बाबा विक्रांत के साक्षात् दर्शन हुए थे कुकरेती जी को

डबराल बाबा--001उज्जैन से विशेष रिपोर्ट #गोविंद प्रसाद कुकरेती – विक्रांत भैरव के उपासक के रूप में प्रसिद्ध बाबा डबराल#  बाबा अष्ट महाभैरव में से एक विक्रांत भैरव के अनन्य उपासक #वे भक्तों की समस्या चांवल के दाने को देखकर,अपनी मध्यमा उंगली अपने मस्तक से लगाकर विक्रांत भैरव बाबा से बात करके निवारण करते थे #उनके शिष्यों में अमिताभ बच्चन भी शुमार  #उन्हें बाबा विक्रांत के साक्षात् दर्शन हुए  #उत्तराखंड के पौढ़ी गढ़वाल क्षेत्र के ग्राम कठुड़ी के निवासी# भैरव बाबा विक्रांत भगवान् शिव का उग्र स्वरूप# तामसी स्वरूप उज्जैन में विक्रांत भैरव के रूप में विद्यमान # www.himalayauk.org (UK Leading Digital Newsportal) 

विक्रांत भैरव के उपासक के रूप में प्रसिद्ध बाबा डबराल (श्री गोविन्द प्रसाद कुकरेती) का बुधवार,31 अगस्त 2016 को निधन हो गया। वे लंबे समय से बीमार थे। इंदौर के निजी अस्पताल में 84 वर्ष की आयु में उन्होंने दोपहर 3.45 बजे अंतिम सांस ली।

डबराल बाबा का सांसारिक नाम गोविंद प्रसाद कुकरेती था। वे विक्रम विश्वविद्यालय के गणित विभाग में कार्यालय अधीक्षक के पद से दिसंबर 1966 में रिटायर हुए। बाबा डबराल ने इतिहास और दर्शन शाश्त्र में एम् ए किया था | वे 1978 में विक्रम विश्व विद्यालय से रिटायर हुए थे | बाबा ने माधव कालेज उज्जैन में लेखा अधिकारी के रूप में कार्य किया था | बाबा ने 1958 से 1996 तक विक्रम विश्वविद्यालय के गणित विभाग में कार्यालय अधीक्षक के पद पर कार्य किया |
युवावस्था से ही बाबा अष्ट महाभैरव में से एक विक्रांत भैरव के अनन्य उपासक रहे। उनके परिवार में पत्नी के अलावा उनके तीन पुत्र मनमोहन,चंद्र मोहन और धीरेन्द्र तथा दो पुत्रियां अवंतिका और तनुश्री हैं|

डबराल बाबा को बाहरी चमक दमक कभी रास नहीं आयी |वे हमेशा दो ही दुनिया में जीते थे एक अपने आराध्य विक्रांत भैरव बाबा और दूसरे उनके शिष्य या भक्तगण | देश और दुनिया में उनके अनेक भक्त थे || अनेक नेता -अभीनेता और कई बड़े पदों पर आसीन अधिकारी भी उन्हें अपना गुरु मानते थे | वे भक्तों की समस्या चांवल के दाने को देखकर,अपनी मध्यमा उंगली अपने मस्तक से लगाकर विक्रांत भैरव बाबा से बात करके निवारण करते थे | देश विदेश में उनके शिष्यों में अमिताभ बच्चन भी शुमार हैं | बाबा सच्चे,सरल, सौम्य और साहसी तथा अपने सभी भक्तों को सामान दृष्टी से देखते थे| उनके ऋषि नगर स्थित आवास पर जाकर उनके भक्त नित्य दर्शन कर आशीर्वाद लेते थे|

बाबा नित्य नियम से गढ़ कलिका मंदिर जाते थे | लगभग वर्ष 1960 में उन्हें माँ गढ़ कलिका से प्रेरणा मिली की उनके इष्ट भैरव बाबा विक्रांत हैं |विक्रांत भैरव बाबा की खोज शिप्रा के पावन तट पर पूरी हुई | मिटटी से सनी हुई मूर्ति को उन्होंने उसे शिप्रा जल से साफ किया और उसी दिन से बाबा ने उनकी सेवा,पूजा-आराधना आरम्भ कर दी | विक्रांत भैरव बाबा का वर्तमान मंदिर निर्जन स्थान और शमशान में हैं किन्तु डबराल बाबा ने नित्य पूजन -दर्शन का नियम कभी भंग नहीं किया |उनकी साधना 80 वर्ष की उम्र में भी अनवरत चल रही थी |

बाबा डबराल ख़राब स्वास्थ्य के बावजूद प्रत्येक रविवार,शुक्रवार के आलावा सभी पर्वों,उत्सवों और त्योहारों पर बाबा विक्रांत के दर्शन करने अवश्य जाते थे | स्वयं बाबा विक्रांत भैरव की आरती करते थे और प्रसाद वितरण करते थे|

भैरव बाबा विक्रांत भगवान् शिव का उग्र स्वरूप हैं | भगवान शिव ने जब तांडव नृत्य किया था तभी का यह तामसी स्वरूप उज्जैन में विक्रांत भैरव के रूप में विद्यमान हैं | सभी जानते हैं की भैरव तामसी प्रवति के देवता हैं किन्तु बाबा डबराल ने उनकी सेवा,पूजा और आराधना सात्विक भक्ति में की | बाबा डबराल तंत्र की सात्विक विद्या के अनुयायी रहे| उनके पास बैठने से अद्भुत आलोकिक ऊर्जा का आभास होता था | उनके पास जाने से भय-दर नहीं लगता था बल्कि सहजता,आत्मीयता और प्रसन्नता का अनुभव होता था |

उनके भक्तों ने बताया की वर्ष 1960 में दीवाली की रात बाबा अपनी साईकिल से मंदिर पहुंचे |चूँकि अमावस की रात थी,घुप अँधेरे में कुछ भी नजर नहीं आ रहा था| बाबा ने मंदिर पहुंचकर नियमानुसार पूजा अर्चना की और दीपक आलोकित किया | लौटते समय मन में विचार आया की जो दीपक मेने जलाया हैं वो कही बुझ ना गया हो || वापस जाकर देखा तो विक्रांत भैरव बाबा के समक्ष अनेकों दीपक रौशनी कर रहे थे| वहीँ उन्हें बाबा विक्रांत के साक्षात् दर्शन हुए थे|

बाबा डबराल (श्री गोविन्द प्रसाद कुकरेती) का जन्म 25 अगस्त 1932 को हुआ था|| वे मूलतः उत्तराखंड के पौढ़ी गढ़वाल क्षेत्र के ग्राम कठुड़ी के निवासी थे| बाबा 8 -9 वर्ष की उम्र में ही अपने मामा प्रोफ़ेसर पुरुषोत्तम कुकरेती के साथ धार आ गए थे |

बाबा जीवनभर स्वयं को भैरव उपासक ही कहलाते रहे। देश-दुनिया के लोग उनके पास अपनी समस्याएं लेकर आते थे। ऋषिनगर निवास पर भक्तों का तांता लगा रहता था। बाबा प्रतिदिन एक बार विक्रांत भैरव मंदिर अवश्य जाते थे। बुधवार रात बाबा की पार्थिव देह को उज्जैन लाया गया। सुबह अंतिम दर्शन उपरांत अंतिम यात्रा निकलेगी।

पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री।।
इन्द्रा नगर, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
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