सीएम तीरथ रावत की कुर्सी खतरे में ;अटकलो से तमाम विकास कार्य लटके

HIGH LIGHT# उत्तराखंड को लेकर कल कुछ बड़ा फैसला हो सकता है. सीएम तीरथ रावत की कुर्सी खतरे में बतायी जा रही है: अटकलो का बाजार गर्म है, शासन, प्रशासन में सब कुुछ मानो ठहर गया है, सरकारी कर्मारियो से कुुछ पूछो तो कहते है कि सरकार तो स्‍थायी होने दो पहले- पहले कोरोना के कारण सरकारी कामकाज पहले से ही ठप्‍प था और मुख्‍यमंत्री को लेकर सब कामकाज ठप्‍प हो गये सस्पेंस और अटकलों का दौर जारी है क्योंकि तीरथ रावत को गुरुवार शाम तक उत्तराखंड लौटना था, मगर अचानक उनकी वापसी रद्द हो गई. बीजेपी फिर मुख्यमंत्री बदलने के मूड में आ गई है. पार्टी ने उपचुनाव का फैसला किया तो अन्य राज्यों में भी खाली सीटों पर उपचुनाव करवाने पड़ेंगे. इसलिए पार्टी उपचुनाव नहीं बल्कि अगले साल राज्य विधानसभा चुनाव पर फोकस कर रही है.

विकास में पिछड गये अल्मोड़ा, बागेश्वर, हरिद्वार जैसे ज़िलों में दो महीने बीतने के बावजूद एक रुपया भी विभागों को नहीं दिया गया. पौड़ी, चमोली और उधमसिंह नगर भी फिसड्डी साबित हुए, पौड़ी में तीन, चमोली में पांच और यूएसनगर में मात्र आठ फीसदी धनराशि विभागों को जारी की गई. हालांकि, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़ और चम्पावत ज़िलों का बेहतर प्रदर्शन भी रहा. लेकिन, ज़्यादातर ज़िलों के लचर प्रदर्शन ने विकास की गाड़ी पटरी से उतार दी. हालत ये कि पांच सौ करोड़ खाते में होने के बावजूद दो महीने में मात्र 10 करोड़ रुपए ही खर्च हो पाए. नतीजा जो विकास कार्य होने थे, वो सिफर रह गए.

तमाम विकास कार्य लटके पड़े हैं  राज्य में विकास के नाम का अरबों रुपया विभागों की कैद से रिलीज ही नहीं किया गया!  ज़िलाधिकारियों के पास पांच सौ करोड़ रुपये की वो राशि बेकार पड़ी रही, जिसे ज़िला प्लान के तहत अप्रैल और मई में रिलीज़ किया जाना था ताकि विकास कार्य हो सकें. इसे जारी करने की ज़हमत विभागों ने नहीं उठाई तो बड़े पैमाने पर विकास कार्य प्रभावित हुए. सड़क से लेकर स्वास्थ्य सुविधाओं तक के लिए छोटे बड़े डेवलपमेंट के लिए ज़िला प्लान के अंतर्गत यह पैसा रिलीज़ होता है, जिसका इस्तेमाल ही नहीं किया जा सका.

अब तीरथ रावत अगर हटते हैं तो फिर क्या वजह हो सकती है 

10 घण्टे बाद मुलाकात को बुलाया, भाजपा अगले साल उत्तराखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव तीरथ सिंह की अगुआई में लड़ने के मूड में नहीं है। इसके अलावा तीरथ सिंह संवैधानिक अड़चनों में भी उलझे हैं। तीरथ सिंह जैसी परेशानी में ही ममता बनर्जी भी हैं। वे भी विधायक नहीं है, उन्हें भी नवंबर से पहले विधानसभा का सदस्य बनना होगा।

30 जून को तीरथ सिंह रावत को दिल्ली बुला लिया गया, अचानक। वे दोपहर में दिल्ली पहुंचे और करीब 10 घंटों के इंतजार के बाद उनकी मुलाकात जेपी नड्डा और अमित शाह के साथ हुई। मुलाकात अमित शाह के घर पर हुई। बताया जा रहा है कि चर्चा उत्तराखंड में लीडरशिप और अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर ही हुई। दरअसल, भाजपा आलाकमान नहीं चाहता है कि ये चुनाव तीरथ सिंह रावत की अगुआई में लड़ा जाए। उत्तराखंड के दिग्गज भाजपाई भी इस पक्ष में नहीं हैं। तीरथ सिंह रावत को लेकर जो चर्चा है उसको अगर सही मान लें तो वो 4 महीने ही रह पाएंगे. बीजेपी इनके नेतृत्व में चुनाव में जाने से डर रही है. पिछले तीन दिनों से सीएम तीरथ रावत दिल्ली दौरे पर हैं।

उत्तराखंड की राजनीति में बदलाव की सुगबुगाहट के संकेत मिल रहे हैं. मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत दिल्ली में हैं. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से उनकी मुलाकात हुई है. मुलाकात करीब आधे घंटे तक चली है. इससे पहले उनकी गृह मंत्री अमित शाह से भी मुलाकात की खबरें सूत्रों से हवाले से आ चुकी है. इसी साल मार्च में तीरथ रावत मुख्यमंत्री बनाये गये थे. तब त्रिवेंद्र सिंह रावत को परफॉरमेंस के आधार पर हटाया गया था.

चर्चा है कि अगले साल शुरुआत में होने वाले चुनाव में बीजेपी तीरथ के नेतृत्व में लड़ने का शायद रिस्क नहीं लेना चाहती क्योंकि फीड बैक शायद पक्ष में नहीं है. जो आधार सार्वजनिक तौर पर बन सकता है वो है विधानसभा की सदस्यता का. तीरथ सिंह रावत अभी विधानसभा के सदस्य नहीं हैं और सीएम बने रहने के लिए उन्हें 10 सितंबर तक विधायक बनना होगा. राज्य में विधानसभा की कुछ सीटें खाली हैं लेकिन उन पर चुनाव की कोई सुगबुगाहट नहीं दिख रही. ऐसे में तीरथ कैसे सीएम बने रह पाएंगे इसको लेकर सवाल है. माना जा रहा है कि इसी को लेकर दिल्ली में मंथन चल रहा है.

इस समय देश में 25 विधानसभा, 3 लोकसभा और 1 राज्यसभा सीट पर उपचुनाव होना है। इनमें 6 उत्तर प्रदेश की विधानसभा सीटें भी शामिल हैं। चुनाव आयोग ने कहा है कि हम कोविड की वजह से चुनाव नहीं करा सकते। ऐसे में अगर एक सीट के लिए उत्तराखंड में उपचुनाव होता है तो सवाल उठेगा ही।

संविधान का आर्टिकल 164 कहता है कि आप बिना सदन का सदस्य हुए भी मंत्री या मुख्यमंत्री बन सकते हैं। 6 महीने में सदन की सदस्यता लेनी होगी। इसके बाद 1995 पंजाब सरकार में तेजप्रकाश मंत्री बने। पर 6 महीने में विधानसभा की सदस्यता नहीं ले पाए तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया और कुछ दिन बाद फिर मंत्री पद की शपथ ले ली। फिर ये मामला सुप्रीम कोर्ट में गया और कोर्ट ने कहा कि ये आर्टिकल 164 का गलत इस्तेमाल है और आप ऐसा नहीं कर सकते।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *