महिला पुलिस स्वयंसेवक योजना- & निर्भया कोष – उत्तराखंड ने कोई राशि खर्च नहीं की- संसद में पेश आंकड़े

महिला पुलिस स्वयंसेवक योजना के मद में आवंटित राशि में अंडमान निकोबार, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, मिजोरम, नगालैंड, त्रिपुरा और उत्तराखंड ने कोई राशि खर्च नहीं की. न्याय विभाग ने निर्भया कोष के तहत परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए उत्तराखंड को धन आवंटित किया था.  2016-2017 वित्तीय वर्ष में देश के 8 राज्यों ने इस योजना को लागू करने का प्रपोजल दिया गया था.  Presented by www.himalayauk.org (Leadidng Newsportal & Daily Newspaper) Bureau Report Mail us; himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030

लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान निर्भया कोष के आवंटन के संबंध में सरकार द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार, आवंटित धनराशि में से 11 राज्यों ने एक रुपया भी खर्च नहीं किया.  न्याय विभाग ने निर्भया कोष के तहत परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, नगालैंड, ओडिशा, राजस्थान, त्रिपुरा और उत्तराखंड को धन आवंटित किया था.

लोकसभा में दीया कुमारी के प्रश्न के लिखित उत्तर में महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों को पेश किया, जो महिलाओं के खिलाफ आपराधिक घटनाओं में वृद्धि को स्पष्ट करते हैं.

 दिसंबर 2016 में निर्भया फंड से तहत शुरू की गई योजना ‘महिला पुलिस वॉलेंटियर’ को लेकर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने संसद में बताया है कि सरकार ने इस योजना के परिणाम जानने के लिए कोई सर्वे नहीं किया है. मतलब इस योजना से कितनी महिलाएं लाभान्वित हुईं या कितनी महिला पुलिस वॉलेंटियर सशक्त हुईं, इस बात की पड़ताल सरकार ने नहीं की है. साथ ही मंत्रालय ने अपने लिखित उत्तर में ये भी बताया कि ‘महिला पुलिस वॉलेंटियर’ के तहत बनाए जाने वाले महिला एवं शिशु रक्षक दल को भी अभी तक लॉन्च नहीं किया है. गौरतलब है कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और गृह मंत्रालय द्वारा चलाई जा रही इस योजना को अब तीन साल होने वाले हैं.

 इस योजना का ड्राफ्ट बनाते समय कहा गया था कि 12 मई 2015 को गृह मंत्रालय ने महिला मुद्दों की जांच के दौरान संवेदनशीलता बरतने की सलाह दी थी. उसके बाद महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने निर्भया फंड के तहत इस योजना का जोर शोर से प्रचार किया था.

 कोई भी 21 वर्ष से बड़ी उम्र की महिला जिसकी शैक्षणिक योग्यता 12वीं है, महिला पुलिस वॉलेंटियर बन सकती है. बशर्ते वो उसी क्षेत्र की रहने वाली हो और लोकल बोली से परिचित भी हो. साथ ही उसका किसी भी राजनीतिक दल से कोई जुड़ाव नहीं होना चाहिए और न ही कोई आपराधिक रिकॉर्ड होना चाहिए. ऐसी महिलाएं पुलिस और समाज के बीच कड़ी का काम करेंगी. इनका मुख्य काम महिलाओं के खिलाफ होने वाली यौन हिंसा, घरेलू हिंसा, बाल विवाह और सार्वजनिक स्थलों पर होने वाली छेड़खानी की घटनाओं को रिपोर्ट करना है. इसके लिए उन्हें प्रतिमाह 1000 रुपए का मानदेय दिया जाता है. इसके अलावा उन्हें महिला एवं शिशु रक्षक दल का भी निर्माण करना होता है.

हैदराबाद में महिला डॉक्टर की सामूहिक बलात्कार के बाद हत्या किए जाने की घटना से देशभर में रोष है, लेकिन ऐसे मामलों में बढ़ोतरी के बावजूद अधिकतर राज्य सरकारें उदासीन बनी हुई हैं. महिला सुरक्षा के लिए स्थापित निर्भया फंड में से कुछ राज्यों ने जहां नाममात्र की धनराशि खर्च की तो वहीं कई राज्य विभिन्न मदों में एक भी पाई का उपयोग करने में विफल रहे. हैदराबाद में महिला डॉक्टर से बलात्कार की घटना से देश में उत्पन्न आक्रोश के बीच एक तथ्य यह भी है कि केंद्र सरकार द्वारा महिला सुरक्षा के लिए गठित निर्भया फंड के पैसे खर्च करने में सभी राज्य विफल रहे और कुछ राज्यों ने तो एक पैसा भी खर्च नहीं किया.

   लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान निर्भया कोष के आवंटन के संबंध में सरकार द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार, आवंटित धनराशि में से 11 राज्यों ने एक रुपया भी खर्च नहीं किया. इन राज्यों में महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा के अलावा दमन और दीव शामिल हैं. दिल्ली ने 390.90 करोड़ रुपये में सिर्फ 19.41 करोड़ रुपये खर्च किए. उत्तर प्रदेश ने निर्भया फंड के तहत आवंटित 119 करोड़ रुपये में से सिर्फ 3.93 करोड़ रुपये खर्च किए. कर्नाटक ने 191.72 करोड़ रुपये में से 13.62 करोड़ रुपये, तेलंगाना ने 103 करोड़ रुपये में से केवल 4.19 करोड़ रुपये खर्च किए. आंध्र प्रदेश ने 20.85 करोड़ में से केवल 8.14 करोड़ रुपये, बिहार ने 22.58 करोड़ रुपये में से मात्र 7.02 करोड़ रुपये खर्च किए.

मालूम हो कि दिल्ली में 2012 में हुए नई दिल्ली में हुए निर्भया गैंगरेप और हत्या मामले के बाद सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए समर्पित एक विशेष फंड की घोषणा की थी, जिसका नाम निर्भया फंड रखा गया था. गुजरात ने निर्भया फंड के तहत आवंटित 70.04 करोड़ रुपये में से 1.18 करोड़ रुपये, मध्य प्रदेश ने 43.16 करोड़ रुपये में से 6.39 करोड़ रुपये, तमिलनाडु ने 190.68 करोड़ रुपये में से 6 करोड़ रुपये, पश्चिम बंगाल ने 75.70 करोड़ रुपये में से 3.92 करोड़ रुपये खर्च किए. संसद में पेश आंकड़ों के अनुसार महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से जुड़ी योजनाओं के लिए 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को महिला हेल्पलाइन, वन स्टॉप सेंटर स्कीम सहित विभिन्न योजनाओं के लिए धन आवंटित किया गया था. दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, झारखंड, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, दादरा नगर हवेली और गोवा जैसे राज्यों को महिला हेल्पलाइन के लिए दिए गए पैसे जस के तस पड़े हैं.

वन स्टॉप योजना के तहत बिहार, दिल्ली, कर्नाटक, लक्षद्वीप, पुडुचेरी, पश्चिम बंगाल ने एक पैसा खर्च नहीं किया. महिला पुलिस स्वयंसेवक योजना के मद में आवंटित राशि में अंडमान निकोबार, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, मिजोरम, नगालैंड, त्रिपुरा और उत्तराखंड ने कोई राशि खर्च नहीं की. न्याय विभाग द्वारा 11 राज्यों को दिए गए फंड में से किसी भी राज्य ने एक पैसा खर्च नहीं किया.

Lucknow: Pragatisheel Samajwadi Party (Lohia) members, wearing black bands, stage a protest against the rape and murder of a veterinarian doctor in Hyderabad last week, in Lucknow, Monday, Dec. 2, 2019. (PTI Photo/Nand Kumar) (PTI12_2_2019_000117B)

न्याय विभाग ने निर्भया कोष के तहत परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, नगालैंड, ओडिशा, राजस्थान, त्रिपुरा और उत्तराखंड को धन आवंटित किया था.लोकसभा में दीया कुमारी के प्रश्न के लिखित उत्तर में महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों को पेश किया, जो महिलाओं के खिलाफ आपराधिक घटनाओं में वृद्धि को स्पष्ट करते हैं.

इन अपराधों में बलात्कार, घरेलू हिंसा, मारपीट, दहेज प्रताड़ना, एसिड हमला, अपहरण, मानव तस्करी, साइबर अपराध और कार्यस्थल पर उत्पीड़न आदि शामिल है. एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, साल 2015 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 3.29 लाख मामले दर्ज किए गए. 2016 में इस आंकड़े में 9,711 की बढ़ोतरी हुई और इस दौरान 3.38 लाख मामले दर्ज किए गए. इसके बाद 2017 में 3.60 लाख मामले दर्ज किए गए. साल 2015 में बलात्कार के 34,651 मामले, 2016 में बलात्कार के 38,947 मामले और 2017 में ऐसे 32,559 मामले दर्ज किए गए.

  बीते 28 नवंबर की रात में हैदराबाद शहर के बाहरी इलाके में सरकारी अस्पताल में कार्यरत 25 वर्षीय पशु चिकित्सक से चार युवकों ने बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी थी. ये चारों युवक लॉरी मजदूर हैं. इससे पहले झारखंड की राजधानी रांची में 25 वर्षीय कानून की एक छात्रा को अगवा कर उसके साथ पुरुषों के समूह के सामूहिक बलात्कार करने की घटना सामने आई थी. मामले में सभी 12 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है. इस घटनाओं को लेकर पूरे देश में एक बार फिर आक्रोश उत्पन्न हो गया है. घटना के विरोध में देश के तमाम शहरों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं.

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