सरकार सभी भारतीय भाषाओं के विकास को प्रतिबद्ध- “निशंक” केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री

कस्तूरीरंगन समिति ने नई शिक्षा नीति का मसौदा सरकार को सौंपा था . इसके तहत नई शिक्षा नीति में तीन भाषा प्रणाली को लेकर केंद्र के प्रस्ताव पर हंगामा मचना शुरू हो गया है. इसे लेकर तमिलनाडु से विरोध की आवाज उठ रही है. स्कूलों में त्रिभाषा फार्मूले संबंधी नई शिक्षा नीति के मसौदे पर उठे विवाद के बाद मानव संसाधन मंत्रालय ने ड्राफ्ट रिपोर्ट में बदलाव किया है. नए बदलाव के अनुसार, अब 5वीं क्लास तक हिंदी पढ़ना अनिवार्य नहीं होगा. साथ ही मातृभाषा के नाम पर छात्र तीन में से कोई भी भाषा चुन सकते हैं. बता दें कि हिंदी भाषा के दक्षिण के राज्यों में विरोध को देखते हुए यह बदलाव किया गया है. तमिलनाडू, कर्नाटक सहित महाराष्ट्र में हिंदी को अनिवार्य करने का लगातार विरोध हो रहा था. नई शिक्षा नीति के मसौदे के अनुसार 5वीं क्लास तक 3 भारतीय भाषा पढ़ना अनिवार्य किया गया था, जिसमें से एक हिंदी भी थी. Logon www.himalayauk.org (Leadidng Digital Newsportal) CS JOSHI

स्कूलों में त्रिभाषा फार्मूले संबंधी नई शिक्षा नीति के मसौदे पर उठे विवाद के बीच केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने स्पष्ट किया था कि सरकार अपनी नीति के तहत सभी भारतीय भाषाओं के विकास को प्रतिबद्ध है और किसी प्रदेश पर कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी. निशंक ने स्पष्ट किया था, ‘हमें नई शिक्षा नीति का मसौदा प्राप्त हुआ है, यह रिपोर्ट है. इस पर लोगों एवं विभिन्न पक्षकारों की राय ली जायेगी, उसके बाद ही कुछ होगा. कहीं न कहीं लोगों को गलतफहमी हुई है.’ उन्होंने कहा था कि हमारी सरकार, सभी भारतीय भाषाओं का सम्मान करती है और हम सभी भाषाओं के विकास को प्रतिबद्ध है. किसी प्रदेश पर कोई भाषा नहीं थोपी जायेगी. यही हमारी नीति है, इसलिये इस पर विवाद का कोई प्रश्न ही नहीं है. निशंक ने कहा, ‘कुछ लोग इसे लेकर राजनीतिक विवाद पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं. जबकि ऐसा कुछ नहीं है. अभी तो यह केवल मसौदा है.’

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने स्पष्ट किया था कि सरकार अपनी नीति के तहत सभी भारतीय भाषाओं के विकास को प्रतिबद्ध है और किसी प्रदेश पर कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी. निशंक ने कहा था, ‘हमें नई शिक्षा नीति का मसौदा प्राप्त हुआ है, यह रिपोर्ट है. इस पर लोगों एवं विभिन्न पक्षकारों की राय ली जायेगी, उसके बाद ही कुछ होगा. कहीं न कहीं लोगों को गलतफहमी हुई है.’ उन्होंने कहा था कि हमारी सरकार, सभी भारतीय भाषाओं का सम्मान करती है और हम सभी भाषाओं के विकास को प्रतिबद्ध है. किसी प्रदेश पर कोई भाषा नहीं थोपी जाएगी. यही हमारी नीति है, इसलिए इस पर विवाद का कोई प्रश्न ही नहीं है. निशंक ने कहा, ‘कुछ लोग इसे लेकर राजनीतिक विवाद पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं. जबकि ऐसा कुछ नहीं है. अभी तो यह केवल मसौदा है.’

 मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत नई शिक्षा नीति पर विवाद के साथ हुई है. शिक्षा नीति के ड्राफ्ट में दक्षिण के राज्यों में तीन भाषा फॉर्मूला लागू करने में हिंदी भाषा को अनिवार्य करने पर बवाल हो गया. अब सरकार की ओर से इसमें बदलाव किया गया है, अब सरकार की ओर से ड्राफ्ट शिक्षा नीति में बदलाव किया गया है. जिसके तहत हिंदी के अनिवार्य होने वाली शर्त हटा दी गई है.

सोमवार सुबह भारत सरकार ने अपनी शिक्षा नीति के ड्राफ्ट में बदलाव किया. पहले तीन भाषा फॉर्मूले में अपनी मूल भाषा, स्कूली भाषा के अलावा तीसरी लैंग्वेज के तौर पर हिंदी को अनिवार्य करने की बात कही थी. लेकिन सोमवार को जो नया ड्राफ्ट आया है, उसमें फ्लेक्सिबल शब्द का इस्तेमाल किया गया है.

यानी अब स्कूली भाषा और मातृ भाषा के अलावा जो तीसरी भाषा का चुनाव होगा, वह स्टूडेंट अपनी मर्जी के अनुसार कर पाएंगे. यानी कोई भी तीसरी भाषा किसी पर थोपी नहीं जा सकती है. इसमें छात्र अपने स्कूल, टीचर की सहायता ले सकता है, यानी स्कूल की ओर से जिस भाषा में आसानी से मदद की जा सकती है छात्र उसी भाषा पर आगे बढ़ सकता है.

 दरअसल, शिक्षा नीति से पहले आई कस्तूरीरंगन समिति ने अपनी रिपोर्ट में सरकार से अपील की है कि राज्यों को हिंदीभाषी, गैर हिंदीभाषी के तौर पर देखा जाना चाहिए. अपील की गई है कि गैर हिंदीभाषी राज्यों में क्षेत्रीय और अंग्रेजी भाषा के अलावा तीसरी भाषा हिंदी लाई जाए और उसे अनिवार्य कर दिया जाए.

भाषा का ये विवाद पूरी तरह से राजनीतिक हो गया है. दक्षिण भारत की राजनीतिक पार्टियों ने केंद्र सरकार पर हिंदी थोपने का आरोप लगाया है, तो वहीं सरकार सफाई दे रही है कि अभी ये सिर्फ ड्राफ्ट है, फाइनल नीति नहीं है. सरकार की ओर से आश्वासन दिया गया है कि किसी पर भी भाषा थोपी नहीं जाएगी, हर किसी से बात करने के बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा.

 पिछले शुक्रवार को के कस्तूरीरंगन समिति ने नई शिक्षा नीति का मसौदा सरकार को सौंपा था. इसके तहत नई शिक्षा नीति में तीन भाषा प्रणाली को लेकर केंद्र के प्रस्ताव पर हंगामा मचना शुरू हो गया है. इसे लेकर तमिलनाडु से विरोध की आवाज उठ रही है.

द्रमुक के राज्यसभा सांसद तिरुचि सिवा और मक्कल नीधि मैयम नेता कमल हासन ने इसे लेकर विरोध जाहिर किया है. तिरूचि सिवा ने केंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि हिंदी को तमिलनाडु में लागू करने की कोशिश कर केंद्र सरकार आग से खेलने का काम कर रही है.

 सिवा ने कहा कि हिंदी भाषा को तमिलनाडु पर थोपने की कोशिश को यहां के लोग बर्दाश्त नहीं करेंगे. हम केंद्र सरकार की ऐसी किसी भी कोशिश को रोकने के लिए, किसी भी परिणाम का सामना करने के लिए तैयार हैं. वहीं, कमल ने कहा कि मैंने कई हिंदी फिल्मों में अभिनय किया है, मेरी राय में हिंदी भाषा को किसी पर भी थोपा नहीं जाना चाहिए.

क्या कहा गया है मसौदे में
बहरहाल, नई शिक्षा नीति के मसौदे में कहा गया है कि एक अजनबी भाषा में अवधारणाओं पर समझ बनाना बच्चों के लिये मुश्किल होता है और उनका ध्यान अक्सर इसमें नहीं लगता है. ऐसे में यह स्थापित हो चुका है कि शुरूआती दिनों में बच्चों को उनकी मातृभाषा में सिखाया जाए तो वे काफी सहज महसूस करते हैं . जहां तक संभव हो, कम से कम पांचवीं कक्षा तक मातृभाषा में ही बच्चों को सिखाया जाए. लेकिन वांछनीय हो तो कक्षा आठ तक सीखने सिखाने की प्रक्रिया, घर की भाषा या मातृ भाषा में हो.

मसौदे में आगे कहा गया है कि छोटे बच्चों की सीखने की क्षमताओं को पोषित करने के लिये प्री स्कूल और ग्रेड 1 से ही तीन भाषाओं से अवगत कराना शुरू किया जाए ताकि ग्रेड 3 तक आते आते बच्चे न केवल इन भाषाओं में बोलने लगे बल्कि लिपि भी पहचानने लगे और बुनियादी सामग्री पढ़ने लगे . इसमें आगे कहा गया है, ‘‘ बहुभाषी देश में बहुभाषिक क्षमताओं के विकास और उन्हें बढ़ावा देने के लिये त्रिभाषा फार्मूले को अमल में लाया जाना चाहिए .’’

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