विधानसभा उत्तराखण्ड में 100 पदों पर नाते रिश्तेदारों को ठूंस दिया गया
विधानसभा उत्तराखण्ड में करीबन 100 नियुक्तियां कर ली गयी,नाते रिश्तेदारों को पुत्र को, पुत्र वधुओं को भर लिया गया, एक क्षेत्र विशेष की विघानसभा से यह नियुक्तियां कर ली गयी, विधानसभा उत्तराखण्ड से समय समय पर मीडिया ने सवाल पूछा- तो वह खुद अनजान बन कर आश्चर्य जताने लगते हैं, प्राप्त जानकारी के अनुसार- विघानसभा अध्यक्ष के नाते रिश्तेदारों की भरपूर नियुक्तियां कर ली गयी, उपनल के द्वारा की गयी यह नियुक्तिया 100 के करीब की गयी, वित्त विभाग से 150 नियुक्तियों की अनुमति अभी प्राप्त नही हो पायी है, नही तो जागेश्वर विधानसभा से 150 नाते रिश्तेदार और विधानसभा में ठूंस दिये गये होते-
वही- 2003 से विभगिया संविदा सरकार द्वारा बंद कर ली गयी थी 2011 नियामितिकरण नियमावली तक अधिकतर 5 साल सेवा पूर्ण करने वाले कार्मिक नियमित हो चुके है तो अब 15000 संविदा,तदर्थ वगेरा आये कहा से।जबकि उपनल और अन्य आउटसोर्स से 2005-06 से कर्मचारी कार्यरत है जिन्हे सरकार नियामितिकरण से दूर रख रही जबकि हरियाणा,हिमाचल प्रदेश सहित अन्य राज्यो ने आउटसोर्स अनुबंध कर्मचारियों को 3 से 5 साल के सेवा पूर्ण करने पर नियमित कर दिया उत्तराखंड सरकार को अन्य राज्यो के भांति उपनल कर्मचारियों को नियामितिकरण कर देना चाहिए और किये गए वादे को पूर्ण करना चाहिए।
15000 की संख्या दिखाकर सरकार सबको गुमराह कर रही और अधिकारी अंदरखाने चहेतो को नियमिति कर रही और वर्षो से कार्यरत उपनल कर्मचारियों को नियामितिकरण से दूर रखकर भेदभाव कर रही।
माननीय मुख्यमंत्री जी को अब उपनल कर्मचारियों के लिए शासनादेश जारी करवाना होगा
मांगे पूरी न होने पर 25 अगस्त से उग्र आंदोलन उपनल कर्मचारियों द्वारा शुरू कर दिया जायेगा।
उपनल कर्मचारी महासंगठन का कहना है –
मा मुख्यमंत्री जी आज उपनल कर्मचारियों के समझ से बहार है की अधिकारियों द्वारा अपने घर और कार्यालयों के लिए अपनी इच्छा से नियुक्त अपने व्यक्तिगत कार्यो के लिए नियुक्त कर्मचारियों को आज नियमित किया जा चूका है ..और उपनल कर्मचारी जो विभाग और उपनल के सयुंक्त प्रक्रिया से नौकरी लगे है ..उनको नियमित नहीं किया गया है
मा मुख्यमंत्री जी १५००० संविदा कर्मचारियों के लिए जो आपने उपसमिति गठित की है वह समिति कभी २४००० कर्मचारी ,कभी 21००० कर्मचारी और अब लेटेस्ट रिपोर्ट १५००० कर्मचारी संविदा पर नियमित के पात्र है इस उप समिति कहती है …हमारे २०० कर्मचारी उपनल से विभन्न विभागों में १८००० उपनल कर्मचारी अपनी सेवाएं दे रहे है ,पर उपनल के कर्मचारियों ने जब २०० विभागों में संविदा कर्मचारियों के बारे में पता लाग्या तो पता लगा की केवल लगभग ५००० कर्मचारी ही बमुश्किल संविदा पर है .
मा मुख्यमंत्री जी उपनल महासंघ के सूत्रों ने जब उपसमिति के कार्यालय से पता लगाया तो ज्ञात हुवा की १५००० कर्मचारियों में उपनल,पीआरडी एवं अन्य आउटसोर्सिंग के आधार पर कार्यरत कर्मचारी जो ५ वर्ष की सेवा पूरी कर चुके है उसमे ये सभी शामिल है ..
मा मुख्यमंत्री जी अब यह बात साबित होती है अधिकारी बहुत ढीढ है ,और वह केवल अपने व्यक्तिगत हितो के लिए नियमो का प्रयोग करते है .इन अधिकारियो को जनकल्याण कार्यो और जनता से कोई मतलब नहीं है यह केवल आपको भी गुमराह करते है की अलाना नहीं हो सकता है फलाना नहीं हो सकता है
मा मुख्यमंत्री जी सरकार के मुखिया आप है या आपके अधिकारी .चुनाव आपने लड़ना है या इन अधिकारियों ने //
सरकार होती है जनकल्याणकारी नीतियां बनाने के लिए !
मा मुख्यमंत्री जी जरुरत के हिसाब से सरकार को नियम बनाने चाहिए नीतियां बनाने चाहिए
माननीय मुख्यमंत्री जी उपनल के २२००० कर्मचारी आज भी एक है और हमेशा रहेंगे ..
आपसे एक निवेदन है की कृपया सभी हटाये गए कर्मचारियों की बहाली एवं सभी उपनल कर्मचारियों को कॉन्ट्रैक्ट पर नियुक्त कर नियमति कारण की प्रक्रिया हेतु जल्द अदिकारियों को निर्देशित करेंगे
नहीं तो हम इस बार एक जुट होकर सरकार का पुरजोर विरोध करने के लिए मजबूर होंगे..
आब आपने वादा तोडा है अतः हम स्वतंत्र है आंदोलन करने के लिए
२३ अगस्त तक कृपया स्पस्ट कर दे …नहीं तो हम मजबूर होंगे ..और सरकार को जगाने के लिए माहौगर आंदोलन करेंगे ..
प्रदेशभर के समस्त उपनल कर्मचारी जो विगत
19 दिनो तक आंदोलन करने के बाद विभागीय संविदा पर लिये जाने की सहमति माननीय मुख्यमन्त्री ने मुख्य सचिव ओर सैनिक कल्याण सचिव के सम्मुख जताई थी,लेकिन आज तक लगभग एक माह पूरा होने के बाद भी उपनल कर्मचारीयों कॊ भविष्य सुरक्षित होता दिखाई नही दे रहा है !
उपनल कर्मचारी माननीय मुख्यमन्त्री जी द्वारा किये गये झूठे वादे एवं आश्वसन का पुरजोर विरुद्ध करता है !
एक उपनल कर्मचारी जो आज भी सरकारी विभागों में ईमानदारी के साथ कार्य कर रहा है यदि उस कर्मचारी का आगे कोई भविष्य सुरक्षित नही है,तो कैसे वो आपना भविष्य तैयार करेगा!
मुख्यमंत्री एवं प्रदेश के नौकरशाह के तानाशाही के चलते आज भी उपनल कर्मचारी उपेक्षित है !
यदि फिर भी राज्य सरकार 20 अगस्त तक समस्त उपनल कर्मचारीयों का विभागीय संविदा का शासनादेश जारी नही करती है! तो अगस्त 25 से सभी उपनल कर्मचारी देहरादून की सड़को पर तब तक आंदोलनरत रहेगे जब तक मांगे पूरी भी होती,नही तो ये उपनल की नौकरी भी नही करनी जिसमे हम वाही के वाही रहे !
सभी उपनल कर्मचारीयों से भी मेरा निवेदन है की 25 अगस्त से आंदोलन की date आप सभी के सहायोग से निकलनी है !
इस आंदोलन कॊ करने में सभी आपना पूर्ण सहायोग दे !
उपनल कर्मचारी महासंघ में किसी के भी द्वारा नेतागिरी या राजनीति बिल्कुल भी स्वीकार नही होगी !
समस्त जिला पदाधिकारीयों ब्लॉक स्तर के पदाधिकरीयों से निवेदन है की पूर्ण संख्या बल (यदि किसी जिले में उपनल कर्मचारीयों की संख्या 400 है तो कम से कम 200 उपनल कर्मचारी आपके द्वारा देहरादून आंदोलन कॊ सफल बनाने हेतु सहा योग स्वरूप देने होगे ) तभी जाकर आंदोलन सफल होगा इस बार आंदोलन में आवश्यक सेवा भी पूर्ण रुप से बंद रहेगी !
प्रदेश कार्यकरणी व मण्डल कार्यकरणी के सदस्य भी आगे की रणनीति के लिये एकजुटता से कार्य करे आपसे निवेदन है !
इस बार उपनल कर्मचारी महासंघ द्वारा 20 सदस्य प्रतिनिधि मण्डल बनाया जयेगा जो की सभी जनपद ओर बड़े विभागों से एक एक सदस्या मिलकर कमिटी तैयार होगी यही सदस्या अनुशासन समिति भी मानी जायेंगी एवं उच्च स्तरीय वार्ता हेतु यही 20 सदस्या कमिटी के सदस्य होगे !
30 सदस्या कमिटी महासंघ के पुरने कर्मचारीयों की होगी जोकि जिला स्तर ओर विभागों कॊ मिलकर तैयार कि जायेगी !
आप सभी के सुझाव आंदोलन के लिये ज्यादा से ज्यादा चाहता हूं !
मेरे द्वारा इस महासंघ परिवार कॊ उसका हक दिलाने के लिये बनाया गया ना कि किसी भी प्रकार कि राजनीतिकरण कर लिये नही !
सरकारी दावों पर उठ रहे सवाल, इतने पक्के नहीं होंगे, जितना बड़ा मैसेज दे रही सरकार
– विभागों में संविदा कर्मी सैकड़ों में, आउटसोर्स कर्मचारियों की संख्या है हजारों में
देहरादून: चुनावी साल में अचानक बेरोजगारों की हमदर्द बनी राज्य सरकार अब दावा कर रही है कि वह जल्द ही सरकारी महकमों में संविदा पर लगे हजारों कर्मचारियों को पक्का करने जा रही है। इस निर्णय पर पहुंचने के लिये उसने मंत्रिमंडलीय उप समिति का गठन किया था, जिसने अपनी रिपोर्ट शासन को सौंप दी है। मगर बड़ा सवाल यह है कि जितनी बड़ी संख्या में सरकार कर्मचारियों को पक्का करने जा रही है, उतने संविदाकर्मी विभागों में तैनात भी हैं। सूत्रों की मानें तो विभागों में संविदा और दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी सीमित तादाद में हैं और बड़ी संख्या आउटसोर्स से लगे कर्मचारियों की है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि सरकार आखिर किन्हें परमानेंट करने का दावा कर रही है।
उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही जनता और कर्मचारियों को लुभाने के लिए सरकारी स्तर पर घोषणाओं का दौर शुरू हो गया है। कांग्रेस की सरकार के पांच साल पूरे होने को है, लेकिन सरकार को बेरोजगारों की याद आखिरी साल के आखिरी दौर में आ रही है। सरकार दावा कर रही है कि वह कर्मचारी विनियमितीकरण नियमावली 2013 के तहत हजारों कार्मिकों को नियमत कर रही है। यह आंकड़ा 15 से 18 तक बताया जा रहा है। संविदा कार्मिकों के विनियमितीकरण को गठित मंत्रीमंडलीय उप समिति भी एकाएक सक्रिय हो गई। समिति ने आनन-फानन में विनियमितीकरण नियमावली 2013 के तहत वर्ष 2016 तक के पांच साल पूरे करने वाले कार्मिकों को इसका लाभ देने का निर्णय लिया है। जबकि प्रदेशभर के सरकारी विभागों में काम कर रहे संविदा कर्मचारियों का कोई ब्यौरा समिति के पास नहीं है। ऐसे में जाहिर है कि जहां समिति अंधेरे में हाथ-पांव मार रही है वहीं सरकार अंधेरे में तीर चला रही है। जाहिर है कि बेरोजगारों के नाम पर जनता को लुभाने का तानाबाना बुनने का खेल खेला जा रहा है।
रोचक तथ्य यह है कि इस नियमावली के तहत जिन कार्मिकों को लाभ मिलना था उन्हें पहले मिल चुका है। दूसरा यह कि नियमावली के बाद संविदा पर कार्मिक रखे ही नहीं गए हैं। रखे भी गए हैं तो उनकी संख्या कुछ सौ है। सवाल यह भी है कि जो संविदा पर कर्मचारी रखे भी गए हैं वह 6 फरवरी 2003 के शासनादेश के खिलाफ है। इस शासनादेश के तहत दरअसल विभागों को सख्त हिदायतें दी गई थी वह संविदा, तदर्थ, दैनिक वेतन भोगी, नियम वेतन और वर्कचार्ज पर कर्मचारियों को नहीं रख सकते। यदि रखेंगे तो वह पूरी तरह अवैध है। हालांकि आदेश में यह भी है कि विशेष परिस्थितियों में संविदा पर अल्पकालिक के लिए कर्मचारियों को रख सके हैं, लेकिन इसके लिए कार्मिक की अनुमति लेने के बाद विज्ञप्ति प्रकाशित करके रखे जा सकते हैं। लेकिन ऐसा कहीं नहीं हुआ है। दोनों ही परिस्थितियों में ऐसे कार्मिक नियमित नहीं हो सकते।
आरटीआई के तहत एक बेहद चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। सरकार बड़ी संख्या में कार्यरत संविदा कर्मचारियों को पक्का करने का जो ढोल पीट रही है वह दरअसल अफवाह के सिवाय कुछ नहीं है। आरटीआई से सरकार का झूठ सामने आया है। सामाजिक कार्यकर्ता शांति भट्ट को आरटीआई में दी गई जानकारी में शासन के कार्मिक विभाग ने सूचना दी है कि उनके पास इस नियमावली के तहत नियमित हुए कार्मिकों की कोई संख्या नहीं है। अलबत्ता इतनी जरूर जानकारी दी है कि संविदा पर कर्मचारियों को रखने पर 2003 में रोक लगी है। इस रोक हटाने को लेकर कोई जीओ आज तक जारी नहीं हुआ है, ऐसे में यह शासनादेश आज भी एक्सटेंड करता है। यदि यह शासनादेश लागू है तो इसके तहत एक भी कर्मचारी पक्का नहीं हो सकता और जो पक्के हुए भी वह कानूनी तौर पर अवैधानिक है।
आउटसोर्स कर्मचारियों की संख्या है हजारों में
कर्मचारियों के नियमितीकरण में सरकार आईवॉस कर रही है। सरकार संविदा कर्मचारियों के नाम पर जनता को गुमराह करने का काम कर रही है। संविदा कर्मी महज कुछ सौ है और आउटसोर्स कर्मचारियों की संख्या 30 हजार से ऊपर है। सरकार बेरोजगारों के प्रति इतनी संवेदनशील है तो इनके लिए क्यों नहीं नियमावली में प्रावधान किया जा रहा है। संविदा और आउटसोर्स के नाम पर सरकार बेरोजगारों को लड़ा रही है। क्या आउटसोर्स के कर्मचारी काम नहीं कर रहे हैं। यदि कर रहे हैं तो उनके भाविष्य के साथ क्यों खिलवाड़ हो रहा है। सवाल यह है कि क्या पिछले 12-13 वर्षों से आउटसोर्स के माध्यम से काम कर रहे कर्मचारियों को नियमितीकरण का हक नहीं दिया जाना चाहिए।
‘संविदा’ पर उठ रहे सवाल
आरटीआई के तहत एक बेहद चौंकाने वाला खुलासा हुआ है।
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आरटीआई के तहत एक बेहद चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। सरकार बड़ी संख्या में कार्यरत संविदा कर्मचारियों को पक्का करने का जो ढोल पीट रही है वह दरअसल अफवाह के सिवाय कुछ नहीं है। आरटीआई से सरकार का झूठ सामने आया है। सामाजिक कार्यकर्ता शांति भट्ट को आरटीआई में दी गई जानकारी में शासन के कार्मिक विभाग ने सूचना दी है कि उनके पास इस नियमावली के तहत नियमित हुए कार्मिकों की कोई संख्या नहीं है। अलबत्ता इतनी जरूर जानकारी दी है कि संविदा पर कर्मचारियों को रखने पर 2003 में रोक लगी है। इस रोक हटाने को लेकर कोई जीओ आज तक जारी नहीं हुआ है, ऐसे में यह शासनादेश आज भी एक्सटेंड करता है। यदि यह शासनादेश लागू है तो इसके तहत एक भी कर्मचारी पक्का नहीं हो सकता और जो पक्के हुए भी वह कानूनी तौर पर अवैधानिक है।
आउटसोर्स कर्मचारियों की संख्या है हजारों में
कर्मचारियों के नियमितीकरण में सरकार आईवॉस कर रही है। सरकार संविदा कर्मचारियों के नाम पर जनता को गुमराह करने का काम कर रही है। संविदा कर्मी महज कुछ सौ है और आउटसोर्स कर्मचारियों की संख्या 30 हजार से ऊपर है। सरकार बेरोजगारों के प्रति इतनी संवेदनशील है तो इनके लिए क्यों नहीं नियमावली में प्रावधान किया जा रहा है। संविदा और आउटसोर्स के नाम पर सरकार बेरोजगारों को लड़ा रही है। क्या आउटसोर्स के कर्मचारी काम नहीं कर रहे हैं। यदि कर रहे हैं तो उनके भाविष्य के साथ क्यों खिलवाड़ हो रहा है। सवाल यह है कि क्या पिछले 12-13 वर्षों से आउटसोर्स के माध्यम से काम कर रहे कर्मचारियों को नियमितीकरण का हक नहीं दिया जाना चाहिए।
‘संविदा’ पर उठ रहे सवाल
आरटीआई में मांगी गई सूचना में शासन के कार्मिक विभाग ने जानकारी दी है कि उनके पास संविदा, दैनिक वेतन, नियत वेतन, तदर्थ, कार्य प्रभारित और वर्कचार्ज को लेकर न तो कोई नीति है और न ही किसी शासनादेश के तहत इसे परिभाषित किया गया है। ऐसे में कैसे सरकार सिर्फ संविदा वाले कार्मिकों को पक्का करने का निर्णय ले रही है। संविदा ही कैसे वैध हो गई है। इस पर भी तमाम सवाल उठ रहे हैं।
उपनल कर्मी भी हैं संविदा पर
उपनल कर्मचारियों को विभिन्न विभागों में दी गई नियुक्तियों में संविदा शब्द का प्रयोग किया गया है। वह भी अपने को संविदा कर्मचारी मानते हैं। ऐसे में सरकारी विभागों में दो तरह के संविदा कर्मचारी कैसे हो सकते हैं। अलग-अलग कर्मचारियों को संविदा का अर्थ अलग-अलग कैसे हो सकता है। इस पर शायद कभी किसी ने गौर नहीं किया। ऐसा नहीं है कि शासन में बैठै अफसरों को भी इस बात की जानकारी नही है, लेकिन अधिकारी भी गुपचुप तरीके से सांठगांठ करके अपने-अपने तरीके से अपनों को लाभ पहुंचाने के लिए संविदा को अपने ढंग से परिभाषित कर रहे हैं, जो कानूनी रूप से पूरी तरह अवैध है।
उप समिति की सक्रियता चर्चाओं में
संविदा कर्मचारियों याद सरकार को चुनावी वर्ष के आखिरी में आई है। कुछ दिनों से पिछले पांच वर्षों में मंत्रीमंडलीय समिति की बैठक न के बराबर हुई। लेकिन पिछले एक माह से समिति की सक्रियता चर्चाओं में है। विनियमितीकरण नियमावली 2013 का दायरा बढ़ाकर 2016 तो कर दिया लेकिन कितने कर्मचारी इससे लाभान्वित होंगे इसकी जानकारी इकट्ठा नहीं की। एक माह में बिना बेस के आधी अधूरी जानकारियों के साथ आनन-फानन में निर्णय लिया गया। जिसे सरकार प्रचारित कर रही है। इसका रियेक्शन सरकार को उल्टा भी पड़सकता है।
मंत्रीमंडलीय उप समिति ने 2016 तक के संविदा कर्मियों को नियमिति करने का निर्णय लिया है। समिति ने अपनी रिपोर्ट कैबिनेट को संस्तुति कर दी है। संविदा कार्मिकों की संख्या के बारे में शासन ने विभागों से रिपोर्ट मांगी है। एग्जिट फीगर अभी सामने नहीं है कि कितने कर्मचारी इससे लाभान्वित होंगे। लेकिन नियमावली 2013 के तहत अधिक से अधिक कर्मचारी को लाभ दिया जाएगा।
प्रीतम सिंह पंवार, कैबिनेट मंत्री एवं अध्यक्ष मंत्रीमंडलीय उप समिति
सीधी संविदा पर भर्ती कर्मचारियों की संख्या बेहद कम है। सर्वाधिक संख्या आउटसोर्स कर्मचारियों की है। सरकार को उपनल, एनआरएचएम, आशा कार्यकत्री, रमसा और अन्य आउटसोर्स माध्यम से विभागों में कार्यरत सभी कर्मचारियों को संविदा पर घोषित कर नियमित किया जाए।
ठा. प्रहलाद सिंह, प्रदेश अध्यक्ष, कर्मचारी संयुक्त परिषद, उत्तराखंड
सरकार ने पांच साल पूरे करने वाले संविदा कर्मचारियों को नियमित करने का निर्णय लिया है। जबकि ऊर्जा निगम में 12-13 साल से कर्मचारी संविदा पर काम कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि इसमें उपनल कर्मचारी शामिल नहीं है। सरकार किस संविदा की बात कर रही है उसे स्पष्ट किया जाए। जबकि उन्हें भी उपनल से संविदा पर रखा गया है। सरकार को नियमावली 2013 के अंतर्गत उपनल को भी शामिल करके कर्मचारियों को वरिष्ठता के आधार पर नियमित करना चाहिए