाहिए- दफा हो जाओ। हम उन लोगों द्वारा लिखी गई रिपोर्टों पर टिप्पणी नहीं करते हैं जो इस विषय के बारे में नहीं जानते हैं।
I would throw the report in the dustbin. They (UNOHCHR) are highly-prejudiced left dominated organisation. We should say to them, ‘to hell with you’. We don’t comment on reports written by people who don’t know about the subject: Subramanian Swamy, BJP on UN report on Kashmir.
वरिष्ठ भाजपा नेता राम माधव ने कहा कि ऐसा लगता है कि कुछ किशोरों द्वारा रिपोर्ट तैयार की गई है। वे वास्तव में समस्या की जटिलताओं को नहीं जानते हैं। मानव अधिकारों के बारे में बात करना बहुत ही फैशनेबल है। हम इस रिपोर्ट को अस्वीकार करते हैं।
पाकिस्तान ने भारत के इस राज्य के एक हिस्से पर अवैध और जबरन कब्जा कर रखा है.
मानवाधिकार उच्चायुक्त के संयुक्त राष्ट्र कार्यालय ने पाकिस्तान से शांतिपूर्वक काम करने वाले कार्यकर्ताओं के खिलाफ आतंक रोधी कानूनों का दुरुपयोग रोकने और असंतोष की आवाज के दमन को भी बंद करने को कहा. रिपोर्ट में कहा गया है कि मानवाधिकार उल्लंघन की अतीत की और मौजूदा घटनाओं के तुरंत समाधान की जरूरत है. इसमें कहा गया है, ‘कश्मीर में राजनीतिक स्थिति के किसी भी समाधान में हिंसा का चक्र रोकने के संबंध में प्रतिबद्धता और पूर्व में तथा मौजूदा मानवाधिकार उल्लंघनों को लेकर जवाबदेही होनी चाहिए.’
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘नियंत्रण रेखा के दोनों तरफ लोगों पर नुकसानदेह असर पड़ा है और उन्हें मानवाधिकार से वंचित किया गया या सीमित किया गया.’जम्मू कश्मीर और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के बीच कोई तुलना नहीं हो सकती क्योंकि जम्मू कश्मीर में लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार है जबकि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में मनमाने तरीके से पाकिस्तानी राजनयिक को वहां का प्रमुख नियुक्त किया जाता है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल ने कहा कि जम्मू-कश्मीर पर यूएनएचआरसी की रिपोर्ट शरारती और भ्रामक है। हम भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के लिए इस तरह के किसी भी काम को खारिज करते हैं क्योंकि जम्मू-कश्मीर भारत का एक अभिन्न हिस्सा है। सरकार रिपोर्ट के साथ निपटने के लिए हमारे पूर्ण समर्थन की हकदार है।
कश्मीर में मानवाधिकार की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में ‘जून 2016 से अप्रैल 2018 तक भारतीय राज्य जम्मू कश्मीर में घटनाक्रम और आजाद जम्मू कश्मीर तथा गिलगित-बालटिस्तान में मानवाधिकार से जुड़ी आम चिंताएं’ विषय को शामिल किया गया है.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 1980 के दशक के अंत से जम्मू कश्मीर राज्य में विभिन्न तरह के हथियारबंद समूह सक्रिय हैं. भारतीय सुरक्षा बलों के हाथों हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद घाटी में अप्रत्याशित विरोध प्रदर्शन का भी जिक्र रिपोर्ट में किया गया है.
इस तरह के प्रत्यक्ष सबूत हैं कि इन समूहों ने आम नागरिकों का अपहरण और उनकी हत्याएं, यौन हिंसा सहित विभिन्न तरह से मानवाधिकारों का उल्लंघन किया है.
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि यह मुद्दा 1994 के रिजॉल्यूशन के साथ समाप्त होता है, जिसे सभी राजनीतिक दलों द्वारा समर्थन दिया गया था। यदि भारत और पाकिस्तान के बीच जम्मू-कश्मीर के संबंध में कोई बकाया मुद्दा है, तो केवल यही है कि हमें पीओके को कैसे हासिल करना है। The issue ends with 1994 resolution, which was endorsed by all the political parties. If there is any outstanding issue between India & Pakistan as far as J&K is concerned, it is only that how we have to retrieve the PoK: Jitendra Singh, MoS PMO on UN reports on Kashmir.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इन समूहों को किसी भी तरह के समर्थन से पाकिस्तान सरकार के इंकार के दावों के बावजूद विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तानी सेना नियंत्रण रेखा के पार कश्मीर में उनकी गतिविधियों में सहयोग करती है.’
रिपोर्ट में सशस्त्र बल (जम्मू कश्मीर) विशेषाधिकार कानून, 1990 को तुरंत निरस्त करने और मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपी सुरक्षा बलों के खिलाफ अदालतों में मुकदमा चलाने के लिए केंद्र सरकार से पूर्व की अनुमति की बाध्यता को भी हटाने की मांग की गई है.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) ने पहली बार कश्मीर और पीओके में कथित मानवाधिकार उल्लंघन पर कोई रिपोर्ट जारी की है.
इस रिपोर्ट पर भारतीय अधिकारियों का कहना है कि जम्मू-कश्मीर और पाक अधिकृत कश्मीर में किसी भी तरह की तुलना नहीं की जा सकती, क्योंकि जम्मू-कश्मीर में जहां लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार है, पीओके में किसी पाकिस्तानी राजनयिक को मनमाने तरीके से प्रमुख नियुक्त कर दिया जाता है।
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