कचरा बनी दिल्ली में टूटती जीवन सांसें

कचरा बनी दिल्ली में टूटती जीवन सांसें
– ललित गर्ग –

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वच्छता अभियान एवं उनके कथन कि “एक स्वच्छ भारत के द्वारा ही देश 2019 में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर अपनी सर्वोत्तम श्रद्धांजलि दे सकते हैं।” का क्या हश्र हो रहा है, दिल्ली में स्वच्छता की स्थिति पर दिल्ली हाई कोर्ट की ताजा टिप्पणी से सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। इस टिप्पणी में कोर्ट ने कहा कि सफाई के मामले में दिल्ली एशिया स्तर का शहर भी नहीं है, सर्वथा उचित है। अदालत का यह कहना कि यहां सभी संसाधन और पर्याप्त संख्या में सफाईकर्मी उपलब्ध होने के बावजूद सफाई की स्थिति बदतर है, दिल्ली में सफाई के लिए जिम्मेदार सरकारी एजेंसियों को सीधे कठघरे में खड़ा करता है। न केवल सरकारी एजेंसियों को बल्कि केन्द्र सरकार के स्वच्छता अभियान के दावों को भी खोखला साबित करती है। इसी मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने कचरा निस्तारण पर केंद्र सरकार के आठ सौ से अधिक पन्नों के दस्तावेज को एक तरह का कचरा करार दिया था। क्या हो रहा है? देश किधर जा रहा है?

जब समूचे देश में स्वच्छता अभियान का ढिंढोरा पीटा जा रहा है, उसी दौरान यह भी एक कड़वी सच्चाई ही है कि राजधानी में स्वच्छता के मामले में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हो पाया है। यह सही है कि प्रधानमंत्री के आह्वान के बाद दिल्ली में स्वच्छता के लिए जिम्मेदार सरकारी एजेंसियों द्वारा कुछ प्रयास अवश्य किए गए थे। यह दावा भी किया गया था कि दिल्ली की सड़कों से प्रतिदिन उठाए जाने वाले कूड़े की मात्रा में काफी वृद्धि हुई है, लेकिन समय बीतने के साथ फिर लापरवाही शुरू हो गई है, जिसका नतीजा जगह-जगह दिखाई दे रहे कूड़े के ढेर के रूप में सामने आ रहा है।

सफाई के मामले में विकास के तमाम दावें भी झूठे साबित हो रहे हैं। हम अत्याधुनिक होने की दिशा में अपने आपको अग्रसर कर रहे हैं, लेकिन हमारे पास कचरे के निपटारे की कोई सुरक्षित और आधुनिक तकनीक नहीं है, आज भी कचरा खुले ट्रकों में ले जाया जाता है, जो गंतव्य तक पहुंचते-पहुंचते आधा तो सड़कों पर ही बिखर जाता है। बरसात से पहले नालों का कचरा सड़कों पर फैला दिया जाता है, जो करीब एक माह तक गंदगी का साम्राज्य तो स्थापित करता ही है, आम जनजीवन के लिये बीमारियों का खुला निमंत्रण होता है। ‘स्वच्छता ईश्वरत्व के निकट है’ के संदेश को फैलाने वाली सरकारें क्या सोचकर दिल्ली को सड़ता हुआ देख रही है। दिल्ली के गाजीपुर लैंडफिल साइट की ऊंचाई कुतुब मीनार से मात्र 8 मीटर कम यानी 65 मीटर पहुंच चुकी है। यहां के कूड़ा सड़ने से स्वास्थ्य के लिये हानिकारक गैंसे निकलती हैं, जो जानलेवा है। यहां से निकलने वाली खतरनाक गैंसे सांस से जुड़ी अनेक बीमारियांे का कारण बनती है। इससे निकलने वाली मीथेन गैस आग लगने का कारण भी बनती है। इस कचरे से रिसकर जमीन में पहुंचने वाला पानी भूमिगत जल को भी प्रदूषित करता है।

आज जरूरी हो गया है कि देश के सामने वे सपने रखे जाये, जो होते हुए दिखे भी। राष्ट्रीय राजधानी होने के कारण दिल्ली को निश्चित ही विश्वस्तरीय शहर के रूप में विकसित किया जाना चाहिए, लेकिन यहां विश्वस्तर की स्वच्छता होना भी उतना ही आवश्यक है। यह निराशाजनक ही है कि दिल्ली में सफाई के लिए जिम्मेदार सरकारी एजेंसियों के उच्चाधिकारियों में स्वच्छता के प्रति इच्छाशक्ति की कमी है। ऐसा भी देखने में आ रहा है कि आम जनजीवन से जुड़ा यह मुद्दा भी राजनीति का शिकार है। दिल्ली सरकार केन्द्र को दोषी मानती है तो केन्द्र दिल्ली सरकार की अक्षमता को उजागर करती है, पिसती है दिल्ली की जनता। लेकिन कब तक? यही वजह है कि दिल्ली हाई कोर्ट को स्वयं इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा है। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि स्वच्छता और स्वास्थ्य एक-दूसरे से सीधे जुड़े हुए हैं। ऐसे में दिल्लीवासियों के स्वास्थ्य की चिंता करते हुए भी पूरी इच्छाशक्ति के साथ स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए काम किया जाना चाहिए।

शहरों को स्मार्ट बनाने की लोकलुभावन योजनाएं केन्द्र सरकार लागू कर रही है, लेकिन विडम्बना देखिये कि कोर्ट को बार-बार साफ-सफाई के प्रति सरकारों के उपेक्षित रवैये के लिये फटकार लगानी पड़ रही है। शहरों को कैसे स्मार्ट बनाया जा सकेगा जब उन्हें सामान्य तौर पर साफ-सुथरा बनाए रखने की भी हमारे मनसुबें एवं मंशा नहीं दिखाई दे रही है। इसके प्रमाण आए दिन सामने भी आते रहते हैैं। जैसे दिल्ली के नीति-नियंताओं को यह नहीं सूझ रहा कि कचरे का क्या किया जाए वैसे ही मुंबई के नीति-नियंता बारिश से होने वाले जल भराव से निपट पाने में नाकामी का शर्मनाक उदाहरण पेश कर रहे हैैं। यदि दिल्ली-मुंबई सरीखे देश के प्रमुख शहर बदहाली से मुक्त नहीं हो पा रहे तो फिर इसकी उम्मीद करना व्यर्थ है कि अन्य शहर कचरे, गंदगी, बारिश से होने वाले जलभराव, अतिक्रमण, यातायात जाम आदि का सही तरह सामना कर पाने में सक्षम होंगे। आखिर इस पर किसी को हैरानी क्यों होनी चाहिए कि जानलेवा प्रदूषण से जूझते शहरों में हमारे शहरों की गिनती बढ़ती जा रही है?

नरेन्द्र मोदी ने धूल-मिट्टी को साफ करने के लिए झाडू उठाकर स्वच्छ भारत अभियान को पूरे राष्ट्र के लिए एक जन-आंदोलन का रूप दिया और कहा कि लोगों को न तो स्वयं गंदगी फैलानी चाहिए और न ही किसी और को फैलाने देना चाहिए। उन्होंने “न गंदगी करेंगे, न करने देंगे।” का मंत्र भी दिया। लेकिन वे दिल्ली में लगातार गंदगी के पहाड़ खड़े होने पर क्यों मौन है? क्यों दिल्ली बार-बार आवासीय स्थानों पर गंदगी के अंबार बनने को मजबूर हो जाती है? यहीं तो नेताओं की कथनी और करनी में अन्तर के दर्शन होते हैं।

यह अच्छी बात है कि समाज के विभिन्न वर्गों ने आगे आकर स्वच्छता के इस जन अभियान में हिस्सा लिया है और अपना योगदान दिया है। सरकारी कर्मचारियों से लेकर जवानों तक, बालीवुड के अभिनेताओं से लेकर खिलाड़ियों तक, उद्योगपतियों से लेकर आध्यात्मिक गुरुओं तक सभी ने इस महान काम के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई है। देशभर के लाखों लोग सरकारी विभागों द्वारा चलाए जा रहे स्वच्छता के इन कामों में आए दिन सम्मिलित होते रहे हैं, इस काम में एनजीओ और स्थानीय सामुदायिक केन्द्र भी शामिल हैं, नाटकों और संगीत के माध्यम से सफाई-सुथराई और स्वास्थ्य के गहरे संबंध के संदेश को लोगों तक पहुंचाने के लिए बड़े पैमाने पर पूरे देश में स्वच्छता अभियान चलाये जा रहे हैं। लेकिन इतने व्यापक प्रयत्नों के बावजूद सरकार के सर्वेसर्वा लोग एवं आम जनता से जुड़े ‘आम’ लोग क्यों गंदगी को सत्ता पाने का हथियार बनाने पर तुले है? कचरा बनी देश की राजधानी टूटती सांसों की गिरफ्त में जी रही है। महंगाई ने सबकी कमर तोड़ दी है। अस्पतालांे में जिन्दगी महंगी और मौत सस्ती है। विद्यालय व्यापारिक प्रतिष्ठान बन गए हैं। मन्दिर में बाजार घुस गया पर बाजार में मन्दिर नहीं आया। सुधार की, नैतिकता की बात कोई सुनता नहीं है। दूर-दूर तक कहीं रोशनी नहीं दिख रही है। बड़ी अंधेरी रात है। ‘मेरा देश महान्’ के बहुचर्चित नारे को इस प्रकार पढ़ा जाए ‘मेरा देश परेशान’।
सरकारी एजेंसियों द्वारा स्वच्छता के लिए किए जा रहे कार्य की निगरानी की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए और कार्य में लापरवाही बरतने पर दोषी अधिकारियों-कर्मचारियों पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। यह सही है कि बिना दिल्ली के निवासियों की मदद के राजधानी को स्वच्छ नहीं बनाया जा सकता और इसके लिए प्रत्येक दिल्लीवासी को आगे आकर अपना योगदान देना होगा, लेकिन सरकारी एजेंसियों को भी स्वच्छता के प्रति अपने दायित्व को पूरी ईमानदारी से निभाना होगा। सही मायने में स्वच्छता के लक्ष्य को सरकारी मशीनरी और दिल्लीवासियों के परस्पर सकारात्मक सहयोग के साथ ही हासिल किया जा सकता है। प्रेषक

(ललित गर्ग)
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