लक्ष्य साधेगे योगीमय स्टाइल से नीतिश्ा कुमार ?
भविष्य के गर्भ में क्या है कोई नहीं जानता# 1 9 लोकसभा चुनाव की तैयारी-#भविष्य के गर्भ में क्या है कोई नहीं जानता#लक्ष्य प्राप्ति के लिए साधक को नाना प्रकार का तिकड़म करना पड़ता है# हिमालयायूके के लिए चन्द्रशेखर जोशी सम्पादक की एक्सक्लुूसिव स्टोरी-
लोहे को लोहा काटता है, यह कहावत करीबन सबने सुनी होगी, देश में योगी और मोदी छाये है, इनको इसी स्टाइल में शिकस्ते देने की तैयारी हो रही है, मीडिया में योगी और मोदी छाये हुए है, उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की दिनचर्या-जीवनचर्या पर खूब खबरें आ रही हैं. कभी सुनने को मिलता है कि वह सुबह 3 बजे उठ जाते हैं, कभी खबर आती है कि सीएम आवास में एसी-गद्देदार बिस्तर नहीं होगा. लेकिन एक अन्य मुख्यमंत्री भी ऐसा योगीमय जीवन जीने की तैयारी कर रहे हैं. भगवान बुद्ध के विचार, भगवान कृष्ण के कर्म और कौटिल्य के गुप्तचरी विद्या व दैनिन्दनी से प्रभावित बिहार के सीएम नीतीश कुमार तो लम्बे समय से ‘योगीमय’ दिनचर्या कर रहे हैं. नीतीश कुमार पहले से ही एक अनुशासित जीवन जीते हैं, मसलन रात 8 बजे डिनर, 11 बजे सोना, सुबह 5 बजे जगना, 40 मिनट वॉकिंग, 30 मिनट योगा व शुद्ध शाकाहारी ब्रेकफास्ट व भोजन. ऋषि-मुनि की तरह प्रकृति की गोद में रहने की प्रेरणा नीतीश कुमार को भागलपुर स्थित तपोवर्धन प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र से मिली जहां वो अपनी निश्चय यात्रा के क्रम में जनवरी मेें ठहरे थे. जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी सदानंद सिंह ने महात्मा गांधी की प्रेरणा से 18 दिसंबर 1954 को इस प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र की स्थापना की थी. इस केंद्र का औपचारिक उदघाटन लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने 14 मार्च 1955 को किया था. फिलहाल पूर्व वित व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा इसके मुख्य संरक्षक हैं.
नीतीश कुमार ने प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र में बिताए अपने अनुभव को तीन पेज में कलमबद्ध किया है जो अब बतौर जिसकी हस्तलिपि केंद्र के डायरेक्टर जेटा सिंह के पास सुरक्षित है. सीएम नीतिश कुुुुमार लिखते हैं, ‘मेरी समझ में प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति अन्य चिकित्सा पद्धतियों से इसलिए भिन्न है कि इसमें बीमारी का इलाज प्राकृतिक तौर पर होता है और इसके द्वारा मनुष्य के शरीर के अंग प्रत्यंग की क्षमता को दुरूस्त रखा जाता है ताकि बीमारी के प्रकोप का सामना वे अपनी क्षमता व शक्ति से कर सकें और शरीर को इतना सक्षम बनाकर रखा जाए कि बीमारी का शिकार न होना पड़े.’
राज्य सरकार ने तपोवर्धन प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र को 50 करोड़ की राशि हाल ही मंथ आवंटित की है. समझा जाता है कि केंद्र इस राशि का उपयोग प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति के विस्तार में करेगा.
लक्ष्य प्राप्ति के लिए साधक को नाना प्रकार का तिकड़म करना पड़ता है. महाभारत में फतह के लिए कुछ भी करना जायज है. ये महाभारत ग्रंथ के भीष्म पर्व में वर्णित है. बिहार में मनाया जा रहा चंपारण सत्याग्रह स्मृति समारोह को इसी संदर्भ में देखना लाजमी होगा. माना जा रहा है कि यह कार्यक्रम देश के सबसे ताकतवर सियासी कुर्सी तक पहुंचने का एक मजबूत सीढ़ी साबित हो सकती है. नीतीश कुमार समाजवादी विचारक स्वर्गीय राम मनोहर लोहिया के परम अनुयायी हैं. लोहिया ने एक समय एलान किया था कि ‘कांग्रेस को हराने के लिए मैं शैतान की भी मदद ले सकता हूं’. नीतीश कुमार हार्डकोर राजनीतिज्ञ हैं. सियासी राजनीति करते हैं. उनके समर्थक गला फाड़ के कहते हैं कि ‘साहब विकास पुरुष हैं, वो पेड़ों में चंदन हैं जहां- विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग.’ जनता दल यू के एक प्रवक्ता का मानना है कि जो लोग ये कहतें और लिखते हैं कि ‘घोटालेबाज’ लालू के साथ रहकर नीतीश कुमार अपनी छवि समाप्त कर रहे हैं उन्हें पावर पोलिटीक्स का ज्ञान नहीं है. उपलब्ध महारथियों में ‘चारा टू लारा‘ घोटाले की जनक लालू प्रसाद यादव भी हैं. वो किसी कोण से कतई शैतान की श्रेणी में नहीं आते हैं. राज्य के सियासत में उफान मार रहा मिट्टी और लारा एपीसोड लालू प्रसाद यादव को बैकफुट पर ला दिया है. अपने दोनों मंत्री बेटों के राजनीतिक भविष्य के खातिर राजद बाॅस ने नीतीश कुमार के सामने अपना हथियार डाल दिया है. चर्चा तो यहां तक है कि लालू प्रसाद यादव ने मान लिया है कि नीतीश कुमार को ही विपक्ष की तरफ से अगले लोकसभा चुनाव में पीएम फेस बनाया जाए. राजनीतिक रूप से घायल मुलायम सिंह यादव को नीतीश कुमार के पक्ष में लाने की जिम्मेवारी भी लालू प्रसाद यादव ने ले ली है. पीएम बनाओ टीम में खट रहे बुजुर्गों और नौजवनों को विश्वास है कि बिहार सीएम नीतीश कुमार के लिए दिल्ली अब दूर नहीं है.
नीतीश कुमार की अर्जुन चक्षु जिस पद को हथियाने की है वह तत्काल में बीजेपी के कब्जे में है. स्वभाविक है 2019 के चुनावी महाभारत में बीजेपी को शिकस्त देने के लिए नीतीश कुमार को कई रथियों, महारथियों और कुलश्रेष्ठों से हेल्प की जरूरत होगी.
लक्ष्य केंद्रित निशाना साधने के लिए बिहार की राजनीति में चाणक्य के नाम से मशहूर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सूबे में राजग का चुनावी परचम लहरा कर अपने विशेषण को एकबार फिर सही ठहरा दिया. अन्य राजनीतिक पार्टियां जहां जात पांत की रोटी सेंकने में व्यस्त रहीं वहीं सोशल इंजीनियरिंग के जादूगर नीतीश कुमार एक सिरे से विकास का मुद्दा लेकर चुनाव मैदान में डटे रहे. उन्होंने स्वयं को विकास पुरुष के रूप में प्रस्तुत किया और अब पांच साल बाद एक बार फिर अपना लोहा मनवाया. इस बार उन्होंने रिकार्ड जीत दर्ज कर सभी विरोधियों को चारो खाने चित्त कर दिया. बिहार में चुनाव में एक समय धर्म और जाति की बयार बहा करती थी और राजनीतिक पार्टियों की रोटी सेंकने का यह बड़ा एजेंडा हुआ करता था लेकिन नीतीश को विकास के नाम पर जनता को भरोसे में लेने का श्रेय जाता है.
नीतीश कुमार की गिद्ध दृष्टि प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है. संभव है कि कहीं न कहीं किसी के सामने उन्होंने इस कुर्सी को हासिल करने के लिए अवश्य ‘भीष्म प्रतिज्ञा’ ली होगी. उनके द्वारा की जा रही सारी राजनीतिक कवायतें किसलिए हैं? भविष्य के गर्भ में क्या है कोई नहीं जानता. 70 के दशक की शुरुआत में ही नीतीश कुमार ने एक कलमकार से पटना काफी हाउस में गंभीरता से कहा था कि ‘एक दिन मैं बिहार का सीएम बनूंगा’ चंद्रगुप्त बनने की तैयारी और रणनीति उन्होंने शुरू कर दी थी. स्वभाविक है चाणक्य की भूमिका निभा रहे कुशल राजनीतिक रणनीतिकार जॉर्ज फर्नांडीस का भी उस समय उनके साथ होना. उनका ब्रम्ह वाक्य ‘10 वर्षों के भीतर मैं लालू यादव को पाटलिपुत्र की गद्दी से उतार दूंगा’
नमक खाने के बाद मनुष्य को क्या करना चाहिए इसका मुहावरा तो देश के नागरिक भलाभांति जानते हैं. 18 अप्रैल को मोतीहारी में नीतीश कुमार के नेतृत्व में पदयात्रा चल रही था तो उस समय जनता दल यू के सैकड़ों उत्साही कार्यकर्ता नारा लगा रहे थे ‘देश का पीएम कैसा हो, नीतीश कुमार जैसा हो’.
पिछले दिनों पटना में भव्य तरीके से गुरू गोबिंद सिंह जी का 350 वां जन्मदिन प्रकाश पर्व के रूप में मनाया गया. दुनिया भर के सिखों ने उस समारोह में शिरकत की.
आज भी वे लोग मुक्त कंठ से नीतीश कुमार का गुणगान कर रहे हैं. पंजाब में रोटी की खातिर काम करने वाले कई बिहारी मजदूर बताते हैं कि ‘हमारे सिख मालिक लोग उस समारोह की खातिरदारी के बाद नीतीश कुमार साहब का फैेन बन गए हैं’.
नीतीश कुमार को पीएम बनाने की मुहिम में लगी टीम के एक महत्वपूर्ण सदस्य का कहना है कि ‘शराबबंदी की घोषणा कुर्सी को ही ध्यान में रखकर की गई है. यह राजनीतिक हथियार काफी कारगर भी साबित हो रहा है. जंगल की आग की तरह पूरे देश में फैल रहा है.’
बीजेपी शासित कई प्रदेश के मुख्यमंत्री भी इस मुद्दे पर नीतीश कुमार के कायल हो गए हैं. आधी आबादी तो सचमुच शराबबंदी से बहुत प्रसन्न है. नीतीश कुमार देश भर में घूम घूमकर अपने इस धारदार व ‘सफल’ हथियार का प्रयोग कर रहे हैं. नवंबर 2015 में सीएम बनने के बाद कम से कम दो दर्जन सभा कर चुके हैं.
21 अप्रैल को केरल प्रदेश के कोच्चिन शहर तथा 22 अप्रैल को मुंबई में शराब विरोधी जलसों को संबोधित करेंगे और कार्यकर्ता बैठक करेगें. उनका अगला टारगेट है बाल विवाह और दहेज प्रथा चोट करना, जिसकी शुरुआत उन्होनें कर दी है और इन मुद्दों पर उनको समाज से सकारात्मक समर्थन भी मिल रहा है क्योंकि हर वर्ग, जाति और कौम के गरीब व मध्यम वर्ग के लोग इस सामाजिक बुराई से त्रस्त हैं.
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