यूपी की राजनीति -बहुजन से ब्राह्मणों की तरफ़ -मायावती का ब्राह्मण कार्ड

ब्राह्मणों की नाराज़गी से बीजेपी घबराई #ब्राह्मण पिछले कई दशकों से सत्ताच्युत चले आ रहे # मायावती ने कहा कि बीजेपी सरकार में ब्राह्मण दुखी हैं # आज़ादी के तत्काल बाद से ही यूपी की सत्ता के गलियारे ब्राह्मण नेतृत्व की चकाचौंध से जगमगाते रहे हैं। केंद्र में जवाहरलाल नेहरू और प्रदेश में गोविंदबल्लभ पंत ब्राह्मण दंड-ध्वजा को सहेजने वाले राज नेता के रूप प्रतिध्वनित होते रहे हैं।यूपी में योगी आदित्यनाथ के कथित ‘ठाकुरवाद’ के बरअक्स त्राहिमाम-त्राहिमाम का जाप करते उन 12% नाराज़ ब्राह्मण मतदाताओं को पुचकारना योगी आदित्यनाथ को बिलकुल किनारे करके यह जताना कि यूपी की सियासत में उनके बिना भी बहुत कुछ किया जा रहा है।

यूपी में ब्राह्मण सीएम की संभावना तो नहीं है, लेकिन वे चाहते हैं कि उन्हें सम्मान तो मिलना चाहिए। ज़्यादातर राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इस बार यूपी की राजनीति बहुजन से ब्राह्मणों की तरफ़ जा रही है और प्रयाग से वाराणसी तक की गंगा यात्रा करने वाली कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा से लेकर अखिलेश यादव और मायावती तक हर कोई ब्राह्मणों को रिझाने की कोशिश कर रहा है। विकास दुबे की हत्या ने इस राजनीति को हवा दी है। ग़ुस्से का एक बड़ा कारण कहा जा रहा है कि प्रदेश में पहले मुसलमानों के फर्जी एनकाउंटर होते थे, अब ब्राह्मण इसके शिकार हो रहे हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी इन दिनों यूपी में ब्राह्मणों को मनाने में लगी हैं।   तो अब बीएसपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने अपना ब्राह्मण कार्ड खेल दिया है।

बीएसपी ने 23 जुलाई से यूपी के 18 मंडलों में ब्राह्मण सम्मेलन करने का ऐलान किया है। इन सम्मेलनों की ज़िम्मेदारी पार्टी ने महासचिव सतीशचन्द्र मिश्र को सौंपी है और शुरुआत होगी अयोध्या से। बीजेपी में अभी ब्राह्मण बनाम ठाकुर राजनीति का विवाद चल रहा है।

मायावती ने कहा कि बीजेपी सरकार में ब्राह्मण दुखी हैं जबकि पिछले चुनाव में उन्होंने बीजेपी को एकतरफ़ा वोट दिया था। इस बार दलित ब्राह्मण फिर एक बार साथ आएँगे। कांग्रेस से बीजेपी में आए जितिन प्रसाद की वजह से हुए राजनीतिक हंगामे का कारण भी जितिन प्रसाद का ब्राह्मण होना है। वरना अपने पिता जितेन्द्र प्रसाद के निधन के बाद राजनीति में आए जितिन लगातार दो लोकसभा चुनाव और एक विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। 

पूर्वांचल बीजेपी से जुड़े एक महत्वपूर्ण ब्राह्मण राजनेता ने जवाब दिया “चलिए बीजेपी में ब्राह्मणों की पूछ तो शुरू हुई। जितिन प्रसाद को शाहजहांपुर और लखीमपुर खीरी से बाहर का भले ही इक्को ब्राह्मण न जानता होय, लेकिन इससे यह तो साबित होता ही है कि उन दो-ढाई करोड़ ब्राह्मणों की नाराज़गी से बीजेपी घबराई हुई है जो पिछले 30 -32 सालों से उनकी चाकरी में लगे हुए थे लेकिन जिन्हें कभी पूछा नहीं गया।” अगले साल होने वाले 5+2 राज्यों के विधानसभा चुनावों की पूर्व बेला में कांग्रेस के नेता जितिन प्रसाद को ब्राह्मण नेता के रूप में सजा-संवार कर पार्टी की झोली में समेट लेने से बीजेपी ढोल-टाँसे पीट कर एक तीर से तीन आखेट कर लेना चाहती है। कुल चार अन्य विभूतियाँ (कमलापति त्रिपाठी, हेमवतीनंदन बहुगुणा, नारायणदत्त तिवारी और श्रीपति मिश्र) ही ब्राह्मण समुदाय से उप्र के मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुईं

ब्राह्मण नेता निशंक को मंत्रिमंडल से विदाई का उत्तराखण्ड में नकारात्मक असर पड़ा,

मोदी मंत्री मंडल में यूपी से नए मंत्रियों में ओबीसी और एससी वर्ग का बोलबाला रहा, जबकि सिर्फ एक ही ब्राह्मण नेता को मौका दिया गया, जबकि यह समुदाय राज्य में एक प्रभावशाली वर्ग है।-यूपी से आने वाले मंत्रियों में आखिरी मिनट में जो बदलाव हुए, उनमें सीएम योगी आदित्यनाथ का काफी प्रभाव रहा।–कैबिनेट फेरबदल में एक चौंकाने वाला फैसला रविशंकर प्रसाद और प्रकाश जावड़ेकर की विदाई से जुड़ा रहा। दोनों ही नेताओं को को जिस तरह उनके पद से बेदखल किया गया, वह कहीं से भी सम्मानजनक विदाई नहीं थी। ब्राह्मण नेता निशंक को मंत्रिमंडल से विदाई का उत्तराखण्ड में नकारात्मक असर पड़ा,

यूपी की राजनीति में ठाकुर बनाम ब्राह्मण का टेंशन तो चलता ही है, अभी यह माहौल बनाया गया कि यूपी के ब्राह्मण मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ठाकुर राजनीति से नाराज़ हैं। ख़ुद जितिन प्रसाद पिछले साल जुलाई से ब्राह्मण चेतना मंच बना कर योगी सरकार का विरोध कर रहे थे।

वैसे, योगी सरकार में एक उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा के अलावा 8 ब्राह्मण मंत्री हैं। इनमें रीता बहुगुणा, ब्रजेश पाठक और श्रीकांत शर्मा जैसे नाम शामिल हैं। संभावित मंत्रिमंडल में भी कुछ नए ब्राह्मण नाम जुड़ सकते हैं।

साल 2017 के यूपी विधानसभा चुनावों के बाद हुए सीएसडीएस के सर्वे के मुताबिक़ 2017 में 80 फ़ीसदी ब्राह्मणों ने बीजेपी को वोट दिया, इससे पहले 2014 के आम चुनाव में 72 फ़ीसदी और 2019 में 82 फ़ीसदी ब्राह्मणों का वोट बीजेपी को मिला। जबकि 2007 में जब बीएसपी ने ब्राह्मणों के साथ नया तालमेल कर सरकार बनाई थी तब बीजेपी को 40 फ़ीसदी ब्राह्मणों के वोट मिले और 2012 में मुलायम सिंह के वक़्त 38 फ़ीसदी ब्राह्मणों ने बीजेपी को वोट दिया। 1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने से पहले ज़्यादातर ब्राह्मण कांग्रेस के साथ रहते थे।

कांग्रेस के सबसे ताक़तवर मुख्यमंत्रियों में से एक यूपी में कमलापति त्रिपाठी 1971 से 1973 तक रहे, फिर उनके ख़िलाफ़ बग़ावत करके हेमवती नंदन बहुगुणा 1973 से 1975 तक सीएम रहे और जब संजय गांधी से नाराज़गी के कारण उन्हें हटना पड़ा तो इमरजेंसी के वक़्त तीसरे ब्राह्मण नारायण दत्त तिवारी बने। तीसरी और अख़िरी बार तिवारी को जून 1988 से दिसम्बर 1989 तक मुख्यमंत्री बनाया गया। तिवारी को तो कांग्रेस ने फिर से 2002 से 2007 तक उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाया।

2007 में जब बीएसपी ने सरकार बनाई तब उसे 206 सीटें मिलीं। उस वक़्त उसके 51 में से 20 ब्राह्मण उम्मीदवार विधानसभा पहुँचे थे। तब उसे तीस फ़ीसदी वोट मिले थे। 2012 में 51 में से सिर्फ़ 7 और 2017 में 52 में से सिर्फ़ 4 ब्राह्मण विधायक बने, और पार्टी सत्ता से बहुत दूर रही।

अब बीएसपी अकेली पार्टी है जिसके लोकसभा और राज्यसभा दोनों में नेता ब्राह्मण हैं। इसने लोकसभा में दानिश अली को हटा कर आम्बेडकर नगर से सांसद रितेश पांडे को नेता बनाया, जबकि सतीश मिश्रा राज्यसभा में नेता हैं।

यूपी में राजपूत और ब्राह्मणों के बीच राजनीतिक दुश्मनी किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में योगी आदित्यनाथ पर बार-बार ठाकुर राजनीति चलाने का आरोप लगता रहा है। कांग्रेस ने 2009 में 21 सीटें जीती थीं, जिनमें से 18 पूर्वी उत्तर प्रदेश से थीं जिसके सात ज़िलों में ब्राह्मण प्रभावी हैं और शायद इसीलिए प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी महासचिव बनाया गया।

ब्राह्मणों और सवर्णों को खुश करने के लिए बीजेपी ने सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण में कमजोर आर्थिक लोगों के लिए 10 फ़ीसदी जगह दे दी। कांग्रेस और बीएसपी ने भी इस संवैधानिक संशोधन का समर्थन किया था लेकिन सवर्णों ने माना कि यह बीजेपी की वजह से मुमकिन हो पाया।

कांग्रेस ने 2007 में रीता बहुगुणा को ब्राह्मण चेहरे के नाम पर पार्टी का यूपी अध्यक्ष बनाया साल 2012 तक, लेकिन वो 2016 के अक्टूबर में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गईं। साल 2017 के चुनावों से पहले कांग्रेस ने दिल्ली की तीन बार मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित को भी ब्राह्मण चेहरा होने की वजह से मुख्यंमत्री पद का उम्मीदवार बनाने की कोशिश की, लेकिन फिर चुनावों के बीच में ही कांग्रेस को राहुल और अखिलेश का साथ पसंद आ गया और अखिलेश चेहरा बन गए।

कांग्रेस के सबसे ताक़तवर मुख्यमंत्रियों में से एक यूपी में कमलापति त्रिपाठी 1971 से 1973 तक रहे, फिर उनके ख़िलाफ़ बग़ावत करके हेमवती नंदन बहुगुणा 1973 से 1975 तक सीएम रहे और जब संजय गांधी से नाराज़गी के कारण उन्हें हटना पड़ा तो इमरजेंसी के वक़्त तीसरे ब्राह्मण नारायण दत्त तिवारी बने। तीसरी और अख़िरी बार तिवारी को जून 1988 से दिसम्बर 1989 तक मुख्यमंत्री बनाया गया। तिवारी को तो कांग्रेस ने फिर से 2002 से 2007 तक उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाया।

पुरातन काल में एक ब्राह्मण चाणक्य ने मगध में वैदिक संस्कृति को बचाने के लिए मगध की सत्ता को पलट दिया था। आज भारत देश की सनातन संस्कृति को बचाने के लिए ब्राह्मण क्या कर रहे हैं ?

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