अंतरिम बजट में शब्दों का खेल


सरकार ने अपनी पारी खेल दी है. अब संगठन की बारी है. #अंतरिम बजट में शब्दों का खेल को समझते, कंफ्यूजन सोशल और न्यूज मीडिया पर व्यापक हो गया # बीते 45 बरस में सबसे अधिक बेकारी पैदा करने वाले वर्ष के बारे में आम चुनाव से ठीक पहले के अंतरिम बजट का मौन देश के भविष्य को बहुत भारी पड़ सकता है।

मोदी सरकार की ओर से घोषित 6000 रुपए सालाना की मदद ऊंट के मुंह में जीरा ही लगती है. कोई 3 एकड़ जमीन वाले किसान के लिए यह मदद 2000 रुपए प्रति एकड़ सालाना होगी, जबकि औसतन किसी भी फसल के लिए बीज, खाद, कीटनाशक इत्यादि का इनपुट खर्च प्रति एकड़ 20-25 हजार रुपए आता है. तो सरकार की इस मदद से किसान को वास्तव में कितनी मदद मिल सकेगी, यह देखने वाली बात होगी.

एक अन्य मुश्किल प्रक्रिया की भी आएगी. तेलंगाना के अनुभव को देखते हुए यह लगभग असंभव है कि दो महीने के भीतर जमीन के मालिकाना हक की पुष्टि हो जाए और सारा रिकॉर्ड सरकार के पास आ जाए क्योंकि जमीन राज्य सरकार का विषय है. देश के सैकड़ों ऐसे इलाके हैं, जहां लाखों किसान अपने दादाओं या परदादाओं के लैंड टाइटल पर खेती कर रहे हैं. उन्हें वैसे भी इस स्कीम का लाभ नहीं मिल सकता. इस लिहाज से किसी भी सरकार के लिए इस योजना को अमलीजामा पहना पाना टेढ़ी खीर होगी.

पहली बार लोगों ने देखा कि आमने-सामने हुई तारीफ़ पर कोई शीर्ष राजनेता ऐसी भी प्रतिक्रिया कर सकता है। बजट समाप्त करते समय आख़िरी पंक्तियाँ अंतरिम वित्त मंत्री ने सदन में मौजूद प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व को समर्पित कीं। उनकी इतनी ठकुरसुहाती क्षम्य थी पर लोकसभा टीवी के कैमरों ने दर्ज़ किया कि ख़ुद अपनी तारीफ़ से पुलकित प्रधानमंत्री दूसरों से ज्यादा गति और ताक़त से इस पर अपनी मेज़ थपथपाते रहे।

बजट घोषणा के मुताबिक किसानों को सीधे दी जाने वाली इस मदद से 12 करोड़ परिवारों को सीधे फायदा होगा, जिस पर 72,000 करोड़ रुपए खर्च आएगा. अगर इस तर्ज पर चल रही तेलंगाना की लोकप्रिय योजना से तुलना करें तो वहां सरकार ने हर किसान को प्रति एकड़ साल में दो बार 4,000 रुपए देने की शुरुआत की है. वहीं उड़ीसा में राज्य सरकार एक कदम और आगे बढ़कर साल में दो बार 5,000 रुपए दे रही है और इस स्कीम में कृषि मजदूर और बंटाई पर काम करने वाले किसानों को भी शामिल किया गया है. ऐसे में मोदी सरकार की 2000 रुपए की तीन किस्तों में दी जाने वाली रकम किसानों के असंतोष को खत्म करने में कितना प्रभावी साबित हो पाएगी, यह देखने वाली बात होगी.

अंतरिम बजट निरस्त करने सुप्रीम कोर्ट में लगाई याचिका
अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा द्वारा दायर याचिका में कहा गया कि संविधान के तहत, केवल पूर्ण वार्षिक बजट और लेखानुदान पेश करने का प्रावधान है. लेखानुदान चुनावी वर्ष में सीमित अवधि के लिए सरकारी खर्च को मंजूरी देना होता है. बाद में नई चुनी हुई सरकार पूर्ण बजट पेश करती है.

अंतरिम बजट में शब्दों का खेल को समझते, कंफ्यूजन सोशल और न्यूज मीडिया पर व्यापक हो गया.

केन्द्रीय सरकार के वार्षिक बजट में आम आदमी के लिए रुपये-पैसे से सीधे तौर पर जुड़ा मुद्दा इनकम टैक्स है. वहीं, जब अंतरिम बजट ही इनकम टैक्स नियमों में इतनी बड़ी राहत का ऐलान कर दे जिसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती तो आम आदमी का उत्साह शीर्ष पर पहुंचना स्वाभाविक है. और चढ़ते उत्साह का सेंसेक्स की तरह औंधे मुंह गिर जाने से अंतरिम होना भी स्वाभाविक है.

केन्द्र की मोदी सरकार ने परंपराओं को पीछे छोड़ते हुए संसद में अपना अंतरिम बजट पेश किया और इनकम टैक्स नियमों में बड़े बदलाव का ऐलान किया. वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने 5 लाख तक वार्षिक आय वालों को इनकम टैक्स से मुक्त कर दिया. इस ऐलान को बजट स्पीच में गोयल ने 5 लाख रुपये की टैक्सेबल इनकम को टैक्स फ्री पढ़ा. ऐसा स्पीच में भी लिखा है. संसद में हुए इस ऐलान के बाद सोशल मीडिया समेत मीडिया ने अपना ऐलान कर दिया कि मिडिल क्लास को बड़ी राहत और 5 लाख रुपये तक वार्षिक इनकम के टैक्स स्लैब को टैक्स फ्री कर दिया गया है.

जैसा आम आदमी ने समझा या फिर टेलीविजन और वेबसाइट पर दिखाया गया, उस हिसाब से नौकरी पेशा और छोटे-मध्यम कारोबारी के लिए यह बहुत बड़ी राहत थी. क्योंकि जैसा कहा और लिखा गया वह 10 लाख, 15 लाख और 20 लाख रुपये तक की वार्षिक आय के करदाताओं के लिए बड़ी राहत साबित होती. उनकी कुल आय में 5 लाख रुपये पर कोई टैक्स नहीं लगता.

 जैसे ही वित्त मंत्री ने 5 लाख तक आय वालों को टैक्स रीबेट में राहत का ऐलान किया संसद में प्रधानमंत्री समेत ज्यादातर सदस्य खुशी से मेज थपथपाने लगे. खुद वित्त मंत्री दो मिनट तक अपनी स्पीच रोकने के लिए विवश हो गए और ज्यादातर सदस्य मोदी, मोदी का नारा लगाने लगे. स्वाभाविक है कि शब्दों की बारीकी समझने से चूकने और इस जश्न से लोगों ने अंदाजा लगा लिया कि चुनावों के चलते केन्द्र सरकार ने टैक्स ढांचे में बड़ा परिवर्तन करते हुए टैक्स ब्रैकेट को 2.50 लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दिया.

इसके अलावा वित्त मंत्री ने इस ऐलान के साथ कहा कि इस प्रावधान से तीन टैक्स बैकेट में करोड़ों लोगों को फायदा मिलेगा और इसके चलते सरकारी खजाने पर 18,500 करोड़ रुपये का भार आएगा.

इस खुशी का अंदाजा इसी बात से लगता है कि वित्त वर्ष 2014-15 के दौरान केन्द्र सरकार ने इनकम टैक्स की छूट सीमा को 2 लाख रुपये से बढ़ाकर 2.50 लाख रुपये करने का ऐलान किया था. इसके अलावा इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80सी बचत सीमा को 1 लाख रुपये से बढ़ाकर 1.50 लाख रुपये और होमलोन के ब्याज पर राहत की सीमा को 1.50 लाख रुपये से बढ़ाकर 2 लाख रुपये करने का ऐलान किया था. इस ऐलान का फायदा सभी टैक्सपेयर को मिला और स्वाभाविक है कि इस बचत ने आम आदमी का उत्साह बढ़ाया था.

वहीं अंतरिम बजट में जब वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने 5 लाख की टैक्सेबल इनकम को टैक्स फ्री घोषित किया तो कंफ्यूजन स्वाभाविक था. इससे पहले लोग अंतरिम बजट में शब्दों का खेल को समझते, कंफ्यूजन सोशल और न्यूज मीडिया पर व्यापक हो गया. बजट पेश करने के बाद सीधे प्रेस वार्ता पर पहुंचे पीयूष गोयल ने सबसे पहले लोगों के कंफ्यूजन को दूर करने का काम किया.

 वित्त मंत्री ने एक्जम्पशन (Exemptions) की जगह रीबेट (Rebate) शब्द का इस्तेमाल किया है. तिवारी ने बताया कि वित्त मंत्री ने बेसिक एक्जम्पशन लिमिट में इजाफा किया है लिहाजा लोगों को उत्साह जाहिर करने से पहले फाइनेंस बिल की प्रति को देखने की जरूरत है क्योंकि बजट स्पीच में कहे गए प्रावधान का सटीक वर्णन सिर्फ बिल में मिलता है.

फाइनेंस बिल देखने के बाद जाहिर हुआ कि बजट स्पीच में रीबेट की जगह आयकर सीमा में एक्जम्पशन के लिए इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 87A में टैक्सपेयर को दी जा रही 2,500 रुपये के टैक्स रीबेट की सीमा को बढ़ाकर 12,500 रुपये करने के संशोधन का प्रस्ताव देने की बात है. वहीं अगली पंक्ति में लिखा गया कि टैक्स रीबेट अब 5 लाख रुपये तक की कुल आय वाले टैक्सपेयर को मिलेगा. पहले यह सीमा 3.5 लाख रुपये की कुल आय वाले टैक्सपेयर को मिलता था.

अंतरिम बजट जिसे एक अंतरिम वित्त मंत्री ने पहली बार संपूर्ण बजट की तरह पेश किया, इसमें ऐसा कोई कारक मौजूद नहीं मिला जो भयंकर बेरोज़गारी को अंश भर भी छूता। छोटे और मझोले उद्योग जो करोड़ों लोगों को जीने का दिलासा दिए रहते थे, जो नोटबंदी और जीएसटी के घमंड भरे इस्तेमाल से साफ़ हो गए, उनके पुनर्जीवन के लिए इस अंतरिम बजट में कुछ न था। 

सरकार ख़ुद अपने स्वप्निल नारे ‘मेक इन इंडिया’ की असलियत से वाक़िफ़ है, इसलिए अंतरिम वित्त मंत्री ने इसका नाम तक न लिया। दरअसल, गर सचमुच में इंडिया में मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर में वृद्धि हुई होती तो बेरोज़गारों को रोज़गार मिला होता, पर वह तो गर्त में जा चुकी है। ट्रेडिंग इकनॉमिक्स. कॉम के अनुसार नवंबर 2018 में औद्योगिक उत्पादन विकास दर 0.5 फ़ीसद रह गई जबकि कम से कम 4.1 फीसद वृद्धि दर अनुमानित थी।

बीते 6 महीने से सरकार एफ़डीआई के आँकड़े छिपा रही है। भारत विगत कई वर्षों से एफ़डीआई आने का दुनिया का सबसे बड़ा केंद्र है। रेलवे और इन्फ़्रास्ट्रक्चर के क्षेत्रों में हमने सौ प्रतिशत तक विदेशी निवेश की छूट देकर यह मुक़ाम हासिल किया है। केआरसी एफ़डीआई कांफ़िडेंस इंडेक्स के अनुसार 2015 के बाद पहली बार भारत इस मामले में टॉप टेन से बाहर हो गया है और आठवें स्थान से ग्यारहवें स्थान तक जा गिरा है। इसे छिपाने के लिए अंतरिम वित्त मंत्री ने बीते तीन साल का सकल एफ़डीआई जोड़कर संसद में वाहवाही लूटने की कोशिश की और एफ़डीआई की विकास दर को गोल कर गए।

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