अंतर्मन की शांति जागृत करने के लिए योग
राजयोग अर्थात् अपनी भागदौड़ भरी जिन्दगी से थोड़ा समय निकालकर शान्ति से बैठकर आत्म निरीक्षण करना।
सदियों से योग अंतर्मन की शांति जागृत करने के लिए जाना जाता है। हम अकसर मन की शांति की तलाश भौतिक वस्तुओं में करते हैं- हुमा सिद्दिकी
बी.के सुशांत
आपाधापी भरे इस युग में जन-सामान्य बहुत कुछ हासिल करने की चाह में मानसिक अशांति और शारीरिक व्याधियों को आमंत्रण दे रहा है। लेकिन विकास की प्रक्रिया में साझीदार होना वक्त की आवश्यकता है पर अंधाधुंध दौड़ना शरीर और मन को देने वाली यंत्रणा है। 21 जून को विश्व अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर जन-मानस में योग के प्रति जो सकारात्मक भावनाएं उत्पन्न हो रही है वह वास्तव में एक सुखद अनुभव है। भारत भूमि में वर्षों से योग प्रचालित रहा है और आज विश्व भी इसे मान्यता प्रदान कर रहा है। राजयोग एक ऐसी मानसिक अवस्था है जिसे शांत चित्त से कोई भी कर सकता है।
राजयोग अन्तर जगत की ओर एक यात्रा है। यह स्वयं को जानने या यूँ कहें कि पुन: पहचानने की यात्रा है। राजयोग अर्थात् अपनी भागदौड़ भरी जिन्दगी से थोड़ा समय निकालकर शान्ति से बैठकर आत्म निरीक्षण करना। इस तरह के समय निकालने से हम अपने चेतना के मर्म की ओर लौट आते हैं। इस आधुनिक दुनिया में, हम अपनी जिन्दगी से इतने दूर निकल आये हैं कि हम अपनी सच्ची मन की शान्ति और शक्ति को भूल गये हैं। फिर जब हमारी जड़े कमजोर होने लगती हैं तो हम इधर-उधर के आकर्षणों में फँसने लग जाते हैं और यही से हम तनाव महसूस करने लग जाते हैं। आहिस्ते-आहिस्ते ये तनाव हमारी मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक स्वास्थ्य को असन्तुलित कर हमें बीमारियों में भी जकड़ सकता है।
राजयोग एक ऐसा योग है जिसे हर कोई कर सकता हैं। इसे कहीं भी और किसी भी समय किया जा सकता है। राज योग को आँखे खोलकर किया जाता है इसलिए ये अभ्यास सरल और आसान है। योग एक ऐसी स्थिति है जिसमे हम अपनी रोजमर्रा की चिन्ताओ से परे जाते है ओर हम अपने आध्यात्मिक सशक्तिकरण का आरंभ करते है। आध्यात्मिक जागृति हमें व्यर्थ और नकारात्मक भावों से दूर कर अच्छे और सकारात्मक विचार चुनने की शक्ति देता है। हम परिस्थितियों का जवाब जल्दबाज़ी मे देने के बजाए सोच समझ के करेंगे । हम समरसता में जीने लगते हैं । बेहतर, खुशनुम: और मज़बूत रिश्ते बना ;अपने जीवन मे सकारात्मक परिवर्तन कर पाते हैं।
योगाभ्यास कैसे किया जाये?
राजयोग करना वास्तव मे बहुत सरल है, इसलिए इस योग को दूसरे शब्दों में ‘सहज राजयोग’ भी कहा जाता है। परन्तु कभी कभार शुरुआत मे इसकी थोड़ी सी जानकारी की जरूरत पड़ती है। इस अभ्यास के लिए नीचए 5 सरल कदम बताए गये हैं। अभीयास करते करते बहुत जलद ही आपको एन 5 क़दमो की भी आवश्यकता नहीं रहेगी – केवल एक है विचार से आप एक शान्त स्थिति में पहुंच जायेंगे।
पहला कदम – विश्रान्ति
विश्रान्ति अर्थात् अपने तनाव और उलझनों को परे रखते हुए अपने मन और शरीर को शान्त और स्थिर करना ।
दूसरा चरण – एकाग्रता
विश्रांत होने के बाद वर्त्तमान पे अपना ध्यान केन्द्रित करना।
तीसरा चरण – मनन करना
स्वयं की आन्तरिक दुनिया और अपने मूल्यों की गहराई में जाना…
चौथा चरण – अनुभूति
जब मेरी समझ और मेरे अहसासो का मेल होता हैं तो और ही गहरी और सार्थक वास्तविकता की अनुभूति होती है
पांचवा चरण – योगाभ्यास
एक ही संकल्प में एकाग्र रहके अपने मूल अस्तित्व को याद करते हुए सुस्वस्थ स्थिति को पुन: जागृत करना।
राजयोग के बारे में और जानिए ये क्या है? इसे क्यों, कैसे, कहाँ और कब किया जाये और किस प्रकार के लोग इसका अभ्यास कर सकते हैं।
योगाभ्यास कहाँ कर सकते है ?
जीवन पहले से ही विविधताओं से भरा हुआ है, बहुत सारी गतिविधियाँ और जिम्मेदारियाँ होती हैं। ऐसे में हम राजयोग अभ्यास के लिए समय कैसे निकाल सकते हैं? यही तो राजयोग की सुन्दरता है कि इसे कहीं भी और कभी भी किया जा सकता है।
घर में
राजयोग अभ्यास के लिए खास रूम अथवा जगह की आवश्यकता नहीं है। कोई भी एकान्त और शान्त स्थान या आरामदायक कुर्सी भी चल सकती है। अपनी आन्तरिक गहराई को समझने के लिए लगातार और नियमित समय निश्चित करें। कुछ ही समय में आपको ऐसी जगह मिलेगी जिसकी तरफ आप आकर्षित होने लगेंगे जहाँ पर आपने अपनी शान्ति की स्थिति से और आत्म चिन्तन के अभ्यास से शान्ति का वातावरण बनाया होगा। ऐसी नियुक्त जगह पर आप जब ओर जितनी बार बी जाना चाहे तो जा सकते है ।
आपके कार्य स्थल पर
जहां भी आप कामकाज करते है, यदि आप थोड़ा सा असामान्य/ रचनात्मक तरीके से सोचेंगे तो ज़रूर आप को अपना मैडिटेशन कहा और कैसे करना है, उस के लिए कोई अच्छा सुजाव निकलेगा
हुमा सिद्दिकी
अपनी अंतरात्मा में स्वयं को महसूस करने से बेहतर कोई अनुभव नहीं है। सदियों से योग अंतर्मन की शांति जागृत करने के लिए जाना जाता है। हम अकसर मन की शांति की तलाश भौतिक वस्तुओं में करते हैं।
आश्चर्य नहीं कि लैटिन अमेरिकी इस शानदार विज्ञान की जानकारी प्राप्त कर चुके हैं। वास्तव में वे भारत को योग, ध्यान, दर्शन, ज्ञान, संस्कृति तथा आध्यात्मवाद की भूमि मानते हैं। पूरे लैटिन अमेरिका में योग विद्यालयों का दिखाई पड़ना एक आम बात है। कुछ लैटिन अमेरिकी जेलों में अपराधियों को योग और ध्यान सिखाया जाता है। मीलों तक अछूती प्राकृतिक बस्तियों और माया तथा इंकान सभ्यताओं की गहन आध्यात्मिक परंपराओं वाले मध्य तथा दक्षिण अमेरिका, आध्यात्मिक यात्रा के लिए उत्तम स्थान है।
यद्यपि कई वर्षों से इस क्षेत्र में योग का अभ्यास किया जाता रहा है तथापि पिछले दो वर्षों में योग की इच्छा रखने वालों में एक ‘विस्फोट’-सा हुआ है तथा भारतीय संस्कृति के प्रति तेजी से रूचि बढ़ी है। अब योग का पेरू, बोलिविया तथा लैटिन अमेरिका के आस-पास के भागों में लोक प्रिय होना निश्चित है क्योंकि इस संबंध में हाल ही में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए हैं। पेरू की राजधानी लीमा में भारतीय दूतावास ने आयुष मंत्रालय के निवेदन से भारतीय गुणवत्ता परिषद (क्यूसीआई) द्वारा विकसित योग पेशेवरों के मूल्यांकन तथा प्रमाणन के लिए स्वैच्छिक योजनाओं को बढ़ाने की जिम्मेदारी ली है।
आश्चर्य कि बात नहीं कि लैटिन अमेरिका उन योग उत्साहियों के लिए एक पंसदीदा गंतव्य है जो अपने योग अनुभवों को और बेहतर बनाने की तलाश में है। इस क्षेत्र में विकल्पों की कोई कमी नहीं है। कोस्टा रिका, निकारागुआ, पेरू, ब्राजील, होंडुरास, ग्वाटेमाला, मेक्सिको, इक्वाडोर, चिली सहित सभी देश योग उत्साहियों की पंसदीदा स्थलों में से हैं।
एक छोटे देश कोस्टा रिका की पचास लाख जनसंख्या में दो सौ भारतीय हैं परंतु इन दो सौ लोगों ने बहुत उत्साह से कोस्टा रिका की अधिकांश जनसंख्या को सांस्कृतिक, प्रौद्योगिकीय तथा आर्थिक कारणों से भारत की ओर देखने के लिए प्रेरित किया है। कोस्टा रिका को इसकी प्राकृतिक सुंदरता, शांति तथा आर्थिक स्थायित्व के लिए मध्य अमेरिका में एक रत्न के रूप में जाना जाता है। यहां स्वस्थ जीवन-शैली अपनाने वालों की संख्या बढ़ी है। लगभग एक दशक पूर्व जब भारतीय कंपनी हैवेल्स ने दुनिया भर में सिल्वानिया का कारोबार शुरू किया तो एक युवा परिवार कंपनी के क्षेत्रीय हितों के प्रबंधन के लिए कोस्टा रिका चला आया। उसने केवल कंपनी की ही व्यवस्था ही नहीं देखी बल्कि भारत के ज्ञान का भी विस्तार किया और यहां एक रेस्टोरेंट खोलकर भारतीय संस्कृति के आध्यात्मिक पहलू के प्रति लोगों में दिलचस्पी बढ़ाई।
21 जून, को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के आह्वान की भावना के अनुरूप ‘ताजमहल’ रेस्टोरेंट के मालिक कपिल गुलाटी ने भारतीय व्यंजनों की पाक-कला कक्षाओं के साथ-साथ नियमित योग सत्र तथा भारतीय शास्त्रीय नृत्य सत्र का आयोजन किया है। विचार तो ताजमहल में एक लघु भारत प्रस्तुत करने का है ताकि घरों से इतनी दूर रह रहे लोग रहस्यपूर्ण भारत और इसकी संस्कृति का अनुभव कर सकें।
भारत के राष्ट्रीय पक्षी मोर को प्रतीक के रूप में उपयोग करते हुए रेस्टोरेंट ने तीन मोर रखे हैं जो स्थानीय लोगों द्वारा योग करने के दौरान नाचते रहते हैं। इससे वातावरण और भी रमणीक और जीवंत हो जाता है। कोस्टा रिका में भारतीय संस्कृति के फलने-फूलने के उदाहरण हैं- रेस्टोरेंट में संगीत वाद्ययंत्र, योग की कक्षाएं, भारतीय शास्त्रीय नृत्य कक्षाएं, हिंदी भाषा कक्षाएं, भारतीय पाक कला (व्यंजन) कक्षाएं, भारतीय उत्सव आयोजन, बालीवुड आधारित कोस्टा रिका की फिल्में। भारत में कोस्टा रिका की राजदूत इस बात का श्रेष्ठ उदाहरण हैं कि भारतीय संस्कृति किस प्रकार कोस्टा रिका के लोगों को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही है।
कलियुग में संसार विध्वंस के दौर से गुजर रहा है और जब तक हम अपने से जुड़े रहते हैं और हमें यह ज्ञान है कि हम कहां और क्यों जा रहे हैं, तो हम इस अराजकता में संतुलन बनाए रख सकते हैं। इस कार्य के विभिन्न विकल्पों में योग प्रमुख है। कोस्टा रिका रिपब्लिक की राजदूत सुश्री मेरियला क्रुज अल्वारेज का कहना है कि योग कोई धर्म नहीं है वरन् एक विज्ञान और कला है और इससे पूरी मानवता लाभान्वित हो सकती है।
योग के बारे में एक वृद्ध महिला कहती हैं, ‘‘एक व्यक्तिगत संकट के माध्यम से मेरी योग में दिलचस्पी बढ़ी। मैंने अपने हृदय में उत्तर खोजना शुरू किया और मेरी ये खोज मुझे भारत ले आयी। मैंने पयर्टक के रूप में उत्तर भारत के तीन दौरे किये। इसके बाद मुझे महसूस हुआ कि दक्षिण भारत जाना चाहिए। मेरी 2003 में कर्नाटक के मैसूर में अपने गुरू श्री के. पट्टाभी जायश और उनके पौत्र शरत जायश से मुलाकात हुई।’’
सुश्री अल्वारेज कुल 14 बार भारत की यात्रा कर चुकी हैं, जिसमें एक राजनयिक के रूप में उनकी यह पहली यात्रा भी शामिल है। वह कहती हैं, ‘‘ मेरी पिछली 11 यात्राएं भारत स्थित मेरे विद्यालय में गुरूजी के सानिध्य में और 2009 में गुरूजी के निधन के उपरांत उनके पुत्र शरत जी के सानिध्य में अष्टांग योग के अभ्यास हेतु थी। मेरा विद्यालय पश्चिम में बहुत लोकप्रिय है और दुनियाभर में कई विद्यार्थी पारंपरिक पद्धति के रूप में योग के लाभों की सराहना करते हैं। योग का स्रोत एवं जनक भारत है और इस तथ्य को जानना इसलिए भी अति आवश्यक है क्योंकि अब पश्चिम में बहुत से लोग बगैर किसी योग्यता के योग की शिक्षा दे रहे हैं। व्यावसायिक योग ने योग को आध्यात्मिक साधना की बजाय शारीरिक स्वस्थता तक सीमित कर दिया है।’’
कोस्टारिका में योग काफी लोकप्रिय हो रहा है और यह योग शिक्षकों, योग आश्रमों, प्रकृति और अभ्यास का केंद्र बन गया है। कोस्टारिका में शानदार समुद्र तट, ज्वालामुखी, और जंगल हैं और योगाभ्यास ने हमें सौंदर्य, शांति और स्वतंत्रता के प्रशंसक के रूप में परिवर्तित कर दिया है। इन मूल्यों को मेरा देश भली-भांति समझता है। हमारा राष्ट्र हरित विकास का लोकतंत्र है, जो आकार में भले ही छोटा है, लेकिन भावनाओं और सिद्धांतों में बहुत बड़ा है।
30 वर्षों तक एक परिवार का भरण-पोषण करने के बाद दुनिया में अष्टांग योग के अपने पहले मिशन के दूत के रूप में वह कहती हैं, ‘‘भारत में एक दूत के रूप में मेरी आकांक्षा अपने साथियों से खुले दिल के साथ मिलने की है, भले ही वे योगाभ्यास करते हों अथवा नहीं। मेरे इस अभ्यास का उद्देश्य उन लोगों से उपहार स्वीकारना है जो दूसरों के प्रति निस्वार्थ प्रेम और स्वीकृति का भाव रखते हैं। मैं उनको जानकर कृतज्ञ महसूस करती हूं और सहृदय उनकी सराहना करती हूं। गुरूजी शरत जोएस से आशीर्वाद स्वरूप प्राप्त शिक्षा से मुझे लैटिन अमेरिका, यूरोप और भारत में कई शानदार लोगों मिलने का अवसर मिला है। उन्होंने मुझ पर जो विश्वास व्यक्त किया है इसे व्यक्त करने के लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं है।’’
वह कहती है, ‘‘मैं सभी रूपों में भारत की सराहना करती हूं और जो ज्ञान मुझे यहां प्राप्त हुआ उसने मेरे और मेरे आसपास के लोगों के जीवन को आकांक्षाओं से कहीं बढ़कर परिवर्तित किया है। मेरे गुरूजी कहा करते थे- अभ्यास से सब कुछ संभव है। दुनिया के तमाम लोगों की तरह मैं भी जीवन में मुश्किल समय से गुजरी और ऐसे में योग ने मुझे सहारा देकर मेरा उपचार किया। मेरी आकांक्षा है कि यहां के अपने कार्यकाल के दौरान शांति और स्थायित्व को प्रोत्साहित कर सकूं। पर्यावरण सरोकारों, शिक्षा और स्वास्थ्य देखरेख में हमारे प्रयासों के इन्हीं मूल्यों को कोस्टा रिका दुनिया को प्रदान करना चाहता है। मुझे कोस्टारिका का निवासी होने पर गर्व है और हमारा देश आपके साथ प्रगाढ़ संबंध बनाने के लिए उत्सुक है। हमारे देश की जनसंख्या और भौगोलिक आकार भले ही छोटा हो, लेकिन हमारे इरादे बहुत बड़े हैं। भारत ने मुझे काफी कुछ सिखाया है। मुझे आशा है कि मैं अपने देश की और आपकी सेवा सर्वोत्तम ढ़ंग से कर सकूंगी।’’
HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND (www.himalayauk.org)
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