3 Dec. विष्णु सप्तमी और मित्र सप्तमी – सूर्य देव की कृपा पाने का दिन
मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मित्र सप्तमी कहा जाता है. इस दिन सूर्य देव की पूजा अर्चना करने और भोर में अर्घ्य देने पर विशेष फल की प्राप्ति होती है. यह भी माना जाता है कि मित्र सप्तमी को जब सूर्योदय होने के समय आकाश में सूर्य की लालिमा छाती है तब मुंडन संस्कार करा कर पवित्र नदी में स्नान करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है. भक्त इस दिन षोडशोपचार पूजन करते हैं और सूर्य देव की कृपा प्राप्त करने के लिए व्रत भी रखते हैं. www.himalayauk.org (HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND) WEB & PRINT MEDIA. Cont. us; himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030
मित्र सप्तमी का त्यौहार मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन मनाया जाता है. सूर्य देव की पूजा का पर्व सूर्य सप्तमी एक प्रमुख हिन्दू पर्व है. सूर्योपासना का यह पर्व संपूर्ण भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता रहा है. सूर्य भगवान ने अनेक नाम हैं जिनमें से उन्हें मित्र नाम से भी संबोधित किया जाता है, अत: इस दिन सप्तमी को मित्र सप्तमी के नाम से जाना जाता है. इस दिन भास्कर भगवान की पूजा-उपासना की जाती है. भगवान सूर्य की आराधना करते हुए लोग गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर के किनारे सूर्य देव को जल देते हैं.
मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मित्र सप्तमी कहते हैं, जो इस वर्ष 3 दिसंबर को है। सभी ग्रहों के राजा हैं सूर्य। इनका एक नाम मित्र भी है, जो मित्रों के समान प्रेरणा देता है, सकारात्मकता प्रदान करता है। सूर्य, विष्णु के दक्षिण नेत्र और अदिति-कश्यप के पुत्र हैं। सनातन धर्म में पंचदेव पूजा का विधान है। गणेश, दुर्गा, शिव व श्रीहरि तो भारी तपस्या के बाद दर्शन देते हैं, पर सूर्य तो प्रत्यक्ष देवता हैं। सूर्य ही हर सुबह ब्रह्मा, दोपहर विष्णु और शाम को रुद्र रूप धारण करते हैं। मित्र सप्तमी को जब सूर्य देव की लालिमा फैल रही हो, तो मुंडन करा नदी या सरोवर में जाकर स्नान करना चाहिए। इस दिन सूर्य का षोडशोपचार पूजन कर उपवास रखना चाहिए। उपवास में मीठे फल खा सकते हैं। अष्टमी को दान आदि कर शहद मिला मीठा भोजन करना चाहिए।
सुबह एक पैर के आधा भाग को उठाकर रक्त चंदनादि से युक्त लाल पुष्प, चावल आदि तांबे के पात्र में रख कर सूर्य को हाथ की अंजलि से तीन बार जल में ही अर्घ्य देना चाहिए। दोपहर को खडे़ होकर अंजलि से केवल एक बार जल में और सायंकाल में साफ-सुथरी भूमि पर बैठकर तीन बार अंजलि में जल भरकर अर्घ्य देना चाहिए। ध्यान रखें, जल पैरों का स्पर्श न करे।
विष्णु सप्तमी व्रत मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष कि सप्तमी तिथि के दिन किया जाता है. इस वर्ष विष्णु सप्तमी 14 दिसंबर 2018 को मनाई जानी है. भारतीय संस्कृति में ,मार्गशीर्ष मास का अपना एक विशेष महत्व होता है, इस मास में सांसारिक विषयों से ध्यान हटाकर आध्यात्मिक से रिश्ता जोडा जाता है. आत्मा का नियंत्रक ग्रह सूर्य धर्म के कारक होकर आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होते हैं.
मार्गशीर्ष मास की हर तिथि अपना विशिष्ट आध्यात्मिक महत्व रखती है. ऐसा माना जाता है कि विष्णु सप्तमी के दिन उपवास रखकर भगवान विष्णु का पूजन करने से समस्त कार्य सफल होते हैं. विष्णु पुराण में शुक्लपक्ष की विष्णु सप्तमी तिथि को आरोग्यदायिनी कहा गया है. इस तिथि में सूर्यनारायण का पूजन करने से रोग-मुक्ति मिलती है.
*विष्णु सप्तमी पूजन*
सप्तमी का व्रत अपना विशेष महत्व रखता है. सप्तमी का व्रत करने वाले को प्रात:काल में स्नान और नित्यक्रम क्रियाओं से निवृत होकर, स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए. इसके बाद प्रात:काल में श्री विष्णु और भगवान शिव की पूजा अर्चना करनी चाहिए. और सप्तमी व्रत का संकल्प लेना चाहिए. निराहार व्रत कर, दोपहर को चौक पूरकर चंदन, अक्षत, धूप, दीप, नैवेध, सुपारी तथा नारियल आदि से फिर से शिव- पार्वती की पूजा करनी चाहिए.
सप्तमी तिथि के व्रत में नैवेद्ध के रुप में खीर-पूरी तथा गुड के पुए बनाये जाते है. रक्षा की कामना करते हुए भगवान भोलेनाथ को लाळ रंगा का डोरा अर्पित किया जाता है. श्री भोलेनाथ को यह डोरा समर्पित करने के बाद इसे स्वयं धारण कर इस व्रत की कथा सुननी चाहिए. व्रत की कथा सुनने के बाद सांय काल में भगवान विष्णु की पूजा धूप, दीप, फल, फूल और सुगन्ध से करते हुए नैवैध का भोग भगवान को लगाना चाहिए. और भगवान कि आरती करनी चाहिए.
*विष्णु सप्तमी महत्व* भगवान विष्णु सृष्टि के पालनहार हैं सर्वव्यापक भगवान श्री विष्णु समस्त संसार में व्याप्त हैं कण-कण में उन्हीं का वास है उन्हीं से जीवन का संचार संभव हो पाता है संपूर्ण विश्व श्री विष्णु की शक्ति से ही संचालित है वे निर्गुण, निराकार तथा सगुण साकार सभी रूपों में व्याप्त हैं. विष्णु भगवान का स्वरूप बहुत ही विशाल एवं विस्तृत है उनके रूप को वेदों पुराणों में बहुत ही सुंदर तरीके से दर्शाया गया है भक्तों द्वारा उनके रूप का वर्णन तो देखते ही बनता है.
शेषनाग पर विराजमान भगवान विष्णु अपने चार हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए होते हैं पिताम्बर को धारण किए हुए उनकी आभा से समस्त लोक प्रकाशमान हैं, कौस्तुभमणि को धारण करने वाले, कमल नेत्र वाले भगवान श्री विष्णु देवी लक्ष्मी के साथ बैकुंठ धाम में निवास करते हैं. भगवान श्री विष्णु ही परमार्थ तत्व हैं तथा ब्रह्मा एवं शिव सहित समस्त सृष्टि के आदि कारण हैं. अत: विष्णु सप्तमी व्रत करते हुए जो भी प्रभु विष्णु का ध्यान मन करता है वह समस्त भव सागरों को पार करके विष्णु धाम को पाता है. भगवान श्री विष्णु अत्यन्त दयालु तथा जीवों पर करुणा-वृष्टि करने वाले हैं उनकी शरण में जाकर श्री विष्णु के नामों का कीर्तन, स्मरण, दर्शन, वन्दन, श्रवण तथा उनका पूजन करने से
समस्त पाप-ताप नष्ट हो जाते हैं. *”ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”* महामंत्र के जाप से सभी के कष्ट दूर होते हैं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है|
मित्र सप्तमी पौराणिक महत्व* सूर्य देव को महर्षि कश्यप और अदिति का पुत्र कहा गया है. इनके जन्म के विषय में कहा जाता है कि एक समय दैत्यों का प्रभुत्व खूब बढ़ने के कारण स्वर्ग पर दैत्यों का अधिपत्य स्थापित हो जाता है. देवों के दुर्दशा देखकर देव-माता अदिति भगवान सूर्य की उपासना करती हैं. आदिति की तपस्या से प्रसन्न हो भगवान सूर्य उन्हें वरदान देते हैं कि वह उनके पुत्र रूप में जन्म लेंगे तथा उनके देवों की रक्षा करेंगे. इस प्रकार भगवान के कथन अनुसार कुछ देवी अदिति के गर्भ से भगवान सूर्य का जन्म होता है. वह देवताओं के नायक बनते हैं और असुरों को परास्त कर देवों का प्रभुत्व कायम करते हैं. नारद जी के कथन अनुसार जो व्यक्ति मित्र सप्तमी का व्रत करता है तथा अपने पापों की क्षमा मांगता है सूर्य भगवान उससे प्रसन्न हो उसे पुन: नेत्र ज्योति प्रदान करते हैं. इस प्रकार यह मित्र सप्तमी पर्व सभी सुखों को प्रदान करने वाला व्रत है.
मित्र सप्तमी व्रत भगवान सूर्य की उपासना का पर्व है. सप्तमी के दिन इस पर्व का आयोजन मार्गशीर्ष माह के आरंभ के साथ ही शुरू हो जाता है इस पर्व के उपलक्ष में भगवान सूर्य की पूजा का विशेष महत्व होता है. मित्र सप्तमी व्रत में भगवान सूर्य की पूजा उपासना की जाती है, इस दिन व्रती अपने सभी कार्यों को पूर्ण कर भगवान आदित्य का पूजन करता है व उन्हें जल द्वरा अर्घ्य दिया जाता है.
सूर्य भगवान का षोडशोपचार पजन करते हैं. पूजा में फल, विभिन्न प्रकार के पकवान एवं मिष्ठान को शामिल किया जाता है. सप्तमी को फलाहार करके अष्टमी को मिष्ठान ग्रहण करते हुए व्रत पारण करें. इस व्रत को करने से आरोग्य व आयु की प्राप्ति होती है. इस दिन सूर्य की किरणों को अवश्य ग्रहण करना चाहिए. पूजन और अर्घ्य देने के समय सूर्य की किरणें अवश्य देखनी चाहिए.
मित्र सप्तमी पर्व के अवसर पर परिवार के सभी सदस्य स्वच्छता का विशेष ध्यान रखते हैं. मित्र सप्तमी पर्व के दिन पूजा का सामान तैयार किया जाता है जिसमें सभी प्रकार के फल, दूध. केसर, कुमकुम बादाम इत्यादि को रखा जाता है. इस व्रत का बहुत महत्व रहा है इसे करने से घर में धन धान्य की वृद्धि होती है और परिवार में सुख समृद्धि आती है. इस व्रत को करने से चर्म तथा नेत्र रोगों से मुक्ति मिलती है. @ज्योतिषाचार्य श्री विजय स जोशी*
आज के दिन तेल और नमक का त्याग करना चाहिए। सूर्य प्रसन्न होकर लंबी आयु, आरोग्य, धन, उत्कृष्ट संतान, मित्र, तेज, वीर्य, यश, कांति, विद्या, वैभव और सौभाग्य प्रदान करते हैं। जिन लोगों का मेष, सिंह, वृश्चिक, धनु लग्न है, उन्हें तो निश्चित ही सूयार्ेपासना करनी चाहिए। साथ ही जिनकी कुंडली में सूर्य अपनी नीच राशि तुला में हैं, अर्थात जिनका जन्म 17 अक्तूबर से 16 नवंबर के बीच हुआ है, उन्हें सूर्य की पूजा जन्मकुंडली अनुसार शुभ होने पर अवश्य करनी चाहिए। साथ ही, जिनकी कुंडली में सूर्य राहु-केतु, शनि के साथ हैं, उन्हें भी नियम से सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। रविवार और भगवान सूर्य की प्रिय तिथि सप्तमी को नीले रंग के वस्त्र नहीं पहनने चाहिए। स्मरण रहे, महर्षि अगस्त्य के कहने पर आदित्य हृदय स्तोत्र का लगातार तीन बार पाठ करने के कारण ही सूर्यवंशी राम लंकापति रावण का वध करने में सफल हुए। इनके बहुत से मंत्र हैं, लेकिन- ‘ओम घृणि सूर्य आदित्य ओम’ का अधिकांश सनातनधर्मी जाप करते हैं।