दिल्ली में जो होता है, उसे पूरा देश देखता है; यह लगभग राष्ट्रीय चुनाव बन गया

दिल्ली के चुनाव में कर्म की राजनीति ने धर्म की राजनीति को पछाड़ दिया। अरविंद इस हिंदू-मुसलिम ध्रुवीकरण के धुआंकरण से भी बच निकले। अब वह तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बन जाएंगे लेकिन अगले आम चुनाव में वह चाहें तो अपनी वाराणसी की हार का हिसाब मोदी से चुकता कर सकते हैं। 

डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार

दिल्ली के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार देश में नयी राजनीति की शुरुआत कर सकती है। मुझे 2013 के गुजरात विधानसभा के चुनाव की याद आ रही है। जब उसके चुनाव परिणाम घोषित हो रहे थे तो मुझे इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में पांच-छह टीवी चैनलों ने घेर लिया। वे पूछने लगे कि मोदी की 5-10 सीटें कम हो रही हैं, फिर भी आप कह रहे हैं कि गुजरात का यह मुख्यमंत्री अब प्रधानमंत्री के द्वार पर दस्तक देगा। यही बात आज मैं अरविंद केजरीवाल के बारे में कहूं, ऐसा मेरा मन कहता है।

आम आदमी पार्टी को पिछले चुनाव के मुक़ाबले इस चुनाव में भले ही पांच सीटें कम मिली हैं तो भी यह प्रचंड बहुमत है। यह प्रचंड बहुमत यानी 70 में से 62 सीटों का तब है, जबकि बीजेपी और कांग्रेस ने दिल्ली प्रदेश के इस चुनाव में पूरी ताक़त झोंक दी थी, पूरी प्रतिष्ठा दांव पर लगा दी थी। कांग्रेस और बीजेपी के नेताओं ने चुनाव-प्रचार के दौरान अपना स्तर जितना नीचे गिराया, उतना गिरता हुआ स्तर मैंने 65-70 साल में कभी नहीं देखा। 

अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया को मैं दाद दूंगा कि उन्होंने अपना स्तर ऊंचा ही रखा। अपनी मर्यादा गिरने नहीं दी। बीजेपी ने अपने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों से लेकर सैकड़ों विधायकों और सांसदों को चुनाव में झोंक दिया। दिल्ली की जनता के आगे 2 रु. किलो आटे तक के लॉलीपाप बीजेपी ने लटकाए लेकिन दिल्ली के लोग हैं कि फिसले ही नहीं। बीजेपी यहीं तक नहीं रुकी। उसने शाहीन बाग़ को अपना रथ बना लिया। उसने खुद को पाकिस्तान की खूंटी पर लटका लिया। उसने अरविंद केजरीवाल को हिंदू-मुसलिम ध्रुवीकरण की धुंध में फंसाने की भी कोशिश की लेकिन गुरु गुड़ रह गए और चेला शक्कर बन गया। 

दिल्ली के चुनाव को वैसा प्रचार चैनलों और अख़बारों में मिला है, जैसा किसी भी प्रादेशिक चुनाव को अब तक नहीं मिला है। यह लगभग राष्ट्रीय चुनाव बन गया है। राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस को इस चुनाव ने दरी के नीचे सरका दिया है। अरविंद केजरीवाल के वचन और कर्म में भी अब नौसिखियापन नहीं रहा। एक जिम्मेदार राष्ट्रीय नेता की गंभीरता उनमें दिखाई पड़ने लगी है। वह अपने शुरुआती साथियों को फिर से अपने साथ जोड़ें, राष्ट्रीय मुद्दों पर अधिकारी विद्वानों और विशेषज्ञों का मार्गदर्शन लें और अपनी रचनात्मक छवि बनाए रखें तो वे देश को निराशा और आर्थिक संकट के गर्त में गिरने से बचा सकते हैं। दिल्ली में जो होता है, उसे पूरा देश देखता है। 

वही दूसरी ओर आम आदमी पार्टी की आंधी में विपक्ष का पूरी तरह से सफाया

NOIDA, INDIA – JUNE 2: Activist and member of Aam Admi Party Atishi Marlena at her home on June 2, 2015 in Noida, India. (Photo by Saumya Khandelwal/Hindustan Times via Getty Images)

दिल्ली के 70 में से 16 विधायक पहली बार चुनाव जीतने में कामयाब रहे हैं. ये सभी विधायक आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं.

दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की आंधी में विपक्ष का पूरी तरह से सफाया हो गया है. आम आदमी पार्टी को 62 और बीजेपी को महज 8 सीटें मिली हैं जबकि कांग्रेस अपना खाता भी नहीं खोल सकी. केजरीवाल की लहर में विपक्षी पार्टियों के तमाम दिग्गजों को करारी हार का सामना करना पड़ा है. इनमें कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की बेटी से लेकर कृति आजाद की पत्नी, परवेश वर्मा के चाचा सहित बीजेपी के राष्ट्रीय मंत्री तक को हार का मुंह देखना पड़ा है

बीजेपी के राष्ट्रीय मंत्री हारे –  बीजेपी के राष्ट्रीय मंत्री आरपी सिंह राजेंद्र नगर सीट से मैदान में उतरे थे. उनको आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा ने करारी मात दी है. राघव चड्डा ने 20058 वोटों के अंतर से बीजेपी के सरदार आरपी सिंह को शिकस्त दी है. कांग्रेस के रॉकी तुसीद तीसरे स्थान पर रहे. आर पी सिंह को इस सीट पर लगातार दूसरी बार हार का मुंह देखना पड़ा है.

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की बेटी हारीकांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा की बेटी शिवानी चोपड़ा अपने पिता की विरासत संभालने के लिए कालकाजी सीट से मैदान में उतरी थीं. इस सीट से सुभाष चोपड़ा तीन बार विधायक रह चुके हैं, इसके बाद भी शिवानी चुनाव में अपनी जमानत नहीं बचा सकीं. इस सीट पर आम आदमी पार्टी की आतिशी ने बीजेपी के धरमबीर सिंह को 11393 मतों के अंतर से हराया है और शिवानी को महज 4956 वोट ही मिल सके हैं.

कीर्ति आजाद की पत्नी को करारी मात संगम विहार विधानसभा सीट से कांग्रेस के दिल्ली चुनाव समिति के अध्यक्ष कीर्ति आजाद की पत्नी पूनम आजाद मैदान में उतरी थीं. पूर्वांचली बहुल इस सीट पर पूनम आजाद अपनी जमानत नहीं बचा सकीं, उन्हें महज 2601 वोट मिले हैं. इस सीट पर आम आदमी पार्टी के दिनेश मोहनिया ने जीत दर्ज की है, जिन्होंने बीजेपी की सहयोगी जेडीयू के उम्मीदवार शिव चरण लाल गुप्ता को 42522 मतों के अंतर से हराया है.

परवेश वर्मा के चाचा भी हारेपश्चिम दिल्ली के सांसद परवेश वर्मा के चाचा और पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के छोटे भाई मास्टर आजाद सिंह बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर मुंडका विधानसभा सीट से मैदान में उतरे थे, लेकिन केजरीवाल की लहर में अपनी सीट नहीं जीत सके.  यहां से आम आदमी पार्टी के धरमपाल लाकड़ा आजाद सिंह को 19158 वोटों से मात दी.

हारुन यूसुफ की जमानत जब्त  शीला दीक्षित सरकार में मंत्री रहे और कांग्रेस के मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले हारुन यूसुफ अपनी परंपरागत बल्लीमरान सीट पर जमानत नहीं बचा सके. बल्लीमरान सीट पर AAP के इमरान हुसैन को 65644 वोट हासिल हुए तो वहीं बीजेपी की लता को 29472 वोट मिले. इमरान ने लता को 36172 वोटों से मात दी और कांग्रेस के हारुन यूसुफ को महज 4797 वोट मिले.

अरविंदर सिंह लवली को करारी मात  कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली अपनी परंपरागट सीट गांधी नगर से मैदान में उतरे थे, लेकिन बीजेपी के अनिल बाजपेयी के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा है. वहीं, कृष्णानगर सीट से कांग्रेस के पूर्व मंत्री डॉ. वालिया चुनाव किस्मत आजमाने मैदान में उतरे थे, जिन्हें आम आदमी पार्टी एसके बग्गा ने करारी मात दी है.

रमेश बिधूड़ी अपने भतीजे को भी नहीं जिता सके दिल्ली के तुगलकाबाद विधानसभा सीट पर साउथ दिल्ली के बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी के भतीजे विक्रम बिधूड़ी किस्मत आजमाने दूसरी बार मैदान में उतरे थे, जिन्हें आम आदमी पार्टी के सहीराम ने 13758 मतों के अंतर से हरा दिया था. दक्षिणी दिल्ली में बीजेपी को महज एक सीट मिली है.

दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 62 सीटों पर जीत दर्ज की है. पिछले चुनाव की तुलना में बीजेपी के विधायकों की संख्या 3 से बढ़कर 8 हो गई है. दिल्ली विधानसभा चुनाव में 16 नए विधायक चुने गए हैं. पहली बार विधानसभा पहुंचने वाले सभी 16 चेहरे आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर आए हैं और उनमें आतिशी, राघव चड्डा और दिलीप पांडे जैसे युवा चेहरे शुमार है.

दिल्ली में शिक्षा सुधार के लिए काम कर चुकी आतिशी ने कालकाजी सीट से बीजेपी उम्मीदवार धर्मवीर सिंह को 11 हजार वोट से हराकर जीत दर्ज की है. आतिशी ने पिछले साल ईस्ट दिल्ली से लोकसभा चुनाव में भी किस्मत आजमाई थी, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. वहीं राघव चड्डा भी पिछले साल साउथ दिल्ली लोकसभा सीट से चुनाव हार चुके हैं. लेकिन इस बार राघव चड्डा राजेंद्र नगर से बीजेपी उम्मीदवार आरपी सिंह को करीब 20 हजार वोट से मात देने में कामयाब रहे.

आम आदमी पार्टी के इन दोनों युवा चेहरों की तरह नॉर्थ ईस्ट दिल्ली लोकसभा सीट से दिलीप पांडे को भी हार मिली थी. दिलीप पांडे अब तिमारपुर विधानसभा सीट से 24 हजार वोट से जीत दर्ज करने में कामयाब रहे हैं. कांग्रेस की पूर्व पार्षद राजकुमारी ढिल्लो हरि नगर से तेजेंद्र पाल बग्गा को 20 हजार वोट से हराकर पहली बार विधानसभा पहुंची है. दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री जीतेंद्र सिंह तोमर की पत्नी प्रीति तोमर त्रिनगर सीट से चुनाव जीतने में कामयाब रही है. बवाना से जयभगवान, पटेल नगर से राजकुमार आनंद, त्रिलोकपुरी से रोहित कुमार, सीलमपुर से अब्दुल रहमान, कोंडली से कुलदीप कुमार, सुल्तानपुर माजरा से मुकेश कुमार पहली बार चुनाव जीतकर विधायक बने हैं. द्वारका सीट से विनय मिश्रा, मुडंका से धर्मपाल लाकरा और दिल्ली कैंट से वीरेंद्र सिंह कादयान पहली बार विधायक चुने गए हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *