उत्तराखंड -4 समस्याओ ने लिया भयंकर रूप ;शिक्षा, रोजगार और पलायन, स्वास्थ्य – सन्न रह जायेगे रिपोर्ट कार्ड पढ कर ;
13 JANUARY 2022# www.himalayauk.org (Leading Newsportal & Daily Newspaper) Publish at Dehradun & Haridwar # ChaandraShekhar Joshi Group Editor;
शिक्षा स्वास्थ और रोजगार पर कोई प्रयास नही हुऐ। स्वास्थ्य सेवाऐं हुई और बदहाल।
उत्तराखंड एक ऐसा राज्य बन गया है जहां 4 समस्याएं भयंकर रूप ले रही है शिक्षा, रोजगार और पलायन, स्वास्थ्य । खासकर पहाड़ी भूभाग में। क्योंकि यह तीनों समस्याएं आपस में जुड़े हुए हैं ।इसलिए तीनों ही समस्याओं का समाधान करना अति आवश्यक है। पहाड़ में बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए सरकारी स्कूलों की हालत बहुत खराब है।इसलिए मां-बाप बच्चों को लेकर शहर पलायन कर जाते हैं ।
दूसरी समस्या रोजगार की। अगर अच्छी शिक्षा नहीं होगी तो रोजगार भी नहीं मिलेगा। इसलिए हाईस्कूल इंटरमीडिएट पढ़े बच्चे छोटे-मोटे रोजगार की तलाश में या तो राज्य के दूसरे शहरों में निकल जाते हैं या फिर राज्य से के बाहर।यह उन युवाओं का गांव से पलायन नहीं होता बल्कि वह अपने जीवन की खुशियों व सुकून से पलायन कर जाते हैं।
प्रकृति ने अपार प्राकृतिक सौंदर्य से नवाजा है उत्तराखंड को ।ऊंचे ऊंचे पहाड़ ,नदियां, तालाब, झीलें ,सदाबहार हिम से ढकी हिमालय की शानदार चोटियों, अनगिनत जड़ी बूटियां, विभिन्न प्रकार की फसलें, फल-फूल साथ ही साथ भगवान शिव का निवास स्थान ( कैलाश (हिमालय), बागेश्वर ,जागेश्वर ,केदारनाथ), मां सती के अनेकों धाम ( पूर्णागिरि और नैना देवी)।और उत्तराखंड का विस्मित कर देने वाला भू भाग आधा पहाड़ और आधा मैदान।फिर भी उत्तराखंड के युवा बेरोजगार ?? और उत्तराखंड में बेरोजगारी ( Unemployment) ???
उत्तराखंड के पहाड़ों से पलायन
बेरोजगार युवा अपने गांव, अपनी भूमि छोड़ने को मजबूर !!! उत्तराखंड के यही पहाड़ क्या युवाओं की बेरोजगारी और पलायन का कारण बन गए हैं ? क्योंकि बेरोजगारी भी युवाओं के पलायन का एक अहम कारण बन गया है।पढ़े-लिखे नौजवान अपना गांव, अपना शहर छोड़कर रोजगार की तलाश में राज्य के दूसरे शहरों में चले जाते हैं।या फिर राज्य के बाहर निकल पड़ते हैं।
डेढ़ करोड़ की आबादी वाले उत्तराखंड में लगभग 10 लाख युवा बेरोजगार घूम रहे हैं।आज से लगभग 18 साल पहले जब राज्य की स्थापना हुई थी।तब इन बेरोजगारों की संख्या 2:50 लाख से 3 लाख के बीच में थी।
हर साल लगभग एक लाख युवा बेरोजगारों की लिस्ट में शामिल होते जा रहे हैं।इसमें पुरुषों की संख्या ज्यादा लगभग 6 लाख और महिलाओं की संख्या लगभग चार लाख के आसपास है। लेकिन देहरादून में यह स्थिति अलग है। वहां पर महिला बेरोजगारों की संख्या ज्यादा है।ये आंकड़े वाकई में डराते हैं।
इस राज्य में भी रोजगार की अपार संभावनाएं हैं।मगर कभी भी किसी सरकार ने ईमानदार कोशिश ही नहीं की। चाहे सरकार किसी भी पार्टी की हो।बस एक दूसरे में आरोप-प्रत्यारोप लगाने के अलावा कुछ नहीं करते। और सिर्फ सफेद कागजों में लिखी अपनी उपलब्धियों को गिनाने में ही रह जाते हैं।मगर कोई भी सरकार बेरोजगारों के इन आंकड़े को नहीं देखती है।
उत्तराखंड पलायन से जूझ रहा है। पलायन की सबसे बड़ी वजह है रोजगार की कमी। इस कमी को दूर करने के लिए प्रदेश सरकार अपनी तरफ से हर कोशिश कर रही है। प्रदेश में उद्योंगों को बढ़ावा मिल रहा है, अलग-अलग विभागों में भर्तियां निकाली जा रही हैं, लेकिन इसके बावजूद बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है। प्रदेश में बेरोजगारी की दर Unemployment rate Uttarakhand 14.2 आंकी गई है, जो कि साल 2003-04 की तुलना में 7 गुना ज्यादा है, ये खुलासा एनएसओ के सर्वे में हुआ। केंद्रीय श्रम बल सर्वेक्षण ने जो आंकड़े जारी किए हैं, वो प्रदेश के नियोजन विभाग की सर्वे रिपोर्ट से करीब 3 गुना ज्यादा हैं। साल 2017 में प्रदेश के नियोजन विभाग ने मानव विकास रिपोर्ट तैयार करते समय प्रदेश में बेरोजगारी को लेकर सर्वे किया था। ये रिपोर्ट साल 2019 में जारी हुई। जिसके मुताबिक उत्तराखंड में बेरोजगारी की दर 4.2 बताई गई थी। 2003-04 में यह दर मात्र 2.1 प्रतिशत थी। रिपोर्ट में ये भी बताया गया था कि प्रदेश में किसी न किसी तरह के रोजगार में लगे लोगों की संख्या (वर्क पार्टिसिपेशन ) करीब 45 प्रतिशत है।
चुनाव के वक्त कुछ नेता बेरोजगार युवाओं को रोजगार देने का लॉलीपॉप जरूर थमा कर चले जाते हैं।योजनाओं की घोषणा करते हैं।कुछ विभागों का भी गठन करते हैं जैसे युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ने की योजना हो या पलायन रोकने के लिए बनाया गया नया विभाग कौशल विकास एवं सेवा योजना विभाग का गठन हो।ऐसा लगता है नेताओं और आने जाने वाली सरकारों के लिए यह एक बढ़िया चुनावी मुद्दा है।
उत्तराखंड का आधा भू भाग जो पहाड़ है उसमें एक से एक खूबसूरत व शानदार जगह हैं।कहीं पर पवित्र धाम है ,तो कहीं पर खूबसूरत वादियां ,तो कहीं से अद्भुत हिमालय दर्शन होता है ,और कोई शहर झीलों का शहर (जिला नैनीताल) है तो कहीं आप पैराग्लाइडिंग का मजा ले सकते हैं, पर्वतारोहण के साथ-साथ स्नो स्कीइंग (ओली) का मजा भी आराम से लिया जा सकता है।
यहां पर पर्यटन की कितनी संभावनाएं हैं ।जरूरत है बस एक शानदार योजना बनाकर और इस क्षेत्र में पढ़े लिखे योग्य युवाओं को इस योजना से जोड़कर उस को धरातल में लाने की।
एक से एक अनोखी और अद्भुत जड़ी बूटियां भी इसी उत्तराखंड की पहाड़ियों में मिलती है जैसे कीड़ाजड़ी, शिलाजीत( जो कई बीमारियों को ठीक करने के काम आता है ),शेकवा, गंदराय, ब्रह्म कमल का फूल, भोजपत्र की छाल ,ऐसी ही न जाने कितनी जड़ी बूटियां हैं जो इन पहाड़ों में पग-पग पर मिलती है।
बस उनकी पहचान कर जो युवा इस क्षेत्र में प्रशिक्षित हैं। या नए युवाओं को प्रशिक्षित कर उनको प्रोत्साहित कर इस क्षेत्र में काम किया जा सकता है।कुछ फार्मासिटिकल कंपनियों और स्थानीय लोगों के बीच तालमेल बनाकर इन जड़ी बूटियों का दोहन किया जाए तो राजस्व तो बढ़ेगा ही बढ़ेगा और स्थानीय युवाओं को रोजगार भी मिलेगा।
एनएसओ के श्रम बल सर्वे ने साफ कर दिया है कि प्रदेश में बेरोजगारी Unemployment rate Uttarakhand इससे कई गुना ज्यादा है। एनएसओ की रिपोर्ट के मुताबिक मार्च 2019 में प्रदेश में बेरोजगारी दर 14.2 पाई गई। कुल काम करने वाले लोगों का प्रतिशत भी मात्र 23 पाया गया। इस हिसाब से प्रदेश में साल 2003-04 की तुलना में बेरोजगारी सात गुना बढ़ी है। इस रिपोर्ट में बेरोजगारी के कारण भी सामने आए हैं। सर्वे में पता चला कि प्रदेश में खेती-किसानी कम हो रही है।
ऐसे ही पहाड़ो में उगने वाले वाले कुछ फसलों ,फल और फूल है। जो चमत्कारिक ढंग से शक्तिवर्धक, शरीर को स्वस्थ रखने और शक्ति प्रदान करने में और कई बीमारियों के इलाज में काम आते हैं। अगर उन फसलों और फलों को उगाने की वैज्ञानिक विधि अपनाई जाए ।अच्छे बीजों का प्रबंध किया जाए और युवाओं को सीधे-सीधे उन से जोड़ा जाए ।
फसल पकने पर उचित बाजार व मूल्य उपलब्ध कराया जाए तो रोजगार की समस्या कुछ तो हल हो ही जाएगी ।क्योंकि पहाड़ों में उगने वाले फल आधे से ज्यादा तो नष्ट हो जाते हैं। क्योंकि एक बार फल पकने के बाद अत्यधिक समय तक सुरक्षित नहीं रह सकते और उनको सुरक्षित रखने के लिए पहाड़ के लोगों के पास कोई सुविधा नहीं है।
धारचूला और मुनस्यारी के लोगों के पास एक अद्भुत हुनर है।जो वहां के विशिष्ट पहचान भी है।दन, कालीन, कंबल या ऊनी वस्त्रों को बनाने का उन लोगों को विशेष हुनर उनके पूर्वजों से मिला है।अगर उनके हुनर को तराशकर सरकार योजनाएं बनाकर उनको बाजार उपलब्ध कराएं और उनकी मेहनत का पूरा मूल्य दिलाएं तो वो अपना घर क्यों छोड़गे ?
इसी तरह उसी क्षेत्र के लोग कुछ समय पहले तक भेड़ ,बकरी पालन काफी अत्यधिक मात्रा में करते थे।इनसे प्राप्त होने वाले उन से ऊनी वस्त्र बनाए जाते थे ।जो दिखने में अति सुंदर और पहनने में बहुत ही सुविधाजनक व गर्म होते थे।लेकिन बाजार उपलब्ध ना होने के कारण युवाओं का इस के प्रति आकर्षण बहुत कम हो गया है ।अगर इसे उद्योग के रूप में बनाया जाए और स्थानीय युवाओं को प्रोत्साहित कर इस क्षेत्र में प्रशिक्षित किया जाए तो इससे ऊन ,दूध व मांस को एक उद्योग के रूप में विकसित किया जा सकता है जो कमाई का बहुत अच्छा साधन बन सकता है।
ऐसे ही हमारी कुछ सांस्कृतिक एवं पारंपरिक धरोहर हैं ।जो हमें विरासत में मिली है।कुछ ऐसे ही धार्मिक आयोजन ,सांस्कृतिक कार्यक्रम जो समय-समय पर लगभग पूरे उत्तराखंड में आयोजित किए जाते हैं। कुछ अनोखे प्रकृति से व अपनी धरती से जुड़े हुए त्यौहार भी उत्तराखंड में मनाए जाते हैं।अगर इनको सही ढंग से संवारा व संरक्षित किया जाए। फिर उनका सही प्रचार और प्रसार किया जाए तो पर्यटक निश्चित रूप से उनका आनंद लेने उत्तराखंड जरूर आएंगे।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को देश के सबसे अलोकप्रिय मुख्यमंत्रियों में दूसरे स्थान पर रखे जाने के ठीक चारदिन बाद ;;; गैरसैंण को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया गया है. क़रीब पचास करोड़ से भी अधिक क़र्ज़ के तले दबे उत्तराखंड में जहां कर्मचारियों का वेतन भी ऋण लेकर दिया जा रहा है, वहां सरकार के दो राजधानियों को चला सकने के फ़ैसले पर सवाल उठना लाज़मी है.
और जो लोग पहाड़ों से पलायन कर गए हैं। उनके खाली पड़े मकानों को तथा खेतों को सरकार मकान मालिक की अनुमति लेकर अपने कब्जे में लेकर उसको कृषि योग्य भूमि बनाकर किसी नए तरह की खेती का प्रयोग भी कर सकती है ।और इन मकानों को जरूरत के अनुसार मरम्मत करा कर फिर से चमकाया जा सकता है।और पर्यटकों को सस्ती दर में उपलब्ध कराया जा सकता है।जिससे खेत व मकान के मालिक को कुछ आय प्राप्त होगी और सरकार को भी राजस्व की प्राप्ति होगी व आमदनी के स्रोत बढ़ेंगे।
एक सर्वेक्षण एजेंसी द्वारा अपने एक सर्वे में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को देश के सबसे अलोकप्रिय मुख्यमंत्रियों में दूसरे स्थान पर रखा था ;;; हाईकोर्ट ने त्रिवेंद सिंह रावत के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की सीबाआई जांच का आदेश दिया था, जिसके बाद रावत ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया
नैनीताल, 27 अक्टूबर 2020। जिला एवं सत्र न्यायाधीश व विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण राजीव खुल्बे की अदालत ने बुधवार को 500 करोड़ रुपए से अधिक के चर्चित एनएच मुआवजा घोटाला मामले में सुनवाई करते हुए 87 आरोपितों को नोटिस जारी कर 21 नवंबर को कोर्ट में तलब किया था।
२८ अक्टूबर 2020 उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की सी.बी.आई. जांच का आदेश देना एक गंभीर घटना थी. उच्च न्यायालय की एकल पीठ द्वारा सी.बी.आई. को एफ.आई.आर.दर्ज करके मुख्यमंत्री के खिलाफ जांच के आदेश देने की घटना ने भाजपा के भ्रष्टाचार के जीरो टॉलरेंस के नारे की हवा निकाल कर रख दी थी.
24 अक्टूटूबर 2020; उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री , जो प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री, लोक निर्माण मंत्री, वित्तमंत्री, पेयजल मंत्री भी है, उनकी विधानसभा डोईवाला में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार की बदहाल स्थिति जानकर सन्न रह जाएंगे आप, मुख्यमंत्री की विधानसभा में अगर एक सर्वे किया जाय तो पूरे प्रदेश की हकीकत सामने आ जाएगीवही , उत्तराखंड विधानसभा चुनाव की आहट सुनाई देने लगी है, चुनावों में शिक्षा, चिकित्सा राज्य गठन के बाद से मुद्दा रहा है, यही कारण है कि सूबे के मुख्यमंत्री अपनी विधानसभा से जीतने वाले प्रत्याशी नही रहे है, यह भी एक मुद्दा रहा है. कोरोना काल के अलावा आम दिनों में सूबे के स्वास्थ्य मंत्री जो मुख्यमंत्री है, उनके विधान सभा इलाके में स्वास्थ्य सेवाओं की सेहत कैसी है? सन्न करने वाले विवरण है, इसका जायजा ग्राउंड जीरो पर लिया जाय तो मुख्यमंत्री की वीवीआईपी विधान सभा में सुविधाओं युक्त सरकारी अस्पताल ही नही है. वही पूरे विधान सभा मे मुख्यमंत्री के योजनाओं के लोकार्पण के चमचमाता बोर्ड तो बेशुमार है…लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं की विधानसभा में सांस उखड़ रही है. इस वीवीएआई विधानसभा के अस्पताल में वेंटीलेटर तथा डॉक्टर नही हैं. जबकि “यह स्वास्थ्य मंत्री का इलाका है लेकिन एक वेंटीलेटर तक नहीं है. डाक्टर रेफर कर देते है, जिनके पास अन्यत्र ले जाने की क्षमता नहीं है. वो कहा जाय? वेलनेस सेंटर तक नही है.
20 अक्टूबर 2020; उत्तराखंड; रोजगार दिए जाने की पोल खुल गई थी ;;;;;
सेंटर फॉर इंडियन इकोनॉमी की रिपोर्ट ने कहा, उत्त्तराखण्ड में सबसे अधिक बेरोजगारी दर। भाजपा ने पेश किए थे रोजगार के आंकड़े, और अखबारों में दिए थे बाद चढ़ कर रोजगार दिए जाने की उपलब्धि के विज्ञापन। सेंटर फॉर इंडियन इकोनॉमी की रिपोर्ट से असलियत सामने आ गई, पूर्व सीएम हरीश रावत ने कहा कि सीएमआइई की रिपोर्ट से त्रिवेंद्र सरकार की पोल खुल गयी है। राज्य सरकार रोजगार के झूठे आंकड़े पेश कर जनता को बरगला रही है। भाजपा के कार्यकाल में रोजगार का भारी संकट पैदा हो गया है।सेंटर फॉर इंडियन इकोनॉमी की रिपोर्ट में उत्त्तराखण्ड में बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा बताए जाने के बाद त्रिवेंद्र सरकार ने कहा कि राज्य में 7 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मुहैया कराया गया। उधर, पूर्व सीएम हरीश रावत ने बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा होने पर भाजपा सरकार को कठघरे में खड़ा किया है।कोरोना काल में प्रवासियों के लिए चलाई गई योजना का कोई लाभ नहीँ मिल रहा है। 2022 के विधानसभा चुनाव में बेरोजगारी और भाजपा के झूठे दावे एक बड़ा मुद्दा होगा। कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कलेर ने भी भाजपा के रोजगार के आंकड़ों को झूठा बताया।
5 मई 2020 ; कोरोना महामारी ने सरकार के झूठे दावों की बखिया उधेड़ कर रख दी थी
2.46 लाख करोड अर्थव्यवस्था वाला डबल इंजन महामारी में क्यों हो गया फेल ! मोर्चा ◇क्यों छात्रों की फीस सरकार नहीं कर पा रही वहन /माफ ! ◇क्यों औद्योगिक इकाइयों में काम करने वाले श्रमिकों के साथ हो रहा अन्याय ! ◇ क्यों कर्मचारियों के भत्ते काटकर उनका किया जा रहा शोषण ! ◇ क्यों झूठे आंकड़ों के आधार पर दर्शाए थे 1.99 लाख रुपए प्रति व्यक्ति आय के ख्वाब! ◇ क्यों जीडीपी को भी फर्जी तरीके से दर्शा कर दिखाए थे 6.8 फ़ीसदी के ख्वाब ! ◇ क्यों हवा हो गए हजारों करोड़ निवेश के दावे ! ◇क्या किया हजारों करोड का बाजारु कर्ज लेकर ! विकासनगर – जन संघर्ष मोर्चा अध्यक्ष एवं जीएमवीएन के पूर्व उपाध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि लगभग 2.46 लाख करोड की अर्थव्यवस्था एवं लगभग 1.99 लाख रुपए प्रति व्यक्ति आय वाले डबल इंजन की सरकार इस कोरोना महामारी के डेढ़ महीनों में ही हवा ले गई | सरकार ने फर्जी आंकड़ों के सहारे बड़े-बड़े दावे कर पूर्व में जीडीपी 6.8 फ़ीसदी एवं हजारों करोड रुपए के निवेश होने की बात कही थी, लेकिन कोरोना महामारी ने सरकार के झूठे दावों की बखिया उधेड़ कर रख दी है | नेगी ने कहा करोड़ों रूपए खर्च कर झूठे विज्ञापन छपवाकर तथा फर्जी आंकड़ों के आधार पर कृषि के क्षेत्र में राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल करने, इन्वेस्टर समिट के माध्यम से हजारों करोड़ों रुपए निवेश होने की बात कहकर वाह- वाही लूटने का काम किया था | नेगी ने कहा कि अगर सरकार माफियाओं के हाथ में न खेलती व ईमानदारी से काम करती तो निश्चित तौर पर प्रदेश का राजस्व कई गुना बढ़ जाता तथा हजारों करोड रुपए बाजारू कर्ज की जरूरत न पड़ती | प्रदेश को पूरी तरह से कंगाल कर दिया गया है| नेगी ने कहा कि इस महामारी में सरकार जनता का दर्द कम करने में विफल रही है तथा इसी का नतीजा है कि सरकार छात्रों की फीस, श्रमिकों के वेतन, पत्रकारिता से जुड़े गरीब कर्मियों व जनमानस को सुविधा देने आदि मामले में कोई व्यवस्था नहीं कर पाई, उल्टा कर्मचारियों के भत्तों में कटौती व दान/ चंदा इकट्ठा करने के बावजूद भी फ्लॉप साबित हुई है | मोर्चा ने सरकार पर व्यंग कसते हुए कहा कि फर्जी आंकड़ों के आधार पर जनता को कुछ समय के लिए को गुमराह किया जा सकता है लेकिन हमेशा के लिए नहीं !
8 अप्रेल 2020; *क्या आप जानते है कि उत्तराखण्ड सरकार का कुल बजट 53,000/- करोड रूपये है, जिसमे से 17000/- करोड रूपये खुद के है और 25000/- करोड रूपये केन्द्र से मिलने हैं
फिर भी 11,000/- करोड घाटे मे है सरकार, तो फिर कहाँ से करेगी करोना संक्रमण से होने वाले घाटे की पूर्ति ? मतलब ये है कि हम उस सरकार से अपेक्षा रख रहे कि करोना संकट से पहले ही जो आर्थिक मोर्चे पर फिसड्डी है, राज्य सरकार इस हाल मे नहीं कि कुछ कर पाये उल्टा उसका तो और भी घाटा बढना ही तय हैं …! *सलाहकार तो बना दिये पर आर्थिक मास्टर प्लान नही बनायें कि कैसे आर्थिक मोर्चे के साथ स्वास्थ्य मोर्चा पर भी लड़ा जाए ; प्रदेश में इसको लेकर जनचर्चाओ का दौर हैअसलियत यह है कि पैसे चाहिये , दवाई चाहिये , राशन चाहिये , अस्पताल चाहिये , रोजगार चाहिये , जो दूर दूर तक नही है, जबकि राज्य बेसिक स्वास्थ्य सुविधाओं को मुहैया कराने में ही कोसो पीछे है, अब कोरोना वायरस से लंबी लड़ाई तो है पर मास्क, साबुन, सेनेटाइजर तक उपलब्ध नही है, वही जनता घर के अंदर है, पर उसके लिये क्या व्यवस्थाये है, भुखमरी से निपटने के लिये: यह बड़ा सवाल है?
14 मार्च 2020; उत्तराखंड में सामान्य स्वास्थ्य सेवा नही है, कोरोना की क्या कहे? असलियत दिखाती एक रिपोर्ट
दीपक फर्स्वाण की रिपोर्ट ;;;
उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्र की लचर स्वास्थ्य सेवा किसी से छिपी नहीं है। प्रदेशभर में चिकित्सकों के 690 पद खाली हैं। गढ़वाल मण्डल में ऋषिकेश से ऊपर पहाड़ी इलाके में कहीं भी आईसीयू सुविधा नहीं है। ऐसे में चिकित्सा सुविधा के बूते कोरोना वायरस का सामना करना आसान नहीं होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि जागरूकता और एहतियात से ही इस विषाणुजन्य बीमारी से बचा जा सकता है। प्रदेश के मैदानी जिलों को छोड़ दें तो पहाड़ी क्षेत्र का स्वास्थ्य ढांचा खुद ही बीमार है। कोरोना जैसे वायरस को रोकने और उसकी पीड़ितों के उपचार के लिये इसे कारगर नहीं माना जा सकता। खासकर ग्रामीण इलाकों में तो स्थिति यह है कि स्वास्थ्य सेवायें सामान्य बीमारी से लड़ने के काबिल नहीं हैं। प्रदेश में सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों के कुल सृजित पद 2735 हैं। इनमें से 2045 पदों पर चिकित्सक तैनात हैं जबकि शेष 690 रिक्त हैं। खास बात यह है कि पहाड़ के अस्पतालों में अधिकांश पद रिक्त हैं। हालांकि इनमें से 314 पदों को भरने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। ऋषिकेश से ऊपर पहाड़ी जिलों में कोई भी सरकारी अस्पताल ऐसा नहीं है जहां आईसीयू सुविधा मौजूद हो। श्रीनगर स्थित सरकारी मेडिकल कालेज में तक आईसीयू की पर्याप्त यूनिट नहीं हैं। साफ है कि सिर्फ चिकित्सा सेवा के बूते कोरोना वायरस से लड़ने की बात करना बेमानी है। जागरूकता से ही लोगों को इस बीमारी से खुद का बचाव करना होगा। कहा जा रहा है कि कोरोना वायरस के लिये पहाड़ी क्षेत्र का वातावरण काफी मुफीद है। 15 से 25 डिग्री तापमान में इस विषाणु का सर्वाइवल रेट और सक्रियता सर्वाधिक रहती है। आमतौर पर पहाड़ों में तापमान इसी सीमा के इर्दिगर्द रहता है लिहाजा वहां के लोगों को सतर्क रहना होगा। एहतियात बरतने होंगे। जागरूकता से ही कोराना से खुद का बचाव किया जा सकता है।
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