विष्णुप्रिया माता लक्ष्मी के प्राकट्य की कथा

माता लक्ष्मी सारे संसार का संचालन करती हैं। विष्णुप्रिया माता लक्ष्मी के प्राकट्य की कई कथाएं हमारे धर्मग्रंथों में मिलती है। ऐसी ही एक कथा इस प्रकार है- दीपावली पर हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल की विशेष प्रस्‍तुति-  www.himalayauk.org (UK Leading Digital Newsportal) 
एक बार भगवान शंकर के अंशावतार महर्षि दुर्वासा कहीं जा रहे थे। तभी उन्होंने एक कन्या के हाथ में पारिजात के पुष्पों की एक सुंदर माला देखी। महर्षि ने उस कन्या से वह माला मांगी। कन्या से आदर भाव से वह माला महर्षि को दे दी। महर्षि ने वह माला देवराज इंद्र को दे दी। इंद्र ने उसे लेकर ऐरावत के मस्तक पर डाल दिया। ऐरावत ने वह माला पृथ्वी पर फेंक दी। यह देख महर्षि दुर्वासा बहुत क्रोधित हुए।
उन्होंने इंद्र को श्राप दिया कि तुम्हारे अधिकार में जितनी भी धन-सम्पत्ति है वह नष्ट हो जाएगी। दुर्वासा के शापनुसार तीनों लोकों की लक्ष्मी नष्ट हो गई। तब दानवों ने मौका पाकर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने देवताओं को दानवों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने को कहा। भगवान का आदेश पाकर देवताओं ने दानवों के साथ समुद्र मंथन किया। तब उसमें से कामधेनु, वारुणीदेवी, कल्पवृक्ष और अप्सराएं प्रकट हुईं।
इसके बाद चंद्रमा निकले। इस प्रकार अन्य रत्न भी निकले। सबसे अंत में भगवती लक्ष्मीदेवी प्रकट हुईं। सभी देवताओं ने मिलकर माता लक्ष्मी की स्तुति की जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने देवताओं को पुन: स्वर्ग प्राप्ति का वरदान दिया। तत्पश्चात मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के चरणों में समर्पित हो गई। ये ही माता लक्ष्मी भगवान विष्णु के राम अवतार में सीता और श्रीकृष्ण अवतार में रुक्मिणी रूप में अवतरित हुईं।
धन की देवी लक्ष्मी सृष्टि में भ्रमण करती रहती हैं। जहां उन्हें प्रेम, धर्म व सदाचार नजर आता है, देवी लक्ष्मी उन्हीं स्थान पर निवास करती हैं। कुछ स्थानों पर देवी लक्ष्मी जरा सी देर भी नहीं ठहरती। वह स्थान यह हैं-
– जो सूर्योदय, सूर्यास्त या दोपहर में सोता है। लक्ष्मी उसके यहां निवास नहीं करती हैं।
– निर्लज्ज, कलहप्रिय, निंदाप्रिय, मलिन, असावधान का लक्ष्मी सदा त्याग करती हैं।
– जो दांत-साफ नहीं करता, स्नान नहीं करता, स्वच्छ वस्त्र नहीं पहनता लक्ष्मी उसका त्याग कर देती हैं।
– जो हमेशा क्रोध करे, जोर से बोले, ज्यादा खाए, दान नहीं करे, लक्ष्मी उसके यहां नहीं ठहरतीं।
– जो मल-मूत्र त्यागकर उसे देखे, दुर्गंध सुंघे, उसको लक्ष्मी का कभी दर्शन भी नहीं होता।
– जो झूठ बोलता हो, झूठन खाता हो, अपवित्र आचरण करता हो उसको लक्ष्मी त्याग देती है।
– जो परायी स्त्री-पुरुष में आसक्त हो, व्यभिचारी हो वह अतिधनवान भी हो तो भी निर्धन हो जाता है।
– जो पुत्रियों की उपेक्षा करता हो, निराशावादी, नकारात्मक सोच का हो लक्ष्मी उससे अप्रसन्न रहती है।
– जो निर्दयी हो, दूसरे का माल हड़पता हो, दगाबाज हो, नशेबाज हो लक्ष्मी उसके यहां नहीं आती।

क्या आप पैसों के अभाव से परेशान हैं? आप चाहते हैं कि आपको इस परेशानी से छुटकारा मिल जाए। आपके घर में कभी लक्ष्मी की कमी नहीं हो तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं, लक्ष्मी की उन नौ कलाओं के बारे मे जिनके होने पर जीवन हर सुख से पूर्ण हो जाता है। जिस किसी व्यक्ति में लक्ष्मी की इन नौ कलाओं का विकास हो जाता है, लक्ष्मी वहां स्थाई रूप से निवास करने लगती है।
विभूति- सांसारिक कर्तव्य को निभाते हुए दान रूपी कर्तव्य जो निभाता है मतलब शिक्षा, दान, रोगी सेवा, जलदान आदि कर्तव्य लक्ष्मी की विभूति हैं ये सभी लक्ष्मी की पहली शक्ति है।
नम्रता- दूसरी शक्ति नम्रता होती है और ये दोनों कलाएं जिसमें आ जाती है तो लक्ष्मी उसे उतना ही ऊंचा उठाती है।
कान्ति- जब ऊपर लिखी दोनों कलाएं आ जाती है तो वह लक्ष्मी की तीसरी कला कांति का पात्र हो जाता है।
तुष्टि- इन तीनों कलाओं के एक हो जाने पर चौथी कला का आगमन अपने आप हो जाता है। वाणी सिद्धि, व्यवहार, नए कार्य, पुत्र प्राप्ति जैसे शुभ कार्य होने लगते हैं।
कीर्ति- यह लक्ष्मी की पांचवी कला है, इसकी उपासना से व्यक्ति का जीवन धन्य हो जाता है, संसार में उसकी कीर्ति फैलने लगती है।
सन्नति- कीर्ति मिलने पर लक्ष्मी की छटी कला सन्नति मुग्ध होकर विराजमान होती है।
पुष्टी- इस कला द्वारा साधक अपने जीवन में संतुष्टी का अनुभव करता है। उसे अपने जीवन का सार मालूम पड़ता है।
उत्कृष्टि- इस कला से जीवन में सुख की वृद्धि होती जाती है।
ऋद्धि – यह सबसे महत्वपूर्ण कला है जो बाकी सात कलाओं के होने पर खुद ही व्यक्ति के जीवन में समाहित हो जाती है।
हम सभी ने भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के कई चित्र देखें हैं। अनेक चित्रों में भगवान विष्णु को बीच समुद्र में शेषनाग के ऊपर लेटे और माता लक्ष्मी को उनके चरण दबाते हुए दिखाया जाता है। इस चित्र के पीछे जीवन प्रबंधन के गुण सूत्र छिपे हैं।
माता लक्ष्मी यूं तो धन की देवी हैं तो भी वे भगवान विष्णु के चरणों में ही निवास करती हैं ऐसा क्यों। इसका कारण हैं कि भगवान विष्णु कर्म व पुरुषार्थ का प्रतीक हैं और माता लक्ष्मी उन्हीं के यहां निवास करती हैं जो विपरीत परिस्थितियों में भी पीछे नहीं हटते और कर्म व अपने पुरुषार्थ के बल पर विजय प्राप्त करते हैं जैसे कि भगवान विष्णु।
जब भी अधर्म बढ़ता है तब-तब भगवान विष्णु अवतार लेकर अधर्मियों का नाश करते हैं और कर्म का महत्व दुनिया को समझाते हैं। इसका सीधा सा अर्थ यह है कि केवल भाग्य पर निर्भर रहने से लक्ष्मी(पैसा) नहीं मिलता। धन के लिए कर्म करने की आवश्यकता पड़ता है साथ ही हर विपरित परिस्थिति से लडऩे का साहस भी आपने होना चाहिए। तभी लक्ष्मी आपके घर में निवास करेगी।

हर कोई चाहता है की धन की देवी लक्ष्मी की कृपा उस पर बनी रहे। हर भक्त महालक्ष्मी की पूजा कर अपने व्यवसाय से अधिक धनलाभ, नौकरी में तरक्की और परिवार में आर्थिक समृद्धि की कामना पूरी कर सकता है। जो भक्त नौकरी या व्यवसाय के कारण पूजा-पाठ में अधिक समय न दे पाएं। वे हर शुक्रवार को इस तरह धन लक्ष्मी की पूजा करें।
– शुक्रवार के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। क्योंकि माना जाता है कि लक्ष्मी कर्म से प्रसन्न होती है, आलस्य से रुठ जाती हैं।
– घर के देवालय में चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर चावल या अन्न रखकर उस पर जल से भरा मिट्टी का कलश रखें। यह कलश सोने, चांदी, तांबा, पीतल का होने पर भी शुभ होता है।
– इस कलश में एक सिक्का, फूल, चावल के दाने, पान के पत्ते और सुपारी डालें।
– कलश को आम के पत्तों के साथ चावल के दाने से भरा एक मिट्टी का दीपक रखकर ढांक दें। जल से भरा कलश विघ्रविनाशक गणेश का आवाहन होता है। क्योंकि वह जल के देवता भी माने जाते हैं।
– चौकी पर कलश के पास हल्दी का कमल बनाकर उस पर माता लक्ष्मी की मूर्ति और उनकी दायीं ओर भगवान गणेश की प्रतिमा बैठाएं।
– पूजा में कलश बाईं ओर तथा दीपक दाईं ओर रखें।
– माता लक्ष्मी की मूर्ति के सामने श्रीयंत्र भी रखें।
– इसके अलावा सोने-चांदी के सिक्के, मिठाई, फल भी रखें।
– इसके बाद माता लक्ष्मी की पंचोपचार यानि धूप, दीप, गंध, फूल से पूजा कर नैवेद्य या भोग लगाएं।
– आरती के समय घी के पांच दीपक लगाएं। इसके बाद पूरे परिवार के सदस्यों के साथ पूरी श्रद्धा भक्ति के साथ माता लक्ष्मी की आरती करें।
– आरती के बाद जानकारी होने पर श्रीसूक्त का पाठ भी करें।
– अंत में पूजा में हुई किसी भी गलती के लिए माता लक्ष्मी से क्षमा मांगे और उनसे परिवार से हर कलह और दरिद्रता को दूर कर सुख-समृद्धि और खुशहाली की कामना करें।
लक्ष्मी तंत्र के अनुसार इंद्र द्वारा लक्ष्मी की कृपा पाने का उपाय पूछने पर स्वयं लक्ष्मी ने कहा है कि जो व्यक्ति नैमित्तिक कार्य का आचरण करते हुए मेरी कृपा प्राप्ति की इच्छा करते हुए मेरी आराधना करता है, उसी मनुष्य पर मैं पूर्ण रूप से प्रसन्न होती हूं। नि:संदेह जो सात्विक मन से पूर्ण प्रीति से लक्ष्मी आराधना संपन्न करता है, वह अपने जीवन की दरिद्रता को मिटा सकता है। प्राचीनकाल से ही लोग लक्ष्मी विनायक गणपति यंत्र, श्रीयंत्र, कुबेर यंत्र व कनकधारा यंत्र की पूजा उपासना करके महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त करते आए हैं।
शास्त्र वर्णित है कि जिस स्थान पर भगवान श्रीहरि की चर्चा होती है, उनके गुणों का कीर्तन होता है, भगवान श्रीकृष्ण तथा उनके भक्तों का यश गाया जाता है, जहां शंख ध्वनि होती है, शंख, शालग्राम, तुलसी का निवास रहता है, उनकी सेवा, वंदना, ध्यान होता है। जहां शिवलिंग की पूजा, दुर्गा की पूजा व कीर्तन होता है, जहां ब्राह्मïणों की सेवा होती है और उन्हें उत्तम पदार्थ भोजन में कराए जाते हैं तथा संपूर्ण देवताओं का अर्चन होता है, वहां लक्ष्मी सदा विद्यमान रहती हैं।
कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली का पर्व मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 26 अक्टूबर, बुधवार को है। मान्यता के अनुसार भगवान श्रीराम रावण-वध के बाद इसी दिनअयोध्या वापस लौटे थे। इसी खुशी में अयोध्यावासियों ने दीपक जलाएं थे। तभी से यह पर्व मनाया जा रहा है। दीपावली पर्व मनाने के पीछे और भी कई कथाएं और मान्यताएं हैं। उन्हीं में से एक कथा यह भी है-
पुरातन काल में महिषासुर नामक एक महाभयंकर दैत्य हुआ। ब्रह्मा, विष्णु और शिव से वरदान पाकर दैत्यराज महिषासुर तीनों लोकों में आतंक मचाने लगा। इससे दु:खी देवता और मानव त्रिदेवों के पास पहुंचे, तो शिव के सुझाव से देवी-पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती से शक्तियां प्राप्त कर शक्ति स्वरूपा काली का जन्म हुआ। महादेवी और महिषासुर में नौ रातों तक भयंकर संग्राम चला। इसमें महिषासुर का अंत हुआ। इसके बाद भी देवी-क्रोध शांत नहीं हुआ और रौद्र रूप में नृत्य करने लगी। तब भगवान शिव ने कहा कि दीप जलाकर, मंगल गीतों से देवी की आराधना करो। तब से दीप-पर्व मनाने की परंपरा का प्रारंभ हुआ।
कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली का पर्व मनाया जाता है। दीपावली का त्योहार भारतीय सभ्यता, संस्कृति का एक सर्व प्रमुख त्योहार है। दीपावली का पर्व मनाए जाने के पीछे कई कथाएं व किवदंतियां प्रचलित हैं लेकिन इन सबके पीछे का सार एक ही है जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस बार यह पर्व 26 अक्टूबर, बुधवार को है।
दीपावली वास्तव में एक त्योहार नहीं है बल्कि यह त्योहारों का समूह है। दीपावली का पर्व 5 दिनों तक मनाया जाता है। सबसे पहले कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान धन्वंतरि का पूजन किया जाता है। अगले दिन यमराज के निमित्त नरक चतुर्दशी का व्रत व पूजन किया जाता है। इसके दूसरे दिन दीपावली मनाई जाती है। कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पूजा की जाती है वहां द्वितीया को भाई दूज का पर्व मनाया जाता है।
पुरातन काल से ही हिंदू धर्मावलंवी दीपावली का त्योहार हर्षोल्लास से मनाते आ रहे हैं। अमावस्या के गहन अंधकार के विरुद्ध नन्हें दीपकों के प्रकाश का संघर्ष रूपी संदेश देना ही इस त्योहार का मूल उद्देश्य है। यहां अंधकार का अर्थ मन के भीतर के नकारात्मक भावों से हैं वहीं दीपक उसी मन मे छिपे बैठे सकारात्मक भावों का प्रतीक है। दीपावली पर्व को अगर भारतीय संस्कृति की अस्मिता का प्रतीक कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।

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