कांग्रेस ने बड़ा दांव खेला

UP sheila-dikshit-raj-babbar-sanjay-singh#कांग्रेस जाति-आधारित समीकरणों पर भी ध्यान  #ब्राह्मण वोटों को भी अपने पक्ष में करने की जुगत  #प्रियंका भी जोर-शोर से प्रचार   #संजय सिंह कांग्रेस की प्रचार समिति का प्रमुख #राजपूतों में खासा प्रभाव # www.himalayauk.org

कांग्रेस ने बड़ा दांव खेला हैं। अपने इस कदम के पीछे पार्टी की मंशा 78 वर्षीय शीला के सियासी अनुभव का फायदा उठाने के साथ-साथ राज्य के ब्राह्मण वोटों को भी अपने पक्ष में करने की जुगत बैठाई है। ब्राह्मणों को अब तक परंपरागत रूप से बीजेपी का वोटबैंक माना जाता हैं। शीला को सीएम प्रत्यागशी के रूप में पेश कर कांग्रेस ने सियासत की एक बेहद अनुभवी नेता के साथ राज्य की ही किसी शख्सियत को अपने चेहरे के रूप पेश किया है। उत्तर प्रदेश में शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार बना दिया गया है। राज्यसभा सदस्य और ‘अमेठी के राजा’ संजय सिंह को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की प्रचार समिति का प्रमुख बनाया गया है। कांग्रेस ने यूपी के चुनावों के लिए एक संयोजन समिति भी बनाई है, जिसके अध्यक्ष प्रमोद तिवारी होंगे। इसके सदस्यों में मोहसिना किदवाई, सलमान ख़ुर्शीद, राजीव शुक्ला, श्रीप्रकाश जायसवाल, रीता बहुगुणा, सलीम शेरवानी और प्रदीप जैन आदित्य, पीएल पुणिया, निर्मल खत्री, प्रदीप माथुर शामिल हैं। खबरों के मुताबिक, प्रियंका भी जोर-शोर से प्रचार करेंगी। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी के पूर्व राजघराने के सदस्य संजय सिंह को इस ज़िम्मेदारी के लिए राहुल की बहन प्रियंका गांधी वाड्रा ने चुना है। तेज़तर्रार और आक्रामक प्रचारक के रूप में मशहूर संजय सिंह काफी ताकतवर और ऊर्जावान नेता माने जाते हैं, जिनका राजपूतों में खासा प्रभाव है। दरअसल, कांग्रेस वर्ष 2017 की शुरुआत में होने वाले चुनाव के लिए जाति-आधारित समीकरणों पर भी ध्यान दे रही है, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा वोट हासिल कर सके। चुनावी रणनीति बनाने के काम पर लगाए गए प्रशांत किशोर, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 2014 में हासिल जीत और पिछले साल बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की शानदार जीत का श्रेय दिया जाता है, की टीम के सूत्रों के अनुसार, वह राज्य में मुख्यमंत्री पद के लिए कोई ब्राह्मण चेहरा चाहते हैं, जिसमें शीला दीक्षित फिट बैठती हैं। इसके अलावा प्रशांत किशोर के मुताबिक दिल्ली की मुख्यमंत्री के रूप में उनका तजुर्बा उत्तर प्रदेश के लोगों को भी लाभान्वित कर सकता है, जो अपने राज्य के पिछड़पन से दुःखी हैं।  हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल द्वारा-
पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव प्रचार की बागडोर संभाल रहे रणनीतिकार प्रशांत किशोर मुख्यमंत्री के रूप में किसी ब्राह्मण चेहरे को चाहते थे, सो, दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का नाम सामने आया, और दूसरी ओर राज्य इकाई के अध्यक्ष के रूप में पार्टी ने अभिनेता राज बब्बर का नाम घोषित किया, जो अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से आते हैं।

पार्टी प्रचार समिति प्रमुख के पद पर बिठाने के साथ-साथ कांग्रेस इस बात का भी पूरा ध्यान रख रही है कि किसी बात से संजय सिंह नाराज़ न हो जाएं, क्योंकि वह इससे पहले एक बार पार्टी छोड़कर जा चुके हैं, और वर्ष 1999 में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की टिकट पर चुनाव भी लड़ चुके हैं। वह वर्ष 2003 में कांग्रेस में लौट आए थे।

दो साल पहले कांग्रेस ने संजय सिंह को असम से राज्यसभा का सदस्य बनाया था, और उस समय ख़बरें थीं कि तत्कालीन लोकसभा सांसद (सुल्तानपुर संसदीय क्षेत्र) संजय दोबारा बीजेपी में जाने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें तत्कालीन कांग्रेस-नीत यूपीए सरकार में मंत्री नहीं बनाए जाने से वह नाराज़ थे।

संजय सिंह के लिए इस तरह राज्यसभा पहुंच जाना लाभदायक रहा, क्योंकि उसके तुरंत बाद हुए लोकसभा चुनाव में पूरे राज्य में कांग्रेस सिर्फ दो सीटें ही जीत पाई – राहुल गांधी की सीट अमेठी और सोनिया गांधी की सीट रायबरेली, जबकि सुल्तानपुर सीट से राहुल के चचेरे भाई और बीजेपी नेता वरुण गांधी ने चुनाव जीता था।

संजय सिंह को राजनीति में लाने का श्रेय इन्हीं वरुण गांधी के स्वर्गीय पिता संजय गांधी को दिया जाता है। उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री और राहुल के पिता राजीव गांधी का भी करीबी माना जाता था, लेकिन वह 1988 में कांग्रेस से किनारा कर जनता दल में शामिल हो गए थे, और बाद में उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया, और उसी की टिकट पर अमेठी से चुनाव लड़े। संजय सिंह 1998 का चुनाव जीते थे, लेकिन 1999 में दोबारा चुनाव होने पर वह सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव हार गए थे।

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