शिवरात्रि ;भगवान शिव और मां शक्ति के मिलन का महापर्व

ग्रहों की स्थिति विचित्र# भगवान शिव और उनकी पत्नी पार्वती की पूजा का पावन दिन जिसमें उनके विवाह का उत्सव मनाया जाता है।  शिवरात्रि आदि देव भगवान शिव और मां शक्ति के मिलन का महापर्व है। शिव जिनसे योग परंपरा की शुरुआत मानी जाती है को आदि (प्रथम) गुरु माना जाता है। परंपरा के अनुसार, इस रात को ग्रहों की स्थिति ऐसी होती है जिससे मानव प्रणाली में ऊर्जा की एक शक्तिशाली प्राकृतिक लहर बहती है। इसे भौतिक और आध्यात्मिक रूप से लाभकारी माना जाता है इसलिए इस रात जागरण की सलाह भी दी गयी है । शिवरात्रि को महिलाओं के लिए विशेष रूप से शुभ माना जाता है। विवाहित महिलाएँ अपने पति के सुखी जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं व अविवाहित महिलाओं भगवान शिव, जिन्हें आदर्श पति के रूप में माना जाता है जैसे पति के लिए प्रार्थना करती हैं।  (HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND) Presents by; CHANDRA SHEKHAR JOSHI- EDITOR 

हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जानेवाला यह महापर्व शिवरात्रि  साधकों को इच्छित फल, धन, सौभाग्य, समृद्धि, संतान व आरोग्यता देनेवाला है। वर्ष 2017 में महाशिवरात्रि का व्रत 24 फरवरी को मनाया जाएगा। 

 शिव पुराण के अनुसार, महाशिवरात्रि पूजा में छह वस्तुओं को अवश्य शामिल करना चाहिए:  शिव लिंग का पानी, दूध और शहद के साथ अभिषेक। बेर या बेल के पत्ते जो आत्मा की शुद्धि का प्रतिनिधित्व करते हैं;  सिंदूर का पेस्ट स्नान के बाद शिव लिंग को लगाया जाता है। यह पुण्य का प्रतिनिधित्व करता है; फल, जो दीर्घायु और इच्छाओं की संतुष्टि को दर्शाते हैं; जलती धूप, धन, उपज(अनाज); दीपक जो ज्ञान की प्राप्ति के लिए अनुकूल है; और पान के पत्ते जो सांसारिक सुखों के साथ संतोष अंकन करते हैं।

महाशिवरात्रि कथा
वैसे तो इस महापर्व के बारे में कई पौराणिक कथाएं मान्य हैं, परन्तु हिन्दू धर्म ग्रन्थ शिव पुराण की विद्येश्वर संहिता के अनुसार इसी पावन तिथि की महानिशा में भगवान भोलेनाथ का निराकार स्वरूप प्रतीक लिंग का पूजन सर्वप्रथम ब्रह्मा और भगवान विष्णु के द्वारा हुआ, जिस कारण यह तिथि शिवरात्रि के नाम से विख्यात हुई। महा शिवरात्रि पर भगवान शंकर का रूप जहां प्रलयकाल में संहारक है वहीं उनके प्रिय भक्तगणों के लिए कल्याणकारी और मनोवांछित फल प्रदायक भी है।

महाशिवरात्रि व्रत में उपवास का बड़ा महत्व होता है। इस दिन शिव भक्त शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग का विधि पूर्वक पूजन करते हैं और रात्रि में जागरण करते हैं। भक्तगणों द्वारा लिंग पूजा में बेल-पत्र चढ़ाना, उपवास और रात्रि जागरण करना एक विशेष कर्म की ओर इशारा करता है।
पौराणिक मान्यता है कि इसी दिन भोलेनाथ की शादी मां शक्ति के संग हुई थी, जिस कारण भक्तों के द्वारा रात्रि के समय भगवान शिव की बारात निकाली जाती है। इस पावन दिवस पर शिवलिंग का विधि पूर्वक अभिषेक करने से मनोवांछित फल प्राप्त होता है। महा शिवरात्रि के अवसर पर रात्रि जागरण करने वाले भक्तों को शिव नाम, पंचाक्षर मंत्र अथवा शिव स्त्रोत का आश्रय लेकर अपने जागरण को सफल करना चाहिए।

पूजन से पहले रखें इन बातों का ध्यान, मिलेगा पुण्य लाभ
सभी उत्सवों में श्रेष्ठ ‘शिवरात्रि’ का त्यौहार 24 फरवरी को है। भक्त लोग शिवरात्रि के दिन होने वाले उत्सव पर सारी रात्रि जागरण करते हैं और यह सोच कर कि खाना खाने से आलस्य, निद्रा और मादकता का अनुभव होने लगता है वे अन्न भी नहीं खाते ताकि उनके उपवास से भगवान शिव प्रसन्न हों परंतु मनुष्यात्माओं को तमोगुण में सुलाने वाले विकारों का मनुष्य त्याग नहीं करता तब तक उसकी आत्मा का पूर्ण जागरण हो ही नहीं सकता और तब तक आशुतोष भगवान शिव भी उन पर प्रसन्न नहीं हो सकते हैं क्योंकि भगवान शिव तो स्वयं ‘कामारि’ (काम के शत्रु) हैं, वह भला ‘कामी’ मनुष्य पर कैसे प्रसन्न हो सकते हैं?

महाशिवरात्रि पर पूजन के लिए जाने से पहले रखें इन बातों का ध्यान
भगवान शिव को प्रिय हैं ये चीजें
जल: ॐ नम: शिवाय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग पर जल चढ़ाएं, स्वभाव से संबंधित सभी विकार शांत होंगे। जब हम ‘शिव’ कहते हैं, तो हम ऊर्जा को एक खास तरीके से, एक खास दिशा में निर्देशित करने की बात करते हैं। ‘शिवम’ में यह ऊर्जा अनंत स्वरुप का रुप धारण करती है। मंत्र ‘ॐ नम: शिवाय’ का महामंत्र भगवान शंकर की उस उर्जा को नमन है जहां शक्ति अपने सर्वोच्च रूप में आध्यात्मिक किरणों से भक्तों के मन-मस्तिष्क को संचालित करती है।

केसर: केसर चढ़ाने से शिष्टता और भद्रता प्राप्त होती है।
चीनी (शक्कर): आर्थिक अभाव से मुक्ति मिलती है।
इत्र: कदम नहीं डगमगाते, भोले बाबा सदा भक्त के अंग-संग रहते हैं।
दूध: शरीर स्वस्थ रहता है।
दही: समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
घी: शक्ति में बढ़ौतरी होती है।
चंदन: समाज में प्रतिष्ठा और वैभव मिलता है।
शहद: बोली मिठी होती है।
भांग: कमियां और बुराइयां समाप्त होती हैं।
भगवान शिव पर न चढ़ाएं ये सामान
शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग पुरुषत्व का सूचक है इसलिए उन पर हल्दी का अर्पण वर्जित है।
शिवलिंग पर लाल रंग, केतकी एवं केवड़े के पुष्प अर्पित नहीं किए जाते।
भगवान शिव पर कुमकुम और रोली का अर्पण भी निषेध है।
भगवान शंकर ने शंखचूर नामक दैत्य का वध किया था, जिसके कारण उनकी पूजा में शंख की मनाही है।
भोलेनाथ पर नारियल अर्पित करना वर्जित है।
शिवलिंग पर और शिवपूजन में तुलसी पत्ते का प्रयोग भी निषेध है।

बारह ज्योतिर्लिंग (प्रकाश के लिंग) जो पूजा के लिए भगवान शिव के पवित्र धार्मिक स्थल और केंद्र हैं। वे स्वयम्भू के रूप में जाने जाते हैं, जिसका अर्थ है “स्वयं उत्पन्न”। बारह स्‍थानों पर बारह ज्‍योर्तिलिंग स्‍थापित हैं।

  1. सोमनायह शिवलिंग गुजरात के काठियावाड़ में स्थापित है।
  2. श्री शैल मल्लिकार्जुनमद्रास में कृष्णा नदी के किनारे पर्वत पर स्थापित है श्री शैल मल्लिकार्जुन शिवलिंग।
  3. महाकालउज्जैन के अवंति नगर में स्थापित महाकालेश्वर शिवलिंग, जहां शिवजी ने दैत्यों का नाश किया था।
  4. ॐकारेश्वरमध्यप्रदेश के धार्मिक स्थल ओंकारेश्वर में र्मदा तट पर पर्वतराज विंध्य की कठोर तपस्या से खुश होकर वरदाने देने हुए यहां प्रकट हुए थे शिवजी। जहां ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित हो गया।
  5. नागेश्वरगुजरात के द्वारकाधाम के निकट स्थापित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग।
  6. बैजनाथबिहार के बैद्यनाथ धाम में स्थापित शिवलिंग।
  7. भीमाशंकरमहाराष्ट्र की भीमा नदी के किनारे स्थापित भीमशंकर ज्योतिर्लिंग।
  8. त्र्यंम्बकेश्वरनासिक (महाराष्ट्र) से 25 किलोमीटर दूर त्र्यंम्बकेश्वर में स्थापित ज्योतिर्लिंग।
  9. घुमेश्वरमहाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एलोरा गुफा के समीप वेसल गांव में स्थापित घुमेश्वर ज्योतिर्लिंग।
  10. केदारनाथहिमालय का दुर्गम केदारनाथ ज्योतिर्लिंग। हरिद्वार से 150 पर मिल दूरी पर स्थित है।
  11. काशी विश्वनाथबनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग।
  12. रामेश्वरम्‌त्रिचनापल्ली (मद्रास) समुद्र तट पर भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग।

Maha Shivaratri   ; “Om Namah Shivaya”, the sacred mantra of Shiva,

Maha Shivaratri is a Hindu festival celebrated annually in honour of the god Shiva. There is a Shivaratri in every luni-solar month of the Hindu calendar, on the month’s 13th night /14th day, but once a year in late winter (February/March) and before the arrival of spring, marks Maha Shivaratri which means “the Great Night of Shiva”.

It is a major festival in Hinduism, but one that is solemn and marks a remembrance of “overcoming darkness and ignorance” in life and the world. It is observed by remembering Shiva and chanting prayers, fasting, doing Yoga and meditating on ethics and virtues such as self-restraint, honesty, noninjury to others, forgiveness and the discovery of Shiva. The ardent devotees keep awake all night. Others visit one of the Shiva temples or go on pilgrimage to Jyotirlingams. This is an ancient Hindu festival whose origin date is unknown. Maha Shivaratri is an annual festival dedicated to the Hindu god Shiva, and is particularly important in the Shaivism tradition of Hinduism. Unlike most Hindu festivals which are celebrated during the day, the Maha Shivaratri is celebrated at night. Furthermore, unlike most Hindu festivals which include expression of cultural revelry, the Maha Shivaratri is a solemn event notable for its introspective focus, fasting, meditation on Shiva, self study, social harmony and an all night vigil at Shiva temples.[

The celebration includes maintaining a “jaagaran”, an all-night vigil and prayers, because Shaiva Hindus mark this night as “overcoming darkness and ignorance” in one’s life and the world through Shiva. Offerings of fruits, leaves, sweets and milk to Shiva are made, some perform all-day fasting with vedic or tantrik worship of Shiva, and some perform meditative Yoga. In Shiva temples, “Om Namah Shivaya”, the sacred mantra of Shiva, is chanted through the day.

Maha Shivaratri is celebrated over three or ten days based on the Hindu luni-solar calendar.[3] Every lunar month, there is a Shivaratri (12 per year). The main festival is called Maha Shivaratri, or great Shivaratri, and this is on 13th night (waning moon) and 14th day of the month Phalguna (Magha). According to the Gregorian calendar, the day falls in either February or March.

महाशिवरात्रि से संबधित कई पौराणिक कथायें है।  एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवशंकर से पूछा, ‘ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?’ उत्तर में शिवजी ने पार्वती को ‘शिवरात्रि’ के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- ‘एक बार चित्रभानु नामक एक शिकारी था | पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।’

शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल-वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो विल्वपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।

पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुंची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, ‘मैं गर्भिणी हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।’ शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई।

कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, ‘हे पारधी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।’ शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, ‘हे पारधी!’ मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो।

शिकारी हंसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे। उत्तर में मृगी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान मांग रही हूं। हे पारधी! मेरा विश्वास कर, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं।

मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में बेल-वृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला, हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा।

मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, ‘मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।’ उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गया। भगवान शिव की अनुकंपा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।

थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आंसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया। देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प-वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए’।

 

छोटी सी इलायची दिखा सकती है बड़े-बड़े कमाल, जानकर हैरान जाएंगे आप करें उपाय
छोटी सी इलायची लगभग हर भारतीय घर की रसोई में मौजुद रहती है। इससे न केवल  व्यंजनों का स्वाद बढ़ता है बल्कि यह आपके जीवन में भी बड़े-बड़े कमाल कर सकती है। तंत्र शास्त्र में इलायची के कुछ ऐसे उपाय बताय गए हैं जिन्हें करने के बाद आप हैरान जाएंगे…
सुंदर सुशील जीवन संगिनी की चाह रखते हैं तो बृहस्पतिवार को सुबह पांच छोटी इलायची पीले रंग के वस्त्र में बांधकर किसी गरीब को दें।
पर्स को धन से भरा रखना चाहते हैं तो 5 छोटी इलायची पर्स में रखें।
नौकरी में उन्नति नहीं मिल रही है तो रात को सोने से पहले हरे रंग के कपड़े में एक छोटी इलायची बांधे। उसे अपने तकिए के नीचे रख लें। सुबह यह इलायची किसी बाहर के व्यक्ति को दे दें।
परिक्षा में अच्छे अंक चाहिए या पढ़ाई से संबंधित किसी भी समस्या का हल। छोटी इलायची को दूध में उबालकर 7 सोमवार किसी गरीब को पिलाएं।

थोड़ा सा जल लेकर उसमें 2 बड़ी इलायची डालें, तब तक उबालें जब तक पानी आधा न रह जाए। इस जल को नहाने के पानी में मिला कर नहाएं। वाहन सुख प्राप्त होगा साथ ही रोग व शोक समाप्त होने लगेंगे।
स्नान करते वक्त शुक्र के इस श्लोक का पाठ करें
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा
जब भी कोई दरिद्र, असहाय या हिजड़ा दिखे तो उसे एक सिक्का और हरी इलायची दें। जब भी मौका मिले ऐसा करते रहा करें। धन संबंधित परेशानी नहीं सताएगी।

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