गुरू पुष्य योग 9 मार्च 17

पुष्य नक्षत्र पुष्य नक्षत्र को अन्य नामों जैसे तिष्य और अमरेज्य से भी जाना जाता है। हर दिन बदलने वाले नक्षत्र मे पुष्य नक्षत्र भी सामिल है, एवं अन्दाज से हर २७वें दिन पुष्य नक्षत्र होता है। यह जिस वार को आता है, इसका नाम भी उसी प्रकार रखा जाता है। इसी प्रकार गुरुवार को पुष्य नक्षत्र होने से गुरु पुष्य योग कहा जाता है। गुरु पुष्य योग में विद्वान ज्योतिषियो का कहना हैं कि पुष्य नक्षत्र में धन प्राप्ति, चांदी, सोना, नये वाहन, बही-खातों की खरीदारी एवं गुरु ग्रह से संबंधित वस्तुए अत्याधिक लाभ प्रदान करती है। इस दिन की गई खरीदारी अधिक समय तक स्थायी और समृद्धि प्रदान करती है। इस दिन की गई सुवर्ण अथवा गुरु ग्रह से संबंधित वस्तुए अत्याधिक लाभ प्रदान करती है। पीला पखराज धारण करना इस दिन अत्यन्त शुभ फलदायी मानगया है। पुष्य नक्षत्र के स्वामी शनिदेव व अधिष्ठाता बृहस्पति देव हैं। शनि के प्रभाव से खरीदी गई वस्तु स्थाई रूप से लंबे समय तक खरीदार के पास रहती है और गुरु के प्रभाव से वह समृद्धिदायी होती है। ऐसा ही फल अबूझ मुहूर्त वाले दिवसों में की गई खरीदारी का मिलता है।

Pushya Nakshatra 2017
Pushya, or Pushyami or Pusya, is one among the 27 nakshatras. Below are Pushya Nakshatra 2017 dates and time based on Hindu Calendar and Panchang as per India Standard Time. The day Pushya Nakshatra falls is considered highly auspicious for beginning new ventures, investments and purchases. When the day falls on Thursday it is known as Guru pushya amrut and is highly auspicious. Today, Pushya Nakshatra is the ideal day for many people for buying Gold and Jewellery. According to Hindu astrology, the favorable alignment of the stars on Pushya Nakshatra day results in prosperity, success and happiness.

ज्योतिषशास्त्र के नियमानुसार गुरूवार के दिन जब पुष्य नक्षत्र आता है तब बड़ा ही उत्तम योग बनता है जिसे गुरू पुष्य योग के नाम से जाता है। गुरू स्वर्ण, धन एवं मांगलिक कार्यों के कारक हैं। इसलिए गुरू पुष्य योग में सोना, वाहन अथवा स्थायी संपत्ति खरीदना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन जो भी धन अर्जित करते हैं वह स्थायी रहता है। पुष्य नक्षत्र को एक शाप मिला हुआ है इसलिए इस नक्षत्र में विवाह कार्य नहीं किया जाता है। पुष्य नक्षत्र आमतौर पर शुभ होता है लेकिन शुक्रवार के दिन अथवा बुधवार के दिन यह नक्षत्र हो तब कोई नया काम कभी नहीं करना चाहिए और न खरीदारी करनी चाहिए।

ज्योतिषियों का मानना है कि गुरूपुष्य, रविपुष्य एवं शनि पुष्य जितना शुभ फलदायी होता है उतना ही बुध और शुक्रवार का पुष्य हानिकारक होता है।
27 नक्षत्रों में आठवां नक्षत्र है पुष्य। पुष्य का अर्थ है पोषण करने वाला ऊर्जा और शक्ति देने वाला। नक्षत्रों का राजा पुष्य सभी नक्षत्रों में सर्वोत्तम है। इस नक्षत्र में किया गया प्रत्येक काम अपने साथ सफलता लेकर आता है। इस शुभ काल में खरीद-फरोख्तइ बहुत शुभ मानी जाती है। इस दौरान की गई पूजा सीधे आपके आराध्या तक पहुंच जाती है। इस योग के कई अशुभ फल भी हैं इसलिए इस योग में कोई भी मंगल कार्य करने से पहले किसी विशिष्ट विद्वान से परामर्श ले लें।

मान्यता है की पुष्य नक्षत्र में बृहस्पति का आगमन बहुत ही श्रेष्ठ फल प्रदान करता है क्योंकि बृहस्पति धन और धर्म का कारक ग्रह है। पुष्य नक्षत्र का स्वामी शनि ग्रह है होने के कारण यह विश्राम प्रदान करता है।

इस नक्षत्र की उपस्थिति कर्क राशि के 3-20 अंश से 16-40 अंश तक है। ‘अमरेज्य’ का श‍ाब्दिक अर्थ है, देवताओं के द्वारा पूजा जाने वाला – शनि इस नक्षत्र के स्वामी ग्रहों के रूप में मान्य हैं, लेकिन गुरु के गुणों से इसका साम्य कहीं अधिक बैठता है। जब किसी जातक की कुंडली में चन्द्रमा इस नक्षत्र पर आता है, तो उस व्यक्ति में निम्नलिखित गुण दिखाई देते हैं- ब्राह्मणों और देवताओं की पूजा करने में अटूट विश्वास, धन-धान्य की संपन्नता, बुद्धिमत्ता, राजा या अधिकारियों का प्रिय होना, भाई-बंधुओं से युक्त होना। देखा जाए तो ये सभी गुण गुरु के हैं और यह इन बातों से सिद्ध भी होता है।
पहले गुण को देखें तो- गुरु देवताओं के गुरु है और एक ब्राह्मण ग्रह के रूप में जाना जाता है। इसलिए देवताओं की पूजा एवं ब्राह्मणों का सम्मान इसके गुणों में सम्मिलित होगा ही। जहां तक धन-धान्य से संपन्नता का प्रश्न है, गुरु धन प्रदाता होता है। इस कारण से व्यक्ति धनवान होता है। बुद्धिमत्ता और अन्य गुण तो देवगुरु होने से निश्चित रूप से होंगे ही। चूंकि विंशोत्तरी दशा में पुष्य नक्षत्र का स्वामी शनि को माना गया है, इसलिए नक्षत्र में शनि के गुण-दोषों को भी देखना जरूरी माना जाता है।
पंचांग के अंग में नक्षत्र का स्थान द्वितीय स्थान पर है। सर्वाधिक गति से गमन करने वाले चंद्रमा की स्थिति के स्थान को इंगित करते हैं जो कि मन व धन के अधिष्ठाता हैं। हर नक्षत्र में इनकी उपस्थिति विभिन्ना प्रकार के कार्यों की प्रकृति व क्षेत्र को निर्धारण करती है। इनके अनुसार किए गए कार्यों में सफलता की मात्रा अधिकतम होने के कारण उन्हें मुहूर्त के नाम से जाना जाता है।
मुहूर्त का ज्योतिष शास्त्र में स्थान एवं जनसामान्य में इसकी महत्ता विशिष्ट है। कार्तिक अमावस्या के पूर्व आने वाले पुष्य नक्षत्र को शुभतम माना गया है। जब यह नक्षत्र सोमवार, गुरुवार या रविवार को आता है,… तो एक विशेष वार नक्षत्र योग निर्मित होता है। जिसका संधिकाल में सभी प्रकार का शुभफल सुनिश्चित हो जाता है। गुरुवार को इस नक्षत्र के पड़ने से गुरु पुष्य नामक योग का सृजन होता है। यह क्षण वर्ष में कभी-कभी. आता है।
पुष्य योग में देवी लक्ष्मी के इस स्तव का जाप करने से बना जा सकता है छप्पर फाड़ संपत्ति का स्वामी

श्री लक्ष्मी स्तव का पाठ
नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते ।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोस्तुते ॥1॥
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि ।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते ॥2॥
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयङ्करि ।
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते ॥3॥

सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि ।
मंत्रपूते सदा देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते ॥4॥

आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि ।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोस्तुते ॥5॥
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे ।
महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते ॥6॥

पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि ।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोस्तुते ॥7॥
श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते ।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोस्तुते ॥8॥

महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः ।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ॥9॥

एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम् ।
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वितः ॥10॥
त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम् ।
महालक्ष्मिर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा ॥11॥

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