उत्तराखंड-भर्तियों में धांधलियों की गूंज पूरे देश में -हर विभाग में नौकरी नीलाम-जलजला -आवाम सडको पर ; हाईकमान के मौन टूटने का इंतजार -हाईकोर्ट का सरकार को नोटिस
HIGH LIGHT# 12 sep 22# हाईकोर्ट का सरकार को नोटिस# #उतराखंड पेपर लीक मामले ने उत्तराखंड की राजनीति में हलचल मचा दी है# #सवाल उठता है कि इतने बड़े पैमाने पर हो रहे घोटाले को अंजाम कौन दे रहा है# हाईकमान के मौन टूटने का इंतजार कर रहा है उत्तराखण्ड के युवा# महाधिवक्ता कार्यालय, यूजेवीएनएल, यूकेएसएसएससी, विधानसभा आदि में हुई व्यापक धांधलियां # उत्तराखंड में 200 उर्दू अनुवादकों की भर्ती में भी खेल # हर विभाग में नौकरी नीलाम कर दी # वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल पर पत्नी और पुत्र के नाम करोड़ों की संपत्ति जोड़ने का आरोप # उत्तराखंड में 200 उर्दू अनुवादकों की भर्ती में भी खेल, #पुलिस और आबकारी महकमे में सालों से फर्जी तरीके से कर रहें हैं नौकरी # उत्तराखंड राज्य में हुई भर्तियों में व्यापक धांधलियों की गूंज पूरे देश में# Presents by www.himalayauk.org (Leading Newsporgtal) by Chandra Shekhar Joshi Editor; # Our Legal Advisor; Advocate Rakshit Joshi #High Court Nainital & Distt Court Dehradun & Distt. Court Udham Singh Nagar & Law Pannel Advocate Supreme Court
हाईकोर्ट का सरकार को नोटिस ;नैनीताल हाईकोर्ट ने UKSSSC भर्ती परीक्षा में गड़बड़ी को लेकर खटीमा के कांग्रेस विधायक भुवन कापड़ी की याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने 21 सितंबर तक सरकार को मामले में पूरा जानकारी देने के लिए कहा है।
उतराखंड पेपर लीक मामले ने उत्तराखंड की राजनीति में हलचल मचा दी है. इन सब के बीच ये सवाल उठता है कि इतने बड़े पैमाने पर हो रहे घोटाल को अंजाम कौन दे रहा है. साथ ही अब तक गिरफ्तार हुए लोगों में बीजेपी नेता हाकम सिंह का नाम ज्यादा चर्चा में है,
इस बीच एक और घोटाले की खबर सामने आई. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक विधानसभा के स्टाफ की भर्ती में भी खूब हेराफेरी की गई है
इस घोटाले में दो तरह के मामले सामने आ रहे हैं. एक मामला वो है जहां UKSSSC जैसी किसी संस्था ने भर्तियां निकाली, अभ्यर्थियों ने फॉर्म भरे लेकिन पेपर लीक हो गए, इस तरह की भर्तियों में पोस्टमैन, वन दरोगा और ग्रैजुएशन स्तर की कई भर्तियां शामिल हैं.
सरकारी नौकरियों को 15 से 25 लाख में नीलाम कर दिया गया. दिन-रात तैयारी करने वाले एक युवा को कुछ नहीं मिलता और जिनको भर्ती आयोग का फुलफॉर्म नहीं पता वे टॉप कराया गया. इस काम में अधिकारियों से लेकर नेताओं तक सब शामिल हैं. UKSSSC पेपर लीक मामले में अब तक की जांच में ये सामने आया है कि करीब 260 लोगों ने 15 से 20 लाख रुपये में पेपर खरीदा है.
पिछले 20 साल से जब से उत्तराखंड बना है तब से विधानसभा अध्यक्ष को ये अधिकार मिला है कि सदन के रखरखाव के लिए वो स्टाफ नियुक्त करें. वो कहते हैं कि इस अधिकार का गलत इस्तेमाल हुआ है.
“यहां भर्ती के लिए कोई एंट्रेंस नहीं हुआ, लोगों ने सिर्फ एक सादे कागज पर नौकरी के लिए आवेदन किया और उनको नौकरी मिल गई. यहां पर कांग्रेस, भाजपा और आरएसएस के नेताओं से जुड़े लोगों को नौकरियां दी गईं.”
हाकम सिंह उत्तरकाशी जिले का निवासी और पहले डीएम के रसोइया फिर वो डीएम ड्राइवर बना. इसके बाद वो चुनाव लड़कर जिला पंचायत का सदस्य बन गया,. फिलहाल उनके पास होटल और रिज़ॉर्ट हैं. हाकम सिंह की कई फोटो में प्रदेश के बड़े नेता और सरकारी अधिकारियों के साथ देखे जा सकते है, इससे उसकी पकड़ का अंदाजा लगाया जा सकता है,
डीएम के यहां के नौकरी करने के दौरान हरिद्वार में हाकम यूपी के नकल गैंग के संपर्क में आया. इसके बाद उसने यूपी के ‘पैटर्न’ पर उत्तराखंड में नकल का जाल बिछाया. यही वजह है कि अब वो करोड़ों की संपत्ति का मालिक है.
UKSSSC पेपर लीक मामले में अब तक की जांच में ये सामने आया है कि करीब 260 लोगों ने 15 से 20 लाख रुपये में पेपर खरीदा है. इस पैसे में से अब तक 70 से 80 लाख रुपए रिकवर भी किए गए हैं. जांच में ये भी सामने आया है कि 40 लोग ऐसे हैं जो 15-20 लाख में पेपर खरीदने के बाद भी फेल हो गए. वहीं करीब 200 से ज्यादा अभ्यर्थी ऐसे हैं जिन्होंने पेपर खरीदा और वो पास हो गए. इनमें से डर की वजह से कई अभ्यर्थियों ने सामने आकर अपनी गलती स्वीकार कर ली है.”
उत्तराखंड लोक सेवा आयोग (UKSSSC) ने 4 और 5 दिसंबर 2021 को लिखित भर्ती परीक्षा आयोजित की थी. इस भर्ती में 13 विभागों के कुल 854 पदों पर भर्ती की जानी थी. इस परीक्षा में करीब ढाई लाख अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था. इनमें से 1 लाख 60 हजार अभ्यर्थियों ने पेपर दिया. उत्तराखंड जैसा राज्य जहां आबादी कम है वहां ढाई लाख आवेदन बहुत मायने रखते हैं. परीक्षा में हेराफेरी के मामले में देहरादून पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर जांच शुरू की. बाद में मामला STF को सौंप दिया गया. इस मामले में अब तक 35 गिरफ्तारियां हो चुकी हैं. अभ्यर्थी सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं. राज्य की राजनीति में हलचल मची है .
वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल पर पत्नी और पुत्र के नाम करोड़ों की संपत्ति जोड़ने का आरोप
ऋषिकेश: उत्तराखंड के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष व वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल पर अब पत्नी और पुत्र के नाम पर करोड़ों की संपत्ति जोड़ने का आरोप लगा है। कांग्रेस ने नामांकन भरते समय दाखिल शपथ पत्र में इस सच को छुपाने का आरोप लगाते हुए पूरे मामले को न्यायालय में चुनौती देने की बात कही है।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य जयेंद्र रमोला ने वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल पर पत्नी और पुत्र के नाम पर ऋषिकेश, देवप्रयाग और अन्य क्षेत्र में करोड़ों की भूमि और संपत्ति खरीदने का आरोप लगाया, उन्होंने इस दौरान संबंधित दस्तावेज भी प्रस्तुत किए। साथ ही यह दावा किया कि मंत्री पद पर रहते हुए उन्होंने यह संपत्ति जोड़ी है। रमोला ने कहा कि इस वर्ष जब वह विधानसभा क्षेत्र से विधायक का चुनाव लड़े थे तो उन्होंने अपने पुत्र और पत्नी के कालम के आगे रिक्त स्थान छोड़ा था। कहीं पर भी संपत्ति का जिक्र नहीं किया था।कहा- करोड़ों की संपत्ति कहां से अर्जित की
रमोला ने कहा कि पत्नी और पुत्र वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल पर आश्रित हैं, बड़ा सवाल यह है कि यह करोड़ों की संपत्ति कहां से अर्जित की गई। रमोला ने आरोप लगाया कि विधानसभा के भीतर अवैध रूप से की गई नियुक्तियां, वित्त सचिव को एक वर्ष में कई बार पदोन्नति देने का मामला अभी सुर्खियों में है।
मंत्री की ओर से अपने पत्नी और पुत्र के नाम पर खरीदी गई करोड़ों की संपत्ति की जांच सीबीआइ और प्रवर्तन निदेशालय (इडी) की ओर से की जानी चाहिए।पूरे मामलों को न्यायालय में देंगे चुनौती
उन्होंने कहा कि इस मामले में वहां विधिक परामर्श ले रहे हैं। इसके बाद पूरे मामलों को न्यायालय में चुनौती दी जाएगी। इस दौरान एडवोकेट अभिनव मलिक,पार्षद देवेंद्र प्रजापति राकेश सिंह मियां, शकुंतला शर्मा, भगवान सिंह पंवार, अजीत सिंह गोल्डी आदि भी मौजूद रहे। विवादित खसरा में कैसे जारी हो गई एनओसी
रमोला ने कहा कि भरत विहार ऋषिकेश में मंत्री के पुत्र के नाम से खरीदी गई भूमि न्यायालय की ओर से विवादित खसरा नंबर के रूप में दर्ज है। विवादित भूमि पर तहसील प्रशासन किसी को भी एनओसी जारी नहीं करता। लेकिन वर्ष 2019 में तत्कालीन उपजिलाधिकारी ने इन्हें अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी कर दिया और नगर निगम के भीतर संपत्ति स्वामी का नाम परिवर्तन भी हो गया। तत्कालीन एसडीएम के खिलाफ भी कार्रवाई की मांग उन्होंने की।
150 से लेकर 200 उर्दू अनुवादकों नियम विरुद्व कर रहे हैं नौकरी
विकेश सिंह नेगी आरटीआई एक्टिविस्ट व एडवोकेट देहरादून, उत्तराखंड। अधिक जानकारी के लिये मोबाइल नंबर…..9758222922 पर संपर्क करें
ने हिमालयायूके न्यूजपोर्टल को जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि उत्तराखंड में 200 उर्दू अनुवादकों की भर्ती में भी खेल, पुलिस और आबकारी महकमे में सालों से फर्जी तरीके से कर रहें हैं नौकरी- पुलिस विभाग में सबसे ज्यादा उर्दू अनुवादक हैं नियुक्त प्रदेश बेवजह ढो रहा तदर्थ पदों पर नियुक्त कर्मचारियों का बोझ आरटीआई से हुआ था खुलासा, कार्रवाई के नाम पर सरकार ने साधी चुप्पी डीजीपी अशोक कुमार कब करेंगे इन पर कार्रवाई-विकेश देहरादून। उत्तराखंड में इस समय यूकेएसएससी पेपर लीक से लेकर विधानसभा और कई अन्य विभागों में फर्जी तरीके से हुई नियुक्यिों और घपले-घोटालों और भ्रष्टाचार को लेकर हो हल्ला मचा हुआ है। फर्जी नियुक्यिों को लेकर आये दिन हो रहे नए-नए खुलासों से सरकार बैकफुट है। विपक्ष प्रदेशभर में पुतला दहन के साथ सरकार के मंत्रियों से इस्तीफे की मांग कर रहा है। इसी बीच आरटीआई के जरिए एक बड़ा खुलासा पुलिस और आबकारी महकमें में हुई उर्दू अनुवादकों की भर्ती को लेकर हुआ है।
सोशल एक्टिविस्ट एडवोकेट विकेश नेगी ने कहा है कि उत्तराखंड में नौकरियों का खेल राज्य गठन से पहले ही शुरू हो गया था। उन्होंने कहा कि प्रदेश में मौजूदा समय में 150 से लेकर 200 उर्दू अनुवादकों को नियम विरुद्ध नौकरी पर रखा गया है। इन अनुवादकों को नौकरी से निकालने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और डीजीपी अशोक कुमार समेत विभिन्न महकमों के प्रमुखों से कई पत्र लिखे, लेकिन इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई। एडवोकेट विकेश सिंह नेगी ने कहा कि सबसे ज्यादा उर्दू अनुवादक पुलिस महकमें में कार्यरत हैं जिन पर कार्रवाई के लिए उन्होंने डीजीपी अशोक कुमार को पत्र लिखा लेकिन इन पर क्यों कार्रवाई नहीं हुई यह समझ से परे हैं। तत्कालीन सरकार ने भी कार्रवाई के नाम पर चुप्पी साध ली। वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से उन्होंने पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच व इस पूरे मामले में दाषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की।
आरटीआई एक्टिविस्ट एडवोकेट विकेश नेगी ने मीडिया से बातचीत में कहा कि 1995 में तत्कालीन समाजवादी पार्टी की सरकार ने यूपी में उर्दू अनुवादकों की भर्ती की थी। यह भर्ती भी एक साल के तदर्थ आधार पर एक साल के लिए की थी। इसके तहत 28 फरवरी 1996 को उनकी नियुक्ति स्वतः ही समाप्त हो जानी थी। अहम बात यह है कि यह नियुक्ति गढ़वाल, कुमाऊं और बुंदेलखंड के लिए नहीं थी। इसके बावजूद गढ़वाल-कुमाऊं में भी उर्दू अनुवादकों की नियुक्ति कर दी गयी। इनकी तैनाती आबकारी, पुलिस, सचिवालय, मंडल और जिला कार्यालयों समेत कई विभागों मे की गयी है। एडवोकेट नेगी के अनुसार विभागों की मिलीभगत के कारण नियमानुसार इनकी सेवा समाप्त हो जानी चाहिए थी, लेकिन इन्हें सेवा पर जारी रखा गया और कई कर्मचारियों को बकायदा वेतन वृद्धि के साथ ही प्रमोशन भी दिये गये हैं।
एडवोकेट विकेश नेगी के अनुसार इस मामले में उर्दू अनुवादक हाईकोर्ट गये थे लेकिन कोर्ट का स्थगन आदेश भी समाप्त हो चुका है, लेकिन ये कर्मचारी प्रदेश के लिए बोझ बने हुए हैं। इस संबंध में उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और डीजीपी अशोक कुमार से भी शिकायत की है। इसके बावजूद अब तक इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है। नियमानुसार इनकी सेवा स्वतः समाप्त हो गयी है। ऐसे में उर्दू अनुवादकों को नौकरी से बर्खास्त किया जाना चाहिए।
ऊर्दू अनुवादक बने प्रशासनिक अधिकारी और अब इंस्पेक्टर में प्रमोशन
एडवोकेट विकेश सिंह नेगी ने कहा ऊर्दू अनुवादक सैयद वसी रजा जाफरी को प्रमोशन देकर इंस्पेकटर बना दिया गया है। वसी रजा जाफरी की नियुक्ति वाराणसी में ऊर्दू अनुवादक/कनिष्ठ लिपिक के पद पर हुई। उसकी सेवाएं 28 फरवरी 1996 को स्वतः ही समाप्त होनी थी। इसके बावजूद इसके पिछले 24 सालों से सैयद वसी रजा जाफरी आबकारी विभाग में सरकारी नौकरी मिल गयी और फिर प्रमोशन पर प्रमोशन पा गये, यह जांच का विषय है। यह काम बड़े अधिकारियों की मिलीभगत से ही संभव हो सकता है। इसी तरह से ऊर्दू अनुवादक से प्रमोशन पाकर शुजआत हुसैन आबकारी में इंस्पेक्टर भी बन गये। यह मामला हाईकोर्ट तक गया। इस मामले में सरकार और आबकारी विभाग ने खुद हाईकोर्ट में इस बात को स्वीकार कर लिया है कि देहरादून में तैनात इंस्पेक्टर शुजआत हुसैन कानूनी तौर पर नौकरी में हैं ही नहीं। इसके बावजूद हुसैन को सेवा में अभी तक कैसे रखा है, इसका जवाब सरकार के पास नहीं है। उनके साथ ही उधमसिंह नगर में तैनात इंस्पेक्टर राबिया का मामला भी शुजआत की तरह का ही है। उर्दू अनुवादक के मामले को लेकर हाईकोर्ट गई राबिया की साल 2000 में इलाहबाद हाईकोर्ट ने पिटीसन डिस्मिश कर दी थी। बावजूद इसके वह आज भी फर्जी तरीके से विभाग में नौकरी कर रही है।
महाधिवक्ता कार्यालय, यूजेवीएनएल, यूकेएसएसएससी, विधानसभा आदि में हुई व्यापक धांधलियां राजभवन को भर्तियों के फर्जीवाड़े की गूंज सुनाई नहीं दे रही – मोर्चा
#राज्य गठन से लेकर अब तक हुई भर्तियों की हो सीबीआई जांच | #महाधिवक्ता कार्यालय, यूजेवीएनएल, यूकेएसएसएससी, विधानसभा आदि में हुई व्यापक धांधलियां | #प्रदेश में बड़े-बड़े पदों पर बैठे नौकरशाहों के फर्जी हैं शैक्षिक दस्तावेज ! #अब तक हजारों नियुक्तियां हो चुकी बैक डोर से |
DEHRADUN विकासनगर-जन संघर्ष मोर्चा अध्यक्ष एवं जीएमवीएन के पूर्व उपाध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने पत्रकारों से वार्ता करते हुए कहा कि उत्तराखंड राज्य में हुई भर्तियों में व्यापक धांधलियों की गूंज पूरे देश में सुनाई पड़ रही हैं, लेकिन राजभवन के कानों में ये गूंज अब तक सुनाई नहीं दी, क्योंकि राजभवन कानों में तेल डाले जो बैठा है ! नेगी ने कहा कि राज्य गठन के शुरुआती दौर 2001-2002 में महाधिवक्ता कार्यालय, मा. उच्च न्यायालय नैनीताल में भर्तियों/ नियुक्तियों में हुई व्यापक धांधलियों, यूजेवीएनएल में वर्ष 2002-2003 से लेकर 2006 तक हुई नियुक्तियों, यूकेएसएसएससी, विधानसभा में अब तक हुई सैकड़ों फर्जी नियुक्तियों, बैक डोर के माध्यम से हुई हजारों नियुक्तियों आदि के मामलों में जिस प्रकार बड़े पैमाने पर धांधलियां हुई एवं कई मामले सामने आ रहे हैं, ऐसे में आवश्यक हो गया है कि राज्य गठन से लेकर आज तक हुई तमाम भर्तियों/ नियुक्तियों की सीबीआई जांच हो, जिससे होनहार युवाओं को सकून मिल सके एवं गिरोह का खात्मा किया जा सके | फर्जीवाड़ा कर नौकरी पाए जालसाज आज कई- कई प्रमोशन लेकर हाकिम बने बैठे हैं| नेगी ने कहा कि प्रदेश का दुर्भाग्य है कि अधिकारियों एवं दलालों के गिरोह ने परीक्षा में इन होनहार युवाओं को दरकिनार कर मोटी रकम लेकर नौकरियां बांटी |
नेगी ने कहा कि प्रदेश का उच्च शिक्षित, होनहार एवं सिफारिश विहीन युवा पांच-सात हजार ₹ की नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहा है तथा वहीं दूसरी ओर दलालों के माध्यम से नौकरी पाए लोग मौज-मस्ती काट रहे हैं |
विजिलेंस की ओर से की जा रही वर्ष 2015 में हुई दारोगाओं की भर्ती की जांच में 30 से 35 की नौकरी पर संकट
विजिलेंस की ओर से की जा रही वर्ष 2015 में हुई दारोगाओं की भर्ती की जांच में 30 से 35 की नौकरी पर संकट आ सकता है। एसटीएफ की ओर की जा रही जांच में गोविंद बल्लभ पंत विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त अधिकारी की गिरफ्तारी के बाद गड़बड़ी का शक और गहरा गया है। बताया जा रहा है कि गिरफ्तार एईओ ने पूछताछ में दारोगा भर्ती मामले में काफी जानकारी उपलब्ध कराई है। पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने शासन को पत्र भेजकर दारोगा भर्ती में लगे घपले के आरोप की जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराने की सिफारिश की। जिसे शासन ने मंजूर करते हुए जांच विजिलेंस को सौंप दी। वर्ष 2015 में हुई यह भर्ती तत्कालीन कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री हरीश रावत के कार्यकाल में हुई थी। दारोगा के 339 पदों पर हुई सीधी भर्ती की परीक्षा की जिम्मेदारी गोविंद बल्लभ पंत विश्वविद्यालय, पंतनगर को दी गई थी। नेगी ने कहा कि कई होनहार युवा परीक्षा में असफल होने पर मौत को गले लगा चुके हैं | मोर्चा राजभवन से हाल ही में राज्य गठन से लेकर आज तक हुई तमाम भर्तियों/ नियुक्तियों की सीबीआई जांच की मांग कर चुका है | पत्रकार वार्ता में- ओ.पी. राणा एवं के.सी. चंदेल मौजूद थे |
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