नौ की महिमा बड़ी है, अद्भुत नौ की शक्ति, नौ के गणित में, घूमे सब संसार: नौ की रात्रि की इस अद्भुत महिमा को जान कर हैरान रह जायेंगे आप: चंद्रशेखर

नौ की महिमा बड़ी है, अद्भुत नौ की शक्ति, नौ के गणित में, घूमे सब संसार: नव रात्रि की इस अद्भुत महिमा को जान कर हैरान रह जायेंगे आप: चंद्रशेखर

नौ नक्षत्र, नौ ग्रह हैं, नौ रस, नौ ही भक्ति, नौ की महिमा बड़ी है, अद्भुत नौ की शक्ति।

अद्भुत नौ की शक्ति, कि नौ का पढ़ें पहाड़ा, सब बन जाते नौ, जाय उनको जब जोड़ा।

नौ चक्र, नौ बिंदू, नौ हैं मानष तन छिद्र। नौ महीने का गर्भ, नौ करता है कुछ सिद्ध।

नौ रत्न, नौ अदा है, इन्द्रधनुष नौ रंग, नौ अकबर के सभासद, बीरबल्ल के संग।

बीरबल्ल के संग, योनि नौ, जान लीजिए, नौ दुर्गा के रूप, रात्रि नौ, ध्यान कीजिए।

नौमी को है हुआ, श्री रामचन्द्र अवतार, नौमी को पहुंचे थे, कृष्ण नंद के द्वार।

नौ के दूने अठारह, गीता में अध्याय, अठारह ही पर्व है, महाभारत में पाय।

महाभारत में पाय, अठारह अक्षुण्ण सेना, अठारह दिन युद्ध, महाभारत का हैना?

अठारह की उम्र, युवक बालिग हो जाते, शादी करते, वोट डालते, कार चला पाते।

नौ दर्जन मनिये पिरो, माला बनी विशिष्ट, जिसे फेर भजते सभी, अपने-अपने इष्ट।

अपने-अपने इष्ट, उपनिषद हैं नौ दर्जन, नौ दर्जन आहुति, होय तब यज्ञ विसर्जन।

वीणा में है रीड, रीढ़ में गांठ भी उतनी, नौ दर्जन की संख्या, शुभ होती है इतनी।

नौ या नौ के गुणित में, घूमे सब संसार, नौ गुणा चालीस से, बनता वृत्त आकार।

बनता वृत्त आकार, दिशायें नब्बे पर हैं, घर-आंगन दीवार, सजे जब नब्बे पर हैं।

गेगा, नौनो, अरब, सभी में नौ की पावर, नौ दो ग्यारह, भगो, वहां भी नौ बराबर।

बोलिंग में नौ पिन है, नौ बौल बिलियार्ड, नौ वोल्ट की बैटरी, हाउस फायर गार्ड।

हाउस फायर गार्ड मिलाओ, नाइन वन वन, के-नाइन का डोग, सूंघता दुर्ग स्मगलिन

नौ नंबर क्या खास, क्यों इनमें जुड़ा है, नौ ग्यारह खतरा, अभी लटका पड़ा है।

और कई सुन लीजिए, नौ के बेढब मेल, राधा के नाचन को, चहिये नौ मन तेल।

चहिये नौ मन तेल, गले का हार नौ लखा, नई-नवेली नौ दिन, ही को खास क्यों रखा।

नौ निहाल हो पूत, जगाए किस्मत सोती। नौ दिन कोस अढ़ाय, चाल ऐसी इक होती।

जीवन में आते कई, निन्यान्वे के फेर, त्रेसठ और छत्तीस भी, उलटे सीधे फेर।

उलटे सीधे फेर, कि ये नौ के गुणित हैं। कोई बतलाये, कैट की लाइफ क्यों नौ?

रावण ने नौ सीस, धारे अपने ही धार हैं नौ टांक का नशा, वही नौटंकी का नौ।

कहने को कहते रहें, दश होते अवतार, केवल नौ ही हैं हुये, अब तक गिनती बार।

अब तक गिनती बार, कलि कब हो क्या जानें, बुद्ध देव को कुछ, ज्यादातर दशवां मानें।

कलियुग में कैसे, बुद्ध सम पैदा होंगे, अवतारों के नाम, इस तरह नौ ही होंगे।

नवदुर्गा बारे में स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण माता की स्तुति में कहते हैं-

त्वमेव सर्वजननी मूलप्रकृतिरीश्वरी।

त्वमेवाद्या सृष्टिविधौ स्वेच्छया त्रिगुणात्मिका॥

कार्यार्थे सगुणा त्वं च वस्तुतो निर्गुणा स्वयम्‌।

परब्रह्मास्वरूपा त्वं सत्या नित्या सनातनी॥

तेजःस्वरूपा परमा भक्तानुग्रहविग्रहा।

सर्वस्वरूपा सर्वेशा सर्वाधारा परात्पर॥

सर्वबीजस्वरूपा च सर्वपूज्या निराश्रया।

सर्वज्ञा सर्वतोभद्रा सर्वमंगलमंगला॥।

अर्थ- श्री कृष्ण कहते हैं तुम ही विश्व जननी मूल प्रकृति ईश्वरी हो तुम ही सृष्टि की उत्पत्ति के समय आज शक्ति के रूप में विराजमान होती हो वह स्वच्छता से त्रिगुणात्मिका बन जाती हो। तुम स्वयं निर्गुण हो तथापि प्रयोजन वर्ष सगुण हो जाती हो। तुम परब्रह्मस्वरूप, सत्य, नित्य एवं सनातनी हो। परम तेजस्वरूप और भक्तों पर अनुग्रह करने हेतु शरीर धारण करती हो। तुम सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी, सर्वाधार एवं परात्पर हो। तुम सर्वाबीजस्वरूप, सर्वपूज्या एवं आश्रयरहित हो। तुम सर्वज्ञ, सर्वप्रकार से मंगल करने वाली एवं सर्व मंगलों की भी मंगल हो। मान्यताओं हैं कि नवरात्रि पर्व पर श्रद्धा और प्रेमपूर्वक महाशक्ति भगवती देवी की उपासना करने से यह निर्गुण स्वरूपा देवी पृथ्वी के सारे जीवों पर दया करके स्वयं ही सगुणभाव को प्राप्त होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश रूप से उत्पत्ति, पालन और संहार कार्य करती हैं।

ध्यान-योग की साधना से साधक की मानसिक-शारीरिक ऊर्जा केंद्रित होती है। इस केंद्रित ऊर्जा से व्यक्ति का आत्मिक बल बढ़ता है। जब व्यक्ति मानसिक रूप से अनेक चिंताओं से ग्रस्त होकर तनाव से पीड़ित हो जाता है तब ध्यान योग पीड़ित व्यक्ति को तनाव से मुक्त कराता है।

स्त्री शक्ति सबसे शक्तिशाली ऊर्जा है। यह केवल खगोलीय समय के कुछ विशेष योगों के दौरान उपलब्ध होती है। इस समय योगी उत्सुकता से देवी माँ की शक्ति के साथ सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करते हैं| ”

दशहरा ‘शक्ति’ को साधने का उत्सव है। हम सबकी ऊर्जा की इकलौती स्रोत है शक्ति। इसलिए हर किसी को शक्ति चाहिए। लड़ाई में आमजन को शक्ति चाहिए। यानि सबकी व्याकुलता शक्ति के लिए है।

धारणा यह है कि अध्यात्म तो है, पर शक्ति नहीं है। इसलिए शक्ति पाने के लिए हमारे पुरखों ने साल में दो बार नवरात्र पूजा का विधान किया, जीवन और समाज की रक्षा के लिए। इन नवरात्रों में आमजन शक्ति के उत्सव में इस कदर विलीन होता है कि स्पर्श, गंध और स्वर सब में शक्ति को महसूस करने लगता है। दुर्गापूजा का प्राण तत्व उसका यही लोकतत्व है।

जब भगवान राम का आत्मविश्वास भी रावण के सामने डिगने लगा, तब उन्होंने ‘शक्ति पूजा’ का सहारा लिया। राम की आस्था को देखते हुए शक्ति ने उन्हें भरोसा दिया, होगी जय होगी जय हे पुरुषोत्तम नवीन। तब रावण का अंत हुआ। शक्ति असुर भाव को नष्ट करती है। चाहे वह भीतर हो या बाहर। नवरात्र में शक्तिपूजा का अर्थ भी यही है, अपनी समस्त ऊर्जा का समर्पण। और सबकी ऊर्जा का स्रोत एक शक्ति को मानना।

जब-जब आसुरी शक्तियों के अत्याचार या प्राकृतिक आपदाओं से जीवन तबाह होता है, तब-तब शक्ति का अवतरण होता है।

दुर्गापूजा सिर्फ मिथकीय नहीं, यह स्त्री के सम्मान, ताकत, सामर्थ्य और उसके स्वाभिमान की सार्वजनिक पूजा है। जिस समाज में स्त्री का स्थान सम्मान और गौरव का होता है, वही समाज सांस्कृतिक लिहाज से समृद्ध होता है।

गुरु गोविंद सिंह ने भी युद्ध से पहले शक्ति की आराधना की थी। सिखों की अरदास, शक्ति पूजा से ही शुरू होती है। प्रिथम भगौती सिमरि कै गुरुनानक लई धिआई। (अर्थात मैं उस मां भगवती को सिमरण करता हूं, जो नानक गुरु के ध्यान में आई थीं) गुरु गोविंद सिंह चंडी को आदिशक्ति मानते थे। दुर्गापूजा की ऐतिहासिकता बंगाल से जुड़ी है।

वासंतिक और शारदीय नवरात्र जन सामान्य के लिए है, और आषाढ़ीय तथा माघीय नवरात्र गुप्त नवरात्र होने के कारण सिर्फ साधकों के लिए है।

विविध इच्छाओं की पूर्ति करने और समृद्धि का आशीर्वाद पाने हेतु सर्वोच्च देवी ललिता त्रिपुरा सुंदरी का आवाहन करने के लिए यह एक आदर्श समय है। इन नौ रातों को वाराही नवरात्रि के नाम से जाना जाता है तथा देवी ललिता की सारथि देवी वाराही की पूजा-अर्चना करने के लिए यह अवधि बहुत शुभ है। देवी वाराही संतुष्ट होकर आपकी प्रार्थना देवी ललिता तक पहुँचा सकती हैं ताकि वह आपकी इच्छाओं को पूर्ण कर सके और आपको एक समृद्ध जीवन की प्राप्ति हो सके|

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