दुनिया में इकलौता मंदिर- एक ही मूर्ति की 3 धर्मों के लोग एक साथ पूजा करते हैं
हिमाचल प्रदेश में कई तीर्थ स्थल हैं। ऐसा ही एक त्रिलोकीनाथ शिव मंदिर है। यह मंदिर लाहौल-स्पीति के उदयपुर उपमंडल में स्थित है। चंद्रभागा नदी के किनारे बसा कस्बा उदयपुर कई चीजों के लिए जाना जाता है। यह स्थान छह महीने बर्फ से ढंका रहता है। जहां इसका तापमान माइन्स 25 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। समुद्र तल से लगभग 2742 मीटर की ऊंचाई पर बसे उदयपुर में गर्मियों के मौसम में लोग पहुंच सकते हैं। छोटी आबादी वाला इलाका त्रिलोकीनाथ मंदिर के लिए दुनियाभर में मशहूर है।
यह मंदिर बहुत खास है। इसमें हिंदू और बुद्धिश्त सदियों से महादेव की पूजा-अर्चना कर रहे हैं। दुनिया में शायद यह इकलौता मंदिर है। जहां एक ही मूर्ति की दोनों धर्मों के लोग एक साथ पूजा करते हैं। त्रिलोकीनाथ मंदिर का प्राचीन नाम टुंडा विहार है। हिंदूओं द्वारा शिवजी के रूप में पूजा की जाती है। बौद्ध इसे आर्य अवलोकितेश्वर के रूप में पूजते हैं, जबकि तिब्बती लोग इसे गरजा फग्सपा कहते हैं। इस प्रकार एक ही स्थल में तीन अलग-अलग रूपो में भक्तों की आस्था है।
त्रिलोकीनाथ मंदिर के अंदरूनी मुख्य द्वार के दोनों छोर पर दो स्तम्भ हैं। मान्यताओं के अनुसार जिस भी शख्स को अपने पाप और पुण्य के बारे में जानना हो। वह इन संकरे शिला स्तंभों के मध्य से गुजरना होता है। यदि किसी ने पाप किया है तो वह इनके पार नहीं जा पाता। वहीं अगर मनुष्य सच्चा होगा तो वह इसके बीच से सरलता से निकल जाता है।
ऐसा माना जाता है कि 16वीं शताब्दी में रानी सुल्तान देवी ने त्रिलोकीनाथ मंदिर के निर्माण की शुरुआत की थी। जिसे 1520 ईस्वी के आसपास बनाया गया था। मान्यता है कि मंदिर का निर्माण करने वाले सेना वंश कर्नाटक से आए थे, जो पाल साम्राज्य को अपने कब्जे में लेकर बंगाल में बस गए थे। सेना राजवंश ने कई मंदिरों का निर्माण किया, जिसमें से एक कश्मीर में था। जिसका नाम शंकर गौरेश्वर रखा गया।
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