सुप्रीम कोर्ट है कोकिला कोटगाडी देवी – अतिश्योक्ति मानने की भूल न करें

यहाँ पर माँ भगवती साक्षात है ; नाम लेने मात्र से जाग्रत होने वाली न्‍याय की देवी चमत्कार दिखाती है,   राजदरबार से जिसको न्‍याय न मिला हो, राजदरबार की सत्‍ता को भी हिलाने वाली न्‍याय की देवी- यहां सुप्रीम कोर्ट यानि अंतिम न्‍याय देती है;   समाज से न्याय न मिल पाने से या छले गये पीडित को न्याय के इस सुप्रीम कोर्ट में आश्रय मिलता है, कोटगाडी देवी का दरबार सुप्रीम कोर्ट की मान्यता लिये है, सावधान भी कर रहे हैं हम आपको- इसे  अतिश्योक्ति मानने की भूल न करें,  मान्यता है, कि रोजाना ब्रहम व मूहत में माता कोकिला मंदिर केे नीचे नैसर्गिक जल से स्नान करने आती है- 

सुप्रीम कोर्ट की मान्‍यता लिये न्‍याय की देवी मॉ कोटगाडी पर एक आलेख- हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल की विशेष प्रस्‍तुति-

 न्याय की यह देवी पिथौरागढ जनपद के डीडीहाट क्षेत्र मे है, कोकिला कोटगाडी देवी न्याय की देवी के रूप में विख्यात एक नही सैकडो चमत्कारिक करिश्मे है, जब न्याय की उम्मीद नही रह जाती है, राजदरबारी सत्‍ता के मद में मस्‍त हो  जाये, तब

कोटगाडी देवी की शरण में न्याय मिलता है, कोटगाडी देवी उसे अवश्य ही न्याय देती है,  जिस प्रकार अंतिम न्याय सुप्रीम कोर्ट में मिलता है, उसी प्रकार जब सभी देवता कुछ विशेष परिस्थितियों में स्वयं को न्याय देने व फल प्रदान करने में असमर्थ मानते है तो ऐसी स्थिति में कोकिला कोटगाडी देवी न्याय देती है; यहाँ पर पूरे विश्व से लोग दर्शन करने आते है; , मंदिर में फरियादों के असंख्य पत्र न्याय की गुहार के लिए लगते रहते रहे है, दूर-दराज से श्रद्वा लुजन डाक द्वारा भी मंदिर के नाम पर पत्र भेजकर मनौती मागते है, तथा मनौती पूर्ण होने पर दर्षन के लिए यहा अवष्य पधारते है, 

मान्यता है, कि रोजाना ब्रहम व मूहत में माता कोकिला इस जल से स्नान करती है। मंदिर के पास ही माता गंगा का एक पावन जल कुण्ड है,  सच्चे श्रद्वालुओं को इस पहर में यहां पर माता के वाहन शेर के दर्शन होते है, इस प्रकार की एक नही सैकडों दंत कथाएं इस शक्तिमयी देवी के बारे प्रचंलित है, जो माता कोकिला के विशेश महात्मय को दर्शाती है, इस दरबार में माता कोकिला के साथ बाण मसूरिया, उडर, घषाण आदि अनेकों देवताओं की पूजा की जाती है स्थानीय गाँव के पुजारी पाठक मंदिर में पूजा अर्चना का कार्य सम्पन करते है। वर्तमान में चन्‍द्रशेखर पाठक जी पुजारी है।

कोट का तात्पर्य अदालत से माना जाता है, पीडतों को तत्काल न्याय देने के कारण ही इस देवी को न्याय की देवी माना जाता है, और इसी भाव से इनकी पूजा प्रतिश्ठा सम्पन कराने की परम्परा है, एक प्राचीन कथा के अनुसार जब योगेश्वर भगवान श्री कृश्ण ने बालपन में कालिया नाग का मर्दन किया और उसे जलाशय छोडने को कहा तो कालिया नाग व उसकी पत्नियों ने भगवान कृश्ण से क्षमा याचना कर प्रार्थना की कि, हे प्रभु हमे ऐसा सुगन स्थान बताये जहाँ हम पूर्णतः सुरक्षित रह सके तब भगवान श्री कृश्ण ने इसी कश्ट निवारिणी माता कीश््रशरण में कालिया नाग को भेजकर अभयदान प्रदान किया था।

एक बार चमत्कारिक घटना हुईःमाता ने जज को ही तलब कर दिया जज ने माता के दरबार में पहुचकर अपराधी करार व्यक्ति को निर्दोष बताया ; पीडितों को तत्काल न्याय देने के कारण ही इस देवी को न्याय की देवी माना है;

हिमालय की पावन भूमि जनपद पिथौरागढ के पाखू नामक क्षेत्र में स्थित कोकिला देवी का दरबार भक्त जनों के लिए माता भवानी की और से उनकी कृपा की अलौकिक सौगात है, अभीष्ट कार्यों की सिद्वियों के लिए इनकी ्रशरणागत सब प्रकार से मनोंवाछित फल प्रदान करने वाली कही गयी है, मंदिर में फरियादों के असंख्य पत्र न्याय की गुहार के लिए लगते रहते रहे है, दूर-दराज से श्रद्वालु डाक द्वारा भी मंदिर के नाम पर पत्र भेजकर मनौती मागते है, तथा मनौती पूर्ण होने पर दर्शन के लिए यहा अवश्य पधारते है,

 कोटगाडी देवी को न्याय की देवी भी कहा जाता है I मान्यता है की जिसे कही से न्याय नहीं मिलता उसे इस मंदिर से अवश्य न्याय मिलता है I इस मंदिर की खासियत ये है की यहाँ आप सच्चे दिल जो भी मांगो उससे माता अवस्य पूरा करती है I यह कुमाऊ का एक प्रसिद्ध मंदिर है जहा प्रतिदिन श्रधालुवो का ताता लगा रहता है I कोटगाडी देवी मंदिर पिथौरागढ़ जिले में स्थित है I पिथौरागढ़ से इस मंदिर की दूरी लगभग 72 किमी है I मॉ कोटगाडी तथा नागो के पुजारी पतेत ग्राम, डीडीहाट के जोशी लोग होते है, अब दशोली के पाठक मॉ की पूजा पाठ करते है, नागो के पूजारी आज भी जोशी खानदान है, ग्राम वर्षायांत कोली पो0 पतेत में स्थित नागों देवता अपने क्षेत्र की रक्षा करते हैं, उसका वर्णन भी आज विज्ञान को चुनौती है, उसका विस्तार से वर्णन दूसरी स्टोंरी में होगा-

नागो के पुजारी है जोशी खानदान-

 कालिया नाग का प्राचीन मंदिर कोटगाडी से थोडी ही दूरी पर पर्वत की चोटी पर स्थित है जिसे स्थानीय भाशा में ’’काली नाग को डान कहते है, बताते है, पर्वत की चोटी पर स्थित इस मदिर को कभी भी गरुड आर-पार नही कर सकते ऐसी परमकृपा है, कोटगाडी माता की कालिया नाग पर इस मंदिर की ्रशक्ति पर किसी ्रशस्त्र के वार का गहरा निशान स्पश्ट रुप में दिखाई देता है, कोकिला माता की छत्रछाया में विराजमान काली नाग को भी काली का परम उपासक माना जाता है। कालिया नाग मंदिर के दर्शन स्त्रियों के लिए अनश्टिकारी माने जाते है, जिसे श्राप का प्रभाव कहा जाता है। 

कुमाऊ मण्डल में जनपद नैनीताल के हरतोला क्षेत्र में स्थित कोकिला वन की कोकिला माता इन्ही का रुप मानी जाती है, दारमा घाटी के कनार क्षेत्र में भी माता विराजमान है, भक्तों का यह भी मत है, कि कत्यूर घाटी से इन्हें इनके भक्तजन चंदवशीय राजा लोग नेपाल को ले जा रहे थ,े लेकिन माँ को यह स्थान भा गया और वे यही स्थापित हो गयी माता की कृपा से ही कालीय नाग को भद्रनाग नामक पुत्र की प्राप्ति हुई,भदनाग की महिमा का वर्णन मानस खण्ड के ५१ वे अध्याय में आता है, इन्होंने माता भद्रकाली की घोर आराधना करके विशेष सिद्वियां प्राप्त की;  माताकोकिला ; माता भद्रकाली के पूजन के साथ भद्रनाग व कालिया नाग के पूजन से सर्पभय दूर होता है। ज्ञातव्य हो कि माता भद्रकाली का मंदिर बागेश्वर जनपद के कांडा नामक स्थान से लगभग चार पाँच किमी की दूरी पर स्थित है, यह अद्भूत क्षेत्र है, मन्दिर के नीचे गुफा है जिसमें शिव व ्रशक्ति दोनों विराजमान है, 

माता का दरबार श्रद्वा व भक्ति का संगम है, जो सदियों से पूज्यनीय है।

प्रस्‍तुति- चन्‍द्रशेखर जोशी मुख्‍य सम्‍पादक- 

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