उत्‍तराखण्‍ड स्‍थित तीर्थ जो है शिव पार्वती का प्रिय स्‍थान

18 मई “मद महेश्वर” के कपाट  खुल रहे हैं #मदमहेश्वर में शिव ने अपनी मधुचंद्ररात्रि मनायी थी #मदमहेश्वर में शिव की नाभि की पूजा #शिव के अलग-अलग अंगों की पूजा#  मदमहेश्वर पंचकेदार का एक और महत्वपूर्ण मंदिर #यहाँ देवताओं की बैठक होती है # केदारनाथ की यात्रा से ही संतोष न कर लें #मान्यता के अनुसार मध्यमहेश्वर में भगवान आशुतोष की नाभि स्थान स्वयम्भू लिंग के रूप में हैंरुद्रनाथजी का मंदिर – शिव पार्वती-सहित यहाँ रहते हैं # शिव के एकानन रूप की पूजा केवल रुद्रनाथ में ही # दुर्लभ प्रतिमा- रुद्रनाथ मंदिर में एकानन शिव के अतिरिक्त शेषशायी विष्णु तथा शिव-परिवार की अत्यंत दुर्लभ मूतियाँ # तुंगनाथ – शिवलिंग का माहात्म्य बहुत अधिक –  तुंगनाथ का यह संपूर्ण क्षेत्र सकल कामनाओं को पूर्ण करने वाला #कल्पेश्वर – शिव की जटाओं की पूजा होती  हैं -इंद्र ने शिव की आराधना की थी और कल्पतरु प्राप्त किया #Madhyamaheshwar (Madmaheshwar) is a Lord Shiva temple #How To Reach Madmaheshwar
ऐसा माना जाता है कि मदमहेश्वर में शिव ने अपनी मधुचंद्ररात्रि मनायी थी। प्रकृति से बड़ा कोई तीर्थ क्या होगा? इस तीर्थ के विषय में यह कहा गया है कि जो व्यक्ति भक्ति से या बिना भक्ति के ही मदमहेश्वर के माहात्म्य को पढ़ता या सुनता है उसे शिवलोक की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति इस क्षेत्र में पिंडदान करता है, वह पिता की सौ पीढ़ी पहले के और सौ पीढ़ी बाद के तथा सौ पीढ़ी माता के तथा सौ पीढ़ी श्वसुर के वंशजों को तरा देता है- “शतवंश्या: परा: शतवंश्या महेश्वरि:। मातृवंश्या: शतंचैव तथा श्वसुरवंशका:।। तरिता: पितरस्तेन घोरात्संसारसागरात्। यैरत्र पिंडदानाद्या: क्रिया देवि कृता: प्रिये।।” (केदारखंड, ४८,५०-५१)।

भगवान शिव के इस धाम तक पहुंचने का रास्‍ता आसान नहीं है.  भीम ने मध्‍यमहेश्‍वर मंदिर की स्‍थापना की व यहां रहकर शिव का पूजन किया. मंदिर के गर्भगृह में नाभि के आकार का काले पत्‍थर का बना हुआ शिवलिंग स्‍थापित है. समुद्र तल से 11,450 फीट की ऊंचाई पर स्‍थित है मध्‍यमहेश्‍वर मंदिर.

www.himalayauk.org (HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND) Web & Print Media: Publish at Dehradun & Haridwar ; Report by: chandra shekhar Joshi- ediotor 

सारी दुनिया में शिव के लाखों मंदिर हैं। लेकिन गढ़वाल के सुरम्य पर्वतांचल में स्थित पंचकेदार सर्वोपरि हैं। ये पंचकेदार हैं- सुप्रसिद्ध विश्वतीर्थ केदारनाथ, मदमहेश्वर, रुद्रनाथ, तुंगनाथ और कल्पेश्वर। इन पाँच केदारों में शिव के अलग-अलग अंगों की पूजा की जाती है। केदारनाथ में शिव के पृष्ठ भाग की, तुंगनाथ में उनकी भुजाओं की, रुद्रनाथ में उनके मुख की, कल्पेश्वर में जटाओं की और मदमहेश्वर में उनकी नाभि की पूजा होती है। इन पंचकेदारों की दुर्लभ शृंखला में अनोखी प्राकृतिक दृश्यावलियाँ हैं, जो बरबस ही पर्यटकों के मन को मोह लेती हैं।

शिवपुराण के अनुसार महाभारत के युद्ध के बाद पांडव अपने कुल-परिवार और सगोत्र बंधु-बाँधवों के वध के पाप का प्रायश्चित करने के लिए यहाँ तप करने आये थे। यह आज्ञा उन्हें वेदव्यास ने दी थी। पांडव स्वगोत्र-हत्या के दोषी थे। इसलिए भगवान शिव उनको दर्शन नहीं देना चाहते थे। भगवान शिव ज्यों ही महिष (भैंसे) का रूप धारण कर पृथ्वी में समाने लगे, पांडवों ने उन्हें पहचान लिया। महाबली भीम ने उनको धरती में आधा समाया हुआ पकड़ लिया। शिव ने प्रसन्न होकर पांडवों को दर्शन दिये और पांडव गोत्रहत के पाप से मुक्त हो गये। उस दिन से महादेव शिव पिछले हिस्से से शिलारूप में केदारनाथ में विद्यमान हैं। उनका अगला हिस्सा जो पृथ्वी में समा गया था, वह नेपाल में प्रकट हुआ, जो पशुपतिनाथ के नाम से प्रसिद्ध है। इसी प्रकार उनकी बाहु तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमहेश्वर में और जटाएँ कल्पेश्वर में प्रकट हुईं।

रुद्रनाथजी का मंदिर -छोटा-सा गुफा मंदिर। एक सीधी खड़ी चट्टान की उपत्यका में यह गुफा बनी हुई है। आसपास चारों ओर मनोरम पर्वत शृंखलाएँ। ये शृंखलाएँ मई-जून में भी बर्फ से ढकी रहती हैं। अगस्त-सितम्बर में तो कहने ही क्या? सैकड़ों तरह के फूलों की सुगंध से पूरी घाटी गमकती रहती है। हरे-भरे घास के मैदान (बुग्याल) गलीचे से बिछे दिखायी देते हैं। ब्रह्मकमल और फेन कमल सरीखे दुर्लभ पुष्पों के साथ ही अनेक तरह की जड़ी-बूटियाँ इस घाटी की दुर्लभ संपदा हैं। सालमपंजा, अतीस, कुटकी, जटामासी, गुग्गुल, वज्रदंती पर्याप्त मात्रा में यहाँ मिलती हैं। सामने भोजपत्र का वनखंड है। मंदिर के दक्षिणी छोर पर सूरजकुंड है। उत्तर-पश्चिम में सरस्वती कुंड। इसी दिशा में एक कि.मी. दूर मानसकुंड भी है। मंदिर के नीचे पूर्व की ओर वैतरणी कुंड दिखायी देता है। दक्षिण-पश्चिम में एक विस्तीर्ण मैदान है जो खूब हरा-भरा रहता है। पुजारी ने बताया कि यह देवांगनी है। यानि यहाँ देवताओं की बैठक होती है। देवांगनी, यानि देवताओं का आँगन। कामेट, त्रिशूल, नंदाघुंटी, नीलकंठ की पर्वत-चोटियाँ इस घाटी के चारों ओर बहुत ही भव्य सौंदर्य की सृष्टि करती हैं। देवांगनी के नीचे नारदकुंड दिखायी देता है।
मंदिर में एकानन रुद्र की स्वयंभू प्रतिमा है। यह अत्यंत दुर्लभ प्रतिमा मानी जाती है। शिव के एकानन रूप की पूजा केवल रुद्रनाथ में ही होती है। जबकि शिव के चतुरानन की पूजा काठमांडू में और पंचानन की पूजा मानसरोवर में होती है। इस आकर्षक एकानन स्वयंभू मूर्ति की पूजा यहाँ श्रावणमास में जय-विजय पुष्पों से और शेष समय में ब्रह्मकमलों से करने का विधान है। ज्येष्ठ संक्रांति के दिन से मंदिर के पट खुलते हैं और कार्तिक संक्रांति को बंद हो जाते हैं। रुद्रनाथ मंदिर में एकानन शिव के अतिरिक्त शेषशायी विष्णु तथा शिव-परिवार की अत्यंत दुर्लभ मूतियाँ रखी हुई हैं। पुजारी इन दुर्लभ मूर्तियों को चोरी के भय से कहीं गुप्त स्थान पर रख देते हैं। रुद्रनाथ शिव के इस मंदिर का महत्व इस प्रकार बताया गया है- “शिवमुखं तत्र सर्वाभरण भूषितम्। एतस्य दर्शनादेव मुक्तो भवनि मानवः।” पौराणिक कथा है कि अंधक नामक दैत्य ने सभी लोकपालों-सहित इंद्र को भी परास्त कर दिया और अमरावती को जीत लिया। देवता पृथ्वी पर भटकने लगे। तब देवताओं ने यहाँ रुद्रालय में तपस्या की। शिव ने उनके तप से प्रसन्न होकर उन्हें अभयदान दिया। तब से शिव पार्वती-सहित यहाँ रहते हैं। उन्हें यह स्थान अत्यंत प्रिय है। प्रकृति का इतना नयनाभिराम दृश्य और भला कहाँ होगा?

तुंगनाथ – शिवलिंग का माहात्म्य बहुत अधिक –  तुंगनाथ का यह संपूर्ण क्षेत्र सकल कामनाओं को पूर्ण करने वाला

तुंगनाथ। शिव का सर्वाधिक ऊँचाई (३७५० मीटर) पर बना मंदिर। इस मंदिर में स्थित शिवलिंग का माहात्म्य बहुत अधिक है। कहा गया है कि जो व्यक्ति शिव की पूजा इस शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ा कर करता है वह हजार वर्षों तक शिवलोक में ऐश्वर्य भोगता है। तुंगनाथ का यह संपूर्ण क्षेत्र सकल कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। संपूर्ण पापों का नाशक है। स्वयं शिव अपनी प्रिया पार्वती से कहते हैं कि मेरा यह क्षेत्र सत्यतारा पर्वत पर स्थित है। यहाँ पूर्वकाल में तारागणों (सप्तऋषियों) ने उच्चपद-प्राप्ति के लिए घोर तप किया था। सत्व भाव गुणों के द्वारा आराधना करने के कारण इस पर्वत का नाम भी सत्यतारा हो गया। मैंने प्रसन्न होकर उन्हें तुंगपद दे दिया। अतएव इस क्षेत्र का नाम तुंगक्षेत्र हो गया। जिस स्वयं भू लिंग की उन्होंने आराधना की उसे तुंगनाथ कहा गया। यह परम क्षेत्र देवताओं को भी दुर्लभ है। इसके दर्शनमात्र से ही पाप का क्षय होकर परम पद की प्राप्ति होती है।

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उत्तराखण्ड में चार धाम हैं- यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ। पांच केदार हैं- केदारनाथ, मदमहेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ और कल्पेश्वर। इसी तरह पांच बद्री भी हैं- बद्रीनाथ, आदि बद्री, भविष्य बद्री, योग-ध्यान बद्री और वृद्ध बद्री।
इसी तरह पांच बद्री भी हैं- बद्रीनाथ, आदि बद्री, भविष्य बद्री, योग-ध्यान बद्री और वृद्ध बद्री।
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कल्पेश्वर – शिव की जटाओं की पूजा होती  हैं -इंद्र ने शिव की आराधना की थी और कल्पतरु प्राप्त किया

कल्पेश्वर; पुराणकार कहते हैं कि इस स्थान पर इंद्र ने दुर्वासा ऋषि के श्राप से मुक्ति पाने के लिए शिव की आराधना की थी और कल्पतरु प्राप्त किया था। तभी से इस स्थान पर शिव ‘कल्पेश्वर’ नाम से प्रसिद्ध हुए। समुद्रतल से २१३४ मीटर की ऊँचाई पर कल्पेश्वर अथवा कल्पनाथ का यह छोटा-सा गुफा मंदिर है, रुद्रनाथ की भाँति। लेकिन यहाँ शिव की जटाओं की पूजा होती है। बेशक इस स्थान की ऊँचाई अन्य केदारों से कम है, लेकिन फिर भी यहाँ आसपास प्रकृति का अनुपम सौंदर्य बिखरा पड़ा है। यह सौंदर्य अन्य चार केदारों से कम भले ही हो, लेकिन उतना ही पवित्र और आत्मीय है।

 

“मद महेश्वर” के कपाट 18 मई   को खुल रहे हैं

मध्य नवंबर तक यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ और कल्पेश्वर के कपाट बंद हो जाते हैं बस बद्रीनाथ और मदमहेश्वर के कपाट खुले होते। मदमहेश्वर जाने के लिए रुद्रप्रयाग जिले में ऊखीमठ तक जाना होता है। रुद्रप्रयाग से बसें और जीपें मिलती हैं। ऊखीमठ में मुख्य बाजार से सीधा रास्ता उनियाना जाता है जो आजकल मदमहेश्वर यात्रा का आधार स्थल है। उनियाना से मदमहेश्वर की दूरी 23 किलोमीटर है जो पैदल नापी जाती है।

मदमहेश्वर के पास ही एक चोटी है। इसका रास्ता कम ढलान वाला है। पेड भी नहीं हैं। एक तरह का बुग्याल है। उस चोटी को बूढा मदमहेश्वर कहते हैं। डेढ-दो किलोमीटर चलना पडता है। जैसे-जैसे ऊपर चढते जाते हैं तो चौखंबा के दर्शन होने लगते हैं। बिल्कुल ऊपर पहुंचकर महसूस होता है कि हम दुनिया की छत पर पहुंच गए हैं। दूर ऊखीमठ और गुप्तकाशी भी दिखाई देते हैं। चौखंभा चोटी तो ऐसे दिखती है मानो हाथ बढाकर उसे छू लो।

मदमहेश्वर जाने के लिए सबसे पहले दिल्ली से हरिद्वार ऋषिकेश होते हुए रुद्रप्रयाग जाना पडेगा। रुद्रप्रयाग से केदारनाथ जाने वाली सडक पर गुप्तकाशी से कुछ पहले कुण्ड नामक जगह आती है जहां से ऊखीमठ के लिए सडक अलग होती है। ऊखीमठ पहुंचकर उनियाना के लिए टैक्सियां, जीपें और बसें मिल जाएंगी। उनियाना से पैदल यात्रा शुरू होती है जो 23 किलोमीटर लंबी है और रांसी, गौण्डार होते हुए मदमहेश्वर पहुंचती है। यहां केवल सीजन में ही जाया जा सकता है। जब तक भी कपाट खुलते हैं, कभी भी जा सकते हैं। आमतौर पर मदमहेश्वर के कपाट केदारनाथ के लगभग साथ ही खुलते हैं और केदारनाथ के कपाट बन्द होने के बाद बन्द होते हैं। सीधी सी बात है कि अगर आप केदारनाथ जा रहे हैं तो मदमहेश्वर भी जा सकते हैं। अगर चार धाम यात्रा सीजन के अलावा आप वहां जाना चाहते हैं तो रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय से अनुमति लेनी पडेगी।

Madhyamaheshwar (Madmaheshwar) is a Lord Shiva temple, is part of famous Panch Kedar. The temple is located at an altitude of 3497 mts and is the fourth temple to be visited in the Panch Kedar Pilgrimage circuit. The other temples in the circuit include: Kedarnath, Tungnath and Rudranath to be visited before Madmaheshwar and Kalpeshwar to be visited after Madmaheshwar. Madhya Maheshwar temple is located in the Mansuna village of Garhwal Himalayas in Uttarakhand, India. The middle (madhya) or belly part or navel (nabhi) of the bull, considered a divine form of Shiva, is worshipped at this temple, believed to be built by the Pandavas, the heroes of the Hindu epic Mahabharata.

There is also an old temple known as Vriddh-Madmaheshwar, located on the ridge which looks straight up at the commanding Chaukhamba peaks.

Madhyamaheshwar History and Legend

The legend of Madhyamaheswar is an integral part of the legend of Panch Kedar, which is a captivating narration of the efforts of Pandavas to atone for the
sins of their fratricide (gotra- hatya) act of killing their cousins, the Kauravas, and Brahmanahatya (killing of Brahmins – the priest class), during the epic Mahabharata war. On advice from sages and their trusted benefactor god Krishna they sought Lord Shiva to pardon them and bless them to attain salvation.

Since Shiva was annoyed with them for their conduct during the Kurukshetra war, he tried to avoid them by assuming the animal form of a bull or Nandi and hid himself in the Himalayan Garhwal region. But the determined Pandavas, after sighting Shiva in the form of the bull grazing in the hills of Guptakashi, tried to forcibly hold the bull by its tail and hind legs. But the bull disappeared into the ground to reappear later in his original self of Lord Shiva at five places; in the form of a hump at Kedarnath, in the shape of bahu (arms) at Tungnath, with his face at Rudranath, his nabhi (navel) and stomach at Madhyamaheswar and his hair (locks) called jata at Kalpeshwar.

Pandavas, pleased with the revelation of Lord Shiva at five places in different forms, built temples at these five places, worshipped him and attained salvation with blessings of Shiva.

Inside Madmaheshwar Temple

A navel-shaped Shiva-lingam made of black stone, is enshrined in the sanctum. There are two other smaller shrines, one for Shiva’s consort Parvati and the other dedicated to the Ardhanarishwara, a half-Shiva half-Parvati image. To the right of the main temple there is a small temple where the image of Saraswati made of marble is installed in the sanctum.

Pooja in Madmaheshwar Temple

Priests at this temple are from South India and at this particular temple they are called Jangamas of the Lingayat cast who hail from Mysore in Karnataka state.

Madmaheshwar Opening and Closing Timings

The worship at this temple starts from a specified time period from the beginning of the summer months after the winter and lasts till October/November from start of the winter season when the temple precincts are not accessible due to snow conditions.

During the winter period, the symbolic idol of the god is shifted with religious formalities to Ukhimath for continued worship.

Madhmaheshwar as Trekking Destination

MadMaheshwar itself is a moderate trek which is 21 kms from Uniana. The base of the trek is Uniana which is 18 kilometres away from Ukhimath. The region has rich flora and fauna, particularly the endangered species of Himalayan Monal pheasant and Himalayan Musk Deer in the Kedarnath Wild Life Sanctuary.

Trekking Route: Uniyana – Ransi Village (3 kms) – Gaundhar (6 km) – Bantoli (1 km) – Khatara – Nanu – Madhyamaheswar.

Gaundhar and Kalimath are two important places on the route to Madhyamaheshwar. Kalimath is of importance for the large number of pilgrims who visit the place for spiritual comfort and hence it is called the Sidh Peeth (Spiritual center). Kalimath is famous for the temples to goddesses Mahakali and Mahalakshmi, and gods Shiva and one of his ferocious forms – Bhairava. Gaundhar is at the confluence of Madhyamaheshwar Ganga and Markanga Ganga rivers and offers enchanting views.

Other Trek option: Budha MadhyaMaheshwar is a 2 kms steep trek through large moors and valleys and then would reach in a small lake, where a full Panoramic range of Himalayas consisiting of the peaks, Chaukhamba, Kedarnath, Neelkanth, Trishul, Kamet, Panchulli, etc.

Best Time to Visit Madmaheshwar

Best Months: May, June, September, October

Madmaheshwar in Summers (April to August): are very pleasant with moderate climate, with average around 15°C. Summers is ideal for all sight seeing, temple visit and also for visiting nearby attractions.
Madmaheshwar in Monsoons (September to November): are accompanied with scanty rains. This period is good for sight seeing as the hilly panoramic views are very attractive in rains.
Madmaheshwar in Winters (December to March): are chilly days with average minimum touching near 4°C. Minimum can touch sub zero levels.

How To Reach Madmaheshwar

MadMaheshwar by Road (trek): Madhyamaheshwar Temple is on the Kedarnath road linked by a 13 km road to Kalimath from Guptakashi. Further approach from Guptakashi to the temple is only by a 21 km trek after 6 km by road journey.

From Rishikesh to Kalimath the road distance is 196 km. Alternatively, Madhmaheshwar shrine could be reached from Uniyana, via Ukhimath. Guptakashi is on the state highway from Rishikesh via Devprayag, Rudraprayag and Kund. Rishikesh is the entry point to the pilgrim centres of Garhwal Himalayas and is connected by train to the rest of the country.

By Air: The nearest airport is Jolly Grant at a distance of 18 km from Rishikesh. Madhmaheshwar temple is at a distance of 244 km from the airport and 227 km from Rishikesh.

By Train: The nearest railway stations are at Haridwar, Rishikesh, Kotdwar and Dehradun.

 

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