वैद्य जी द्वारा अमृत के समान गुणों वाली औषधियों का वर्णन

DEEPAK KURMAR VAIDH HARDWARमहत्वपूर्ण आयुर्वेदिक योग उनके लाभ
ख्यातिप्राप्त वैद्य श्री दीपक कुमार जी मोबा. ८९७९०२७६०

#आरोग्यवर्द्विनी बटी ; यह औषधि भी एक प्रकार से मॉ भगवती के सिद्व मंदिर की तरह है, यह एक ऐसी औषधि है जिसके नाम से ही उसके अनेक रोगों के एक साथ निवारण  #उत्तराखण्ड तथा हिमालय की तराई का क्षेत्र सर्वोत्तम- क्‍यों कहा- वैद्य जी ने  #अमृत के समान गुणों वाली होने के कारण अमृता को अधिकांश लोग गिलोय  #हृदय की कैसी भी व्याधि को दूर करने में अर्जुन जैसी कोई अन्य औषधि नहीं  #अश्वगंधरिष्ट;  पेट की बीमारियाँ, कब्ज अथवा भूख न लगने की शिकायतए बवासीर हो अथवा बवासीर की आशंका  नपुंसकता, मस्तिष्क की निर्बलता, हिस्टीरिया, धतु, कमजोरी तथा प्रसूता स्त्रियों के लिए ; स्नायु दुर्बलता तथा मिरगी में भी इसका सेवन  #वासावलेह; मनुष्य शरीर में खांसी एक महाव्याधि #वासावलेह आयुर्वेद की अत्यधिक गुणकारी औषधि #खांसी, जुकाम की यह रामबाण औषधि  #आमलकी रसायन; आयुर्वेदिक ग्रन्थों में आमलकी रसायन शरीर को रोगमुक्त तथा बलवान बनाये रखने के लिए  #कामदुधरस; आयुर्वेद जगत में शक्तिवर्धक  औषध् के रूप में प्रयुक्त होने वाले  #कुमार कल्याण रस ; गरीब परिवारों के बच्चों को पौष्टिक आहार न मिलने के कारण निर्बलता आ जाती है ऐसे शिशुओं के लिए कुमार कल्याण रस एक बहुत उपयोगी औषघि #इस ओर राज्‍य सरकार को भी ध्‍यान देना चाहिए- तथा इसका वितरण कराना चाहिए- #Execlusive Article; www.himalayauk.org (UK Leading Digirtal Newsportal & Daily Newspaper) Publish at Dehradun & Haridwar; Report by CS JOSHI- EDITOR 
वैद्य श्री दीपक कुमार जी की ख्याति दिन दूनी रात चौगुनी यूं ही नही बढ रही है, उनके दवाखाने में उमडने वाली भीड यूं ही नही है, इसके पीछे स्वास्थ्य लाभ का चमत्कार है, वैद्य जी की यह तीसरी पीढी है, जो इस महान परोपकार के काम को आगे बढा रही हैः वैद्य श्री दीपक कुमार जी का दवाखाना कनखल, पो० आफिस के सामने,हरिद्वार है, मैं खुद उनकी आयुर्वेदिक दवा का कायल हूं, पेट आदि में कोई भी विकास होने पर उनके पास जाये बिना आराम नही मिलता, स्वभाव से मृदभाषी वैद्य जी मानो गुणों की खान है, मुझे कोई भी दुखियारा मिलता है, तो मैं तुरंत वैद्य जी के बारे में बताता हूंः उनके स्वयं के दवाखाने में ही आयुर्वेदिक दवाईयों का निर्माण होता है, जिसे वैद्य जी बहुत कम कीमत पर आम जनता को उपलब्ध कराते हैं,

वैद्य जी श्री दीपक कुमार जी  हिमालयायूके न्यूज पोर्टल के सम्पादक चन्द्रशेखर जोशी को आयुर्वेद के बारे में बताते हैं किः
’बीमारियाँ मन में पनपती और शरीर को भोगनी पडती है‘ वाले कथन के पीछे युग ऋषि परम पूज्य गुरुदेव का एक ही आशय था कि काया से संबंधित रोग मात्रा एक-दो प्रतिशत होते हैं शेष तो मनोभूमि की विकृति के कारण उभरते और मनुष्य को पीडा पहुँचाते है। महामनीषी के इस स्वर्णिम सूत्र ने अब चिकित्सा जगत की विभूतियों को नये सिरे से चिन्तन-मनन का सुअवसर प्रदान किया है। अनन्त-अंतरिक्ष में गुंजित इस अमृण वाणी को भारत वासी भले ही देर से सुनें और तदनुरूप कदम उठायें, परन्तु पाश्चात्य देशों ने इस दिशा में उत्सुकता पूर्वक बडे क्रान्तिकारी कदम उठाये है। इस संदर्भ में अमेरिका के मूर्धन्‍य चिकित्सा विज्ञानी बलेअर जस्टिस ने अपनी कृति ’हू गैट्स सिक‘ में यही सिद्व किया है कि मनुष्य अपने आप ही रोग को आमंत्रण भी देता और भगाने की शक्ति सामर्थ्य भी रखता है। उनने अपने प्रयोग-परीक्षणों के उपरांत यही सिद्व किया है कि ’सद्चिन्तन से स्वस्थ जीवन चर्या का उपक्रम बिठता है। उनकी शैली में ’माइण्ड-मेड डिसीज‘ को भगाने के लिए ’माइण्ड-मेड हैल्थ‘ के सद्विचारों की आवश्यकता है। कहने का तात्पर्य यदि मन में रुग्णता के भाव पनपते हैं तो उनके मिटाने के लिए आरोग्य की मनोभूमि विनिर्मित की जाय।

आज प्रस्तुत आलेख में वैद्य जी स्वयं हिमालयायूके के लिए लिखते हैं कि
#अमृतारिष्ट
अमृत के समान गुणों वाली होने के कारण अमृता को अधिकांश लोग गिलोय के नाम से जानते है। यह एक प्रकार की लता है जो नीम, पीपल, बबूल आदि किसी भी वृक्ष का आश्रय लेकर उफपर चढ जाती है। अधिकांश एक डेढ उंगली मोटी होकर उसी में बढती और जडें फूटकर नीचे लटकती रहती है। परम पूज्य. गुरुदेव ने एकौषधि चिकित्सा में इसे चूर्ण के रूप में प्रस्तुत किया है। चूर्ण के रूप में उसमें सभी प्राकृतिक गुण उपस्थित रहने के कारण वह अत्यध्कि उपयोगी मानी गई है। पर आयुर्वेद में इसका अध्किांश उपयोग अमृतारिष्ट के रूप में होता है।
ज्वर बुखार किसी भी तरह का क्यों न हो अमृतारिष्ट उसमें रामबाण के रूप में प्रयुक्त होता है। ठंडक लगकर आने वाला बुखार हो, पित्त विकार से उत्पन्न बुखार हो, मियादी, एक दो दिन छोडकर अथवा लम्बे समय से चला आ रहा बुखार हो उस सब में अमृतारिष्ट आँख मूंद कर दिया जा सकता है। ज्वर के अतिरिक्त भूख न लगने की शिकायत, अपच अथवा किसी भी प्रकार की पेट की, लीवर यकृत तथा प्लीहा की कोई भी गडबडी हो- अमृतारिष्ट उन सब में अत्यध्कि उपयोगी आयुर्वेदिक औषधि है।
बडों को यह एक बार में ४ चम्मच भोजन के बाद तथा बच्चों को आध कप पानी में दो चम्मच अमृतारिष्ट देने से शीघ्र लाभ मिलता है। यों अमृता के अनेक औषधीय गुण है पर मूल रूप से इसका प्रयोग किसी भी तरह के ज्वर नाशर औषधि के रूप में किया जाता है।
अमृतारिष्ट में मूल घटक अमृता ;गिलोय या कहीं-कहीं गुरिच भी कहते है है। पर अरिष्ट बनाने के लिए कापफी मात्रा में गुड, दशमूल, जीरा नागरमोथा, नागकेसर, सोंठ, पीपल, कुटकी, अतीस, कालीमिर्च, सप्तपर्णी की छाल, इन्द्र जौ तथा पित्त पापडा आदि औषधियों का उपयोग किया जाता है। यह सभी औषधियाँ मिला कर किसी चीनी मिट्टी के मर्तबान में कपडे सहित इस तरह ढक्कल लगाकर बंद कर के रख दें ताकि उसके भीतर बाहर की हवा न जा सके। प्रायः एक माह या चालीन दिन उसी स्थिति में रखे रहने से वह अरिष्ट बन जाता है। पीछे इसे साफ काँच की बोतलों में भरकर प्रयोग में लाया जाता है।
स्मरण रहे इन औषधियों की मात्राा समान नहीं होती। अलग-अलग होती है। यह मात्रा तथा निर्माण विधि यहाँ लिखी इसलिए नहीं गई है कि अति उत्साह में आकर चाहे कोई भी इसे बनाने न लग जाये। यह औषधियाँ योग्य तथा अनुभवी वैद्यों की देखरेख में बनाई जाने पर उपयोगी और गुणकारक होती है। अधकचरे ज्ञान के आधर पर औषधि की महत्ता तो कम होती ही है आयुर्वेद की विश्वसनीयता पर भी प्रश्न चिन्ह लगने लगता है। इसलिए किसी को भी यह लेख पढकर बनाने नहीं लग जाना चाहिए। उपयोग की दृष्टि से प्रामाणिक औषधि निर्माताओं की आयुर्वेदिक दुकाने प्रायः हर शहर में मिल जाती है। वहीं से लेकर उपयोग में लेना चाहिए। प्रारम्भ में ही हम बता चुके है कि कनखल का आदर्श आयुर्वेदिक औषधलय एक बहुत ही प्रामाणिक तथा प्रसिद्व औषधि संस्थान है यहाँ से मंगाई जा सकती है।

#अर्जुनारिष्ट; हृदय की कैसी भी व्याधि को दूर करने में अर्जुन जैसी कोई अन्य औषधि नहीं

आज के तनाव युक्त वातावरण में जितना दबाव हृदय पर पडता है उसे हर व्यक्ति जानता और अनुभव करता है। इसलिए मधुमेह,  रक्तचाप, ज्वर खांसी आदि की तरह ही हृदय रोग भी आज बहुत सामान्य हो गया है। पहले यह बीमारी सेठों सम्पन्नों को होती थी अब तो यह सामान्य व्यक्तियों को भी होने लगी है।
ऐसे में उपाय और उपचार सबसे अच्छा है-अर्जुनारिष्ट। हृदय की कैसी भी व्याधि को दूर करने में अर्जुन जैसी कोई अन्य औषधि नहीं है। अर्जुन एक ५०-६० फिट उँचा वृक्ष है। औषधि के रूप में इसकी छाल भर प्रयुक्त होती है। प्राकृतिक रूप से अर्जुन छाल का चूर्ण ही मौलिक औषधीय गुण होने के कारण सर्वाधिक उपयोगी होता है पर अरिष्ट के रूप में इसके घटक द्रव्य मुनक्का या द्राक्षा, महुआ फल नहीं केवल फूल भाग गुड तथा धय के फूल इसे और भी उपयोगी तथा गुणकारी बना देते है। प्रातः सांय दो-दो चम्मच एक कप पानी में लेना चाहिए।
इन सभी औषधियों के कारण अर्जुनारिष्ट हृदय के अतिरिक्त फेफडे की सूजन, पित्त प्रकोप, क्षय, कफ, रक्त विकार आदि में भी लाभदायक होता है। अर्जुनारिष्ट को पार्थारिष्ट भी कहा जाता है। अर्जुन का एक नाम पार्थ भी है भैषज्य रत्नावली में इसे पार्थारिष्ट के नाम से सम्बोधित किया है। कहते हैं अर्जुन पाण्डव- हृदय के बहुत बलवान थे इसीलिए इस औषधि को पार्थारिष्ट कहा गया है।

अश्वगंधरिष्ट;  पेट की बीमारियाँ, कब्ज अथवा भूख न लगने की शिकायतए बवासीर हो अथवा बवासीर की आशंका  नपुंसकता, मस्तिष्क की निर्बलता, हिस्टीरिया, धतु, कमजोरी तथा प्रसूता स्त्रियों के लिए ; स्नायु दुर्बलता तथा मिरगी में भी इसका सेवन

मूल घटक अश्वगंध या असगंध होने के कारण इसे अश्वगंधरिष्ट कहा जाता है। जिन्हें पेट की बीमारियाँ, कब्ज अथवा भूख न लगने की शिकायत हो बवासीर हो अथवा बवासीर की आशंका हो उन्हें अश्वगंधरिष्ट का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। पेट में जलन अथवा कब्ज हो तो उन्हें रात एक चम्मच घी लेकर २ चम्मच अश्वगंधरिष्ट एक कप गर्म पानी से लेना चाहिए। इससे प्रातः काल पेट अच्छी तरह से साफ हो जाता है। आमाशय तथा पाचन तंत्रा की सभी बीमारियाँ दूर हो जाती है।
अश्वगंधरिष्ट में अश्वगंध के साथ मजीठ, हल्दी, दारुहल्दी, हरड, मुलहठी, अर्जुन छाल, विदारीकंद, रासना, निसोथ, नागरमोथा, सफेद व लाल चंदन दोनों तरह का अनंत मूल सभी को कूट कर कपडे में छान करके पानी में तब तक उबालना चाहिए जब तक पानी एक चौथाई न रह जाये। इसके बाद इसमें सौंठ, काली मिर्च, पीपल, धय के फल, तेजपात, दालचीनी, इलायची तथा शहद मिलाकर लगभग २ माह बंद करके रखना चाहिए।
इससे नपुंसकता, मस्तिष्क की निर्बलता, हिस्टीरिया, धतु, कमजोरी तथा प्रसूता स्त्रियों के लिए बहुत ही लाभ मिलता है। स्नायु दुर्बलता तथा मिरगी में भी इसका सेवन लाभदायक होता है।

आमलकी रसायन; आयुर्वेदिक ग्रन्थों में आमलकी रसायन शरीर को रोगमुक्त तथा बलवान बनाये रखने के लिए
शरीर को रोगमुक्त तथा बलवान बनाये रखने के लिए आयुर्वेदिक ग्रन्थों में आमलकी रसायन की बडी प्रशंसा की गई है। आँवला में प्राप्त प्रचुर जीवनी शक्ति से आज सारा संसार परिचित हो चुका है। रूस में तो यह सैनिकों के भोजन में सम्मिलित किया गया है। भारतवर्ष में आँवला चूर्ण, आँवले का अचार तथा आँवले का मुरब्बा त्रिफला ;जिसमें आँवला प्रमुख है लेने वालों की बहुतायत है ऐसा एक मात्रा आँवले के अत्यधिक गुणकारी होने के कारण ही है। आँवले को ही आमलकी कहा जाता है। स्पष्ट है कि आमलकी रसायन का प्रमुख घटक यही है। रसायन बनाने के लिए उबले हुए आँवले का प्रयोग किया जाता है पर इसे देर तक उबाला नहीं जाता। पानी में डालकर उबालने पर पाँच छः मिनट में ही मुलायम हो जाता है इससे इसके बीज आसानी से निकल आते है। फिर इसे धूप में सुखाकर चूर्ण बना लिया जाता है। इसके पश्चात ताजे हरे आँवलों का रस निकालकर इसे २० से २४ दिनों तक खरल में चूर्ण में मिलाकर घोटा जाता है। इसके बाद इसे सेवन करने के लिए मर्तबान में भरकर रखा जाता है और प्रतिदिन २ से ३ ग्राम रसायन शहद में मिलाकर खाली पेट सेवन किया जाता है। सेवन के बाद एक गिलास उबला हुआ किन्तु ठण्डा दूध पीना चाहिए। इससे शरीर में बल बढता है स्फूर्ति आती है बुढापा दूर होता है मस्तिष्क को बल मिलता है इसलिए स्कूल में पढने वाले विद्यार्थियों छात्रा-छात्राओं दोनों को इसका सेवन अवश्य करना चाहिए। अन्य सभी आयुवर्ग के व्यक्ति भी इसका सेवन करें इससे शरीर पुष्ट होता है तथा बुढापा दूर भागता है।

वासावलेह; मनुष्य शरीर में खांसी एक महाव्याधि  ;   वासावलेह आयुर्वेद की अत्यधिक गुणकारी औषधि ; खांसी, जुकाम की यह रामबाण औषधि 

ज्वर की तरह ही मनुष्य शरीर में खांसी एक महाव्याधि है। थोडी सी सर्दी होने पर किसी को भी जुकाम, खांसी होते देर नहीं लगती। कफ की मात्रा बढने पर शरीर उसे सहन नहीं कर पाता तो खांसी के माध्यम से बढे हुए कफ को निकालने का प्रयास करता है। सामान्य खांसी हो तो तुलसी, अदरख, काली मिर्च आदि की चाय पीकर छुटकारा पाया जा सकता है पर यदि सामान्य काढा या औषधियों से खांसी दूर न हो तो फिर बिना आलस्य किए इसका उपचार कराया जाना अनिवार्य है।
खांसी कफ प्रधान हो, सूखी हो, रूक रूक कर आने वाली हो अथवा सांस फूलने के साथ आ रही हो यदि सप्ताह दस दिन में खांसी ठीक न हो तो फिर बिना देरी किए उपचार कराना चाहिए। अन्यथा धीरे-धीरे साथ में ज्वर भी आने लगा तो टीबी हो सकती है। यह स्थिति आऐ उससे पूर्व वासावलेह आयुर्वेद की अत्यधिक गुणकारी औषधि है। वासावलेह का मूल घटक वासा अडूसा है खांसी, जुकाम की यह रामबाण औषधि है। परम पूज्य गुरूदेव ने अपनी एकोषधि चिकित्सा में इसे महत्वपूर्ण स्थान दिया है। वासा का चूर्ण भी प्रयोग करना हो तो इसे क्वाथ बनाकर लेना चाहिए। अन्यथा अवलेह के रूप में इसका प्रयोग थोडे ही समय के सेवन से खांसी को जड से मिटा देता है।
जिस तरह फलों में सेब सारी दुनियाँ में होते हैं पर कश्मीरी सेव जैसे गुण सब जगह नहीं होते। संतरा सारी दुनिया में पाया जाता है पर नागपुर का संतरा सर्वश्रेष्ठ माना गया है। नासिक का अंगूर सबसे अधिक इंग्लैण्ड निर्यात होता है। इससे नासिक के अंगूर की मिठास सहज समझ में आती है। यही बात औषधियों के बारे में भी है। गोरखमुण्डी यों सब जगह पायी जाती है इस इटारसी होशंगाबाद की गोरखमुण्डी जगत प्रसिद्व है। इसी तरह वासावलेह का घटक ’वासा‘ अडूसा के लिए उत्तराखण्ड तथा हिमालय की तराई का क्षेत्र सर्वोत्तम माना गया है। स्पष्ट है यहां के वासावलेह की तुलना में अन्य सभी वासावलेह उन्नीस ही होंगे इक्कीस नहीं।
वासा हरे पत्तों तथा सफेद फूलों वाला एक झाडीदार पौधा है। अवलेह के रूप में इसके पत्तों का प्रयोग किया जाता है। इसके साथ ही चीनी, हरड, वंशलोचन, तेजपात, पीपल, नागकेसर, दालचीनी तथा इलायची शहद के सम्मिश्रण से बनता है। कैसी भी कफ प्रधान खांसी हो वासावलेह के सेवन से वह १५-२० दिन में ही पूरी तरह ठीक हो जाती है। इस अवधि में नींबू, टमाटर, खटाई तथा शीत प्रकृति प्रधान वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए।
क्वाथ बनाने के लिए २ चम्मच वासा चूर्ण चार कप पानी में मिलाकर हल्की आंच में पकाये। दो कप रह जाने पर एक-एक कप सवेरे सांय लें। कडुवा लगे तो शहद मिलाकर लिया जा सकता है।

आरोग्यवर्द्विनी बटी ; यह एक ऐसी औषधि है जिसके नाम से ही उसके अनेक रोगों के एक साथ निवारण
आयुर्वेद के योगों में आरोग्यवर्द्वनी बटी का बडा नाम है। अकेला नाम ही नहीं यह एक ऐसी औषधि है जिसके नाम से ही उसके अनेक रोगों के एक साथ निवारण का अनुमान होता है। इस में ऐसी भस्मों रसायनों तथा बनौषधियों का प्रयोग होता है जिनमें थोडी भी कमी रह जायें, औषधियाँ अशु तथा बहुत पुरानी या धुनी हुई हों, भली प्रकार शोध्न न हुआ हो तो लाभ के स्थान पर यह हानिकारक भी हो सकती है। इसीलिए न तो निर्माण विधि लिखी जा रही है न निर्माण में प्रयुक्त औषध्यिों की मात्रा। इन जानकारियों का उद्देश्य यह है कि आप को इनके गुणों का पता रहे ताकि वे प्रामाणिक औषधि निर्माताओं से प्राप्त कर सेवन की जा सकें।
आरोग्यवर्द्विनी बटी में शोध हुआ पारा, लौह, ताम्र तथा अभ्रक, भस्में, शोध हुआ गंध्क, गुग्गल, शिलाजीत, त्रिापफला, कुटकी, चित्राक मूल की छाल जैसी अमूल औषधियों का प्रयोग किया जाता है फिर इन्हें नीम के पत्तों के रस में मिलाकर खरल करने के बाद बटी बनाई जाती है। नीम के पत्तों का रस निकालने से पहले उन्हें थोडा कूट कर तथा बाद में उन्हें उबालकर रस निकाला जाता है।
इन औषधियों से ज्ञात हो जाता है कि यह कितनी उपयोगी बटी होगी। कैसा भी वात पित्त कफ प्रधान ज्वर हो यह लाभदायक होती है। चर्बी घटाने के कारण यह हृदय रोगों में तथा पाचन संस्थान को शक्ति प्रदान करने में अत्यधिक सहायक होती है। इसे कुष्ट में भी प्रयोग किया जाता है। जिन्हें अक्सर कब्ज रहता हो भूख न लगती हो, अपच की शिकायत हो उन्हें इसका सेवन अवश्य करना चाहिए। शरीर में दुर्बलता, कमजोरी तथा हाथ पैर मुंह, कण्ठ आदि की सूजन को कम करने में इसका विशेष स्थान है। मुँह में जिन्हें अक्सर पानी आता रहता है या उल्टी होने की शिकायत हो वे भी इसका सेवन अवश्य करें। जिनके पेट साफ न होते हो वे भी इसका प्रयोग करें। यह आँतों में छिपे दुर्गन्धित मल को भी निकाल बाहर करती है। दाँतों, मसूढों तथा पसीने की बदबू को भी दूर करती है। ब्लड प्र्रेशर जैसी बीमारियों में भी आरोग्यवद्विनी बटी का सेवन करना बहुत लाभदायक माना गया है।

कामदुधरस; आयुर्वेद जगत में शक्तिवर्धक  औषध् के रूप में प्रयुक्त होने वाले
आयुर्वेद जगत में शक्तिवर्धक  औषध् के रूप में प्रयुक्त होने वाले कामदुधरस को ऐसी रोगनाशक औषधि के रूप में मान्यता प्राप्त है, जिसका प्रयोग स्त्री पुरूष तथा वृद्वजन सभी लोग कर सकते है।
चाय आदि के अत्यधिक सेवन के कारण इन दिनों एसिडिटी अधिकांश लोगों को हो जाती है। उपचार न होने से यही कुछ दिन बाद हायपर ऐसिडिटी बन जाती है इससे आम तौर पर डकार के समय में अक्सर पेट से खट्टा पानी आ जाता है गले व सीने में जलन होती है। चक्कर सिर दर्द आदि बने रहने की शिकायत हो जाती है। खूनी पेचिस आँतों में शिकायत इन सब में २-२ रत्ती काम दुधरस लेने से कुछ ही समय में आराम मिलता है। बाद में मात्राा कम कर देनी चाहिए।
इसी तरह ज्वर बिगड जाने, मन्दाग्नि शरीर में पीलापन बढ जाने कैल्शियम की कमी से आई दुर्बलता रक्त स्राव, नक्सीर फटने, खूनी बवासीर, दस्त आदि में काम दुधरस बहुत उपयोगी माना गया है।
स्त्रियों के मासिक के समय होने वाले रक्त स्राव प्रदर तथा सिर दर्द आदि में भी यह बहुत लाभदायक होता है। मानसिक तनाव उन्माद मन की व्याकुलता में भी यह थोडे से ब्राह्मी चूर्ण के साथ दिया जाय तो बडा लाभदायक रसायन है। देखा गया है कि जिन्हें मलेरिया हो जाता है यदि उनके शरीर में कुनैन की मात्रा थोडी बढ जाए तो अनिद्रा, बहरापन, अरूचि, भूख न लगने की शिकायत अपच आदि व्याध्यिां खडी हो जाती है इसी स्थिति में दिन में दो बार सुबह शाम २-२ रत्ती काम दुधरस देना लाभदायक होता है।
इस योग में पडने वाले मुक्ता सुक्ति, प्रवाल पिष्टी, शंख भस्म, वाटिका भस्म तथा अमृता आदि के प्रयोग के कारण यह बलवर्धक औषधि है इसका प्रयोग जनरल टानिक के रूप में भी किया जा सकता है इससे शरीर में स्फूर्ति बढती है।

कुमार कल्याण रस ; गरीब परिवारों के बच्चों को पौष्टिक आहार न मिलने के कारण निर्बलता आ जाती है ऐसे शिशुओं के लिए कुमार कल्याण रस एक बहुत उपयोगी योग ; इस ओर राज्‍य सरकार को भी ध्‍यान देना चाहिए- 
जो बच्चे जन्मजात कमजोर होते है अथवा बुखार आदि के पश्चात दुबले हो जाते है। गरीब परिवारों के बच्चों को पौष्टिक आहार न मिलने के कारण निर्बलता आ जाती है ऐसे शिशुओं के लिए कुमार कल्याण रस एक बहुत उपयोगी योग माना गया है।
इस योग में स्वर्ण भस्म, स्वर्ण माक्षिक भस्म, रस सिंदूर, लौह भस्म तथा मोती भसम जैसी भस्मों का प्रयोग होता है। यद्यपि ग्वार-पाठा रस का प्रयोग होने से यह निरापद औषधि हो जाती है फिर भी यह अतिविश्वस्त औषधि निर्माताओं के भंडार से ही लेनी चाहिए तथा बहुत छोटे बच्चों को आधी-आधी गोली पीसकर शहद अथवा मीठी बच के चूर्ण में मिलाकर चटानी चाहिए। मां का दूध भी मिल जाये तो सोने में सुहागा। दवा भी मां के दूध् में घोलकर पिलाई जा सकती है। ५-६ वर्ष के बच्चों के लिए इसकी मात्राा १-१ गोली की जा सकती है। इससे बच्चों को खांसी, उल्टी, दस्त चेचक आदि ज्वर होने की संभावनाऐं समाप्त हो जाती है। बच्चों के फेफडों, हृदय, लीवर, मस्तिष्क तथा पेशाब की सभी तरह की तकलीफें दूर हो जाती है। स्वस्थ बच्चों को भी यदि डेढ से दो सप्ताह तक इसे सेवन करा दिया जाये तो इन व्याधियों की संभावनाऐं समाप्त हो जाती है।
जो माताऐं गर्भकाल में अस्वस्थ रही हों जिन्हें पर्याप्त पोषक आहार न मिल पाया हो तथा जिन्हें दूध कम आने की शिकायत हो उनके बच्चों के लिए तो यह योग बहुत ही आवश्यक रसायन है। जिन बच्चों को २-३ वर्षो तक या दांत न आने तक मां का दूध नहीं मिलता उनके लीवर अक्सर कमजोर हो जाते है ऐसे बच्चों को एक-एक चम्मच कुमारी आसव के साथ यदि यह कुमार कल्याण रस दिया जाये तो यह बच्चे भी बहुत स्वस्थ और सुडौल हो जाते है। (www.himalayauk.org) DownLoad our Mobile App;

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